मौर्य कालीन कला एवं संस्कृति
●मौर्यकाल (लगभग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) में ही कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण।
●मौर्य कालीन स्थापत्य कला के उदाहरण- गया में बराबर की पहाड़ियाँ, राजगीर, पटना तथा पश्चिमी एवं पूर्वी चम्पारण आदि।
●पटना के कुम्हरार से एक विशाल कक्ष के अवशेष मिले हैं, जिसमें 80 स्तंभ थे।
●इन स्तम्भों कीआकृति गोलाकार है तथा ये एक ही पत्थर की शिला को तराशकर बनाए गये हैं।
मौर्य कालीन वास्तुकला की विशेषताएं
●●तराशे गए पत्थरों पर चमकीली पॉलिश का प्रयोग इस युग की प्रमुख विशेषता है।
●उदाहरण-अशोक के द्वारा निर्मित मूर्तियाँ एवं स्तंभों पर दिखाई पड़ते हैं। स्तंभों की बनावट पर ईरानी स्थापत्य कला का प्रभाव।
●ईरानी शैली में निर्मित स्तम्भों के शीर्ष पर पक्षी, फूल, पत्ते तथा बेल के द्वारा सजावट की जाती थी।
●मौर्य कालीन स्तंभों पर सजावट की कमी है।
●अशोक द्वारा निर्मित स्तंभों में उनके शीर्ष भाग पर पशुओं की आकृति द्वारा सजावट का कार्य किया गया है।
●इसी तरह के ऊँचे स्तम्भों का निर्माण अशोक द्वारा अपनी धम्म नीति के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया।
●शीर्ष पर पशुओं की आकृति द्वारा सजावट का कार्य किया गया है, जिसके नीचे उल्टे हुए कमल के फूल के समान अवांगमुखी कमल आसन भी बने हैं।
●बिहार में अशोक द्वारा निर्मित चार स्तम्भ प्राप्त हुए हैं- बसाढ़ (वैशाली जिला), लौरिया नंदनगढ़ और लौरिया-अरेराज (पश्चिमी चम्पारण जिला) तथा रामपुरवा (पूर्वी चम्पारण जिला)
●मौर्य कालीन आरम्भिक मूर्तिकला का प्रारम्भिक उत्कृष्ट उदाहरण पटना से प्राप्त यक्षों की दो मूर्तियाँ हैं, जिन्हें कलकत्ता राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है।
●पुरातत्व शास्त्री काशी प्रसाद जायसवाल ने इन मूर्तियों को अजातशत्रु और उदयिन के द्वारा निर्मित बताया है।
●पटना के लोहानीपुर से दो नग्न पुरुषों की मूर्तियाँ भी मिली हैं, जो संभवतः जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ रही होंगी, क्योंकि इनका निर्माण जैन शैली की कायोत्सर्ग मुद्रा में है। इन्हें जैन शैली का आरम्भिक उदाहरण माना जाता है।
●इसका प्रमुख उदाहरण दीदारगंज (पटना सिटी ) से प्राप्त एक स्त्री की मूर्ति है। जिसको दीदारगंज यक्षिणी या स्त्री-रत्न का नाम दिया जाता है।
●जहानाबाद के मखदूमपुर में स्थित बराबर की पहाड़ियों की गुफाओं में अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ के अभिलेख उत्कीर्ण हैं।
●अशोक ने आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायियों एवं बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए इसका निर्माण करवाया था। ●अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12वें वर्ष, बराबर की पहाड़ियों में स्थित सुदामा गुफा को आजीवक भिक्षुओं को दान दे दिया।
●राजगीर में स्थित सोन भंडार की गुफा की भी इसी काल की मानी जाती है।
●दशरथ ने यहाँ लोमहर्ष ऋषि तथा करण चौपर (कर्ण चौपर) आदि गुफाओं का निर्माण बौद्धों के चैत्य एंव विहार के लिए करवाया था।
गुप्तकालीन कला एवं संस्कृति
●गुप्तकाल में वास्तुकला का विकास बड़े पैमाने पर हुआ। ●गुप्तकालीन मूर्तिकला के उदाहरण- बिहार में रोहतास, नालंदा, भोजपुर, गया, राजगीर, सुल्तानगंज (भागलपुर), वैशाली आदि।
●गुप्त कालीन स्थापत्य कला में बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिन्दू धर्म के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं। इस काल में सबसे अधिक मंदिरों का निर्माण हुआ। जैसे- बोधगया का ईंटों से निर्मित महाबोधि मंदिर, नालंदा का विशाल मंदिर तथा मण्डलेश्वर का मंदिर (कैमूर जिला) आदि।
गुप्तकालीन कला एवं संस्कृति
●इस काल को मूर्ति निर्माण का स्वर्ण युग कहा जाता है।
●बिहार में गुप्तकाल की अनेक मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
●भागलपुर (सुल्तानगंज) से 7.5 फीट ऊँची बुद्ध की मूर्ति तथा नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के अवशेष गुप्तकालीन स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
●सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की मूर्ति को लंदन के संग्रहालय में रखा गया है।