अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ऑटोबायोग्राफी को हिंदी में “आत्मकथा” का पर्याय माना जाता है। बायोग्राफी, ‘बायोस’ और ‘ग्राफिया’ शब्दों से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘जीवन’ और ‘लिखना’।
वियोगी हरि लिखते हैं- “आत्मकथा जीवन की कुछ घटनाओं और अनुभूतियों की एक अभिव्यंजना है।”
हरिवंशराय ‘बच्चन के अनुसार- “जीवन की एक तस्वीर है आत्मकथा”।
मैनेजर पाण्डेय के अनुसार- “पूरा-पूरा सच बोलना आत्मकथा या जीवनी लेखक की नैतिक ही नहीं सौंदर्यबोध की भी शर्त है ।”
बनारसी दास जैन कृत ‘अर्धकथानक’ (1641 ई. ब्रजभाषा) को हिंदी की प्रथम आत्मकथा माना जाता है।
‘जीवनसार’ नाम से प्रेमचंद ने अपनी संक्षिप्त आत्मकथा ‘हंस’ के आत्मकथा विशेषांक (जनवरी 1931) प्रकाशित की थी। इसी अंक में ‘आत्मकथ्य’ नाम से जयशंकर प्रसाद की कविता प्रकाशित हुई थी।
श्यामसुंदर दास कृत ‘मेरी आत्मकहानी’ (1941 ई.) को प्रायः हिंदी की पहली प्रसिद्ध आत्मकथा माना जाता है।
सूर्य प्रसाद दीक्षित ने ‘निराला की आत्मकथा’ 1970 ई. में लिखी।
‘गर्दिश के दिन’ नामक शीर्षक से हिंदी एवं बाकी भारतीय भाषाओं के 12 लेखकों की आत्मकथाओं का संपादन 1980 ई. में कमलेश्वर ने किया।
हिंदी की प्रथम महिला आत्मकथा ‘जानकी देवी बजाज’ ने लिखी। इनकी आत्मकथा 1956 ई. में ‘मेरी जीवन यात्रा’ शीर्षक से प्रकाशित हुई, जिसमें उनके बचपन से लेकर उनके पति की मृत्यु तक की घटनाएँ संकलित हैं। साथ ही, इसमें स्वाधीनता आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी उल्लेख है।
राजेन्द्र यादव ने अपनी आत्मकथा ‘मुड़-मुड़ के देखता हूँ’ (2002 ई.) को ‘आत्मकथ्यांश’ कहा है।
‘देहरी भई विदेस’ शीर्षक से 2005 में राजेन्द्र यादव ने 20 लेखिकाओं के आत्मकथ्य का संपादन किया, वलवंत कौर और अर्चना वर्मा के सहयोग से।
1999 ई. में प्रकाशित मोहनदास नैमिषराय कृत आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे’ हिंदी की पहली दलित आत्मकथा है।
मुझमें देव-जीवन का विकास (1910)- सत्यानंद अग्निहोत्री
जीवन चरित्र (1917)- स्वामी दयानंद
मैं क्रांतिकारी कैसे बना (1933)- रामविलास शुक्ल
मेरी आत्म कहानी (1941)- श्याम सुंदर दास
मेरी असफलताएँ (1941)- बाबू गुलाब राय
मेरी जीवन यात्रा (1946)- राहुल सांकृत्यायन
साधना के पर (1946)- हरिभाऊ उपाध्याय
आत्मकथा (1947)- डॉ राजेंद्र प्रसाद
मेरा जीवन प्रवाह (1948)- वियोगी हरि
भाग-1: सिंहावलोकन (1951)- यशपाल
भाग-2: सिंहावलोकन (1952)- यशपाल
भाग – 3: सिंहावलोकन (1955)- यशपाल
स्वतंत्रता की खोज में (1951)- सत्यदेव परिव्राजक
परिव्राजक की प्रजा (1952)- शान्तिप्रिय द्विवेदी
भाग – 1 : चाँद सूरज के वीरन (1952)- देवेंद्र सत्यार्थी
भाग – 2 : नील यक्षिणी (1985)- देवेंद्र सत्यार्थी
जीवन चक्र (1954)- गंगा प्रसाद उपाध्याय
भाग- 1 : यादों की परछाइयाँ (1956)- चतुरसेन शास्त्री
भाग- 2: मेरी आत्मकहानी (1963)- चतुरसेन शास्त्री
आत्मनिरीक्षण (तीन भाग 1958)- सेठ गोविन्ददास
भाग – 1 : बचपन के दो दिन (1958)- देवराज उपाध्याय
भाग – 2 : यौवन के द्वार पर (1970)- देवराज उपाध्याय
मेरी अपनी कथा (1958)- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
अपनी खबर (1960)- पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
मेरे जीवन के अनुभव (1963)- संतराम बी. ए.
