॰ बोली
॰ मानक भाषा
॰ राजभाषा
॰ राष्ट्रभाषा
॰ सम्पर्क भाषा
॰ संचार भाषा
एक क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली भाषा के विशिष्ट रूप को ‘बोली’ कहते हैं।
बोली का साहित्य लिखित नहीं बल्कि मौखिक होता है।
बोली की लिपि नहीं होती है।
बोलियाँ छोटे भू-भाग तक सीमित होती है।
बोली में हीं लोकोक्तियाँ, मुहावरे, लोकगीत और लोककथाएँ आदि के सौंदर्य को देखा जा सकते हो।
बोली का रूप मौखिक होने के कारण यह अलग-अलग स्थानों पर बदलती रहती है। बोली की तुलना में भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है।
क्षेत्र के आधार पर हिन्दी बोलियों का विभाजन निम्नलिखित प्रकार से की गयी हैं –
पूर्वी हिन्दी- अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
अवधी का क्षेत्र – (अयोध्या, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंडा, सीतापुर, उन्नाव, फ़ैज़ाबाद, सुल्तानपुर, राय बरेली, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्ज़ापुर, प्रतापगढ़
बघेली का क्षेत्र – (उत्तरप्रदेश – बाँदा, फ़तेहपुर, हमीरपुर आदि)
– (मध्यप्रदेश – दमोह, जबलपुर, रीवा, बालाघाट)
छत्तीसगढ़ी का क्षेत्र – (बिलासपुर, सरगजा, रायगढ़, दुर्ग, नंदगाँव, रायपुर, खैरागढ़ )
पश्चिमी हिन्दी- खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रजभाषा, बुंदेली, कन्नौजी, दक्खिनी
खड़ी बोली का क्षेत्र – (मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, मुरादाबाद, देहरादून, अंबाला, मुज़फ़्फ़रनगर, पटियाला का पूर्वी भाग)
हरियाणवी का क्षेत्र – (दिल्ली, कुरुक्षेत्र, करनाल, ज़िंद, हिसार, रोहतक, पटियाला, नाभा
ब्रजभाषा का क्षेत्र – उत्तर प्रदेश (मथुरा, आगरा, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा, बदायूँ, बरेली)
(मध्यप्रदेश – ग्वालियर का पश्चिमी भाग)
(राजस्थान – भरतपुर, करौली धौलपुर, जयपुर का पूर्वी भाग)
बुंदेली का क्षेत्र – झाँसी, जालौन, बाँदा, हमीरपुर, ग्वालियर, भोपाल, ओरछा, होशंगाबाद
कन्नौजी का क्षेत्र – फ़र्रुख़ाबाद, कानपुर, हरदोई, पीलीभीत, इटावा, शाहजहाँपुर
दक्खिनी का क्षेत्र – मुंबई, बरार, बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा
राजस्थानी हिंदी- मारवाड़ी, मालवी, मेवाती, जयपुरी/ढूँढ़ाड़ी
मारवाड़ी का क्षेत्र – जोधपुर, अजमेर, मेवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर, नागौर, बाड़मेर, जालौर, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में
मालवी का क्षेत्र – उज्जैन, इंदौर, देवास, रतलाम, भोपाल, होशंगावाद, टोंक
मेवाती का क्षेत्र – भरतपुर, गुड़गाँव, अलवर
जयपुरी/ढूँढ़ाड़ी – हाड़ौती, कोटा, बूँदी, बारन, झालावाड़
पहाड़ी हिंदी- गढ़वाली, कुमाऊँनी
गढ़वाली का क्षेत्र – गढ़वाल, टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी के आसपास के क्षेत्र
कुमाऊँनी का क्षेत्र – नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़
बिहारी हिन्दी- मैथिली, मगही, भोजपुरी
मैथिली का क्षेत्र – दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, भागलपुर, मुज़फ़्फ़रपुर, मुंगेर
मगही का क्षेत्र – पटना, गया, मुंगेर, नालंदा, नवादा, जमुई, लखिसराय, भागलपुर, शेखपुरा, औरंगाबाद
भोजपुरी का क्षेत्र – छपरा, सिवान, गोपालगंज, भोजपुर, भभुआ, रोहतास, सासाराम, मोतिहारी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण
मानक का अर्थ होता है- परिनिष्ठित, आदर्श या श्रेष्ठ।
भाषा के जिस रूप का व्यवहार शिक्षा, प्रशासनिक कार्यों, सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से उसमें उपस्थित विविध विषमताओं को दूर करके उसमें साम्यता लाकर एकरूप में किया जाता है, वही भाषा का मानक रूप होता है।
