देवनागरी लिपि का उद्भव
भाषा के विकास के बाद ही लिपि का विकास होता है। लिपियों के विकास की परंपरा में प्रायः जो क्रम मिलता है, उसमें सबसे पहले चित्रलिपि, फिर सूत्रलिपि, प्रतीकात्मक लिपि तथा अक्षरात्मक लिपि से होते हुए अन्त में वर्णात्मक लिपि के विकास को माना गया है। देवनागरी एक अक्षरात्मक लिपि है क्योंकि इसके सारे व्यंजन स्वरों के माध्यम से ही उच्चरित होते हैं ।
भारत में लिपि के विकास की परंपरा में ब्राह्मी लिपि को प्रस्थान बिंदु माना जाता है। इसी की परंपरा में आगे चलकर देवनागरी का विकास हुआ है। ब्राह्मी लिपि के दो रूप प्रचलित रहे हैं- दक्षिणी ब्राह्मी तथा उत्तरी ब्राह्मी। दक्षिणी ब्राह्मी से द्रविड़ परिवार की लिपियों का विकास हुआ तथा उत्तरी ब्राह्मी से उत्तर भारतीय लिपियों का । उत्तरी ब्राह्मी से ही गुप्त काल में गुप्त लिपि विकसित हुई और जब यह साधारण प्रयोग में टेढ़े-मेढ़े अक्षरों से युक्त हो गई तो इसे कुटिल लिपि कहा जाने लगा।
कुटिल लिपि से दो प्रकार की परंपराएँ विकसित हुईं। कश्मीर के पंडितों ने इस कुटिल लिपि को ‘शारदा लिपि’ कहा । कश्मीर के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि में कुटिल लिपि से विकसित होने वाली लिपि को ‘प्राचीन नागरी’ कहा गया। इस प्राचीन नागरी से पुनः कई विकास हुए तथा आधुनिक आर्यभाषाओं जैसे हिन्दी, गुजराती, मराठी और बांग्ला इत्यादि के लिए अलग-अलग लिपियाँ विकसित हुईं। हिन्दी भाषा के लिए विकसित होने वाली लिपि को ही देवनागरी कहा गया।
देवनागरी लिपि के प्रयोग का पहला उदाहरण सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय से मिलने लगता है। दसवीं शताब्दी तक इस लिपि का क्षेत्र पंजाब से बंगाल तथा नेपाल से दक्षिण भारत तक हो गया था। दसवीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक यह लिपि किसी न किसी रूप में हिन्दी देश की मुख्य लिपि बनी रही तथा 19वीं तथा बीसवीं शताब्दी में मानकीकरण के वैयक्तिक और संस्थागत प्रयासों की मदद से अखिल भारतीय लिपि के रूप में विकसित होने लगी। आज भी यह एकमात्र लिपि है जो भारत की सभी भाषाओं की भाषिक विशेषताओं को धारण करके राष्ट्रीय एकीकरण का सशक्त माध्यम बन सकती है।
अन्य जानकारी-
प्राचीनतम शिलालेखों के अनुसार पाँचवीं शती ई. पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के बाद भारत में खरोष्ठी और ब्राह्मी दो लिपियों का प्रयोग प्रचलित था।
खरोष्ठी लिपि
खरोष्ठी लिपि का विकास ‘सामी आरमेइक’ लिपि से माना जाता है।
कुछ विद्वान इसे विदेशी लिपि मानते हैं।
उर्दू की तरह दाएँ से बाएँ को लिखी जाने वाली यह लिपि पहले भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में प्रचलित थी।
इसके प्राचीन लेख शहबाज गढ़ी तथा मनसेश में उपलब्ध हुए हैं।
इस इस लिपि की प्राप्त सामंती चौथी शती ई. पू. से तीसरी शती ई. पूर्व तक की मानी जाती है।
विदेशी राजाओं के शिलालेखों और सिक्कों में भी इसका प्रयोग मिलता है।
ब्राह्मी लिपि
भारतीय विद्वान इसका विकास हड़प्पाकालीन मोहनजोदड़ों सभ्यता से मानते हैं।
विदेशी विद्वानों का मानना है इसका विकास विदेशी लिपियों से हुआ है।
चीन विश्वकोश ‘फावान शु लिन’ (668 ई.) में ब्रह्मा नामक आचार्य को ब्राह्मी लिपि का रचयिता माना गया है।
फ्रांसीसी विद्वान कुपेरी इसका विकास चीनी लिपि से, डॉ. अल्फ्रेड मूलर यूनानी लिपि से, बैवर सामी लिपि से, टेलर दक्षिणी सामी लिपि से ब्राह्मी का विकास मानते हैं।
– इन विद्वानों के तर्कों से भारतीय विद्वान सहमत नहीं हैं।डॉ. राजबली पांडेय और डॉ. भोलानाथ तिवारी ब्राही लिपि का विकास सिंधु घाटी की सभ्यता से मानते हैं।
पाँचवीं शती ई. पूर्व के प्राप्त शिलालेखों के आधार पर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उक्त समयावधि से पूर्व ब्राह्मी लिपि का अस्तित्व था।