जीवन के चार अध्याय (1966)- भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र ‘माधव’
भाग – 1: क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969)- हरिवंशराय बच्चन
भाग – 2 : नीड़ का निर्माण फिर (1970)- हरिवंशराय बच्चन
भाग – 3: बसेरे से दूर (1978)- हरिवंशराय बच्चन
भाग – 4: दशद्वार से सोपान तक (1985)- हरिवंशराय बच्चन
अपनी कहानी (1970)- वृन्दावनलाल वर्मा
अरुणायन (1974)- रामावतार ‘अरुण’
मेरी फिल्मी आत्मकथा- (1974)- बलराज साहनी
आधे सफर की पूरी कहानी- (1979)- कृष्णचंद्र
घर की बात (1983)- रामविलास शर्मा
मेरा जीवन (1985)- शिवपूजन सहाय
मेरे सात जनम (1986)खंड – 3- हंसराज रहबर
टुकड़े-टुकड़े दास्तान (1986)- अमृतलाल नागर
मेरी जीवन धारा (1987)- यशपाल जैन
आत्म परिचय (1988)-फणीश्वरनाथ रेणु
अर्धकथा (1988)- डॉ. नगेन्द्र
तपती पगडंडियों पर पदयात्रा (1989)- कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’
सहचर है समय (1991)- रामदरश मिश्र
फुरसत के दिन (2000)- रामदरश मिश्र
भाग – 1 : जो मैंने जिया (1992)- कमलेश्वर
भाग-2 : यादों का चिराग (1997)- कमलेश्वर
भाग – 3: जलती हुई नदी (1999)- कमलेश्वर
अपनी धरती अपने लोग (1996)- रामविलास शर्मा
गालिब छूटी शराब (2000)- रवींद्र कालिया
कहि न जाय का कहिए (2001)-भगवती चरण वर्मा
मुड़-मुड़ कर देखता हूँ (2001)- राजेंद्र यादव
और वह जो यथार्थ था (2001)- अखिलेश
आज के अतीत (2003)- भीष्म साहनी
पावभर जीरे में ब्रह्मभोज (2003)- अशोक बाजपेयी
मैंने मांडू नहीं देखा (2003)- स्वदेश दीपक
पंखहीन (2004)- भाग- 1- विष्णु प्रभाकर
मुक्त गगन में (2004)- भाग- 2- विष्णु प्रभाकर
पंछी उड़ गया- भाग- 3- (2004)- विष्णु प्रभाकर
वसन्त से पतझर तक (2005)- रवीन्द्रनाथ त्यागी
एक अंतहीन तलाश (2007)- कन्हैयालाल नंदन
कहाँ कहाँ से गुजरा (2007)- कन्हैयालाल नंदन
यों ही जिया (2007)- डॉ. देवेश ठाकुर
शम’अ हर रंग में- कृष्ण बलदेव वैद
अतीत राग- नंद चतुर्वेदी
रेत पर खेमा- जाबिर हुसैन
साठ वर्ष : एक रेखांकन- सुमित्रानन्दन पंत
कहाँ तक कहें युगों की बात (2011)- मिथिलेश्वर
धूप में नंगे पाँव (2019)- स्वयं प्रकाश
दलित आत्मकथाएँ –
अपने अपने पिंजरे (1995 दो भाग में )- मोहनदास नैमिशराय
जूठन (1997) – ओमप्रकाश वाल्मीकि
झोपड़ी से राजभवन (2002) – माता प्रसाद
तिरस्कृत (2002) – सूरजपाल सिंह चौहान
संतप्त (2002) – सूरजपाल सिंह चौहान
घुटन (2005) – रमाशंकर आर्य
बेवक्त गुजर गया माली (2006) – श्यौराज सिंह ‘बेचैन’
नागफनी (2007 प्रथम भाग) – रूपनारायण सोनकर
मेरे जीवन की बाइबिल (2007) – रूपनारायण सोनकर
मेरा बचपन मेरे कंधों पर (2009) – श्यौराज सिंह ‘बेचैन’
मेरी पत्नी और भेड़िया (2009) – डॉ. धर्मवीर
मुर्दहिया (2010, प्रथम भाग) – तुलसीराम
मणिकर्णिका (2013, दूसरा भाग ) – तुलसीराम
स्त्री आत्मकथाएँ –
मेरी जीवन यात्रा (1956) – (प्रथम आत्मकथा) – जानकी देवी बजाज
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दस्तक जिन्दगी की (1990) – भाग – 1- प्रतिभा अग्रवाल
मोड़ जिन्दगी का (1996) – भाग – 2 – प्रतिभा अग्रवाल
जो कहा नहीं गया (1996)- कुसुम अंसल
पद्मा सचदेव – बूँद बावड़ी (1999)
कुछ कही कुछ अनकही (2000) – शीला झुनझुनवाला
कस्तूरी कुण्डल बसै (2002) -भाग- 1- मैत्रेयी पुष्पा
गुड़िया भीतर गुड़िया (2008)- भाग – 2- मैत्रेयी पुष्पा
हादसे (2005) – रमणिका गुप्ता
आपहुदरी (2016)- रमणिका गुप्ता
एक कहानी यह भी (2007) – मन्नू भंडारी
अन्या से अनन्या (2007) प्रभा खेतान
पिंजरे की मैना (2008) – चन्द्रकिरण सौनरेक्सा
हाशिए की इबारतें (2009) – चन्द्रकांता
कितने शहरों में कितनी बार (2011) – ममता कालिया
ज़माने में हम (2015) – निर्मला जैन