किसी भी क्षेत्र की स्थानीय या आंचलिक बोली का शब्द-भंडार बहुत हीं सीमित रहता है और न हीं उसका कोई नियमित व्याकरण हीं होता है जिस कारण इसे आधिकारिक या व्यवहारिक भाषा का माध्यम नहीं बनाया जा सकता है।
मानक भाषा का प्रयोग साहित्य, संगोष्ठियों, पत्र-व्यवहार, पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों, भाषणों आदि में होता है।
यह राज-काज की भाषा, ज्ञान-विज्ञान की भाषा, साहित्य व संस्कृति की भाषा, मनोरंजन, शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता , अनुवाद की भाषा, कानून, चिकित्सा एवं तकनीकी की भाषा, सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक, एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा, शिष्ट समाज की भाषा है।
जब एक क्षेत्रीय बोली के बोले जाने का दायरा विस्तृत होते हुए धीरे-धीरे करके आंचलिक साहित्य सृजन के साथ-साथ उस बोली का साहित्यिक का क्षेत्र बढ़ जाता है और वह बोली एक विभाषा का रूप धारण कर लेती है। तब वही बोली मानक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो जाती है।
एक उदाहरण देखिए- क्षेत्रीय भाषा के स्तर पर ‘चाबी’ को कई नामों से पुकारा जाता है; यथा- कुंजी, खोलनी, चाभी आदि। यह ज़रूरी नहीं कि पूरे हिंदी प्रदेश में इसे कुंजी या खोलनी हीं कहा जाता हो। इसलिए इस शब्द के यदि एक मानक रूप ‘चाबी’ को स्वीकृत किया जाए तो पूरा हिंदी प्रदेश इसके प्रयोग को समझ जाएगा। इसलिए भाषा का मानकीकरण ज़रूरी है।
सन 1949 ईस्वी में सी गोपालाचारी ने संविधान सभा में नेशनल लैंग्वेज के समांतर ‘स्टेट लैंग्वेज’ शब्द का प्रयोग किया।
फिर जब संविधान सभा की कार्यवाही हुई तो हिंदी प्रारूप में ‘स्टेट लैंग्वेज’ का हिंदी अनुवाद ‘राजभाषा’ किया गया।
राजभाषा, किसी राज्य या देश की घोषित भाषा होती है जो कि सभी राजकीय प्रयोजन अर्थात् सरकारी काम-काज में प्रयोग होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अंतर्गत देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है।
संविधान द्वारा कामकाज, प्रशासन, संसद और विधान मंडलों तथा न्यायिक कार्यकलापों के लिए स्वीकृत भाषा को हीं “राजभाषा” कहा जाता है।
राष्ट्रपति ने यह आदेश दिया कि – जहां तक संभव हो सके जनता के साथ पत्र-व्यवहार में तथा प्रशासनिक कार्यों में हिंदी के प्रयोग को अंग्रेज़ी के साथ ही बढ़ावा दिया जाए। पर साथ हीं यह बात भी लिख दी जाए कि अंग्रेज़ी पाठ ही प्रामाणिक माना जाएगा।
राजभाषा आयोग
1955 में राष्ट्रपति ने संविधान के प्रावधानों के अनुसार बालसाहब गंगाधर खेर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की। इसमें 21 सदस्य थे। इस आयोग के कुछ मुख्य सुझाव निम्न है-
॰ किन्ही मामलों में अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान आवश्यक होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में विदेशी भाषा का व्यवहार उचित नहीं है।
॰ हिंदी सर्वाधिक बोली व समझी जानेवाली भाषा है, यही सम्पूर्ण भारत का एक माध्यम है।
॰ चौदह वर्ष की उम्र तक भारत के प्रत्येक छात्र को हिंदी का ज्ञान करा देना चाहिए।
॰ हिंदी क्षेत्र के विद्यार्थियों को एक और भाषा विशेषतः दक्षिण भारत की भाषा, अनिवार्य रूप से सीखनी चाहिए।
॰ भारत सरकार के प्रकाशन अधिक-से-अधिक हिंदी में हो।
॰ संसद व विधानमंडलों में हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का व्यवहार होना चाहिए।
॰ प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी एक अनिवार्य प्रश्न-पत्र रखा जाए।
