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नदी के द्वीप -अज्ञेय : मुख्य अंश- UPHESC

नदी के द्वीप -अज्ञेय : मुख्य अंश- UPHESC

अनुक्रम-


भुवन
चन्द्रमाधव
गौरा
अन्तराल
रेखा
भुवन
चन्द्रमाधव
रेखा
अन्तराल
गौरा
उपसंहार



पात्र- भुवन, रेखा, चन्द्रमाधव, गौरा (जिसे भुवन शुरुआती दौर में पढ़ाया करता था), हरेंद्र (रेखा का पति, जिससे तलाक़ हो गया था), कौशल्या(चंद्रमाधव की पहली पत्नी), मलय मेम(हेमेंद्र ने दूसरी बार इससे शादी की थी), डॉ रमेशचन्द्र (जिससे दूसरी बार रेखा ने शादी की थी)

उपन्यास के प्रारम्भ से ठीक पहले-

मेनी ए ग्रीन आइल नीड्ज़ मस्ट बी
इन द डीप वाइड सी ऑफ़ मिज़री
ऑर द मैरिनर, वोर्न एंड वान,
नेवर दस कुड वोयज़ ऑन।* – शेली

दुःख सबको माँजता है
और
चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने,किन्तु –
जिनको माँजता है
उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें । – ‘अज्ञेय’

कई हरे-भरे द्वीप अवश्य ही होंगे व्यथा के गहरे और फैले सागर में नहीं तो थका-हारा सागरिक कभी ऐसे यात्रा करना न रह सकता।

उपन्यास की प्रारंभिक पंक्तियां- “गाड़ी जब तक प्रतापगढ़ से नहीं चली तब तक भुवन ने नहीं जाना कि उसे अपने बारे में सोचने की कुछ जरूरत है।”

कथन- रेखा का कथन भुवन से- “अच्छा जल्दी से सवार हो जाइये, आपकी गाड़ी जा रही है।”

रेखा का कथन – ”मैं जैसे सागर की मछली हूँ; ज़मीन से पैर उठा लूँ तो भी गिरूँगी नहीं, तैरती रह जाऊँगी।”

”आँखें आत्मा के झरोखे हैं। झरोखे बंद भी हो सकते है, पर ओठों की कोर एक ऐसा सूचक है कि कभी चूकता नहीं।”

”चुनौती के उत्तर में किसी व्यक्तित्व में पैठना चाहना अनधिकार चेष्टा है, टांग अड़ाना है; क्योंकि व्यक्तित्वों का सम्मिलन या परिचय तो फूल खिलने की तरह एक सहज क्रिया होना चाहिए।”

चंद्रमाधव का कथन – ”सत्य सभी कुछ है- सभी कुछ जो है। होना ही सत्य की एकमात्र कसौटी है।”

भुवन का कथन – ”लेकिन पत्रकार साहित्यकार नहीं है, यह वह समझता था; साहित्यकार जो क्षणिक है उसमें से सनातन की छाप को, या जो सनातन की छाप को या जो सनातन है उसकी तात्क्षणिक प्रासंगिकता को खोजता और उससे उलझता है, पर पत्रकार के लिए क्षणिक की क्षणिक प्रासंगिकता ही सनातन है; और जहां वह उस प्रासंगिकता को तत्काल नहीं पहचानता वहाँ उसका आरोप करता चलता है।”

रेखा का कथन – ”मुझे तो लगता है जब आप मानव से हटकर मानवता की बात सोचने लगते हैं, तभी आप जीवन से दूर चले जाते हैं, क्योंकि जीवन मानव का है, मानव यथार्थ है, मानवता केवल एक उद्भावना- एक उक्ति सत्य।”

भुवन का कथन – ”यों क्षण की प्रेरणाओं पर अपने को छोड़ देने से आदमी शीघ्र ही आँधी पर उड़ता तिनका बन जाता है – क्योंकि प्रत्येक बार संकल्प-शक्ति कुछ क्षीणतर हो जाती है और सहज प्रेरणा की मंद हवा कुछ तेज होकर आंधी-सी।”

