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बिहार से सम्बद्ध आंदोलन

बिहार से सम्बद्ध आंदोलन

होमरूल आंदोलन तथा बिहार

●वर्ष 1916 में भारत में दो होमरूल लीग की स्थापना हुई।
(i) पुणे होमरूल लीग- संस्थापक- बाल गंगाधर तिलक
(ii) मद्रास में होमरूल लीग- संस्थापक- एनी बेसेंट
●आन्दोलन का उद्देश्य- स्वराज प्राप्ति।
●बाँकीपुर (पटना) में 16 दिसंबर 1916 को ”मौलाना मजहरुल हक” की अध्यक्षता में होमरूल लीग की स्थापना की गई।
●मुजफ्फरपुर में होमरूल लीग की स्थापना “जनकधारी प्रसाद” ने की थी।
●होमरुल आंदोलन को प्रोत्साहित करने हेतु 25 जुलाई, 1918 को श्रीमती ऐनी बेसेन्ट पटना आई थीं।

चम्पारण सत्याग्रह (1917 ई.)

●महात्मा गाँधी द्वारा भारत में किया गया प्रथम सत्याग्रह आन्दोलन था।
●किसानों के शोषण सम्बंधी ब्रिटिश सरकार की नीतियों का अहिंसात्मक रूप से विरोध किया गया था।
●ब्रिटिश सरकार के नियमों के अनुसार किसानों को अपनी भूमि के 3/20 वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था, जिसे “तिनकठिया प्रणाली” कहा जाता था।
1916 ई. में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में राजकुमार शुक्ल ने गाँधी जी से मिलकर चम्पारण के किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए चम्पारण आने का अनुरोध किया।
●गाँधी जी कलकत्ता से पटना, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा होते हुए 15 अप्रैल, 1917 को मोतिहारी पहुँचे।
चम्पारण के कमिश्नर ने गाँधी जी को चम्पारण से जाने का आदेश दिया, परन्तु गाँधी जी द्वारा आदेश न मानने के कारण गाँधी जी पर मुकदमा दायर कर दिया गया।
●गाँधी जी के सत्याग्रह के दबाव में बिहार के तत्कालीन उपराज्यपाल ‘एडवर्ड अलबर्ट गेट’ द्वारा एक जाँच समिति गठित की गई, जिसके अध्यक्ष ‘एफ.जी. स्लाई’ थे। गाँधी जी सहित ‘एल.सी. अदामी’, ‘राजा हरिहर प्रसाद’, ‘डी. जे. रीड’ तथा ‘रैनी’ इसके सदस्य थे।
●इस समिति को “चम्पारण एग्रेरेरियन समिति” नाम दिया गया था।
●इस समिति ने तिनकठिया प्रथा को पूर्णतः समाप्त करने की अनुशंसा की थी।
●चम्पारण सत्याग्रह में राजकुमार शुक्ल, राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, मजहरुल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरणीधर, शम्भू शरण आदि गाँधी जी के प्रमुख सहयोगी थे।
‘दीन बन्धु मित्र’ ने अपने बंगला नाटक ”नील दर्पण” में नील उत्पादन की शोषणकारी व्यवस्था का सजीव चित्रण किया था इसका अंग्रेजी में अनुवाद “मधुसूदन दत्त” ने किया है।

बिहार में खिलाफत आंदोलन

●तुर्की के आटोमन साम्राज्य का सुल्तान मुस्लिमों का सबसे बड़ा धार्मिक नेता अर्थात् खलीफा माना जाता था। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918 ई.) में तुर्की, ब्रिटेन के विरुद्ध धुरी राष्ट्रों के साथ शामिल था।

●प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय के बाद तुर्की के सुल्तान के राजनीतिक अधिकार एवं उनका साम्राज्य सीमित कर दिया गया। जिसमें सम्पूर्ण विश्व के मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ भारतीय मुस्लिम समुदाय में व्यापक रोष उत्पन्न हुआ और उन्होंने अपने खलीफा के अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए खिलाफत आंदोलन का प्रारम्भ किया।