मौर्यकाल में इसका पूर्व विकास हो चुका था। विद्वानों का यह भी अनुमान है कि लगभग 350 ई. के उपरांत ब्राह्मी लिपि की दो शैलियाँ उत्तरी शैली और दक्षिणी शैली हुई। इनके विकास को आगे के रेखाकंन से समझा जा सकता है।
ब्राह्मी लिपि के उत्तरी शैली के निम्नलिखित रूप विकसित हुए-
( 1 ) गुप्त लिपि : इस लिपि का प्रयोग पाँचवीं शती ई. तक माना जाता है।
गुप्पकालीन राजाओं के समय में प्रचलित होने के कारण इसे गुप्त लिपि कहा गया है।(2) कुटिल लिपि : इस लिपि का प्रयोग आठवीं शती ई. के बाद तक होता रहा।
गुप्त लिपि के विकसित रूप में स्वरों भी मात्राओं की आकृतियाँ कुटिल (टेढ़ी) हो जाने के कारण इसे कुटिल लिपि कहा गया है।(3) शारदा लिपि : कुटिल लिपि से ही नौंवीं शती में कश्मीर में शारदा लिपि विकसित हुई।
इस लिपि से बाद में टर्की, डोगरी, गुरुमुखी, लण्डा, चमेओली, कोंछा आदि विकसित हुई।नागरी लिपि : दसवीं शती ई. से पूर्व कुटिल लिपि से विकसित प्राचीन नागरी लिपि उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत के कुछ भागों में प्रचलित हो गई थी।
दक्षिणी भारत में इसे ‘नन्दिनागरी’ के रूप में जाना जाता था।उत्तर भारत में प्राचीन नागरी के दो रूप मिलते थे।-
पहले रूप में – वर्तमान नागरी, मराठी, महाजनी, गुजराती।
दूसरे रूप में – कैथी, मैथिली, बंगला, असमिया, उड़िया, मणिपुरी। भारत में प्राचीन नागरी लगभग सोलहवीं शती ई. तक प्रयुक्त होती रही।
नामकरण-
नागरी लिपि के नामकरण के संबंध में विद्वानों की पृथक-पृथक मात्राएँ हैं। विद्वानों का मानना है कि –
( 1 ) नगरों में प्रचलित होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा।
( 2 ) गुजराती ने नागर ब्राह्मणों के द्वारा प्रयुक्त होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा।
(3)मध्ययुगीन स्थापत्य की चतुर्भुज आकृतियों वाली नागर शैली के सदृश होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा।
(4) बौद्धों की संस्कृत पुस्तक ‘ललित निस्त्रार’ उल्लिखित नागरी लिपि के नाम से संबंधित होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा।
देवनागरी नामकरण होने के संबंध में विद्वानों के मत हैं–( 1 ) देवनागर (काशी) में प्रचलित होने के कारण इसका नाम नागरी पड़ा।
(2) तांत्रिक चिह्नन देवनागर के साम्य होने के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।
(3) देव भाषा संस्कृत से संबद्ध होने के कारण इसका नाम देव नागरी पड़ा।
(4) उर्दू लिपि के प्रचारित होने पर इसकी रक्षा का मोह बढ़ जाने के कारण इस लिपि को देवनागरी कहा गया।
देवनागरी लिपि की मानक वर्णमाला –
देवनागरी लिपि के लिए विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से स्वर और व्यंजन निर्धारित कर रखे हैं। विभिन्न स्वर तथा व्यंजनों को सम्मिलित कर लिए जाने से ‘लिपि’ में अनेक रूपता आ गई थी। ‘लिपि’ की एकरूपता के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय में सन् 1989 में ‘देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ विषय से मानक रूप निर्धारित किया है। देवनागरी लिपि की मानक हिंदी वर्णमाला निम्नलिखित है-स्वर – अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
व्यंजन- क ख ग घ ड़
– च छ ज झ ञ
– ट ठ ड ढ़ ण
– त थ द ध न
– प फ ब भ म
– य र ल व श ष स ह
संयुक्त व्यंजन – क्ष त्र स श्र
हल चिन्ह – (ड)
ग्रहीत स्वन – ऑ , क ख ग ज़ फ़
अनुस्वार – (अं)
विसर्ग – (अ:)
अनुनासिक चिह्न (अँ)
देवनागरी अंक -०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९
देवनागरी अंकों का – 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9