॰ भारत की भाषाओं में निकटता लाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
राजभाषा अधिनियम 1976
इस अधिनियम के द्वारा हिंदी का अधिक-से-अधिक प्रयोग करने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाए गए हैं, जो निम्नलिखित है-
॰ भारत के राज्यों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
क वर्ग के क्षेत्र – बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली। (ये सभी क्षेत्र हिंदी भाषी क्षेत्र है)
ख वर्ग के क्षेत्र – पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, केंद्र्शासित – चंडीगढ़ तथा अंडमान निकोबार।
ग वर्ग के क्षेत्र – शेष सभी राज्य एवं संघ शासित क्षेत्र।
॰ केंद्रीय कार्यालयों से ‘क’ श्रेणी के राज्यों को भेजे जाने वाले पत्र हिंदी में देवनागरी लिपि में भेजे जाएँगे।
॰ ‘ख’ श्रेणी के राज्यों से पत्र-व्यवहार हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में किया जा सकता है। केंद्रीय कार्यालयों में प्रेषित हिंदी पत्रों का उत्तर भी हिंदी में ही दिया जाएगा।
॰ केंद्र सरकार के कार्यालयों में सभी पत्र, रजिस्टर हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में होंगे। केंद्र सरकार के कर्मचारी हिंदी या अंग्रेज़ी में टिप्पणी लिख सकेंगे।॰ कोई भी व्यक्ति आवेदन या अपील हिंदी या अंग्रेज़ी में दे सकता है। यदि आवेदन या अपील हिंदी में हो या उस पर हस्ताक्षर हिंदी में हैं तब उसका उत्तर हिंदी में देना अनिवार्य है।
॰ जहां 80% से अधिक कर्मचारी हिंदी में कार्य करते हों वहाँ टिप्पणी, प्रारूप इत्यादि का कार्य हिंदी में किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 120 – इसके अनुसार संसद का कार्य हिंदी या अंग्रेज़ी में होगा।
अनुच्छेद 210 – प्रांतों के राज्य विधानमंडलों का कार्य राज्य की राजभाषा में या हिंदी/अंग्रेज़ी में होगा।
किसी भी देश या राष्ट्र द्वारा किसी भाषा को जब अपने किसी राजकार्य के लिए भाषा घोषित किया जाता है या अपनाया जाता है तो उसे राष्ट्र भाषा जाना जाता है। अर्थात जब कोई देश किसी भाषा को अपनी राष्ट्र की भाषा घोषित करता है तो उसे ही राष्ट्र भाषा के लिए जाना जाता है।
या फिर –
राष्ट्रभाषा का सीधा अर्थ है राष्ट्र की वह भाषा, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में विचार विनिमय एवं सम्पर्क किया जा सके। जब किसी देश में कोई भाषा अपने क्षेत्र की सीमा को लाँघकर अन्य भाषा के क्षेत्रों में प्रवेश करके वहाँ के जन मानस के भाव और विचारों का माध्यम बन जाती है तब वह राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान प्राप्त करती है। वही भाषा सच्ची राष्ट्रभाषा हो सकती है जिसकी प्रवृत्ति सारे राष्ट्र की प्रवृत्ति हों जिस पर समस्त राष्ट्र का प्रेम हो। राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने वाली तथा समझी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है।
भारतीय संविधान में भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती है। केन्द्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी और रोमन भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। इसके अलावा अलग अलग राज्यों में स्थानीय भाषा के अनुसार भी अलग अलग आधिकारिक भाषाओं को चुना गया है। फिलहाल 22 आधिकारिक भाषाओं में असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली और गुजराती है।
राष्ट्रभाषा से तात्पर्य किसी देश की उस भाषा से है जिसे वहाँ के अधिकांश लोग बोलते हैं तथा जिसके साथ उनका सांस्कृतिक और भावात्मक जुड़ाव होता है।
राष्ट्रभाषा की कसौटियाँ क्या-क्या है?