●गाँधी जी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन दिल्ली में “24 नवम्बर 1919” को आयोजित हुआ, जिसमें सरकार के साथ असहयोग प्रस्ताव पारित हुआ। 30 नवम्बर को पटना में आयोजित एक सभा में ‘हसन इमाम’ ने शांति समारोह के बहिष्कार का बयान दिया।
●बिहार में खिलाफत आंदोलन के नेताओं के आग्रह पर ‘मौलाना शौकत अली’ पटना आये तथा 24-25 अप्रैल को पटना में खिलाफत आन्दोलन की सफलता के लिए सभा का आयोजन किया जिसमें असहयोग का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।
●इस सभा में राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरणीधर प्रसाद, मजहरूल हक, शाह मोहम्मद ने भाग लिया था। इस सभा का हसन इमाम तथा सच्चिदानन्द सिन्हा ने विरोध किया।

●इस आंदोलन का नेतृत्व ‘अलीबंधु’ के नाम से प्रसिद्ध ‘मोहम्मद अली जौहर’ तथा ‘मौलाना शौकत अली’ ने किया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गांधी जी तथा अबुल कलाम आज़ाद ने भी इस आंदोलन को व्यापक समर्थन दिया।

बिहार में असहयोग आंदोलन

●4-9 सिंतबर, 1920 तक हुए कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में गाँधी जी द्वारा असहयोग का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया और इसे पारित किया गया।
●परन्तु इसके पूर्व ही राष्ट्रवादियों ने बिहार में असहयोग का प्रस्ताव पारित कर सरकार से असहयोग प्रारम्भ कर दिया था
●बिहार के बैरिस्टर “हसन इमाम” की अध्यक्षता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन मुम्बई में आयोजित किया गया, जिसमें सरकारी सुधारों की आलोचना की गई।
●इस आंदोलन के समर्थन में 6 अप्रैल, 1919 को बिहार में हड़ताल की गई।
●बिहार से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, मजहरुल हक, गोरख प्रसाद, धरणीधर प्रसाद आदि नेताओं ने परिषद् के चुनावों से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।
●राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में भागलपुर में बिहार प्रान्तीय सम्मेलन का 12वाँ अधिवेशन आयोजित हुआ, जिसमें असहयोग आंदोलन का समर्थन किया गया।
●महात्मा गांधी ने 6 फरवरी, 1921 को बिहार में राष्ट्रीय महाविद्यालय तथा बिहार विद्यापीठ का उद्घाटन किया
●असहयोग आंदोलन के दौरान ब्रिटेन के राजकुमार (प्रिंस ऑफ वेल्स) का पटना आगमन (22 दिसम्बर, 1921) हुआ, जिसके विरोध में पूरे शहर में हड़ताल रखी गई।
‘मौलाना मजहरूल हक‘ ने पटना के सदाकत आश्रम से “दि मदरलैण्ड नामक” अखबार का प्रकाशन आरंभ किया।
●बिहार में फरवरी 1923 में स्वराज दल का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष नारायण प्रसाद थे तथा श्री कृष्ण सिंह इसके एक अन्य प्रमुख नेता थे।
●फुलवारी में ‘मौलाना सज्जाद’ द्वारा ‘इमारत-ए-शरिया’ नामक संस्था का गठन किया गया। यह संस्था वर्तमान में भी सक्रिय है।
●1922 ई. में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन बिहार के गया में आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता चितरंजन दास ने की थी।
●इन्होंने परिषद् में प्रवेश का समर्थन किया परन्तु कांग्रेस ने इसका विरोध किया। इन्हीं मतभेदों के कारण चितरंजन दास ने मोती लाल नेहरु एवं बिट्ठलभाई पटेल के साथ मिलकर कांग्रेस के अंदर स्वराज दल का गठन किया था।
●असहयोग आंदोलन के दौरान ही बिहार के ‘शाहाबाद’ में ”नशाबंदी आंदोलन” प्रारम्भ हुआ तथा लोगों से नशा छोड़ने की अपील की गई।
●आंदोलन जब चरम स्थिति पर था, उसी समय उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा (गोरखपुर) नामक स्थान पर 5 फरवरी, 1922 को हुई हिंसा के कारण असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया गया।

