राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म की शूटिंग वाला गांव
उत्तराखंड के सबसे बड़े जनपद उत्तरकाशी में स्थित हर्षिल वैली एक सीमांत इलाका है। इस वैली में 8 गांव हैं सुक्खी टाॅप, जसपुर, पुराली, झाला, बगोरी, हर्षिल, मुखबा और धराली। आज हम बात करेंगे राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म की शूटिंग वाला भोटिया गांव बगोरी की।
पर्यटन ग्राम हर्षिल से महज एक किलोमीटर की दूरी तय कर बगोरी पहुँचा जा सकता है। दोपहिया गाड़ी भी वहाँ तक जा सकती है लेकिन अगर आप पैदल जाएँगे तो कल-कल बहती नदी पर बने सुंदर पुलों और बर्फ से ढकी बंदरपूंछ शिखर के दीदार आसानी से कर पाएँगे। हिमालय की गोद में बसे इस गाँव की प्राकृतिक सुंदरता वाकई अद्भुत है। गाँव के चारों ओर नजर घुमाएँ तो बर्फ से ढकी चोटियाँ और देवदार के घने जंगल नज़र आते हैं। हर्षिल से बगोरी तक के सफर में सात छोटे-छोटे पुल आते हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं। वहीं, गाँव के आखिरी छोर पर भागीरथी और सिंहगाड का संगम है, जहाँ हिमालय की गोद में बहती नदी का नजारा वाकई विहंगम है।
गांव की ऐतिहासिकता
सन् 1985 में आई ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म की शूटिंग के लिए भी जाना जाता है। फिल्म में दिखाया गया हिरोईन का यही गांव होता है।
सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सीमा पर बसे जादुंग और नेलांग गाँव को खाली करा दिया गया था। वहाँ से अधिकतर लोग बगोरी गाँव आकर बस गए। उस दौर में जादुंग और नेलांग के लोग तिब्बत के साथ व्यापार किया करते थे, जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन हुआ करता था। बगोरी के ग्रामीणों का कहना है कि वे तिब्बत से नमक का व्यापार करते थे, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि उन्हें अपना गाँव छोड़ना पड़ा और उन्होंने भी आजीविका के नए साधन तलाश लिए। अब सेब की बागवानी के अलावा भी लोग अलग-अलग रोज़गारों से जुड़ गए हैं। बगोरी में एक बौद्ध मठ के साथ-साथ मंदिर भी है, जहाँ सभी आस्था के साथ सिर झुकाते हैं।
बगोरी में जादुंग और नेलांग के मूल निवासी रहते हैं, जिन्हें जाड़ कहा जाता है। इन लोगों को साल में एक बार नेलांग जाने की परमिशन मिलती है जहां जाकर ये लोग अपने लाल देवता की पूजा करते हैं। इसके अलावा गाँव में एक आबादी ऐसी भी है, जो यहीं की मूल निवासी है। यहाँ कुल मिलाकर 250 के करीब परिवार रहते हैं। गाँव की खासियत है लकड़ी के खूबसूरत घर, जिन पर फूलों से लेकर बेलों तक की नक्काशी की गई है। घरों के दरवाजों से लेकर खंभों तक की बनावट बरबस ही मन मोह लेती है। वहीं कई घरों पर बौद्ध मंत्र भी खुदे हैं, तो कहीं लोगों ने अपना नाम खुदा रखा है। गाँव की पतली सी गली से गुज़रते हुए हर एक घर पर नज़र ठहर जाती है। पुराने घरों के अलावा यहाँ कई घर नए भी बने हैं।
जंगल और पहाड़ों में रहने वाले लोगों को जड़ी-बूटियों की पहचान होती है। यहाँ लोग चाय में एक विशेष प्रकार की जड़ी-बूटी डालते हैं, जिसका अलग ही स्वाद आता है। मैं खुशनसीब था कि एक घर में मुझे भी जड़ी-बूटी वाली चाय पीने को मिल गई। वहीं मशरूम की कई प्रजातियों का यहाँ के लोग खाने में इस्तेमाल करते हैं। चीन से नजदीक होने के कारण यहाँ चाइचीज खाने का काफी प्रभाव है, जैसे, नूडल्स, मोमो, थुकपा आदि, आदि।
सर्दियों में जीवनशैली बहुत मुश्किल होता है
दिसंबर से अप्रैल तक बगोरी गांव में बहुत ज्यादा बर्फ पड़ती है पूरा गांव बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है यहां रहना बहुत कठिन हो जाता है इसलिए सर्दियों में ये लोग नीचे डुंडा और उत्तरकाशी के आसपास चले जाते हैं।
राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म की शूटिंग वाला गांव || रहमत
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