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अधूरा सपना- रहमत

अधूरा सपना- रहमत

रात के जब 10 बजते हैं तो बहुत सारे लोग बिस्तर पर लेट जाते हैं। जबकि नींद किसी-किसी को आती है। और कुछ लोग तो बहुत बदकिस्मत होते हैं जो नींद के लिए दवाई का सहारा लेते हैं। कालू और घंटू भी सबकी तरह इंसान हैं। लेकिन दोनों का मामला थोड़ा-सा अलग है। जब रात में दोनों को नींद नहीं आती है तो दोनों अपने इस हकीकत की भयानक दुनिया से सपनों की दुनिया में खो जाते हैं जहां वे सपने देख सकते हैं। हम जिस माॅर्डन स्टेट में रह रहे हैं दोनों भी इसी माॅर्डन स्टेट का हिस्सा हैं। लेकिन अतंर यह है कि दोनों हिस्सा होकर भी इससे वाक़िफ नहीं हैं।

कालू और घंटू दो पक्के मित्र हैं। दोनों द्वारका से सटे पालम के झुग्गी में रहते हैं। कालू 10 साल का लड़का है और घंटू 9 साल का। दोनों के हालात एक जैसे हैं। पारिवारिक और आर्थिक स्थिति बिल्कुल एक समान है। कालू भी अपनी माँ का इकलौता बेटा है और घंटू भी अपनी माँ का इकलौता बेटा है। दोनों के पापा नहीं हैं। एक साल पहले ज़हरीली शराब पीने से मौत हो गई थी। तब से ही दोनों कूड़ा बीनकर घर चलाने में माँ की मदद करते हैं। इलाके के नगर-निगम स्कूल में दोनों वहाँ किताब वाला बस्ता नहीं, बल्कि, कूड़ा उठाने वाला बोरी लेकर जाते हैं। रोज सुबह-सुबह खाली पेट और खाली बोरी लेकर निकलते हैं और शाम को पीठ पर बोरी लादकर आते हैं।

आज दोपहर में बोरी आधा ही भरा था। चिलचिलाती धूप में सड़क के किनारे दोनों पीठ पर बोरी लादे चले आ रहे थे। धूप इतनी तेज थी कि सड़क पर कोई भी नहीं चल रहा था सिवाय एक-दो गाड़ी के। जब दोनों डीडीए पार्क के सामने से गुजर रहे थे तो दोनों को लगा कि जब सड़क पर कोई नहीं चल रहा है तो वह क्यों चले? दोनों ने  कूड़े की बोरी पार्क के दीवार के साथ नीचे रख दिये और दीवार पर चढ़ गए। दीवार पेड़ के छांव में थी वहां बैठकर थोड़ी-सी राहत मिली थी। कुछ आराम करने के बाद दोनों की नजरें पार्क के अंदर पड़ी। पार्क में सुन्दर-सुन्दर फूल खिले हुए थे और झूले भी लगे हुए थे। पार्क में कुछ बच्चे क्रिकेट भी खेल रहे थे। कालू बच्चों को क्रिकेट खेलते देखने लगा पर घंटू को यह पसंद नहीं आया। वह झूला के पास जल्दी से पहुँचना चाहता था।

“चल कालू जल्दी से कूद जा” घंटू ने कालू की ओर देखते हुए कहा

“किधर?” कालू आश्चर्यचकित होकर पूछा।

 “झूला झूलने”  घंटू ने कहा

कालू उम्र में बड़ा था और समझदार भी था। उन्हें डर था कि कहीं झूला के पास जाने से सोसाइटी के लोग उनपर हमला ना कर दें। उन्होंने घंटू कि बात को टालते हुए कहा

“कुछ देर में अमीरों के बच्चे आ जाएंगे झूला झूलने, हमें देखकर डर जाएंगे हमें मार पड़ेगी आज नहीं फिर कभी आएंगे।”

“हम बच्चों से दूर ही रहेगें ..वो देख वहां कोई नहीं है, झूला खाली है” घंटू ने झूला की तरफ इशारा करते हुए कहा

“तू पागल तो नहीं हो गया है?” 