नोट – उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि देवनागरी में 45 मूल चिह्न हैं। स्वरों की मात्रा और अंकों के चिह्न अलग से हैं। कुछ विशिष्ट ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए नए ध्वनि चिह्न जैसे- ड़, ढ, क, ख, ग, ज, फ तथा ऑ नए चिह्न बनाए गए हैं। इनमे से क ख ग ज फ अरबी तथा फारसी के ध्वनि चिह्न हैं। ऑ चिह्न अंग्रेजी ध्वनि को व्यक्त करता है।
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता –
देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है। इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं –
(1) देवनागरी एक व्यवस्थित लिपि है। व्यवस्थित होने के कारण ही यह वैज्ञानिक है।
इसमें सर्वप्रथम मूल स्वर, फिर संयुक्त स्वर और उसके पश्चात घोषत्व तथा प्राणत्व के अनुसार उच्चारण स्थान के आधार पर पाँच वर्गों के नासिक्य सहित पाँच-पाँच व्यंजन तथा अन्य में शेष व्यंजन रखे गए हैं।( 2 ) संपन्नता की दृष्टि से भी नागरी लिपि पर्याप्त विकसित मानी जाती है। इसमें जितने स्वनिम हैं, उतने ही लिपि चिह्न भी हैं। कुछ संयुक्त व्यंजनों के लिए विशेष लिपि चिह्नों का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे- क्त, क्ष, ज्ञ, त्र, द्य, श्र।
(3) पठनीयता का गुण भी इस लिपि की अपनी विशेषता है। न-पाठन की दृष्टि से नागरी लिपि के अक्षर जैसे लिखे जाते हैं, वैसे पढ़े जाते हैं। जैसे- क प ल आदि। अंग्रेजी की तरह के, पी, एल
नहीं, इसी तरह नाइफ / Knife नहीं। इस विशेषता के कारण ही गरी में वर्तनी आदि नहीं करनी पड़ती।
(4) ग्रहणशीलता भी देवनागरी लिपि की एक विशेषता है। इस गुण के कारण इस लिपि में अन्य भाषाओं की ध्वनियों को आत्मसात करने का गुण है। इसमें अंग्रेजी की (ऑ) और अरबी फारसी भी ध्वनि क, ख, ग, ज, फ सहजता से आत्मसात हो गई है।
( 5 ) देवनागरी लिपि के चिह्न सरल और स्पष्ट हैं। आसानी से पाठक की समझ में आ जाते हैं ।
( 6 ) नागरी लिपि में हिंदी, संस्कृत तथा मराठी साहित्य की सृजन प्रक्रिया प्राचीन काल से ही संभव है। इससे विभिन्न भाषाओं में लिपि की यह समानता सर्वग्राहीयता को सिद्ध करती है ।
( 7 ) वर्तमान में नागरी लिपि कम्प्यूटर प्रयोग के लिए सर्वथा अनुरूप है। विभिन्न भाषाओं के सर्च इंजनों और बहुभाषी प्रोसेसरों में नागरी लिपि (हिंदी के सफल ) अनुवाद की प्रक्रिया भी संभव है।
(8) नागरी लिपि के लेखन, टंकण- मुद्रण में भी पर्याप्त समानता है। कहीं-कहीं क्षेत्र विशेष के आधार पर भेद या रूप विविधता है। यदि लिपि का मानकीकरण हो जाए तो यह समानता भी दूर हो सकती है।
देवनागरी के कतिपय दोष-
देवनागरी एक सुसंबद्ध, सुव्यवस्थित और पर्याप्त वैज्ञानिक लिपि है। इसके बावजूद इसमें कुछ दोष भी हैं-( 1 ) आदर्श लिपि में प्रत्येक स्वर तथा व्यंजन के लिए पृथक पृथक लिपि चिह्न होने चाहिए। इस कसौटी पर नागरी लिपि खरी नहीं उतरी। यह एक आक्षरिक लिपि है, इसके व्यंजनों के लिपि चिह्नों में व्यंजन तथा स्वर का मिश्रण होता है। जैसे-क+अ = क ।
( 2 ) आदर्श लिपि में एक ध्वनि के लिए एक ही लिपि चिह्न की अपेक्षा की जाती है। परंतु नागरी में एक ध्वनि के लिए अनेक लिपि चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। जैसे
(3) एक वैज्ञानिक लिपि की यह भी विशेषता है कि लिपि चिह्नों के लेखनक्रम में ही उनका उच्चारण भी होना चाहिए। परंतु कई लिपि चिह्नों के लेखन में इस क्रम का पालन नहीं होता। जैसे- धर्म, भ्रम, राष्ट्र आदि ।
(4) आदर्श लिपि के चिह्नों का आकार पृथक एवं विशिष्ट होना चाहिए, ताकि एक में दूसरे का भ्रम न हो। इस दृष्टि से भी नागरी लिपि दोषमुक्त नहीं कहीं जा सकती। इसमें ख, घ, म, ण से ख, ध, भ, र का भ्रम हो जाता है। शीघ्र लेखन में भी इ, छ, ह लगभग एक जैसे ही प्रतीत होते हैं।
समस्याएँ
यथा
1. एक वर्ण के लिए एक से अधिक चिह्न – देवनागरी में कुछ ऐसे वर्ण हैं जिनके लिए एक से अधिक संकेतों का प्रयोग होता है;(क) ‘र’ के लिए चार संकेतों का प्रयोग – रमा, क्रम, ट्रक, धर्म)