॰ वह भाषा देश के सभी या अधिकतम व्यक्तियों द्वारा बोली जा सकती हो ।
॰ उसे बोलने वाले देश के किसी एक हिस्से में नहीं बल्कि विभिन्न हिस्सों में हों ताकि वह भाषा पूरे देश में संपर्क सूत्र स्थापित करने में सक्षम हो सके।
॰ वह भाषा राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को धारण करने में सक्षम हो अर्थात् देश के विभिन्न सांस्कृतिक पक्षों की अभिव्यक्ति उसमें हो पाती हो।
॰ उसका शब्द भंडार इतना व्यापक हो कि देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित शब्दावली उसमें शामिल हो सके। उसमें यह प्रवृत्ति भी होनी चाहिये कि देश की भाषाओं के अन्य शब्दों को वह सहजतापूर्वक शामिल करे, न कि उनसे परहेज |
॰ उस भाषा का व्याकरण सरल होना चाहिये ताकि देश के अन्य हिस्सों के निवासी यदि उसे सीखना चाहें तो सीखने की प्रक्रिया कठिन न हो।
॰ उसकी ध्वनि संरचना व्यापक तथा लचीली होनी चाहिये। यदि अन्य भाषाओं की कुछ ध्वनियाँ उसमें प्रयुक्त न होती हों तो उन्हें स्वीकारने की क्षमता उसमें होनी चाहिये।
॰ उसकी लिपि भी राष्ट्रीय लिपि होनी चाहिये अर्थात् ऐसी लिपि जिसमें देश की सभी भाषाओं में प्रयुक्त होने वाले ध्वनि संकेत लिखे जा सकते हों।
॰ उस भाषा में साहित्य की रचना व्यापक तौर पर हुई हो तथा साहित्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में रचा गया हो।
॰ उस भाषा ने राष्ट्र के प्रमुख आंदोलनों में सक्रिय सहभागिता की हो अर्थात् सामाजिक विकास की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई हो।
( राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की ऐतिहासिक विकास यात्रा )
• आदिकाल और भक्तिकाल का साहित्य सिर्फ हिंदी प्रदेश में ही नहीं रचा गया अपितु हिंदीतर प्रदेश में भी रचा गया।
॰ हमारे देश के सामाजिक विकास में दो आंदोलनों की सबसे बड़ी भूमिका रही है- भक्ति आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन। ये दोनों आंदोलन हिंदी के माध्यम से संपन्न हुए।
॰ स्वतंत्रता के बाद क्षेत्रवादी प्रकृतियाँ उभरने लगीं। 1956 ई. में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ।
॰ 1953 ई. के बाद से आज तक राष्ट्रभाषा का मुद्दा कभी प्रभावी ढंग से नहीं उठ सका।
(स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का विकास)
॰ राष्ट्रभाषा की ज़रूरत किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक एकता की जागृति एवं अक्षुण्णता के लिये होती है।
॰ हमारे देश में अकबर के समय से लेकर लगभग तीन शताब्दी तक फारसी राजभाषा रही और सन् 1833 के बाद से निचले स्तर पर उर्दू और उच्च स्तर पर अंग्रेज़ी राजभाषा रही है, परंतु सारे देश की संपर्क भाषा हिंदी ही रही है।
॰ 19वीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों, फोर्ट विलियम कॉलेज एवं सामाजिक-धार्मिक नवजागरण ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
॰ सबसे प्रमुख राजनीतिक संगठन ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना के जागरण हेतु एक भाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए इसके लिये हिंदी को उपयुक्त बताया।
॰ कांग्रेस के 1925 के कानपुर अधिवेशन में यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ कि कांग्रेस अपने सभी कार्यों में प्रादेशिक भाषाओं और हिंदी का प्रयोग करे।
॰ 1864 ई. में बंबई फ्री चर्च कॉलेज के प्राध्यापक श्री पेठे ने ‘राष्ट्रभाषा’ नामक मराठी पुस्तक लिखी थी, जिसमें उन्होंने भारत के लिये एक भाषा की आवश्यकता की बात की थी और उनके मत से हिंदी इस दृष्टि से खरी उतरती थी।
॰ सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1936 ई. में हिंदी वर्ग का आरंभ किया और ‘काठियावाड़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ नामक संस्था स्थापित की।
॰ सुभाष चंद्र बोस ने हिंदी या हिंदुस्तानी को राष्ट्रीय एकता की आवश्यक शर्त माना- “यदि हम लोगों ने तन-मन-धन से प्रयत्न किया तो वह दिन दूर नहीं है जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी- हिंदी “।