जीवनी आधुनिक हिंदी गद्य की एक ज़रूरी और महत्वपूर्ण विधा है। वैसे पश्चिम में इस विधा की परंपरा ईसा पूर्व से ही दिखाई देने लगती है।
हिंदी साहित्य कोश के अनुसार- “किसी व्यक्ति विशेष के जीवन वृत्तांत को ‘जीवनी’ कहते हैं।”
बाबू गुलाबराय लिखते हैं- “जीवनी लेखक अपने-अपने चरित्रनायक के अंतर बाह्य स्वरूप का चित्रण कलात्मक ढंग से करता है। इस चित्रण में वह अनुपात और शालीनता का पूर्ण ध्यान रखता हुआ सहृदयता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ अपने चरित्रनायक के गुण दोषमय सजीव व्यक्तित्व का एक आकर्षक शैली में उद्घाटन करता है।”
भारतेंदु ने ‘चरितावली’ की रचना की है, जिसमें कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के जीवन चरित संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा उन्होंने ‘पंच पवित्रात्मा’ शीर्षक से इस्लामिक धर्मगुरुओं की संक्षिप्त जीवनी भी लिखी ।
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने जीवनी अथवा जीवन चरित जैसी पाँच पुस्तकों की रचना की है, जिनमें से प्रमुख हैं- ‘प्राचीन पंडित और कवि’, ‘सुकवि संकीर्तन’ और ‘चरित चर्चा’|
राजनीतिक व्यक्ति चरित लिखने वालों में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम प्रमुख है।
ओंकार शरद के द्वारा रचित ‘राममनोहर लोहिया’ (1971 ई.) राजनैतिक जीवन पर लिखी गई महत्त्वपूर्ण जीवनी है।
द्विवेदी युग में कुछ ऐतिहासिक नारियों की जीवनियाँ लिखी गयीं। जैसे- गंगा प्रसाद गुप्त कृत “रानी भवानी”, परमानंद कृत “पतिव्रता स्त्रियों के जीवन चरित्र”, द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी कृत “आदर्श महिलाएँ”, देवेंद्र प्रसाद जैन कृत “ऐतिहासिक स्त्रियाँ”, ललिता प्रसाद शर्मा कृत “विदुषी स्त्रियाँ”, इत्यादि।
दयानन्द दिग्विजय (1881) – गोपाल शर्मा शास्त्री
श्री नागरी दास जी का जीवन चरित्र (1894) – राधाकृष्ण दास
कविवर बिहारी लाल (1895) – राधाकृष्ण दास
सूरदास (1900) – राधाकृष्ण दास
भारतेंदु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र – बाबू राधाकृष्णदास (1904)
हरिश्चन्द्र (1905) – शिवनन्दन
भारतेंदु हरिश्चन्द्र (1948)- ब्रजरत्नदास
प्रतिभा अग्रवाल प्यारे हरिश्चन्द्रजू (1997)
भारतेंदु हरिश्चन्द्र : एक व्यक्तित्व चित्र (2004) – ज्ञानचंद्र जैन
बाबू राधाकृष्णदास (1913) – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
महात्मा गांधी (1919) – रामचंद्र वर्मा
चंपारन में महात्मा गांधी (1919) – डॉ राजेंद्र प्रसाद
श्री गांधी (1931) – गणेश शंकर विद्यार्थी
बापू (1940) – घनश्यामदास बिड़ला
बापू की झलकियाँ (1948) – काका कालेलकर
बापू के कारावास की कहानी (1949) – सुशीला नायर
अकाल पुरुष गांधी (1968) – जैनेंद्र
मेरे जीवन में गांधी जी (1975) – डॉ राजेंद्र प्रसाद
प्रेमचन्द घर में (1944) – शिवरानी देवी
कलम का सिपाही (1962) – अमृत राय
कलम का मज़दूर (1964) – मदन गोपाल
जयप्रकाश नारायण (1951) – रामवृक्ष बेनीपुरी
स्तालिन (1954) – राहुल सांकृत्यायन
कार्ल मार्क्स (1954)- राहुल सांकृत्यायन
लेनिन (1954) – राहुल सांकृत्यायन
माओत्सेतुंग (1954) – राहुल सांकृत्यायनआचार्य रामचन्द्र शुक्ल : जीवन और कृतित्व (1963) – चन्द्रशेखर शुक्ल
मनीषी की लोकयात्रा (1968) – भगवती प्रसाद सिंह
निराला की साहित्य साधना (1969) – रामविलास शर्मा
मार्क्स, त्रोत्स्की और एशियाई समाज (1986) – रामविलास शर्मा
सुमित्रानन्दन पंत जीवन और साहित्य (1970) – शांति जोशी
जिन्होंने जीना जाना (1971) – जगदीशचन्द्र माथुर
उत्तरयोगी श्री अरविन्द (1972) – डॉ. शिवप्रसाद सिंह
आवारा मसीहा (शरत चन्द्र) – (1974) विष्णु प्रभाकर
अग्निसेतु (नज़रुल इस्लाम) (1976) विष्णुचन्द्र शर्मा
योद्धा संन्यासी विवेकानन्द (1979) – हंसराज रहबर
दिनकर: एक सहज पुरुष (1981) – शिवसागर मिश्र