(ख) एक वर्ण के लिए दो चिह्नों का प्रयोग -अ – श्र, छ –
(ग) एक अंक के लिए दो या दो से अधिक चिह्नों का प्रयोग
चार संकेतों का प्रयोग नौ
तीन संकेतों का प्रयोग छ:
दो संकेतों का प्रयोग आठ2. दो लिपि – चिह्नों के भ्रामक प्रयोग – ख-रव, घ-ध, भ-म, रा ( र् + आ ) रा ( आधा ण ) ।
यह समस्या शिरोरेखा-विहीन लेखन या त्वरित लेखन में होती है।3. संयुक्त ध्वनियों का प्रयोग – क्ष, त्र, ज्ञ, द्यं, द्ध, क्त, द्य आदि ।
4. लिपि – संकेतों की अपर्याप्तता – ख, ग, ज़, फ़, आदि का अभाव।
5. ‘इ’ की मात्रा के प्रयोग की समस्या ।
6. व्यंजनों की आक्षरिकता – सभी मूल व्यंजनों में अकार का होना।
7. शिरोरेखा और पूर्णविराम चिह्नों के प्रयोग का विवाद |
मानकीकरण के सिद्धांत
मानकीकरण के समय उससे संबंधित सिद्धांतों पर विचार करना आवश्यक है; जो अग्रलिखित हैं –
1. आवश्यकतानुसार कम से कम परिवर्तन
2. एक ध्वनि के लिए एक चिह्न प्रयोग –
3. एक लिपि – चिह्न के लिए ध्वनि-निर्धारण
4. लिपि-चिह्नों की पर्याप्यता
5. लेखन एकरूपता
6. लिपि में त्वरित लेखन-गुण
7. उच्चारणानुसार लेखन
8. लेखन सरलता
9. लेखन, टंकण और मुद्रण (सामान्य एवं कंप्यूटर) में एकरूपता
10. कंप्यूटर प्रयोग की अनुकूलता।
कंप्यूटर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘Computare’ शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है गणना या गिनती करना।
दूसरे शब्दों में – कंप्यूटर एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो पूर्व निर्धारित निर्देशों के अनुसार आंकड़ों को प्राप्त करके उनका संसाधन (प्रोसेसिंग) द्वारा प्राप्त परिणाम को निर्गम (output) इकाई द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत करती है तथा आंकड़ों को भविष्य के लिए सुरक्षित रखती है।
वर्तमान समय में कंप्यूटर का आविष्कार एक क्रांतिकारी घटना है, और यह लगभग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है। विद्वानों ने इसे ‘संगणक’ नाम दिया है।
भारत में सबसे पहले कंप्यूटर का आगमन 1955 ईस्वी में हुआ था। आज हर क्षेत्र में कंप्यूटर के योगदान को देखा जा सकता है।
पहले कंप्यूटर में रोमन लिपि का बोलबाला था परंतु वर्तमान समय में यह सभी सुविधाएं देवनागरी लिपि में भी उपलब्ध है
हिंदी का पहला द्विभाषी कंप्यूटर ‘सिद्धार्थ’ बना। यह दोनों लिपियों में काम कर सकता था।
बाद में ‘लिपि’ नाम से एक अन्य कंप्यूटर बना जिसमें रोमन के साथ देवनागरी, मराठी, तमिल आदि भाषाओं को भी शामिल किया गया।
वर्तमान में इंटरनेट पर देवनागरी में अनेक पत्र पत्रिकाएं उपलब्ध है। जैसे हंस, आजकल, नया ज्ञानोदय, सहृदय आदि नेट पर उपलब्ध है।
यूनिकोड किए जाने से संपूर्ण स्थिति बदल गई। अब अंग्रेजी की तरह हिंदी में भी वेबसाइट (website), खोज इंजन (search engine), ईमेल (Email), चिट्ठे (blogs), गपशप (chat), मोबाइल संदेश, शब्द संसाधन आदि उपलब्ध है।
हिंदी में भी अनेक सॉफ्टवेयर बन रहे हैं। कुछ सॉफ्टवेयर के नाम नीचे दिए गए हैं यथा-
हिंदी कीबोर्ड लेआउट (Hindi keyboard layout)
ऑनलाइन शब्दकोश (online dictionary)
कंप्यूटर के माध्यम से मशीनी अनुवाद (machine translation)
बोलकर लिखने की सुविधा (speech to text)
लिखे हुए पाठ को सुनना (text to speech)
फोनेटिक टाइपिंग (phonetic typing)
फॉन्ट परिवर्तक (font converter)
हिंदी ओसीआर (optical character recognition )
vflat App – image to hindi text converter
देवनागरी लिपि से सम्बंधित सॉफ्टवेयर क्रम से-
1983 – डॉक (DOC) हिंदी आधारित कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का विकास शुरू हुआ।
1986 – सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिकी विभाग (DOE) द्वारा भारतीय भाषाओं के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड को मानक कीबोर्ड के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी।