“मैं पागल दिखता हूं?” घंटू चिढ़ते हुए पूछा।

“नहीं गधा दिखता है”

“गधा मैं नहीं तू है”

“तुझे तो पैसे जोड़ना भी नहीं आता। उस दिन कैसे लाला ने तेरे हिसाब में गड़बड़ किया था, उस टाइम मैं नहीं आता तो लाला तुझे आधा ही पैसे देता! चला है मुझे गधा बताने।” 

“कालू तू झूला झूलने चल रहा है या नहीं?” घंटू गुस्से में पूछा

“मुझे नहीं जाना”

“ठीक है मत आ मैं जा रहा हूं।” 

घंटू दीवार से कूद गया और तेजी से झूला की तरफ बढ़ गया।

“घंटुआऽऽ रूक जा” कालू ने जोर से आवाज लगाया लेकिन घंटू ने नज़रअंदाज़ करते हुए झूला के पास पहुँच गया। कालू  भी कूदा और हाँफते हुए झूले के पास पहुँच गया। घंटू कालू को देखकर मन ही मन खुश हो रहा था। वह अब बेफिक्र होकर झूले पर चढ़ गया। कालू अब भी संकोच में था।

“कालू मेरे पीछे से धक्का लगा दे” 

“नहीं आराम-आराम से ही झूल ज्यादा तेज झूलेगा तो गिर जाएगा।” 

“अरे यार तू कितना डरपोक है, मुझे कुछ नहीं होगा तू बस एक बार तेज धक्का लगा दे।”

“अच्छा ठीक है।” कालू ने घंटू के झूले को पीछे करके हल्के से धक्का दिया।

“सही से नहीं हुआ फिर से धक्का दे।” 

कालू ने फिर से एक धक्का दिया। इस बार भी घंटू संतुष्ट नहीं हुआ।

“कालू हनुमान जी जैसी शक्ति भर अपने हाथ में और जोर से धक्का दे।”

“नहीं बाबा नहीं, गिर गया तो लेनी के देनी पड़ जाएगी, तेरी मां मुझे गरियाएगी, मुझे तेरा ख्याल रखने के लिए बोली है। तुझे कुछ हो गया तो मैं क्या जवाब दूंगा तेरी माँ को?”

“तू सबसे बड़ा फट्टू है, देख लोहे की जंजीर से बंधा हुआ है कभी नहीं गिरेगा। बस तू एक बार जय श्रीराम बोलकर जोर से धक्का लगा दे।”

“ठीक है” कालू ने जोर से धक्का लगा दिया।

घंटू स्वप्न लोक में पहुंच गया। वह सपना देखने लगता है कि सोसाइटी के बच्चों के साथ झूला झूल रहा है। उनके हम-उम्र के बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं। उन बच्चों से उनकी दोस्ती हो गई है। सपने में ही बच्चों के साथ स्कूल भी जाने लगता है पर स्कूल के प्रांगण तक पहुँचने से पहले ही सपना टूट गया। झूला भी रूक गया। घंटू को लगा झूला को कालू ने जानबूझ कर रोक दिया है।

“अबे कलुआ तुने झूला क्यों रोका? तुने स्कूल नहीं जाने दिया मुझे।” वह गुस्से से लाल होकर रोने लगा।

“चूप हो जा घंटू तू 

स्कूल नहीं जा रहा था तू बस सपना देख रहा होगा और सपना तो टूटने के लिए होते हैं!” कालू घंटू को समझाने की कोशिश कर रहा था।

“मुझे बच्चों के साथ स्कूल जाना है।” घंटू जिद्द करने लगा।

“दोस्त हम सिर्फ कूड़ा बीनने के लिए पैदा हुए हैं सपना बीनने के लिए नहीं। सपना देखना हमारे लिए पाप है जो सामने है उसी दुनिया में हमें जीना है।”