रेखा द्वारा गाया गया बंगाली गीत –
आमार रात पोहालो शारद प्राते-
आमार रात पोहालो
बांशी तोमाय दिये जाबो काहार हाते-
आमार रात पोहालो।


रेखा का कथन, भुवन के लिए – ”क्योंकि जब मिट्टी से बांधने वाली जड़ें नहीं रहती, तब हवा पर उड़ते हुए जीने के लिए कहीं-न-कहीं से साधन जुटाने पड़ते हैं।”

रेखा का कथन – ”व्यक्तित्व की अपनी लीकें होती हैं- एक रुझान होता है। और उसके आगे, व्यक्ति अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में जो समझता है, जो कल्पना करता है, मनसूबे बांधता है, उससे भी तो एक लीक बनती है।”

भुवन के द्वारा गायी गयी इलियट की पंक्तियाँ –
”बिटवीन द आइडिया
एंड द रिएलिटी
बिटवीन द मोशन
एंड द एक्ट
फ़ॉल्स द शैडो
फ़ॉर दाइन इज द किंगडम।”


रेखा का कथन – ”मैं सचमुच कहीं भी पहुँचना नहीं चाहती- चाहना ही नहीं चाहती। मेरे लिए काल का प्रवाह भी प्रवाह नहीं है, केवल क्षण और क्षण और क्षण का योगफल है-मानवता की तरह ही काल-प्रवाह भी मेरे निकट युक्ति-सत्य है, वास्तविकता क्षण ही की है। क्षण सनातन है।”

रेखा द्वारा गायी गई लॉरेंस की कुछ पंक्तियाँ –
“डार्क ग्रासेज़ अंडर माइ फ़ीट
सीम टु डैब्ल् इन मी
लाइक ग्रासेज़ इन ए ब्रुक।
ओ:, एंड इट इज़ स्वीट टु बी
आल दीज़ थिंग्स, नॉट टु बी
एनी मोर माइसेल्फ़,
फ़ॉर लुक।”


रेखा का कथन – ” मैंने भविष्य मानना ही छोड़ दिया है। भविष्य कुछ नहीं, एक निरंतर विकासमान वर्तमान ही सब कुछ है। आपने कभी पानी के फ़व्वारे पर टिकी हुई गेंद देखी है? बस, जीवन वैसा ही है, क्षणों की धारा पर उछलता हुआ- जब तक धारा है तब बिल्कुल सुरक्षित, सुस्थापित, नहीं तो पानी पर टिके होने से अधिक बेपाया क्या चीज़ होगी।”

गौरा का कथन- “स्वाधीनता केवल सामाजिक गुण नहीं है। वह दृष्टि कोण है, व्यक्ति के मानस की एक प्रवृत्ति है। हम कहते हैं कि समाज हमें स्वाधीनता नहीं देता; पर समाज दे कैसे? हमीं तो अपने दृष्टिकोण से समाज बनाते हैं। मैं अपने आपको बद्ध नहीं मानती हूँ, और स्वाधीनता के लिए अपने मन को ट्रेन करती हूँ। सफलता की बात नहीं जानती, उतनी शक्ति मेरे भीतर होगी तो क्यों नहीं होऊँगी सफल? और मैं सोचती हूँ कि सब लोग यत्नपूर्वक अपने को स्वाधीनता के लिए ट्रेन करें तो शायद हमारा समाज भी स्वाधीन हो सके।”

चंद्रमाधव का कथन- ”आकाश सूना कहाँ है, यह तो भरा हुआ है रहस्यों से, जो हमारे आगे उद्घाटित है… प्यार भी ऐसा ही है; एक समोन्नत ढलान नहीं, परिचित के, आध्यात्मिक संस्पर्श के, नए-नए स्तरों का उन्मेष… उसकी गति तीव्र हो या मंद, प्रत्यक्ष हो या परोक्ष, वांछित हो या वांछातित। आकाश चंद्रोवा नहीं है कि चाहे तो तान दें, वह है तो है, और है तारों-भरा है, नहीं है तो शून्य, शून्य ही है जो सब कुछ धारण करता हुआ रिक्त बना रहता है”…

भुवन का कथन – ”दिशा-निर्देशन भीतर का आलोक ही कर सकता है; वही स्वाधीन नैतिक जीवन है, बाक़ी सब ग़ुलामी है।”