1991 – यूनिकोड का आगमन हुआ। जिसमें 9 भारतीय लिपियों देवनागरी, बंगाली, गुजराती, गुरुमुखी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम तथा ओड़िया आदि भाषाओं को शामिल किया गया।
1993 – माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस प्रोफेशनल के आने के बाद 8 बिट हिंदी फॉन्टों से विंडोज में हिंदी वर्ड प्रोसेसिंग संभव हुआ।
1995 – विंडोज के लिए सी-डैक द्वारा हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के समर्थन युक्त लीप ऑफिस, श्री लिपि तथा अक्षर आदि वर्ड प्रोसेसरों का आगमन हुआ।
1996 – 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर पीसी-डॉक के हिंदी संस्करण की शुरुआत हुई जिसमें एक हिंदी प्रोग्रामिंग भाषा (Hindi programming language) भी शामिल थी।
2000 – यूनिकोड के द्वारा हिंदी समाचार पत्रों पर का इंटरनेट पर आगमन हुआ। सीडैक के हिंदी ऑपरेटिंग सिस्टम इंडेक्स की शुरुआत विंडोज 2000 एवं माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के दक्षिण एशियाई संस्करण में हिंदी का समर्थन शुरू हुआ।
2002 – लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम और अन्य प्रोग्रामों के हिंदी में शुरुआत।
2003 – हिंदी विकिपीडिया की शुरुआत हुई।
अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर टैली में हिंदी की शुरुआत।
इंटरनेट सर्च हिंदी में भी उपलब्ध।
हिंदी ब्लॉग की शुरुआत तथा जीमेल द्वारा हिंदी में ईमेल भेजने की सुविधा।2005 – माइक्रोसॉफ्ट एक्सपी ऑपरेटिंग सिस्टम का हिंदी स्टार्टर जारी किया गया।
2008 – विंडोज विस्टा जारी, जिसके अंतर्गत हिंदी समर्थन (internal Hindi support) पहले से ही था।
इसमें अलग से ही सेटिंग की आवश्यकता ना थी बस टाइपिंग के लिए कीबोर्ड लेआउट सॉफ्टवेयर डालना पड़ता था।
सीडैक द्वारा हिंदी श्रुतलेखन (speech to text) की शुरुआत।
गूगल ट्रांसलिट्रेशन (online phonetic typing) टूल जारी किया गया ।2010– गूगल द्वारा हिंदी अन्य प्रमुख विदेशी भाषाओं में और इसके विपरीत अनुवाद की सुविधा उपलब्ध।
टच स्क्रीन डिवाइसों पर टच नागरी नामक ऑनलाइन हिंदी कीबोर्ड की शुरुआत।
भारतीय रुपया चिह्न यूनिकोड 6.0 में शामिल किया गया।2011 – वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग ने हिंदी शब्दावली ऑनलाइन करने की शुरुआत की।
हिंदी दिवस के दिन हिंदी ट्विटर जारी किया गया।2012 – फायर फॉक्स का मोबाइल ब्राउजर हिंदी में उपलब्ध।
2014 – गूगल मैप में हिंदी की शुरुआत हुई। गूगल वाक् से पाठ (speech to text ) । हिंदी वॉइस सर्च एवं गूगल हिंदी विज्ञापन की शुरुआत।
2015 – गूगल डॉक्स की ओसीआर (Google Docs OCR) हिंदी भाषा की सुविधा उपलब्ध।
वैसे बेवसाइट जहां हिंदी समेत प्रमुख भारतीय भाषाओं के लिए संपर्क सूत्र, ई-मेल, सॉफ्टवेयर आदि जानकारी मिलती है-
1) www.rajbhasha.nic.in
– राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय भारत सरकार कि इस वेबसाइट पर हिंदी से संबंधित नियम वार्षिक कार्यक्रम हिंदी सीखने के लिए लीला प्रबोध आदि महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है।
2) www.rajbhasha.com
– राजभाषा संबंधी नियम, व्याकरण, साहित्य, शब्दकोश, हिंदी संसार, हिंदी सीखें आदि संपर्क सूत्र उपलब्ध है।
3)www.tdil.mit.gov.in
– सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारतीय भाषाओं के विकास के लिए राजभाषा हिंदी विकास संबंधित जानकारी, सॉफ्टवेयर संबंधित संघटनों की जानकारी आदि उपलब्ध है।
4)www.indianlanguage.com
– इस साइट पर हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के लिए साहित्य, समाचार पत्र, ईमेल, सर्च इंजन आदि संपर्क सूत्र उपलब्ध है।
5)www.dictionary.com