  कालू बोलते जा रहा था पर घंटू अनसुना कर रहा था। वह दीवार पर आकर बैठ गया, घंटू अभी भी रो रहा था। कालू भी दीवार पर चढ़ गया।

“घंटू तुझे फालतू में कौन-सा नशा चढ़ गया है? तू दिन में तारे कब से देखने लगा?”  कालू घंटू के बगल में आकर बैठते हुए से पूछा।

घंटू कुछ नहीं बोला, वह दीवार पर से नीचे उतर गया, कूड़े की बोरी अपने पीठ पर लादकर सिसकते हुए अकेले चल दिया।

ऐसा दोनों की दोस्ती में पहली बार हुआ था कि दोनों एक साथ कूड़ा की बोरी अपने पीठ पर ना लादें। कालू भी दीवार पर से कूद गया, बोरी पीठ पर लादकर घंटू के पीछे चल पड़ा।

दोनों को दीवार से फांदते हुए सामने फ्लैट से एक अंकल देख रहा था। उन्होंने दोनों को चोर समझ लिया। वह नीचे फटाफट उतर कर आया और दोनों का पीछा करने लगा। तपती सड़क पर कालू पीठ पीछे बोरा लिए घंटू के पीछे-पीछे चल रहा था। एक पत्थर अचानक से कालू के सर पर आकर लगा। कालू नीचे गिर गया। वह अंकल जो दोनों का पीछा कर रहा था उसी ने पत्थर मारा था। कालू के पास पहुँच गया और उसकी तलाशी लिया। उसके बोरी को उलट दिया। कालू तपती जमीन पर लेटा कराहा  रहा था। उसके सिर से खून तेजी से बह रहा था। वह अंकल बार बार कालू से पूछ रहा था 

“बोल क्या चुरा कर भाग रहा था?” कालू के मुँह से कुछ आवाज नहीं निकल पा रहा था। घंटू अब तक काफ़ी आगे निकल चुका था। वह अंकल कालू को वहीं छोड़कर घंटू का पीछा करने लगे। उन्होंने जोर से घंटू को आवाज लगाया 

“ऐ लड़के रूक, वहीं रूक” 

घंटू पीछे मुड़ा। कालू को पीछे ना देखकर  हतप्रभ रह गया। घंटू काफ़ी डर गया। इतने में वह शैतान आदमी उसके पास पहुँच गया। उसकी पूरी तलाशी लिया, उसके बोरी को पलट दिया। उसे कुछ नहीं मिला। उस अंकल को अब भी शक था। उन्होंने सौ नंबर पर कॉल कर दिया। घंटू कालू को पुकार रहा था। वह एकदम सहमा हुआ था। कालू के सिर खून से सना हुआ था। वह उठा और कूड़ा को बोरी में भरने लगा। उसे अपनी चिंता नहीं, घंटू की बहुत चिंता हो रही थी। वह जल्दी से कूड़ा को बोरी में भरा और जिधर घंटू गया था उस तरफ़ आगे बढ़ा। कुछ ही दूरी पर घंटू मिल गया। उसे तीन-चार लोगों ने घेर रखा था। कालू को कुछ समझ नहीं आ रहा था उनके साथ क्या हो रहा है। 

“छोड़ दो मेरे भाई को उसने कुछ नहीं किया है” कालू ने भीड़ से अनुरोध किया।

“तो तूने चोरी की है?” भीड़ में से किसी ने पूछा

“नहीं हमने कुछ नहीं चुराया है” कालू ने उत्तर दिया

“ये लोग अपना जुर्म ऐसे कबूल नहीं करते हैं इन लोगों से चोरी कबूल करवाने का एक ही तरीका है अच्छे से कूट डालो” भीड़ में से किसी ने सलाह दिया। अब तक काफी भीड़ लग चुकी थी।

“इन्हें पुलिस के हवाले कर दो वे अपने आप चोरी कबूल करवा लेंगे।” एक महिला ने सलाह दिया। तभी एक नौजवान भीड़ को चीरते हुए आगे आया। कालू की ओर देखते हुए बोला

“ओए तेरा नाम क्या है?”