॰ 1918 ई. में कांग्रेस के इंदौर अधिवेशन में गांधी जी ने अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया- “हिंदी ही हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी चाहिये।” वे मानते थे, “हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।”
॰ महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही वर्धा और मद्रास में राष्ट्रभाषा प्रचार सभाएँ स्थापित हुई।
॰ 1929 ई. में ही सी. राजगोपालाचारी ने दक्षिणवालों को हिंदी सीखने की सीख दी थी। उनका कहना था, “हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा तो है ही, यही जनतंत्रात्मक भारत में राजभाषा भी होगी।”
॰ उन्होंने 1937 ई. में मद्रास में सम्पन्न हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा था कि कांग्रेस की सारी कार्यवाही हिंदी में हो।
॰ सम्पर्क भाषा वह भाषा है जो हमें अन्य लोगों के संपर्क में लाए।
॰ एक भाषा-भाषी जिस भाषा के माध्यम से किसी दूसरी भाषा के बोलने वालों के साथ सम्पर्क स्थापित कर सके, उसे सम्पर्क भाषा या जनभाषा (Link Language) कहते हैं।
॰ इसे कई भाषाओं में ‘लिंगुआ फ़्रैंका’ (lingua franca) कहते हैं। इसे सेतु-भाषा, व्यापार भाषा, सामान्य भाषा या वाहन-भाषा भी कहते हैं।
॰ डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार – वर्तमान में अंग्रेज़ी सम्पर्क भाषा का कार्य कर रही है क्योंकि यदि हमें तमिल भाषा-भाषी व्यक्ति से संपर्क साधना है तो तमिल आनी चाहिए अन्यथा अंग्रेज़ी। प्रत्येक जाति या देश की एक संपर्क भाषा होनी चाहिए। एक ऐसी भाषा जो उस देश में कहीं चले पर काम आए अर्थात् जिसका व्यवहार देशव्यापी हो।
॰ डॉ. पूरनचंद टंडन ‘सम्पर्क भाषा से तात्पर्य उस भाषा से है जो समाज के विभिन्न वर्गों या निवासियों के बीच सम्पर्क के काम आती है। इस दृष्टि से भिन्न-भिन्न बोली बोलने वाले अनेक वर्गों के बीच हिन्दी एक सम्पर्क भाषा है और अन्य कई भारतीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वालों के बीच भी सम्पर्क भाषा है।’
भारत में हिंदी संपर्क भाषा काफ़ी लम्बे समय से रही है। दक्षिण से आकर माध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बकाचार्य और अन्य आचार्य सम्पूर्ण भारत में इसी भाषा के माध्यम से अपने धार्मिक विचारों का प्रचार करते रहे।
वर्तमान में रेडियो, टीवी, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्र-पत्रिकाएं, सोशल मीडिया हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य सूचनाओं अथवा सन्देशों व विचारों का आदान-प्रदान ही संचार कहलाता है। संचार अथवा सम्प्रेषण को संदेशवाहन, सन्देश, एवं अंग्रेजी में Communication आदि नामों से भी जाना जाता है।
सम्प्रेषण अथवा संचार शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के कम्यूनिस (Communis) शब्द से हुई। कहा जाता है कि संचार शब्द लैटिन भाषा के कम्यूनिस तथा कम्यूनिकेयर शब्दों से मिलकर बना हुआ है।
संचार की विशेषता –
॰ संचार (संप्रेषण) एकरेखीय प्रक्रिया है।
॰संचार शब्द लैटिन भाषा के कम्यूनिस से निकला है।
संचार एक मानवीय प्रक्रिया है।
॰ संचार में कला व विज्ञान दोनों तत्व पाए जाते हैं।
संचार भाषा के रूप में हिंदी
॰ आज के विविध जनसंचार माध्यमों रेडियो, टेलीवीजन, समाचार पत्र आदि द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त की जाने वाली भाषा हिंदी है। भारत की अधिकांश जनता इसे बोलती और समझती है। कुछ लोग इसे बोल भले ही न पायें, पर समझते अवश्य है। फिल्मों ने हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा अवश्य दे दिया है। हिंदी की फिल्मों के दर्शक पूरे विश्व में फैले हुए हैं। हिंदी में जितनी संख्या में छोटे और बड़े समाचार पत्र छपते हैं, विश्व में किसी भाषा में नहीं छपते हैं। इस प्रकार हिंदी एक सशक्त संचार भाषा भी है।
अनुच्छेद – 343
इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि –
॰ संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
॰ संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
॰ इसमें यह भी संकेत किया गया है कि शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग 15 वर्षों तक होता रहेगा।
अनुच्छेद – 344