भुवन का कथन – ”मैं मानता हूँ कि जब तक कोई स्पष्टतया मनोवैज्ञानिक ‘केस’ न हो विवाह सहज धर्म है और है व्यक्ति कि प्रगति और उत्तम अभिव्यक्ति की एक स्वभाविक सीढ़ी।”

भुवन ने गौरा से कहा था – ”आत्मा के नक़्शे नहीं होते कि हम चट से फ़ैसला दे दें : इस सीमांत के इधर स्वदेश, उधर विदेश, इधर पुण्य, उधर पाप। आत्मा के प्रदेश में सीमांत हर क्षण, हर साँस के साथ बदल सकता है क्योंकि हर क्षण एक सीमांत है।”

गौरा का कथन – ”साधना आज इतनी नगण्य हो गयी है; कि हमारा साध्य जीवन का आनंद न रह कर जीवन की सुविधाएँ रह गया है यानी जीवन की हमारी परिभाषा ही बदल गई है, वह जीवन का नहीं, जीवन की क्रियाओं का नाम हो गया।”

”दुःख तोड़ता भी है पर जब नहीं तोड़ता या तोड़ पाता, तब व्यक्ति को मुक्त करता है।”

भुवन का कथन – ”रेखा जी, यों पहलू तो हर किसी के चरित्र में होते हैं, पर चरित्र को इस तरह डिब्बों में बाँटना तो बड़ा ख़तरनाक है- व्यक्ति को एक ओर सम्पूर्ण होना चाहिए- यह विभाजन तो ह्रास की भूमिका है।”

रेखा का कथन, भुवन के लिए- ”कहते हैं न कि अच्छा स्वप्न कह देने से उसकी सम्भावना काम हो जाती है, उसी तरह बुरा सपना कहने से उसका भी बोझ हल्का हो जाता है।”

रेखा का कथन – ”डूबते सूर्य को कौन पकड़ सकता है।”

“अहं की पुष्टि के लिए समर्पण नहीं, अहं का ही समर्पण समर्पण है…”

“वह प्रेम ही क्या जिस के लिए सब कुछ वार-न्यारा न कर दिया जाए? आशिक़ वह है जो सर पै कफ़न बांधे फिरे, यह क्या कि आशिक़ी भी हो रही है, रिसर्च भी, और नौकरी भी चल रही है…”

भुवन का कथन- “व्हाट इस हैपिनेस, रेखा जी; कुछ और बात करिए, हैपिनेस तो एक कल्पना है- या उस अवस्था का नाम है जिसमें हम अपनी ज़रूरत को अभी जानते नहीं हैं। इंसान के लिए हैपिनेस नहीं है- क्योंकि लाइलाज जिज्ञासु है। वह जान के रहेगा- और जानेगा तो भोगेगा।”

भुवन का कथन- “पर स्थायी नहीं है तो हैपिनेस कैसे है? जिस के साथ छिने जाने का दर बराबर लगा है, वह प्राप्ति कैसी है?”

चंद्रमाधव का कथन- “हाँ जो सतह पर है, वही सच है; सतह के नीचे कुछ नहीं है, सिर्फ़ धोखा। जो कहते हैं कि यथार्थ कुछ नहीं है, जो गोचर है सब माया है, वे ही तो साबित करते हैं कि माया ही यथार्थ है, सतह ही वास्तविकता है, क्योंकि वह काम-से-कम गोचर तो है, उसके पीछे तो कुछ है ही नहीं।”


“कितना अजनबी, अकेला और ग़ैर हो सकता है व्यक्ति, जब वह अपने घर में अजनबी होता है।”

“औरतों की बनावट ही ऐसी होती है, कि पुरुष से चोट खा कर वे सारी पुरुष जाति को बुरा समझ लेती है – उदार दृष्टि से तो सोच ही नहीं सकती, कि मर्द-मर्द में भेद भी हो सकता है।”

“उदार होकर देना कठिन है, होगा, पर उदार हो कर ले लेना और भी कठिन है।”

रेखा का कथन- “अधिक कुछ भी हो तो मुझे चुभता है- मैं अपने साथ ही जीना चाहती हूँ- बाहर का अनावश्यक लटा-पटा मुझ से सहा नहीं जाता।”