“कालू”

“रहता किधर है?”

“पालम”

“पालम में कहां?”

“मेट्रो के पास में जो झूग्गी है वहीं”

“अच्छा”

“ये लड़का कौन है?” उन्होंने घंटू की ओर इशारा करते हुए पूछा

“मेरा दोस्त है” 

“तुम्हारा पापा क्या करता है?” 

“पापा नहीं है”

“मम्मी तो है ना?”

“हाँ”

“कितने भाई बहन हो?” 

“मैं अकेला हूँ”

“अच्छा, तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो तुम्हारी माँ क्या करती है?”

“मेरी माँ काम करती है।”

“तो वो तुम्हें स्कूल क्यों नहीं भेजती हैं?” 

“हम सपना देखने के लिए पैदा नहीं हुए हैं।” 

“ऐसा किसने कहा तुमसे? स्कूल जाना तो तुम्हारा अधिकार है।”

“भाईसाहब इन लोगों को बस चोरी करने का अधिकार है, ये लोग सुधरने वाले नहीं है जनता के टैक्स सरकार चाहे इन पर जितना खर्च कर ले पर पेट तो चोरी करके ही भरेंगे” भीड़ में से एक बुजुर्ग ने नौजवान से कहा

“देश की गंदगी हैं ये लोग” भीड़ से आवाज आई

”हां, हां ” भीड़ में से अधिकांश लोगों ने हामी भरी है।

“ये लोग एक दो बच्चे नहीं दस बच्चे पैदा करते हैं। देश आबादी का विस्फोट इन्हीं लोगों के चलते झेल रहा है।” अंकल गुस्से से लाल थे। मानों जैसे पूरे देश की समस्या इन्हीं समाज से हो। नौजवान सबको संबोधित करते हुए कहा

“सभी सामाज अपना भला चाहते हैं, कोई नहीं चाहता कि वह ग़रीबी में रहे, अभावों में जिंदगी गुजारे। सरकार इन सामजों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देती है इसलिए ये अशिक्षित रह जाते हैं, और हम लोग तो इन लोगों के साथ ऐसे ट्रीट करते हैं जैसे ये लोग इस ग्रह के दुश्मन हो। सच बात तो यह है कि हम लोग ही नहीं चाहते ये समाज ऊपर आएं।” 

“भाई साहब आप इनकी तरफदारी ना ही करें तो बेहतर है।” अंकल ने कहा

“माफ़ कीजिए अकंल जी पर ये दो मासुम बच्चों को मत सताइए इन्हें समझा बुझाकर घर भेज दीजिए।” नौजवान ने आग्राह किया

“अरे ऐसे कैसे इन चोरों को छोड़ दें।”  

“इन्होंने चोरी क्या किया है?”

“मुझे क्या पता।”

नौजवान को बहुत हैरानी हुई। कालू और घंटू दोनों भीगी बिल्ली की तरह खड़े थे।

“बेटा आपने क्या चोरी की है? चोरी करना बहुत बुरी बात होती है ना!” नौजवान ने दोनों बच्चों से कहा

“हमने कुछ भी चोरी नहीं की है” दोनों रोते हुए बोले

“बेटा सच सच बता दो” नौजवान ने दोनों से आग्रह किया

“भैया सच बोल रहा हूँ। हमने कुछ चोरी नहीं की बस दीवार फांदकर कर पार्क में झूला झूलने गये थे।” कालू रोते-रोते बोला। 

“गेट से जाते दीवार कूद कर जाने की क्या जरूरत थी?”