॰ इस अनुच्छेद के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि आरंभ के पाँच वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग गठित करेगा जो हिंदी के प्रयोग के विस्तार पर सुझाव देगा, जैसे-किन कार्यों के लिये हिंदी का प्रयोग किया जा सकता है, न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग कैसे बढ़ाया जा सकता है, अंग्रेज़ी का प्रयोग कहाँ व किस प्रकार सीमित किया जा सकता है आदि।॰ इसी प्रकार का आयोग संविधान के आरंभ से 10 वर्षों के बाद भी गठित किया जाएगा। ये आयोग भारत की उन्नति की प्रक्रिया तथा अहिंदी भाषी वर्गों के हितों को ध्यान में रखते हुए अनुशंसा करेंगे।
॰ आयोग की सिफारिशों पर संसद की एक विशेष समिति राष्ट्रपति को राय देगी। राष्ट्रपति पूरी रिपोर्ट या उसके कुछ अंशों को लागू करने के लिये निर्देश जारी कर सकेगा।
अनुच्छेद – 345
॰ इस अनुच्छेद के अनुसार किसी राज्य का विधान मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिंदी को शासकीय प्रयोजनों के लिये स्वीकार कर सकेगा।॰ यदि किसी राज्य का विधानमंडल ऐसा नहीं कर पाएगा तो अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग यथावत किया जाता रहेगा।
अनुच्छेद – 346
॰ इस अनुच्छेद के अनुसार संघ द्वारा निर्धारित भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ की सरकार के बीच पत्र आदि की राजभाषा होगी।॰ यदि दो या अधिक राज्य परस्पर हिंदी भाषा को स्वीकार करना चाहें तो उसका प्रयोग किया जा सकेगा।
अनुच्छेद – 347
॰ इस अनुच्छेद के अनुसार यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता हो कि उसके द्वारा बोली जानेवाली भाषा को उस राज्य में (दूसरी भाषा के रूप में) मान्यता दी जाए और इसके लिये लोकप्रिय मांग की जाए, तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
अनुच्छेद – 348
॰ इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि जब तक संसद विधि द्वारा कोई और उपबंध न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी में ही होंगी।
इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित विषयों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेज़ी में होंगे –॰ संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के प्रत्येक सदन में प्रस्तुत किये जाने वाले सभी विधेयक या उनके प्रस्तावित संशोधन।
॰ संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित सभी अधिनियम और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा जारी किये गए अध्यादेश।
॰ संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन जारी किये गए सभी आदेश, नियम, विनियम और उपविधियाँ।॰ इसी अनुच्छेद में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिये हिंदी भाषा या उस राज्य में मान्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा, पर यह बात उस न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगी।
अनुच्छेद – 349
॰ इस अनुच्छेद के अनुसार संसद यदि राजभाषा से संबंधित कोई विधेयक या संशोधन प्रस्तावित करना चाहे तो राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ेगी और राष्ट्रपति आयोग की सिफारिशों पर और उन सिफारिशों पर गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् ही अपनी मंजूरी देगा, अन्यथा नहीं।
अनुच्छेद – 350॰ इस अनुच्छेद के अंतर्गत उन वर्गों पर विशेष ध्यान दिया गया है जो भाषायी आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग में आते हैं।
॰ इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो इन वर्गों से संबंधित विषयों पर रक्षा के उपाय करेगा। इसके साथ ही, अल्पसंख्यक बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिये जाने की पर्याप्त सुविधा सुनिश्चित की जाएगी।अनुच्छेद – 351
॰ इस अनुच्छेद में कहा गया है- “संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिंदुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में बताई गई अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात् करते हुए, और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिये मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।”