दो घरों का गांव
सुबह से हमारा प्लान हर्षिल टाउन जाने का था। टैक्सी से आध घंटे का रास्ता है लेकिन कोई टैक्सी मिल नहीं रही थी। इंतजार करते-करते 11 बज गए। हमने तय किया कि पैदल ही चल पड़ते हैं, बीच में कहीं मिलेगी तो बैठ लेंगे। इस टाइम पहाड़ वैसे भी अपने खुबसूरती के उरूज पर रहते हैं और साथ में कोई महिला मित्र हो तो मौसम दोगुना सुहावना हो जाता है। हम उछलते कूदते-फांदते नाचते-गाते चल पड़े। बीच में टैक्सी तो बहुत आई पर हम बैठे नहीं। हर्षिल के रास्ते में झाला पुल पर हम उफनती भागीरथी नदी को देख रहे थे उसी समय एक छोटा सा बहुत ही क्युट लड़का उम्र सिर्फ सात साल, कंधे पर कुछ भारी सामान लिए मस्ती में चला आ रहा था।
“ये मैं ले लूं, बहुत भारी है ना?”
“नहीं” लड़के ने शरमाते हुए बोला उसे लगा ये मज़ाक है
“इतना भारी सामान लेकर हर्षिल कैसे जाएगा?” मैंने बड़ी हैरानी से पूछा
“मेरा घर उधर है” उसने अवाना बुग्याल के नीचे जंगल की ओर इशारा करते हुए कहा
“उधर तो जंगल ही जंगल है”
“वहां अल्लू में मेरा और मेरे दोस्त का घर है”
“सिर्फ दो ही घर है?” मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा
“हां”
“ये सामान मुझे दे दे मैं इसे तुम्हारे घर तक छोड़ आता हूं”
“घर बहुत दूर है”
“कोई बात नहीं मैं छोड़ आता हूं”
“तुम्हारे घर में कौन कौन रहता है”
“सब लोग रहते हैं”
“मम्मी पापा और भाई बहन”
“हां.. पीछे दीदी लोग आ रही है”
हम बात करते-करते जंगल के बेहद खूबसूरत रास्ते चल दिए। नीचे गंगा जी विकराल रूप धारण किए पत्थरों से टकराते हुए उफ़ान पर बह रही थी। सबकुछ बहुत खुबसूरत चल रहा था तभी अचानक मेरे महिला मित्र के फ़ोन की घंटी बजी। हम पर वापस लौटने का प्रेशर आन पड़ा पर मेरा मन नहीं कर रहा था आने का। मैं लड़के के साथ चलता गया।
“घर तक जाने के लिए वो पहाड़ चढ़ना पड़ेगा”
“कोई बात नहीं चलते हैं”
“काफी दूर है ना आप यहां सामान रख दो मेरा भाई आकर ले जाएगा”
“चल ठीक है”
“मैं आपको छोड़ आता हूं आप रास्ता भटक जाओगे”
“मैं चला जाऊंगा तु घर जा, फिर कभी आऊंगा तेरे घर”
“आपके साथ जो दीदी आ रही थी वो कहां है?”
मैं पीछे मुड़कर देखा तो सहम गया। वो कहीं दिख नहीं रही थी। मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। मैं ‘मैडम ओ मैडम’ चिल्लाते हुए उसी रास्ते पर वापस आने लगा। थोड़ी देर बाद उसे एक नाले के पास एक बड़ा सा पत्थर पर बैठा देख मेरी जान में जान आई।
हम लेट हो रहे थे इसलिए हम उस जगह को ज्यादा एक्सप्लोर नहीं कर पाए लेकिन जितना कर पाए स्वर्ग से कम खुबसूरत नहीं था।
दो घरों का गांव || रहमत
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