किसी बेहया ने ठीक कहा है- “अंतिम समय में मानव को अनुताप होता है, तो अपने किए हुए पाप पर नहीं; पुण्य करने के अवसरों की चूक पर नहीं; अनुताप होता है किए हुए नीरस पुण्यों पर, रसीले पाप कर सकने के खोए हुए अवसरों पर…

“शिथिल मत होना, महाराज; आत्मा का शैथिल्य ही प्यार का पराजय है, हम दोनों को बराबर सतर्क, सजग रहना है- क्योंकि हम दोनों ऐसे आत्म-निर्भर, स्वतः सम्पूर्ण हैं कि सहज ही बह कर, सिमट कर अलग हो जा सकते हैं – अपनी-अपनी सीपियों में बंद, अंतरंग अनुभूति के छोटे-छोटे द्वीप- और इस प्रकार बरसों जीते रह सकते हैं, मौन, शांत लेकिन, एकाकी …

“जिस बोतल में कार्क का बड़ा-सा डाट लगा हो, वह पानी के भीतर छिपी रह कर भी डाट के सहारे डूबती-उतराती है, डूब नहीं जाती। “

“ठीक कहते हैं लोग, कि वैज्ञानिक प्रेम कर ही नहीं सकता, क्योंकि उसके लिए स्थूल यथार्थ है ही नहीं, सब कुछ एक एब्सट्रैक्शन है, एक उद्भावना… और जहां एब्सट्रैक्शनहै, वहाँ प्यार कहाँ?”


“मैं समझता हूँ, कोई भी गहरी अनुभूति जब गोपन रहती है, तब धीरे-धीरे गोपता को भी ऐसे बांध लेती है कि फिर वही अज्ञेय हो जाता है, फिर वह चाहकर भी अपने को अभिव्यक्त नहीं कर पाता; उसका रहस्य एक ऐसी दीवार बन जाता है जो कि स्वयं उसी को छिपा लेता है।”

“राधा जिस दही-चोर को धमकाती है, उसी के पैर भी पूजती है- कोई भी प्यार नहीं है; कोई भी दान नहीं है जो विनीत नहीं है …”

भुवन का कथन – “ये फूल तुम पहन लेना” – लेकिन इस वाक्य को काट कर लिखा था, “तुम तक पहुँचते फूल तो सूख जाएँगे- पर गंध शायद बनी रहे; उसे सूँघो तो स्मरण कर लेना कि मेरे स्नेह की साँसे भी तुम्हारी स्मृति को घेरे है।”

“हम जीवन की नदी के अलग-अलग द्वीप है- ऐसे द्वीप स्थिर नहीं होते, नदी निरंतर उन का भाग्य गढ़ती चलती है; द्वीप अलग-अलग हो कर भी निरंतर घुलते और पुनः बँटे रहते हैं- नया घोल, नए अणुओं का मिश्रण, नयी तलछट, एक स्थान से मिट कर दूसरे स्थान पर जमते हुए नए द्वीप …

“भविष्य का भरोसा लेकर कौन बैठता है, जहां जीवन का भरोसा नहीं।”

पुस्तक में रवीन्द्रनाथ ठाकुर का एक कथन- “मैं उस विशाल मरु की तरह हूँ जो घास कि एक हरी पत्ती को पकड़ लेने के लिए हाथ बढ़ाता है- मैं कहूँ कि मैंने इस विडम्बना जान ली है, घास कि पट्टी को निकट लाने के लिए मरु फैलता नहीं, सिमटता है; सिमट कर अकिंचन हो कर ही वह पत्ती को पकड़ तो नहीं, लगभग छू सकता है।”

“आनंद अनुभूति में नहीं है, किसी भी अनुभूति में नहीं है, किसी भी अनुभूति में नहीं, आनंद मन की एक एक प्रवृत्ति है, जो सभी अनुभूतियों के बीच में भी बनी रह सकती है।”

“व्यक्ति के सभी कर्मों का बीज सभी दूसरे कर्मों में निहित है।”