– प्रमुख भाषाओं के शब्दकोश, अनुवाद, समानार्थी, वैब डिरेक्टरी, व्याकरण संबंधी जानकारी उपलब्ध है।
6)www.bharatdarshan.co.nz
– हिंदी साहित्य, लघु कथाएं, कविताएं, व्याकरण संबंधी जानकारी उपलब्ध है।
7)www.hindinet.com
– हिंदी भाषा संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी, संपर्क सूत्र आदि उपलब्ध है।
8)www.hindibhasha.com
– इस साइट पर हिंदी भाषा के लिए उपयुक्त जानकारी उपलब्ध है।
9) भारतीय वेब सर्च इंजन –
www.searchindia.com
www.khoj.com
www.samachar.com
www.webdunia.com
www.indiatimes.com
हिंदी में ईमेल की सुविधाएं –
www.mailjol.com
www.bharatmail.com
www.rediffmail.com
www.webdunia.com
www.dainikjagran.com
www.rajbhasha.nic.com
‘युनिकॉर्ड टेक्नोलॉजी’ नागरिक के लिए वरदान स्वरूप आई है। हिंदी में पहले भी चाणक्य और कृति देव जैसे सॉफ्टवेयर से काम हो रहा था। यूनिकॉर्ड ने तो कंप्यूटर और लिपि के संबंध को पुनः व्याख्यित कर दिया है।
यूनिकोड 16 बिल का कोड है, जिसमें 65536 संकेत उपलब्ध हैं।
इसमें में विश्व की लगभग सभी भाषाओं में काम संभव है।
यूनिकोड से कार्य में एकरूपता आती है तथा अलग-अलग प्रकार के फ़ॉन्ट से मुक्ति मिलती है। आज कार्यालयों के सभी कार्य देवनागरी में सरलता से संभव है। हिंदी की फाइलों का आदान-प्रदान सहज रूप से हो रहा है। यूनिकोड का प्रचलित फ़ॉन्ट मंगल है। यूनिकोड आधारित हिंदी, देवनागरी, IME TOOL आदि जैसे उपकरणों की सहायता से टंकित की जा सकती है।
कंप्यूटर में नागरी लिपि के प्रयोग का प्रथम प्रयास इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, हैदराबाद द्वारा किया। वर्तमान समय में कंप्यूटर निर्माताओं द्वारा 40 से अधिक हिंदी के सॉफ्टवेयर बाजार में उपलब्ध करा दिए गए हैं। जिनमें अक्षर प्रकाशक सुलिपि, इंडिका और मल्टिवर्ड आदि प्रमुख हैं। कुछ संस्थाएं भी इस प्रयास में लगी हुई है जिनमें आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और केंद्रीय हिंदी संस्थान दिल्ली प्रमुख हैं।
वर्तमान समय में कंप्यूटर पर यूनिकोड में देवनागरी अथवा हिंदी टंकण की तीन विधियां प्रचलित हैं।-
1. रोमिंगटन टंकण शैली- इसका कुंजीपटल रोमिंगटन टाइपराइटर की कुंजीपटल के समान है। जिन लोगों ने पहले टंकण सीख रखी है उनके लिए यह सर्वाधिक उपयोगी है।
इसमें जिस वर्णक्रम में पाठ दिखाई देता है उसी तरह से उसे टाइप भी किया जा सकता है।
2. टी.ओ.इ. फोंटिक- इसमें सभी भारतीय भाषाओं के वर्णों के लिए समरूपता है। जैसे- कुंजीपटल पर POT सभी भारतीय भाषाओं में प और ट की कुंजियां होंगी।
इस टंकण शैली का सिद्धांत है जिस क्रम में पाठ का उच्चारण किया जाता है उसी वर्णक्रम में उसे टाइप करना।
इस टंकण शैली की विशेषता है कि इसमें व्यक्ति रोमन अथवा अंग्रेजी के ज्ञान के बिना भी नागरी अथवा अन्य भारतीय लिपियों में टंकण कार्य कर सकता है।
3. फोनेटिक इंग्लिश- इसे रोमानिल्ड लेआउट कहते हैं।
यूनिकोड एक टेक्नोलॉजी है। कम्प्यूटर मूल रूप से नम्बरर्स से सम्बंध रखता है। और नम्बरर्स पर ही आधारित है। अंतर सिर्फ़ इतना है कि यूनिकोड टेक्नोलॉजी में विश्वस्तर पर एवं प्रचलित सभी लिपियों के वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के लिए चार अंकों का यूनिक कोड (अद्वितीय मान)प्रदान किया गया है।
यूनिकोड (Unicode) प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भाषा हो । यूनिकोड मानक को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड आई.एस.ओ/आई.ई.सी. 10646 (ISO/ IEC 10646) एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में उपलब्ध है।
यूनिकोड 10.0 वर्जन में कुल 136,690 वर्णों को जोड़ा गया है, कुल 139 स्क्रिप्ट ।
भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड एनकोडिंग के लिए UTF-8 का प्रयोग होता है ।
यूनिकोड क्यों ?
