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दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल : रहमत

दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल : रहमत

दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल

Ramprasad Rana अंकल जी ने मुझे दयारा बुग्याल में 17 अगस्त को होने वाले बटर फेस्टिवल के बारे में बताया तो मुझे जाने की इच्छा नहीं हुई क्योंकि मेरे घुटने में बहुत तेज दर्द हो रहा था और मुनीष राठौर सर भी पंजाब से सुक्खी टाॅप के लिए निकल पड़े थे। उन्हें 13 अगस्त से 18 अगस्त तक कंडारा बुग्याल, हर्षिल, गर्तागं गली, गंगोत्री धाम और गौमुख ट्रेक करना था जिसमें मुझे साथ रहना था जिसे छोड़कर बटर फेस्टिवल में जाने का सवाल ही नहीं था…

वो कहते हैं ना ‘दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम’ तो समझिए दयारा बुग्याल में मड़वे की रोटी, चावल, राजमा, बंदगोभी आलू की सब्जी और खीर पर हमारे नाम लिखे थे। बारिश और भूस्खलन की वजह से हमें गौमुख जाने की परमिशन नहीं मिली.. हमारे पास दो दिन का समय बच गया था। मुनीष राठोड़ सर वापस पंजाब जाने का प्लान बनाया और मैं रेस्ट करने का। अंकल जी को जब पता चला कि मैं फ्री हो गया हूं तो मुझे बोला “बेटा दयारा बुग्याल चला जा वहां अलग ही अनुभव मिलेगा मुख्यमंत्री, पर्यटन मंत्री और अनेकों सांसद और विधायक भी आ रहे हैं बहुत बड़ा फेस्टिवल है।”
“अंकल जी मेरे पैर का इशू ठीक नहीं हो रहा है”
“तीन-चार दिन से डेली डेली ट्रैक करा रहा है तब तो काफी दर्द हो रहा होगा?”
“वो एक असल घुमक्कड़ हैं उनके लिए दिल और जान सब कुर्बान है.. दर्द क्या चीज़ है… ऐसे लोगों को ट्रैक कराने अवसर बार बार नहीं मिलता है”
“अब तु देख ले जाना हो तो चला जाइयो नहीं तो मेरा क्या?”

मुनीष सर अपना सब सामान पैक कर चुके थे। सुबह निकलने की पूरी तैयारियां हो चुकी थी। मैं रात को अपने गेस्ट के साथ आखिरी डिनर के लिए बैठा था तभी मेरे दिमाग में ख्याल आया कि एक घुमक्कड़ को घुटने का दर्द शोभा नहीं देता है दो साल बाद बटर फेस्टिवल मनाया जा रहा है दर्द की वजह से इसे मिस क्यों करूं? मैंने प्रस्ताव रखा कि मुनीष सर सुबह मुझे अपनी बाईक से भटवाड़ी तक छोड़ दें वहां से वो अपने घर की तरफ़ बढ़ जाएं और मैं दयारा बुग्याल की तरफ़। हमने डिसाइड किया अगली सुबह सात बजे हर हाल में निकल लेंगे

सुबह मेरे रूम के दरवाज़े पर नाॅक की आवाज से मेरी नींद खुली। मैं बिस्तर में रजाई ओढ़े कंफ्यूजयाइया हुआ था कि जाऊं कि ना जाऊं। समय आठ बज रहे थे। मुनीष सर पूरी तैयारी से आ गए थे हालांकि एक घंटा लेट हो गए थे। मैंने आंख मलते-मलते दरवाजा खोला
“चलना नहीं है क्या”
“चलिए सर” मैं अपना बैग उठाते हुए कहा

चलती बाइक पर सुर्र-सुर्र हवा ने मुझे एहसास कराया कि गर्म कपड़ा पहनना भूल गया हूं। थोड़ी बाद याद आया जूता पहनना भी भूल आया हूं.. गंगनानी आते आते याद आया कि फ्रेश होना और ब्रश करना भी जल्दबाजी में भूल आया।

लगभग सबा नौ बजे हम भटवाड़ी पहुंच गए। यहां से मुनीष सर को उत्तरकाशी की तरफ़ जाना था और मुझे रैथल गांव की तरफ़ लेकिन सर ने बुलेट दयारा बुग्याल की तरफ़ मोड़ ली। पूछने पर बताएं कि “चलो तुम्हें रैथल गांव तक छोड़ आता हूं.. कुछ पल और साथ रह लेंगे”