मरुभूमि का वह मेघ (घनश्यामदास बिड़ला) (1986) – रामनिवास जाजू
शिखर से सागर तक (अज्ञेय)(1986) – रामकमल राय
बाबूजी (नागार्जुन) (1991) – शोभाकांत
मेरे बड़े भाई शमशेर जी (1995) – तेजबहादुर चौधरी
महामानव महापण्डित (राहुल सांकृत्यायन) (1995) – कमला सांकृत्यायन
रांगेय राघव एक अंतरंग परिचय (1997) – सुलोचना रांगेय
राजेन्द्र यादव (1999) – मदन मोहन ठाकौर
स्मृति के झरोखे से (भारतभूषण अग्रवाल) (1999) – बिन्दु अग्रवाल
कथा शेष (अमृतलाल नागर) (1999)- ज्ञानचन्द्र जैन
वटवृक्ष की छाया में (अमृतलाल नागर) (2006) – कुमुद नगर
उत्सव पुरुष श्री नरेश मेहता (2003) – महिमा मेहता
कमलेश्वर मेरे हमसफ़र (2005) – गायत्री कमलेश्वर
कल्पतरु की उत्सव लीला (रामकृष्ण परमहंस) (2005) – कृष्ण बिहारी मिश्र
मक़बूल (2011) – अखिलेश
कोलाज : अशोक बाजपेयी (2012) – पुरुषोत्तम अग्रवाल
व्योमकेश दरवेश (हज़ारी प्रसाद द्विवेदी) (2012) – विश्वनाथ त्रिपाठी
हिंदी में यात्रा वृतांत की परम्परा का सूत्रपात “भारतेंदु” से माना जाता है। उन्होंने “सरयू पार की यात्रा”, “लखनऊ की यात्रा”, “मेंहंदावल की यात्रा” इत्यादि शीर्षक से यात्रा वृतांत लिखा।
आधुनिक हिंदी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन और अज्ञेय को “घुमक्कड़ वृहत्तत्रयी” कहा जाता है।
राहुल सांकृत्यायन घुमक्कड़ी को धर्म के बराबर ही मानते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक “घुमक्कड़ शास्त्र” में लिखा है कि – “मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है- घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज के लिए कोई हितकारी नहीं हो सकता। मनुष्य स्थावर वृक्ष नहीं है वह जंगम प्राणी है। चलना मनुष्य का धर्म है जिसने इसे छोड़ा, वह मनुष्य होने का अधिकारी नहीं है।”
गया यात्रा (1894) – बालकृष्ण भट्ट
विलायत यात्रा (1897) – प्रताप नारायण मिश्र
पृथ्वी प्रदक्षिणा ( 1914) – शिवप्रसाद गुप्त
हमारी जापान यात्रा (1931) – कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’
यूरोप यात्रा में छह मास (1932) – रामनारायण मिश्रमेरी कैलाश यात्रा (1915) – सत्यदेव परिव्राजक
मेरी जर्मन यात्रा (1926)- सत्यदेव परिव्राजक
मेरी तिब्बत यात्रा (1937) – राहुल सांकृत्यायन
मेरी लद्दाख यात्रा (1339) – राहुल सांकृत्यायन
रुस में पच्चीस मास (1947) – राहुल सांकृत्यायन
किन्नर देश में (1948) – राहुल सांकृत्यायन
घुमक्कड़ शास्त्र (1948) – राहुल सांकृत्यायन
राहुल यात्रावली (1949) – राहुल सांकृत्यायन
यात्रा के पन्ने (1952) – राहुल सांकृत्यायन
एशिया के दुर्गम भूखंड (1956) – राहुल सांकृत्यायन
चीन में कम्यून (1960) – राहुल सांकृत्यायन
चीन में क्या देखा (1960) – राहुल सांकृत्यायनआवारे की यूरोप यात्रा (1940) – सत्यनारायण
यूरोप के झरोखों में (1940) – सत्यनारायणहिमालय की यात्रा (1948) – काका कालेलकर
सूर्योदय का देश (1955) – काका कालेलकरसुदूर दक्षिण पूर्व (1951) – सेठ गोविंद दास
पृथ्वी परिक्रमा (1954) – सेठ गोविंद दास
पैरों में पंख बांधकर (1952) – रामवृक्ष बेनीपुरी
उड़ते चलो उड़ते चलो (1954) – रामवृक्ष बेनीपुरी
वह दुनिया में (1952) – भगवत शरण उपाध्याय
कलकत्ता से पीकिंग (1954) – भगवत शरण उपाध्याय
लोहे के दीवार के दोनों ओर (1953) – यशपाल
राह बीती (1956) – यशपाल
अरे यायावर रहेगा याद (1953) – अज्ञेय
एक बूँद सहसा उछली (1960) – अज्ञेय
आख़िरी चट्टान तक (1953) – मोहन राकेशयादें यूरोप की (1955) – धर्मवीर भारती
यात्रा चक्र (1995) – धर्मवीर भारती
ठेले पर हिमालय () – धर्मवीर भारती
देश विदेश (1957) – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
मेरी यात्राएँ (1970) – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
आँखों देखा यूरोप (1958) – भुवनेश्वर प्रसाद ‘भुवन’
अरबों के देश में (1960) – गोपाल प्रसाद व्यास
गोरी नज़रों में हम (1964) – प्रभाकर माचवे
चीरों पर चाँदनी (1964) – निर्मल वर्माहंसते निर्झर : दहकती मिट्टी (1966) – विष्णु प्रभाकर
ज्योतिपुंज हिमालय (1982) – विष्णु प्रभाकर
हमसफ़र मिलते रहे (1996) – विष्णु प्रभाकर
तंत्रालोक से यंत्रालोक तक (1968) – डॉ नगेंद्र
अप्रवासी की यात्राएँ (1972) – डॉ नगेंद्ररूसी सफ़रनामा (1971) – बलराज
गांधी के देश से लेनिन के देश में (1973) – शंकर दयाल सिंहअपोलो का रथ (1975) – श्रीकांत वर्मा
खंडित यात्राएँ (1975) — कमलेश्वर
कश्मीर रात के बाद (1997) – कमलेश्वर
आँखों देखा पाकिस्तान (2006) – कमलेश्वर
सैलानी की डायरी (1977) – राजेंद्र अवस्थी
हवा में तैरते हुए (1986) – राजेंद्र अवस्थी
धुँध भरी सुर्ख़ी (1979) – गोविंद मिश्र
दरख़्तों के पार शाम (1980) – गोविंद मिश्र
झूलती जड़ें (1990) – गोविंद मिश्र
परतों के बीच (1997) – गोविंद मिश्र
और यात्राएँ (2005) – गोविंद मिश्र
यात्रिक (1980) – शिवानीतना हुआ इंद्रधनुष (1990) – रामदरश मिश्र
भोर का सपना (1993) – रामदरश मिश्र
पड़ोस की ख़ुशबू (1999) – रामदरश मिश्र
सौंदर्य नर्मदा का (1992) – अमृतलाल बेगड
अमृतस्य नर्मदा (2000) – अमृतलाल बेगड
साब्ज़ा पत्र कथा कहे (1996) – शिवप्रसाद सिंह
एक बार आयोबा (1996) – मंगलेश डबराल
यातना शिविर में (1998) – हिमांशु जोशी
आत्म की धरती (1999) – विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
अंतहीन आकाश (2005) – विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
एक लम्बी छाह (2000) – रमेशचंद्र शाह
जापान में कुछ दिन (2003) – कृष्णदत्त पालीवाल
कितना अकेला आकाश (2003) – नरेश मेहता
जहां फ़व्वारे लहू रोते हैं (2003) – नासिर शर्मा
क्या हाल हैं चीन के (2006) – मनोहर श्याम जोशी
पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नज़र (2006) – मनोहर श्याम जोशी
दिल्ली : शहर-दर-शहर – निर्मला जैन
चलते तो अच्छा था – असग़र वजाहत
रास्ते की तलाश में (2012) – असग़र वजाहत
अतीत का दरवाज़ा (2018) – असग़र वजाहत
स्वर्ग में पाँच दिन (2019) – असग़र वजाहत
कबाड़ख़ाना – ज्ञानरंजन
• डॉ. रामचंद्र तिवारी संस्मरण के संदर्भ में लिखते हैं कि – “संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। स्मर्यमाण के जीवन के वे पहलू, वे संदर्भ और वे चारित्रिक वैशिष्ट्य जो स्मरणकर्ता को स्मृत रह जाते हैं, उन्हें वह शब्दांकित करता है। स्मरण वही रह जाता है जो महत, विशिष्ट, विचित्र और प्रिय हो । स्मर्यमाण को अंकित करते हुए लेखक स्वयं भी अंकित होता चलता है।”
बनारसीदास चतुर्वेदी के शब्दों में- “संस्मरण, रेखाचित्र और आत्मचरित्र इन तीनों का एक-दूसरे से इतना घनिष्ठ संबंध है कि एक की सीमा दूसरे से कहाँ मिलती है और कहाँ अलग हो जाती है, इसका निर्णय करना कठिन है।”
पद्म सिंह शर्मा द्वारा रचित ‘पद्मपराग’ हिंदी का प्रथम संस्मरण माना जाता है।
हिंदी में संस्मरण लेखन की शुरुआत द्विवेदी युग से होती है। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘अनुमोदन का अंत’, ‘सभा की सत्यता’, ‘विज्ञानाचार्य बसु का मंदिर’ इत्यादि संस्मरणात्मक लेखों की रचना स्वयं की है।
पद्म पराग (1929) – पद्मसिंह शर्मा
प्रबंध मंजरी – पद्मसिंह शर्मा
शिकार (1936) – श्री राम शर्मा (श्री राम शर्मा शिकार साहित्य के जनक माने जाते हैं)
प्राणों का सौदा – श्री राम शर्मा
जंगल के जीव (1949) – श्री राम शर्मा
वे जीते कैसे हैं (1957)- श्री राम शर्मा
सन् बयालीस के संस्मरण – श्री राम शर्मा
झलक (1938) – शिवनारायण टण्डन
टूटा तारा (1940) – राधिकारमण प्रसाद सिंह
तीस दिन मालवीयजी के साथ (1942) – रामनरेश त्रिपाठी
वे दिन वे लोग (1946) – शिवूजपन सहाय
पुरानी स्मृतियाँ (1947 ई.) प्रकाशचन्द्र गुप्त
लंका महाराजिन (1950) – ओंकार शरद
हमारे आराध्य (1952) – बनारसीदास चतुर्वेदी
संस्मरण (1952) – बनारसीदास चतुर्वेदी
जिन्दगी मुस्काई (1953 ई.) – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
बचपन की स्मृतियाँ (1955) – राहुल सांकृत्यायन
जिनका मैं कृतज्ञ (1957) – राहुल सांकृत्यायन
पथ के साथी (1956) – महादेवी वर्मा
ये और वे – जैनेन्द्र कुमार
जंजीरें और दीवारें – रामवृक्ष बेनीपुरी
मण्टो मेरा दुश्मन (1956) – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
ज्यादा अपनी कम परायी (1959) – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
स्मृतिकण (1959) – सेठ गोविन्ददास
मैं इनका ऋणी हूँ (1959) – इन्द्र विद्यावाचस्पति
प्रसाद और उनके समकालीन (1960) – विनोदशंकर व्यास
नये पुराने झरोखे (1962) – हरिवंशराय बच्चन’
कुछ स्मृतियाँ और स्फुट विचार (1962) – सम्पूर्णानन्द
जाने-अनजाने (1962) – विष्णु प्रभाकर
यादों की तीर्थयात्रा (1981) – विष्णु प्रभाकर
मेरे अग्रज मेरे मीत – विष्णु प्रभाकर
सामान्तर रेखाए – विष्णु प्रभाकर
हम इनके ऋणी हैं – विष्णु प्रभाकर
एक दिशाहीन सफर – विष्णु प्रभाकर
साहित्य के स्वप्न पुरुष – विष्णु प्रभाकर
राह चलते-चलते – विष्णु प्रभाकर
हमारे पथ प्रदर्शक – विष्णु प्रभाकर
हमसफर मिलते हैं – विष्णु प्रभाकर
सृजन के सेतु – विष्णु प्रभाकर
आकाश एक है – विष्णु प्रभाकर
यादों की छाँव में – विष्णु प्रभाकर
लोक देव नेहरू (1965) – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
स्मरण और श्रद्धांजलियाँ (1969) – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
स्मृतियाँ और कृतियाँ (1966) – शांतिप्रिय द्विवेदी
गांधी : संस्मरण और विचार (1968) – काका कालेलकर
व्यक्तित्व की झाँकियाँ (1970) – लक्ष्मीनारायण ‘सुधांशु’
अंतिम अध्याय (1972) – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
चंद सतरें और (1975) – अनीता राकेश
मेरे हमदम मेरे दोस्त (1975) – कमलेश्वर
स्मरण को पाथेय बनने दो (1978) – विष्णुकांत शास्त्री
सुधियाँ उस चंदन के वन की (1992) – विष्णुकांत शास्त्री
पर साथ साथ चल रही याद (2004) – विष्णुकांत शास्त्री
अतीत के गर्त से (1979) – भगवतीचरण वर्मा
हम खंडहर के वासी – भगवतीचरण वर्मा
श्रद्धांजलि स्मरण (1979) – मैथिलीशरण गुप्त
पुनः (1979) – सुलोचना रांगेय राघव
औरों के बहाने (1981) – राजेन्द्र यादव
वे देवता नहीं हैं (2000) – राजेन्द्र यादव
जिनके साथ जिया (1981) – अमृतलाल नागर
सृजन का सुख दु:ख (1981) – प्रतिभा अग्रवाल
युग पुरुष (1983) – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
दीवानखाना (1984) – पद्मा सचदेवा
मितवाघर (1995) – पद्मा सचदेवा
अमराई (2000) – पद्मा सचदेवा
स्मृति लेखा (1986) – अज्ञेय
हजारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (1988) – कमलकिशोर गोयनका
भारतभूषण अग्रवाल : कुछ यादें कुछ चर्चाएँ (1989) – बिन्दु अग्रवाल (1989)
यादें और बातें (1998) – बिन्दु अग्रवाल
याद हो के न याद हो (1992) – काशीनाथ सिंह
आछे दिन पाछे भये (2004) – काशीनाथ सिंह
घर का जोगी जोगड़ा (2006) – काशीनाथ सिंह
निकट मन में (1992) – अजित कुमार
निकट मन में दूर वन में ( 2012 ) – अजित कुमार
सप्तपर्णी (1994) – गिरिराज किशोर
सृजन के सहयात्री (1996) – रवीन्द्र कालिया
लौट आओ धार (1995) – दूधनाथ सिंह
एक शमशेर भी है (2012) – दूधनाथ सिंह
स्मृतियों का छंद (1995) – रामदरश मिश्र
अपने अपने रास्ते (2001) – रामदरश मिश्र
अभिन्न (1996) – विष्णुचन्द्र शर्मा
हम हशमत (भाग-2) – कृष्णा सोबती
हम हशमत (भाग-3) – कृष्णा सोबती
शब्दों के आलोक में – कृष्णा सोबती
सोबती एक सोहबत – कृष्णा सोबती
यादों के काफिले (2000) – देवेन्द्र सत्यार्थी
एक नाव के यात्री (2001) – विश्वनाथप्रसाद तिवारी
चिड़िया रैन बसेरा (2002) – विद्यानिवास मिश्र
लखनऊ मेरा लखनऊ (2002) – मनोहर श्याम जोशी
रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (2003) – मनोहर श्याम जोशी
बातों बातों में – मनोहर श्याम जोशी
स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (2002) – रामकमल राय
आँगन के वंदनवार (2003) – डॉ. विवेकी राय
मेरे सुहृदय श्रद्धेय (2005) – डॉ. विवेकी राय
नंगा तलाई का गाँव (2004) – विश्वनाथ त्रिपाठी (2010)
व्योमकेश दरवेश (2010) – विश्वनाथ त्रिपाठी
गंगा स्नान करने चलोगे (2012) – विश्वनाथ त्रिपाठी
सुमिरन के बहाने (2005) – केशवचन्द्र वर्मा
अमरकांत कुछ यादें : कुछ बातें – अमरकान्त
कथाशेष – ज्ञानचन्द्र
जैन जे.एन.यू. में नामवर सिंह – सुमन केसरी
वातायन – गौरापंत शिवानी
वन तुलसी की गंध – फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
समय की शिला पर – फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
अमरनाथ जी रेखाचित्र के सम्बंध में लिखते हैं- “कहानी और निबंध के बीच झूलती ‘रेखाचित्र’ सर्वथा एक नई विधा है। इसकी सफलता शब्दों और वाक्यों के कुशल संगुंफन पर निर्भर करती है…. ‘स्केच’ की तरह ‘रेखाचित्र’ में भी कम से कम शब्दों कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द होते हैं, रेखाएँ नहीं। इसलिये इसे शब्द चित्र भी कहते हैं।”
महादेवी वर्मा ने ‘अतीत के चलचित्र’ में लिखा है कि- “इन स्मृति चित्रों में मेरा जीवन भी आ गया है। अंधेरे की वस्तुओं को हम अपने प्रकाश में धुँधली या उजली परिधि में लाकर ही देख पाते है…. मेरा निकटाजनित आत्मविज्ञापन उस राख से अधिक महत्त्व नहीं रखता, जो आग को बहुत बहुत समय तक सजीव रखने के लिये अंगारों को घेरे रहती है। जो इसके पार नहीं देख सकता वह इन चित्रों के हृदय तक नहीं पहुँच सकता।”
रेखाचित्र (1940) – प्रकाशचन्द्र गुप्त
मिट्टी के पुतले – प्रकाशचन्द्र गुप्त
पुरानी स्मृतियाँ नये स्केच – प्रकाशचन्द्र गुप्त
अतीत के चलचित्र (1941) – महादेवी वर्मा
स्मृति की रेखाएँ (1943) – महादेवी वर्मा
मेरा परिवार (1972) – महादेवी वर्मा
माटी की मूरतें (1946) – रामवृक्ष बेनीपुरी
गेहूँ और गुलाब (1950) – रामवृक्ष बेनीपुरी
लाल तारा (1938) – रामवृक्ष बेनीपुरी
मील के पत्थर – रामवृक्ष बेनीपुरी
रेखाचित्र (1952) – बनारसीदास चतुर्वेदी
सेतुबन्ध (1952) – बनारसीदास चतुर्वेदी
माटी हो गई सोना – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
दीप जले शंख बजे (1959) – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
रेखा और रंग (1955) – विनय मोहन शर्मा
रेखाचित्र (1959) – प्रेमनारायण टण्डन
चेतना के बिंब (1967) – डॉ. नगेन्द्र
चेहरे जाने पहचाने (1966) – सेठ गोविन्ददास
रेखाएँ बोल उठीं (1949) – देवेन्द्र सत्यार्थी
हम हशमत (1977, भाग – 1 ) – कृष्णा सोबती
आदमी आदमी तक (1982) – भीमसेन त्यागी
अमिट रेखाएँ (1951) – सत्यवती मलिक
रेखाएँ और चित्र (1955) – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
कुछ शब्द: कुछ रेखाएँ (1965) – विष्णु प्रभाकर
दस तस्वीरें (1963) – जगदीश चन्द्र माथुर
समय के पाँव (1962) – माखनलाल चतुर्वेदी
बनारसीदास चतुर्वेदी
‘रिपोर्ताज’ फ्राँसीसी शब्द है जो अंग्रेज़ी के ‘रिपोर्ट’ का समानार्थी है।
रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही रिपोर्ताज कहते हैं। अर्थात् ‘रिपोर्ताज’ ऐसी रिपोर्ट हैं जिसमें साहित्यिकता एवं कलात्मकता का समावेश हो। इसका जन्मदाता रूसी साहित्यकार इलिया एहरेनबर्ग को माना जाता है।
विधा के रूप में रिपोर्ताज का विकास दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय साहित्यकारों ने युद्धक्षेत्रों से युद्ध की विभीषिका और त्रासदी का ऐसा जीवंत वर्णन किया कि पूर्व प्रचलित ‘रिपोर्ट’ की विधागत सीमाओं को तोड़कर ‘रिपोर्ताज’ नामक एक साहित्यिक विधा का ही जन्म हो गया।
1944 में ‘विशाल भारत’ में बंगाल के अकाल पर ‘अदम्य जीवन’ शीर्षक से रांगेय राघव ने स्थायी महत्त्व के रिपोर्ताज लिखे, जो बाद में ‘तूफानों के बीच’ नाम से संकलित हुए। यहीं से अमृतराय ने रिपोर्ताज लेखन का वास्तविक प्रचलन माना है।
लक्ष्मीपुरा (1938)शिवदान सिंह चौहान
मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई- शिवदान सिंह चौहान
तूफानों के बीच (1941) – रांगेय राघव
स्वराज्य भवन – प्रकाश चन्द गुप्त
अल्मोड़े का बाजार – प्रकाश चन्द गुप्त
बंगाल का अकाल – प्रकाश चन्द गुप्त
पहाड़ों में प्रेममय संगीत – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
प्लाट का मोर्चा (1952) – शमशेर बहादुर सिंह
गरीब और अमीर पुस्तकें (1958) – रामनारायण उपाध्याय
नववर्षांक समारोह में -रामनारायण उपाध्याय
देश की मिट्टी बुलाती है – भदन्त आनन्द कौसल्यायन
वे लड़ेंगे हजार साल (1966) – शिवसागर मिश्र
युद्ध यात्रा (1972) – धर्मवीर भारती
क्षण बोले कण मुसकाए – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
गुरुकुल काँगड़ी रजत जयंती – कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
ऋणजल धनजल (1977) – फणीश्वरनाथ रेणु
नेपाली क्रांति कथा (1978) – फणीश्वरनाथ रेणु
श्रुतु – अश्रुत पूर्व (1984) – फणीश्वरनाथ रेणु
एकलव्य के नोट्स – फणीश्वरनाथ रेणु
जुलूस रुका है (1977) – विवेकी राय
बाढ़ ! बाढ़ !! बाढ़ !!! – विवेकी राय
खून के छींटे – डॉ. भगवतशरण उपाध्याय
पेरिस के नोट्स – रामकुमार वर्मा
धरती के लिये – कैलाश नारद
चीनियों द्वारा निर्मित काठमाण्डू-ल्हासा – जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी
सड़क प्राग : एक स्वप्न – निर्मल वर्मा
मुक्ति फ़ौज – श्रीकांत वर्मा
क्रांति करते हुए आदमी को देखना – कमलेश्वर
हिंदी साहित्य में डायरी विधा का प्रवर्तन श्रीराम शर्मा कृत ‘सेवाग्राम की डायरी’ से माना जाता है।
बाबू गुलाबराय लिखते हैं – “रिपोर्ट की भाँति यह घटना या घटनाओं का वर्णन तो अवश्य होता है किंतु उसमें लेखक के हृदय का निजी उत्साह रहता है जो वस्तुगत सत्य पर बिना किसी प्रकार का आवरण डाले उसे प्रभावमय बना देता है।”
हिंदी में रिपोर्ताज की शुरुआत शिवदान सिंह चौहान की कृति ‘लक्ष्मीपुरा’ से होती है। यह रिपोर्ताज ‘रूपाभ’ के दिसंबर, 1938 के अंक में प्रकाशित हुआ था।
सेवग्राम की डायरी (1946) – श्रीराम शर्मा
डायरी के पन्ने – घनश्यामदास बिड़ला
मेरी कौलेज डायरी (1954) – धीरेन्द्र वर्मा
दैनंदिनी – सुंदरलाल त्रिपाठी
दैनिकी – सियारामशरण गुप्त
ज्यादा अपनी कम परायी (1959) – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
जमना लाल बजाज की डायरी (1966) – जमनालाल बजाज
प्रवासी की डायरी (1971) – हरिवंशराय बच्चन
दिनकर की डायरी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
मेरी जेल डायरी (1975-77) -जय प्रकाश
दिल्ली मेरा परदेश (1976) – रघुवीर सहाय
सैलानी की डायरी (1976) – राजेन्द्र अवस्थी
मेरी जेल डायरी (1977) – चन्द्रशेखर
एक मुख्यमंत्री की डायरी (1977) – शांता कुमार
स्मृतियों की जन्मपत्री (1979) – रवीन्द्र कालिया
पंचरत्न (1980) – रामविलास शर्मा
एक साहित्यिक की डायरी – मुक्तिबोध
मोहन राकेश की डायरी (1985) – मोहन राकेश
देश देशान्तर (1992) – कमलेश्वर
मलयज की डायरी ( तीन खंड 2000 ) – मलयज
आपातकाल की डायरी (तीन खंड 2002, 2005) – बिशन टंडन
साथ साथ मेरा साया (2004) – डॉ नरेंद्र मोहन
ख्वाब है दीवाने का (2005) – कृष्ण बलदेव वैद्य
मनबोध मास्टर की डायरी (2006) – डॉ. विवेकी राय
आते जाते दिन (2008) – रामदरश मिश्र
अकेला मेला (2009) – रमेशचन्द्र शाह