जब वर्तमान में प्रचलित फॉण्ट से हमारा कार्य सम्पादित हो रहा है तो ऐसी स्थिति में यूनिकोड की आवश्यकता क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वर्तमान में प्रचलित देवनागरी लिपि के फॉण्ट जैसे- कृतिदेव, देवलिसिस, कलाकार एवं अन्य फण्ट सिस्टम स्पेसिफिक होने के कारण यह फॉण्ट जिस सिस्टम में इंस्टॉल होते है संबंधित लिपि में टाईप किया गया मैटर उसी में दिखाई देता है, यदि आपके सिस्टम में वह फॉण्ट नहीं है तो मैटर रोमन लिपि में गारबेज की तरह दिखायी देगा तथा उपलब्ध मैटर पढ़ने योग्य नहीं होगा, जब तक कि आप अपने सिस्टम में संबंधित फॉण्ट या उसी श्रेणी का दूसरा फॉण्ट इंस्टॉल नहीं करते। यूनिकोड टेक्नोलॉजी विश्व की सभी लिपियों से सभी संकेतों के लिए एक अलग कोड बिन्दु प्रदान करता है जो कि एक ही फॉण्ट में उपलब्ध रहती है (जैसे:- एरियल यूनीकोड, मंगल, अक्षर यूनीकोड, अपराजिता आदि ) | यूनिकोड टेक्नोलॉजी आधारित फॉण्ट में टाईप किया गया मैटर, आपके सिस्टम में फॉण्ट हो या न हो, वह उसी लिपि में दिखायी देगा, और पढने योग्य होगा | उदहारण के लिए यदि आप यूनिकोड का उपयोग कर देवनागरी लिपि में लिखते है, तो विश्व के किसी भी कंप्यूटर पर वह देवनागरी में ही दिखेगा | इसी प्रकार यदि चीनी, जापानी या किसी भी भाषा की लिपि में लिखा लेख हमारे कंप्यूटर पर उसी भाषा की लिपि में दिखायी देगा।
यूनिकोड का महत्व तथा लाभ
•एक ही दस्तावेज में अनेकों भाषाओं के text लिखे जा सकते है।
•टेक्स्ट को केवल एक निश्चित तरीक़े से संस्कारित करने की आवश्यकता होती है।जिससे विकास खर्च एवं अन्य व्यय काम हो जाते हैं। •किसी सॉफ्टवेयर-उत्पाद का एक ही संस्करण पूरे विश्व में चलाया जा सकता है। क्षेत्रीय बाजारों के लिए अलग से संस्करण निकालने की जरूरत नहीं पड़ती।
•किसी भी भाषा का टेक्स्ट पूरे संसार में बिना गारबेज हुए देखा जा सकता है।
यूनिकोड टेक्नोलॉजी की विशेषताएँ
- यह विश्व की सभी लिपियों से सभी संकेतों (अक्षरों, मात्राओं आदि) के लिए एक अलग कोड बिन्दु प्रदान करता है।
- जहाँ भी सम्भव होता है, यूनिकोड भाषाओं का एकीकरण करने का प्रयत्न करता है।
- बाएँ से दाएँ लिखी जाने वाली लिपियों के अतिरिक्त दाएँ-से-बाएँ लिखी जाने वाली लिपियों (अरबी, हिब्रू आदि) को भी इसमें शामिल किया गया है।
- यूनिकोड स्टैंडर्ड एक 16 – बिट का एनकोडिंग मानक है। जिसका प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुभाषी सॉफ्टवेयर के विकास हेतु किया जाता है।
- यूनिकोड मानक एक सार्वभौमिक अक्षर एनकोडिंग मानक है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर प्रोसेसिंग के लिए Text के निरूपण में किया जाता है।
- यूनिकोड मानक दुनिया की लिखित भाषाओं के लिए सभी प्रयुक्त अक्षरों की एनकोडिंग की क्षमता प्रदान करता है |
- यूनिकोड फॉन्ट्स Platform Independent होते हैं। विंडो 95/98/2000/Xp-2003/विंडो 2007 या लिनक्स अथवा अन्य किसी भी प्लेटफार्म जिसमें मोबाईल फोन भी सम्मिलित हैं, पर बिना किसी कठिनाई के प्रयुक्त किये जा सकते हैं ।
- यूनिकोड फॉन्ट्स से हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में ईमेल भेजना एवं इंटरनेट पर सामग्री खोज की जा सकती है। सभी वेब – बेस्ड सर्च इंजन एवं अन्य कार्यों में यह प्रभावी रूप से तथा सरलता से प्रयुक्त होता है ।