“समर्पण है तो वह न बांधता है, न अपने को बद्ध अनुभव करता है, केवल एक व्यापक कृतज्ञता मन में भर जाती है कि तुम हो, कि मैं हूँ। एक-दूसरे को पहचानने के बाद आश्चर्य यह नहीं है कि प्रेम है, कि हम प्यार करते हैं ; आश्चर्य यही है कि हम है, होना ही एक नए प्रकार का संयुक्त होना है।”

पुस्तक में उद्धृत पंक्तियां-

“यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति । तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।”

“तुमने एक ही बार वेदना में मुझे जना था, माँ पर मैं बार-बार अपने को जनता हूँ
और मरता हूँ
पुन: जनता हूँ और पुन: मरता हूँ
और फिर जनता हूँ,
क्योंकि वेदना में मैं अपनी ही माँ हूँ !

“महाराज, ए कि साजे एले मम हृदय पुर माझे
चरण तलै कोटि शशि – सूर्य मरे लाजे ।
महाराज, ए कि साजे
गर्व सब टूटिया मूर्छि पड़े लूटिया
सकल मम देह-मन वीणा सम बाजे | महाराज, ए कि साजे-“

“ओ ये केड़े आमान्य निये जाय रे,
जाय रे कोन चूलाय रे !
आमार मन भूलाय रे !”

“मेरे मायालोक की विभूति बिखर जाएगी !
किरण मर जाएगी !
लाल हो के झलकेगा भोर का आलोक-
उर का रहस्य ओठ सकेंगे न रोक ।
प्यार की नीहार बूँद मूक झर जाएगी !
इसी बीच किरण मर जाएगी !
ओप देगा व्योम श्लथ कुहासे का जाल,
कड़ी-कड़ी छिन्न होगी तारकों की माल ।
मेरे मायालोक की विभूति बिखर जाएगी
इसी बीच किरण मर जाएगी !
-कण्ठ स्वर !”

“मिलन हबे बले आलोय आकाश भरा !’
चलछे भेसे मिलन- आशा – तरी अनादि स्रोत बए,
कत कालेर कुसुम उठे भरि छेए ..
तोमाय आमाय-“

“यदि दो घड़ियों का जीवन
कोमल वृन्तों में बीते
कुछ हानि तुम्हारी है क्या?
चुपचाप चू पड़ें जीते।
निश्वास मलय में मिल कर
ग्रह-पथ में टकराएगा,
अन्तिम किरणें बिखरा कर
हिमकर भी छिप जाएगा।”

“दिस दाई स्टेचर इज़ लाइक अंटु ए पाम ट्री, एंड दाइ ब्रेस्ट्स टु क्लस्टर्स ऑफ़ ग्रेप्स |
‘आइ सेड, आइ विल गो अप टु द पाम ट्री, आइ विल टेक होल्ड आफ़
द-बाउज देयराफ : नाउ आल्सो दाई ब्रेस्ट्स शैल बी एज क्लस्टर्स आफ़
द वाइन, एण्ड द स्मेल ऑफ़ दाइ नोज लाइक एप्ल्स । “

‘आइ स्लीप, बट माइ हार्ट वेकेथ;
इट इज़ द वॉयस आफ़ माइ बिलवेड
दैट नाकेथ, सेइंग : ओपन टु मी, माइ सिस्टर,
माइ लव, माइ डव, माइ अनडिफाइंड,
फॉर माइ हेड इज़ फ़िल्ड विथ ड्यू,
एंड लाक्स विथ द ड्रॉप्स आफ़ द नाइट..”

”माइ बिलवेड इज़ माइन, एंड आइ एम हिज, ही फीडेथ एमंग द लिलीज़…”

“आइ रोज़ अप टु ओपन टु ओपन टु माइ बिलवेड, एंड माइ डैंड्स ड्राप्ड विथ मर्ह एंड फिंगर्स-…”

” एंड द रूफ आफ़ द बेस्ट वाइन फार द बिलवेड, दैट गोएथ डाउन स्वीटली, काजिंग द लिप्स आफ़ दोज दैट आर एस्लीप टु स्पीक…”

“लेट अस गेट अप अर्ली टु द विनयार्ड्स, लेट अस सी इफ़ द वाइन फ़्लरिश, ह्वेदर द टेंडर ग्रेप्स एपीयर, एंड द प्रोमेग्रेनेट्स बड फ़ोर्थ : देयर विल आइ गिव दी आफ़ माइ लव्ज।”