साइमन कमीशन एवं बिहार

●भारत में मॉण्टेग्यू चेम्सफोर्ड (1919 ई.) अधिनियम की प्रगति की जाँच करने के उद्देश्य से ब्रिटेन की संसद तथा वायसराय लॉर्ड इरविन ने ‘सर जॉन साइमन’ की अध्यक्षता में एक “सात सदस्यों” वाले कमीशन का गठन किया।
●वर्ष 1928 में भारत आया। साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे, इसलिए भारत में इस आयोग का व्यापक एवं तीव्र विरोध किया गया। बिहार में ‘सर अली इमाम’ के नेतृत्व में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
●जिसमें साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए नौजवानों को संगठित और विरोध प्रदर्शन करने की योजना बनायी गयी।
●12 दिसम्बर, 1928 को आयोग के सदस्य पटना पहुँचे, यहाँ भी उन्हें प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा। परन्तु, साम्राज्यवाद समर्थक लोगों द्वारा साइमन कमीशन का स्वागत किया गया। आयोग के सदस्य महाराजा डुमराँव का आतिथ्य स्वीकार कर डुमराँव गए, परन्तु यहाँ भी राष्ट्रवादियों के द्वारा उनका व्यापक विरोध किया गया।
●साइमन कमीशन के विरोध में पटना में प्रभात फेरी के दौरान “उठो जवानों सवेरा हुआ, साइमन भगाने का बेरा हुआ” के गीत गाए गये।

सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं बिहार

●दिसम्बर, 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (अध्यक्ष-पंण्डित जवाहर लाल नेहरु ) में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ।
●12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने 78 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा प्रारम्भ की तथा 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुँचकर नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया।
●दांडी यात्रा में गाँधी के साथ बिहार के ‘गिरिवरधारी चौधरी’ उर्फ ‘कारो बाबू’ ने भाग लिया।
●इसी क्रम में बिहार में विदेशी वस्त्रों एवं नशीले पदार्थों की दुकानों पर धरना देने का कार्य आरम्भ हुआ।
●पटना में मई, ‘1930’ में एक ”स्वदेशी संघ” की स्थापना की गई जिसके अध्यक्ष ‘सर अली इमाम’, उपाध्यक्ष ‘सच्चिदानन्द सिन्हा’ तथा ‘के.बी. दत्त’ तथा मुख्य सचिव ‘हसन इमाम’ को बनाया गया था।
●बिहार में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रांतीय प्रशासक ‘दीपनारायण सिंह’ को नियुक्त किया गया।
26 जनवरी 1931 को बिहार में स्वाधीनता दिवस मनाया गया तथा ”अनुग्रह नारायण सिंह’‘ द्वारा पटना के भंवरपोखर पार्क में राष्ट्रीय झण्डा फहराया गया।
●डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बिहार में सोडा से नमक बनाने तथा चौकीदारी कर न देने हेतु सत्याग्रह के लिए गाँधी जी से अनुमती माँगी।
●इस आंदोलन के दौरान, बिहार में चौकीदारी कर नहीं देने का अभियान चलाया गया तथा बिहार में समुद्री तट न होने के कारण ‘सोडे से नमक’ बनाने पर बल दिया गया।
●बिहार में “6 अप्रैल 1930” को ‘नमक सत्याग्रह’ प्रारम्भ करने की तिथि निर्धारित की गई तथा “नखासपिंड” (पटना जिला) नामक स्थान को नमक कानून भंग करने हेतु केन्द्र के रूप में चुना गया तथा “नखासपिंड चलो” का नारा दिया गया।
●सारण तथा हाजीपुर में व्यापक पैमाने पर नमक कानून का उल्लंघन किया गया। बिहार में सर्वप्रथम सारण तथा चम्पारण में नमक सत्याग्रह आरंभ हुआ था।