देवनागरी यूनिकोड
• देवनागरी यूनिकोड की (रेंज) 0900 से 097F तक है। (दोनो संख्याएं षोडषाधारी हैं)
• क्ष, त्र एवं ज्ञ के लिये अलग से कोड नहीं है। इन्हें संयुक्त वर्ण मानकर अन्य संयुक्त वर्णों की भांति इनका अलग से कोड नहीं दिया गया है।
• इस रेंज में बहुत से ऐसे वर्गों के लिये भी कोड दिये गये हैं जो सामान्यतः हिन्दी में व्यवहृत नहीं होते। किन्तु मराठी, सिन्धी, मलयालम आदि को देवनागरी में सम्यक ढंग से लिखने के लिये आवश्यक हैं।
• नुक्ता के लिये भी अलग से एक कोड दे दिया गया है। अतः नुक्तायुक्त अक्षर यूनिकोड की दृष्टि से दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं एक बाइट यूनिकोड के रूप में या दो बाइट यूनिकोड के रूप में। उदाहरण के लिए ज़ को ‘ज’ के बाद नुक्ता (?) टाइप करके भी लिखा जा सकता है।
UTF-8, UTF-16, UTF-32 क्या है?
• यूनिकोड का मतलब है सभी लिपि चिह्नों की आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम एक समान मानकीकृत कोड |
• पहले सोचा गया था कि केवल 16 बिट के माध्यम से ही दुनिया के सभी लिपि चिह्नों के लिये अलग-अलग कोड प्रदान किये जा सकेंगे। बाद में पता चला कि यह कम है। फिर इसे 32 बिट कर दिया गया । अर्थात इस समय दुनिया का कोई संकेत नहीं है जिसे 32 बिट के कोड में कहीं न कहीं जगह न मिल गयी हो ।
• यूनिकोड के तीन रूप प्रचलित हैं- UTF-8, UTF-16 और UTF-32
•इनमें अन्तर क्या है? मान लीजिये आपके पास दस पेज का कोई टेक्स्ट है जिसमें रोमन, देवनागरी, अरबी, गणित के चिन्ह आदि बहुत कुछ हैं। इन चिन्हों के यूनिकोड कोड अलग-अलग होंगे। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ संकेतों के 32 बिट के यूनिकोड में शुरू में शून्य ही शुन्य हैं (जैसे अंग्रेजी के संकेतों के लिये ) । यदि शुरुआती शून्यों को हटा दिया जाय तो इन्हें केवल 8 बिट के द्वारा भी निरूपित किया जा सकता है और कहीं कोई भ्रम या कांफ्लिक्ट नहीं होगा। इसी तरह रूसी, अरबी, हिब्रू आदि के यूनिकोड ऐसे हैं कि शून्य को छोड़ देने पर उन्हें प्रायः 16 बिट = 2 बाइट से निरूपित किया जा सकता है। देवनागरी, जापानी, चीनी आदि को आरम्भिक शून्य हटाने के बाद प्राय: 24 बिट तीन बाइट से निरूपित किया जा सकता है। किन्तु बहुत से संकेत होंगे जिनमें आरम्भिक शून्य नहीं होंगे और उन्हें निरूपित करने के लिये चार बाइट ही लगेंगे। =
• लगभग स्पष्ट है कि प्राय: UTF-8 में इनकोडिंग करने से UTF-16 की अपेक्षा कम बिट्स लगेंगे।
• इसके अलावा बहुत से पुराने सिस्टम 16 बिट को हैंडिल करने में अक्षम थे। वे एकबार में केवल 8-बिट ही के साथ काम कर सकते थे। इस कारण भी UTF-8 को अधिक अपनाया गया। यह अधिक प्रयोग में आता है।
• UTF-16 और UTF-32 के पक्ष में अच्छाई यह है कि अब कम्प्यूटरों का हार्डवेयर 32 बिट या 64 बिट का हो गया है। इस कारण UTF-8 की फाइलों को ‘प्रोसेस’ करने में UTF-16, UTF-32 वाली फाइलों की अपेक्षा अधिक समय लगेगा।
कंप्यूटरों में हिंदी में कार्य करने के लिए 3 की-बोर्ड विकल्प हैं:
● इंस्क्रिप्ट
● रेमिंग्टन
● फोनेटिक
संदर्भ- दृष्टि प्रकाशन की पुस्तक (देवनागरी का उद्भव)
अन्य- http://hindi ki bindi
अन्य पुस्तक———————-