“आइ एम ए वाल, एंड माइ ब्रेस्ट्स लाइक टावर्स देन वाज आइ इन हिज वन दैट फाउंड फेवर…”

“वर्स दैन दोज ड्रीम्स इन ह्विच द आइ एम अवेक एंड वाक आन सालिड स्टोन, विदाउट यू डिसेम्बाडीड, एवरी डे अगेंस्ट द ईस्ट विंड गोइंग होम एलोन|”

“मन मोर मेघेर संगीते, उड़े चल दिग्दिगन्तेर पाने श्रावण वर्षण संगीते उड़े चल, उड़े चल, उड़े चल!”

“मेरा चोला लीराँ दा : इक वारी पा फेरा तक्क हाल फकीराँ दा !”

“हाउ वेल आइ नो ह्वाट आइ मीन टु डू ह्वेन द लांग डार्क आटम ईवनिंग्स कम,
एंड ह्वेयर, माई सोल, इज़ दाइ प्लेजेंट ह्यू?
विद द म्यूज़िक आफ़ ऑल दाइ वायसेज़, डम्ब इन लाइफ्स नवैम्बर, टू!
आई शैल बी फाउंड बाइ द फायर, सपोज़,
ओवर ए ग्रेट वाइज़ बुक एज़ बेसीमेथ एज़,
ह्वाइल द शर्ट्स फ्लैप एज़ द क्रासविंड ब्लोज़,
एंड आइ टर्न द पेज, एंड आइ टर्न द पेज,
नॉट वर्स नाउ, ओनली प्रोज!…

“व्हेन आई एम डेड, माई डियरेस्ट
सिंग नो सैड सांग्स फ़ॉर मी।”

“समथिंग इन मी रिमेम्बर्स एंड विल नाट फ़ार्गेट,
द स्ट्रीम आफ़ माइ लाइफ़ इन द डार्कनेस डेथवार्ड सेट।
एंड समथिंग इन मी हैज़ फ़ार्गाटन,
हैज़ सीज़्ड टु केयर, डिज़ायर कम्स अप एंड कंटेंटमेंट इज़ डिबानेयर
आइ हू एम वोर्न एंड केयरफुल हाउ मच डू आइ केयर ?
हाउ इज़ इट आइ ग्रिन देन, एंड चक्ल ओवर डिस्पेयर ?
ग्रीफ़ ग्रीफ़,
आइ स्पोज़ एंड सफ़ीशेंट ग्रीफ़ मेक्स अस फ्री
टु बी फेथलेस एंड फेथफुल टुगेदर एज़ वी आल हैव टु बी।

निग्रो की कविता-
आइ रिटर्न द बिटरनेस ह्विच यू गेव टू मी; ह्वेन आइ वांटेड लक्लिनेस टैटेलैंट एंड फ्री |
आइ रिटर्न द बिटरनेस

“इट इज़ वाश्ड बाइ टीअर्स नाउ इट इज़ लक्लिनेस गार्निश्ड थ्रू द यीअर्स आइ रिटर्न इट विद लव्लिनेस हैविंग मेड इट शो : फ़ार आइ वोर द बिटरनेस फ्राम इट लांग ऐगो।”

‘ओ मेरे सुख धीरे-धीरे गा अपना -राग, ऊँचे स्वर से सोयी पीड़ा जावे कहीं न जाग…”

“ए वुमन हैज गिवेन मी स्ट्रेन्थ एन्ड इंफ्लुएंस- एडमिटेड।”

UPHESC के सिलेबस में शामिल कुछ रचनाओं के मुख्य अंशों को नीचे दिए गए लिंक में पढ़ें-

चीड़ों पर चाँदनी : निर्मल वर्मा (मुख्य अंश)
बसंती (भीष्म साहनी) उपन्यास का मुख्य अंश
UPHESC
UPHESC सम्पूर्ण निबंधों का मुख्य अंश
अकेला मेला : रमेशचंद्र शाह की डायरी (मुख्य अंश)
अपनी खबर (पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’) का मुख्य अंश