व्यक्तिगत सत्याग्रह

●वर्ष 1940 में बिहार के रामगढ़ नामक स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 53वाँ अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता “मौलाना अबुल कलाम” ने की जिसमें व्यक्तिगत सत्याग्रह का नारा दिया। तथा बिहार के श्री कृष्ण सिंह को पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही चुना गया है।
●इस आन्दोलन में छोटानागपुर के ताना भगत भी सम्मिलित हुए।
27 नवम्बर, 1940 को गया में श्री कृष्ण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके परिणामस्वरूप व्यापक स्तर पर विरोध हुआ।
●दूसरे सत्याग्रही अनुग्रह नारायण सिंह बने जिन्हें पटना में गिरफ्तार किया गया था। कुछ महिलाएँ भी व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में गिरफ्तार हुई थीं।

भारत छोड़ो आंदोलन तथा बिहार की भूमिका

●1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन में ‘बिहार’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑपरेशन जीरो ऑवर के अन्तर्गत अन्य महत्वपूर्ण नेताओं के साथ 9 अगस्त को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी ने इस आंदोलन में ‘करो या मरो का नारा’ दिया।
●31 जुलाई 1942 डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी की एक विशेष बैठक बुलाकर भावी संघर्ष का आह्वान किया। छात्रों द्वारा अंजुमन-इस्लामिया हाल में आयोजित सभा में कांग्रेस के समर्थन का प्रस्ताव पारित किया।
●9 अगस्त, 1942 को बिहार में राजेन्द्र प्रसाद पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू. जी. आर्चर द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए तथा बांकीपुर जेल भेज दिया गया। उनके साथ-साथ मथुरा बाबू, अनुग्रह बाबू, श्री कृष्ण सिंह जैसे अनेक बड़े नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया। महाधिवक्ता श्री बलदेव सहाय ने सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

पटना सचिवालय गोलीकांड

11 अगस्त, 1942 को पटना तथा आस-पास के राष्ट्रवादी युवकों द्वारा सचिवालय भवन के सामने बिहार विधानसभा की इमारत पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयास किया गया। परन्तु पटना के कलेक्टर डब्ल्यू. जी. आर्चर ने इन छात्रों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोलीकांड में सात छात्रों की मृत्यु हो गई तथा अनेक छात्र घायल हुए।
●भारत छोड़ो आंदोलन में जयप्रकाश नारायण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने वर्तमान झारखण्ड की हजारीबाग जेल से फरार होकर नेपाल के ‘राजविलास जंगल’ में आजाद दस्ते (दल) का गठन किया। इस दस्ते का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की समाप्ति हेतु छापामार युद्ध तथा तोड़-फोड़ के माध्यम से ब्रिटिश संपत्ति को नुकसान पहुँचाना था। इस दस्ते में शामिल युवकों को ”सरदार नित्यानंद सिंह” द्वारा प्रशिक्षण दिया गया
●अजाद दस्ता से प्रेरित होकर बिहार के भागलपुर तथा पूर्णिया में ऐसे कई संगठनों की स्थापना की गयी। नेपाल सरकार द्वारा जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया तथा अन्य क्रांतिकारियों के गिरफ्तारी के कारण 1943 के अन्त तक यह आन्दोलन शिथिल पड़ गया।
●जयप्रकाश नारायण इस काल में भूमिगत रहकर कर इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया।
●भारत छोड़ो आंदोलन में गाँधी जी के आह्वान पर बिहार की महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर ब्रिटिश विरोध में अपना योगदान दिया। कदमकुआँ (पटना) में महिला चरखा क्लब से जुड़ी महिलाओं ने जुलूस निकाल कर सभाओं का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता “श्रीमती भगवती देवी” (राजेन्द्र प्रसाद की बहन) ने की।
●सरकारी दमनात्मक नीतियों के विरोध की आग सम्पूर्ण बिहार में फैल गई। भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने हेतु एक “ध्रुव दल” की स्थापना की गई, जिसके प्रमुख ‘जय प्रकाश नारायण’ थे।
फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव सीवान थाने पर झण्डा फहराने के दौरान पुलिस की गोलियों के शिकार हुए।
कुलानंद तथा कर्पूरी ठाकुर द्वारा क्रमश: दरभंगा तथा सिंघवारा में संचार व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न किया गया दरभंगा, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी, चम्पारण में आदि क्षेत्रों में क्रांतिकारियों ने सरकारें गठित कर ली। तिरहुत प्रमंडल में जनता का दो महीने तक शासन रहा है।