“धूप बहुत तेज थी, हम थक गए थे इसलिए आराम करने के लिए दीवार पर चढ़े थे।”

“तुमने तो अभी कहा झूला झूलने के लिए पार्क में गया था” नौजवान को सन्देह होने लगा।

“अरे भाई ये ऐसे ही बेवकूफ बना रहा है इसे इतना पीटो की अपना गुनाह कबूल कर ले” भीड़ में से किसी ने सलाह दिया

“हम सच कह रहे हैं हमने कुछ चोरी नहीं की है, हम दोनों दीवार पर आराम कर रहे थे तो घटूं ने झूला देखा इसे झूला झूलने का मन किया। मैं मना किया था इसे।” कालू ने नौजवान से कहा।

“यह देश  संविधान से चलता है आप लोगों के के अनुसार नहीं। संविधान ने सभी को एक समान अधिकार दिए हैं। इस पार्क में जितना आप लोग उठ बैठ सकते हो उतना ये भी और उतना मैं भी। बाबा साहेब ने इन्हीं लोगों को बराबर का हक देने के लिए संविधान निर्माण किया था।”

नौजवान भीड़ को संबोधित कर रहा था। तभी पुलिस की गाड़ी आ गई। पूरी भीड़ का ध्यान पुलिस की गाड़ी की ओर चला गया। दोनों बच्चों में पहले से ही पुलिस का आतंक था। पुलिस को सामने देखकर दोनों भय से और कांपने लगे। एक पुलिस वाला दोनों बच्चों के पास आया दोनों को एक-एक डंडे मारा और कड़क आवाज़ में पूछा

“तुम लोगों ने क्या चोरी किया?” 

दोनों में से किसी की आवाज नहीं निकली।

“यहीं कबूल कर ले थाने नहीं ले जाऊंगा” पुलिस ने कूड़े की बोरीयों को डंडे से टटोलते हुए कहा। 

“सर आप इसकी तलाशी ले लिजिए चोरी की कुछ माल मिले तो  ले जाइए” नौजवान ने पुलिस से कहा

“तू वकील है क्या?”

“जी नहीं, पर ये तो इन लोगों से पूछिए बच्चों ने चोरी क्या किया है आपको भी तलाशी लेने में आसानी रहेगी”

“हमें कैसे काम करना है अच्छी तरह जानते हैं? तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं।”

“इस तरह से तो कोई भी किसी पर भी चोरी का आरोप लगा देगा” 

“कानून सबका इसांफ करती है”

“इन बच्चों का भी इसांफ कीजिए”

“चोर को सजा मिलती है इसांफ नहीं”

“आपने बिना तलाशी के इन्हें कैसे चोर समझ लिया? इस तरह से तो कोई भी मुझपर शक करें और कानून मुझे चोर साबित कर देगी फिर कानून का कैसा इंसाफ?” 

नौजवान की पुलिस की छोटी-सी बहस चली। सूरज ढलने लगा, रोशनी कम होने लगी अँधेरा फैलने लगा। कालू और घंटू दोनों सहमे – से भीड़ में खड़े थे। किसी को कुछ पता नहीं था दोनों का क्या होने वाला है। पुलिस ने दोनों को आखिरी बार चेतावनी दी। “चोरी कबूल कर ले”

“सर मेरा आपसे रिक्वेस्ट है प्लीज़ इनकी तलाशी ले लिजिए या फिर दोनों को छोड़ दीजिए” 

“तू ज्यादा बोल रहा है”

“आप लोग इस तरह किसी को भी परेशान करोगे तो बोलना पड़ेगा ही।”

पुलिस तिलमिला गया। वह कुछ बोलता कि उससे पहले नौजवान आग्रह करके बोला

“सर, इन दोनों बच्चों के पापा नहीं है कूड़ा बिनकर पेट भरते हैं। इन्हें छोड़ दीजिए । इनकी माँ इतंजार कर रही होगी।”

पुलिस ने कहा “हम छोड़ देंगे पर इनके साथ थाणे चलना होगा”

नौजवान थाने चलने को तैयार हो गया। पुलिस ने दोनों बच्चों को गाड़ी पर बैठाया, नौजवान भी बैठा। कुछ दूर जाकर गाड़ी रुक गई। पुलिस ने नौजवान से  कुछ चाय-पानी का खर्च माँगा।  वह जानता था यह भ्रष्टाचार है पर वह यह भी जानता था कि अभी सौ रुपए नहीं दिया तो उसे भी कोर्ट कचहरी का चक्कर काटना पड़ सकता है।