हम लगभग दस किलोमीटर आगे बढ़ते गए पर रैथल गांव का पता नहीं चला, कुछ देर बाद रोड ख़त्म वहां काफी सारी गाडियां खड़ी थी। एक जगह बोर्ड पर लिखा था ‘दयारा रिसाॅर्ट बार्सू’ मैं समझ गया यह बार्सू गांव है

एक व्यक्ति से रैथल गांव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा रैथल पल्ले साईड रह गया। अब विकल्प एक ही था बार्सू से ही दयारा बुग्याल जाया जाए.. हालांकि बार्सू से दयारा बुग्याल का ट्रैक छोटा है पर खड़ी चढ़ाई है।‌ मुझे लगा मुनीष सर का अब यहीं तक साथ है, धन्यवाद कहने मुड़ा तो देखकर आश्चर्यचकित रह गया। सर एक होटल में रूम बुक कर रहे थे सामान रखने के लिए, जिज्ञासावश कारण पूछा तो सर बोले मैं भी साथ चलुंगा सर की यह बात सुनकर मैं बहुत ज्यादा खुश और उत्साहित हो गया

तकरीबन 10 बजे हम ट्रैक शुरू कर दिए, शुरू में एक महिला मंडली मिली वे लोग भी बटर फेस्टिवल में जा रहे थे। हम उन लोगों को तेजी से क्राॅस कर गए.. शुरुआत में हम काफी तेज चले लेकिन खड़ी चढ़ाई ने हमारी रफ्तार डाउन कर दिया। हम अफसोस करने लग गए कि इस रास्ते से क्यों आए.. रैथल वाला ठीक था। खैर हम वापस जा नहीं सकते थे.. धीरे धीरे चढ़ते गए। पूरे रास्ते जंगल जंगल देखने के लिए सिर्फ जंगल..कसम से बहुत बोरिंग लग रहा था। आधे रास्ते पर हमें कुछ लोग वापस आते दिखे..वे लोग दयारा बुग्याल से आ रहे थे.. उन्होंने बताया कि आप लोग लेट हो गए हो कार्यक्रम खत्म हो गया है। यह सुनकर हमारे हौसले पस्त हो गए। मुनीष सर बोले वापस चलते हैं पर मैंने कहा इतना आ ही गए हैं तो बुग्याल ही देखकर आ जाते हैं। अमूमन मैं जब भी किसी ट्रैक पर जाता हूं तो पानी की बोतल और चाॅकलेट जरूर साथ रखता हूं, पर आज सबसे मुश्किल चढ़ाई थी मैं सबकुछ भूल आया था.. कंडारा का ट्रेक बहुत याद आ रहा था क्योंकि इस ट्रेक पर पानी और जंगली फलों की कमी नहीं है.. यहां प्रकृति से ही ऊर्जा मिलती रहती है। बहरहाल हम गिरते पड़ते दयारा बुग्याल पहुंचे.. भीड़ देखकर अचंभित रह गया। काफ़ी टेंट लगे हुए थे एवं निब्बे निब्बियों मस्ती कर रहे थे। मैंने एक व्यक्ति से पानी मांगा उन्होंने मुझे थोड़ा और आगे जाने के लिए बोला.. उनके बताए जगह पर गया तो वहां पानी और खाना मिल रहा था। मैं टूट पड़ा..

क्यों मनाया जाता है बटर फेस्टिवल?

समुद्र तल से 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीण गर्मियों की शुरुआत में ही अपने मवेशियों के साथ छानियों में चले जाते हैं। सावन महीने के बीतने के साथ ही ऊंचाई वाले इलाके में ठंड की दस्तक शुरू हो जाती है तो ग्रामीण भी अगस्त महीने के दूसरे पखवाड़े में मवेशियों संघ गांव लौटना शुरू कर देते हैं। इतनी ऊंचाई पर मवेशियों की रक्षा करने और दुग्ध उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि होने पर ग्रामीण लौटने से पहले भाद्रपद महीने की संक्रांति को यहां दूध मक्खन मट्ठा की होली खेलकर लोक देवताओं की पूजा करते हैं।

पहले इस होली को गाय के गोबर से खेला जाता था बाद में अंढ़ूड़ी उत्सव को पर्यटन से जोड़ने के बाद ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू कर दिया। वर्तमान समय में ‘बटर फेस्टिवल’ के नाम से मशहूर हो चुके अंढ़ूड़ी उत्सव के आयोजन से उत्तरकाशी के साथ उत्तराखंड राज्य की लोक संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार प्रसार हुआ है।

दयारा बुग्याल में बटर फ़ेस्टिवल || रहमत
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