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बसंती (भीष्म साहनी) उपन्यास का मुख्य अंश

बसंती (भीष्म साहनी) उपन्यास का मुख्य अंश

मुख्य पात्र :- बसंती, दीनू,
सामान्य पात्र- चौधरी (बसंती का बाप), रामु (बसंती का भाई), श्यामा बीबी, रुक्मी (दीनू की पत्नी), बिसेसर, जमुना, मूलराज, बोधराज, , मतीराम, गणेश, शम्भू गोबिंदी (चाय की दुकानवाली), बुलाकीराम (लँगड़ा दर्जी)

अध्याय – 15 में विभक्त है यह उपन्यास।।

प्रकाशन वर्ष- 1982

मुख्य पंक्तियां-

● हाकिम भला लोग था। बड़े धीरज से बात सुनता रहा। बड़े अफसर तो भले लोग ही होते हैं, हरामी तो नीचेवाले छोटे अफसर होते हैं। (हीरा का कथन)

●किस्मत खोटी हो तो बना-बनाया काम बिगड़ जाता है।

●यह अभिनय भी था,खिलवाड़ भी था, विवाह भी था, विवाह का स्वांग भी था और भावी दाम्पत्य जीवन के लिए नारी हृदय की सहमी-सहमी सी भावविह्वल प्रार्थना भी थी।

●मेरे मन से तो यह मेरा पति ही है, मैंने तो इसे अपना पति ही माना है ना, पति मानकर ही इसके साथ आई हूँ। यह नहीं मानता तो न माने। मेरे लिए तो यह मेरा घरवाला ही है। (बसंती का कथन, दीनू के लिए)

●जीवन के बड़े-बड़े सदमे एक क्षण में अपनी चोट कर जाते हैं, पर घटते समय कोई प्रभाव नहीं छोड़ते, न कसक, न दर्द, न छटपटाहट, तिरते-से निकल जाते हैं, और इंसान अन्यमनस्क सा वैसे-का-वैसा व्यवहार करता रहता है, मानो कुछ भी न हुआ हो। दर्द की टीसें तो बाद में उठती है।

●रात की स्याही जब कम होने लगती है तो आंखें बंद करके फिर खोलो तो लगता है उजाला एक पलक और खुल गया है।

●मनुष्य तकलीफों-अड़चनों से नहीं घबराता, मुसीबतों से नहीं डरता, केवल उसे कहीं से प्यार मिलता रहे, आत्मीयता मिलती रहे, फिर वह एक नहीं, मुसीबत के बीसियों काले कोस लाँघ जाएगा।

●घर घाट क्या होता है, बीबी जी? जहाँ बैठ जाओ, वही तो घर हो जाता है। (बसंती का कथन, श्याम बीबी के लिए)

●सूरी साहिब ने ज़िंदगी के लंबे तजरबे में और बातों के अलावा यह भी सीखा था कि किसी गरीब अजनबी से बोलो तो कड़ककर बोलो। बाद में, जान-पहचान हो जाने पर भले ही नरम पड़ जाओ, पर पहली भभकी जरूर तेज होनी चाहिए।

●श्याम बीबी को इस बात का दुःख नहीं होगा कि दीनू फिर से मुझे छोड़ गया है, उसे इस बात की ज़्यादा खुशी होगी कि उसका कहा सच निकला। ( बसंती का कथन)