उसने अपने पर्स से सौ रूपए दे दिया। पुलिस ने तीनों को वहीं उतार दिया और दोनों बच्चों को हिदायत दिया फिर कभी इधर दिखाई मत देना।कालू ने नौजवान को शुक्रिया बोला। दोनों बच्चों ने पीठ पर कूड़े की बोरी लादा और घर की तरफ़ बढ़ गये। घंटू ने कालू से कहा “भाई मुझे माफ़ कर दो, मेरी वजह से यह सब हुआ”

“नहीं हमारे भाग्य में पहले से यही लिखा है।”

“तुझे पत्थर उस हरामी ने मारा,  मेरी वजह से।”

“अब जो हो गया सो हो गया माँ इतंजार कर रही होगी।”

“मेरी  माँ तो बहुत परेशान हो गई होगी” 

“हाँ”

दोनों की माँ एक साथ अपने लाल के घर आने का इंतजार कर रही थी। कालू और घटूं दोनों घर पहुँच गये। कालू के सिर पर चोट देखकर उसकी माँ बहुत घबरा गई। घाव को टटोलते हुए पूछी “कैसे लगा रे ये चोट?”

कालू असमंजस में था कि सच बोले कि झूठ। अगर सच बोलता तो उसकी माँ को तकलीफ़ होती और वह लड़ने चली जाती। और वह झूठ बोलकर माँ  को अंधेरे में भी रखना नहीं चाहता था। उसकी माँ दोबारा पूछी “तेरे सर में चोट कैसे लगी?” 

“माँ मैं गिर गया था” कालू ने झूठ बोल दिया। तभी घंटू की माँ भी वहाँ आ गई। वह कालू के सिर का घाव को देखते ही कालू के माँ से बोली “हल्का गर्म पानी से घाव को धो दो और सूखा कपड़ा लपेट दो”

कालू की माँ ने वही किया। लेकिन तब भी उसे चिंता हो रही थी। डाॅक्टर के पास ले जाने की उसकी हैसियत नहीं थी। कालू को रोटी खिलाकर लेटा दी, उसके बगल में बैठकर पंखा होंकने लगी और अपनी फ़ूटी क़िस्मत को कोसने लगी। कुछ देर बाद कालू उठकर बैठ गया।  

“माँ सो जा तू क्यों जगी है?”

“बेटा तू आराम कर, मैं भी सो जाऊंगी।”

“तू रोटी खाई?”

” नहीं खाया जा रहा है बेटा।”

“पर क्यों माँ?”

“तू परेशान ना हो सो जा बेटा मैं खा लूंगी” 

“पर कब खाओगी माँ?”

“तुझे नींद आ जाएगी तो मैं भी रोटी खाकर सो जाऊंगी”

“ठीक है माँ”

कालू सुबह अपनी माँ से भी जल्दी उठ गया। कल जो हुआ था सब भूल चुका था। भोर के सन्नाटे में बस कालू के काम करने की आवाज आ रही थी। वह प्लास्टिक के कूड़े और कागज़ के कूड़े को अलग-अलग कर रहा था। दोनों मदों का अलग-अलग भाव मिलता है। कुछ देर बाद घंटू भी आ गया अपना बोरी लेकर। दोनों एक साथ लाला को कूड़ा बेचकर आएं। और  दोनों  फिर से बोरी भरने के लिए निकल गये। अभी भी सड़क पर सन्नाटा था। सूरज निकलने में समय था। दोनों स्कूल के पास पहुँचे तो घंटू को कल का सपना याद आ गए।      वह स्कूल के गेट के पास गया झांकर अदंर कुछ देखा फिर कालू की ओर मुड़कर देखा तो वह सड़क किनारे कूड़ा बिन रहा था। सपना को पीछे छोड़कर घंटू दौड़कर कालू के पास चला गया।

रहमत

छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय