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मुझे गर्म उष्ण दीपों की श्रृंखलाओं में जीना है : रहमत

मुझे गर्म उष्ण दीपों की श्रृंखलाओं में जीना है : रहमत

मेरे जीवन के चक्रव्यू ने कई अनगिनत यात्राओं को भेदा हैं, मैं बचपन से उन काल्पनिक यात्राओं में कहीं खो जाता था, जो कभी परवान ना चढ़ सकी जो आज भी अधूरी सी हैं, मास्तिक के केनवास पर लकीरों को खींचना फिर उनको मिटा देना ना जाने कितनी यात्राओं को मैंने कल्पनाओं में जिया था।

कहते हैं जिम्मेदारियां सपनों को निगल जाती हैं.. मेरी पीढ़ी को कार बंगला पैसा वो सब तो चाहिए था। जिसमे सुख-साधन के साथ लक्जरी का भी तड़का हो.. पर मैने इन चीजों के बारे में कभी सोचा ही नही ‘कंधों के बोझ अक्सर वो ख़्वाब नहीं देखते जो दूर की कौड़ी हो’… लगातार संघर्ष और हार्डवर्क का नतीजा ये हुआ जीवन को आसान करने वाली ये सब भौतिक चीजें हासिल तो हुई पर एक सम्पूर्ण यात्रा कभी पूरी ना हो सकी।

मैं जब किसी देश उसकी सीमाओं और उसके नदी जंगलों का पूरा भूगोल अपनी आंखों से स्कैन कर लेता था। बचपन के दोस्त मुझे चिड़ाते थे, ये साला जंगलों में ही मरेगा, मुझे बियाबान जंगलों नदियों घाटियों से बेहद लगाव था।

मैं एक पल सुदूर उत्तरी ध्रुव के बर्फीले रेगिस्तान में पहुंच जाता था, जहां स्लेज पर खड़े होकर कुत्तों को दौड़ा रहा हूं, मानों किसी ट्रेगा प्रदेश के हड्डियां जमा देने वाले बीहड़ मेरा इंतजार कर रहे हो, मुझे रेंडियर का शिकार करना हैं और जमी हुई झील को भेदकर मछलियां भी निकालनी हैं। मुझे साइबेरियाई चुक-ची कबीला में एक रात गुजारना है और बाल्टिक देशों से होते हुए समशीतोष्ण स्टेपी घास के मैदान में प्रवेश करना है।

मैं जिब्राल्टर के रास्ते भूमध्य सागर को पार कर अफ्रीका में कहीं खो जाऊंगा.. मुझे पृथ्वी की परिक्रमा करते सहारा के बेरहम थपेड़ों की तपिश को महसूस करना हैं। मैं महान नील की परिक्रमा मैं मसाई कबीलों के साथ उनकी परंपराओं को जीयूंगा।

मेरी यात्रा का कारवां अटलांटिक महासागर को पार कर लैटिन अमेरिका और इंडिज पर्वत श्रृंखला से होते हुए अमेजाॅन जंगल के बीच से गुजरेगा। राॅकी पर्वत श्रृंखला को पार कर अलास्का जाते हुए जब मैं थक कर बैठ जाऊंगा तब ट्रांस हिमालय के दुर्गम दर्रों को पार करने की मेरी स्मृति मुझमें ऊर्जा का संचार कर देगी।

मैं यूरोप के चमकते हुए बाजारों में भी घूमूंगा और पता लगाऊंगा कि जो सुख मुझे यात्रायें करने में मिली वो बाज़ार से खरीद सकते हैं या नहीं। जब मेरे कदम अल्पस और युराल पर्वत मालाओं को चूमेंगे तो मेरा चमकता हुआ शीर्ष हिमालय का प्रतिनिधित्व कर रहा होगा।

मेरे कदम एशिया के पठारों को नाप रहे होंगे, मुझे गर्म ऊष्ण दीपों की श्रृंखलाओं को जीना हैं। मैं आद्र जंगलों में जनजातीय समूहों के साथ उनका पारंपरिक रिंगडांग भी पकाऊंगा।

वेस्टर्न पठार की लाल पगडंडियां मेरे समानांतर चल रही होंगी। मुझे देशांतर सीमाओं में बंधना कभी रास ही नहीं आया.. मुझे तो सम्पूर्ण पृथ्वी के अंचल में कहीं खो जाना हैं। हमेशा के लिए….