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अपनी खबर (पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’) का मुख्य अंश

अपनी खबर (पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’) का मुख्य अंश

अपनी खबर : पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र

●जो वस्तु नष्ट होने योग्य होती है, जिसकी उपयोगिता सर्वथा समाप्त हो जाती है, वही नष्ट होती है, उसी का अंत होता है।

●धर्म विश्वास पर पनपता है।

●मैं ऐसा अनगढ़ पत्थर जिसमें रूप नहीं, रेखा नहीं। और न ही विकट-विकट भविष्य में कुछ बनता-बनाता ही दिखाई देता है।

●असल में अयोध्या आदमी के बनाए बनी हुई थी, भले वे आदमी राम-जैसे शक्तिमान क्यों न रहे हों। वैसे आदमी नहीं रहे तो अयोध्या राँड हो गयी।

●बचपन और यौवन शायद स्वयं में इतने भरपूर होते हैं कि उस आलम में अभाव भी भावों-भरे भासते हैं।

●पढ़ा भी कहीं हर जन्म में जाता है? किसी जन्म में पढ़ लिया- बस; जन्म-जन्मान्तरों के लिए बस हो गया। ‘गुरु-गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई’ गाया गोस्वामीजी ने। तुलसी के राम सारी विद्याओं से पूर्व (जन्म के) परिचित थे, सो उन्हें अल्पकाल ही में सारा ज्ञान उपस्थित हो गया था। दूसरी बात यह कि यदि प्रेम के महज़ ढ़ाई अक्षर पढ़ लेने से पंडिताई का बिल्ला मिल सकता हो तो ढ़ाई हज़ार पुस्तकें पढ़ने के बाद हजारीप्रसाद बने वह- मेरा मतलब वही- जो अक्ल का जहाज हो।

●’ध्रुव-धारणा’ के बाद दूसरी कृति जब मैंने ‘महात्मा ईसा’ के रूप में प्रस्तुत की तब उसका सम्यक संशोधन लालाजी ने किया था। पुनर्वाचन प्रेमचंद जी ने।

●’उग्र’ उपनाम तो मैंने राष्ट्रीय गान-द्वंद्व में सम्मिलित होने से पूर्व चुना था।

●’ऊटपटाँग’ शीर्षक से बरसों मैंने हास्य-व्यंग्य के नोट्स ‘आज’ में लिखे हैं- “अष्टावक्र” उपनाम से।

●कमज़ोरी भी अगर ‘कट’ वाली हो- अदावाली- तो कलामयी हो उठती है।

●सन् ’27 में जेल से आने के बाद मैंने “आज” में ‘बुढ़ापा’ लिखा था और ‘रुपया’।

●कुछ सत्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें कल्पना तक छू नहीं सकती, जैसे दिग्गजाकार ‘निराला’ पर मुषकाकार पब्लिशर का आक्रमण कर बैठना।