●अवधी अर्धमागधी अपभ्रंश से विकसित है। भाषा के रूप में ‘अवधी’ भाषा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख सर्वप्रथम ‘खालिकबारि’ (अमीर खुसरो) तथा दूसरा प्रयोग ‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ (दामोदर शर्मा) में मिलता है।
●अवधी के अन्य नाम हैं–कोसली, पूरबिया, बैंसवाड़ी
●पूर्वी हिंदी बोली की यह प्रतिनिधि बोली है ।
●अवधी अकारान्त अथवा व्यंजना प्रधान भाषा है। जैसे करत, खोट, बड़, छोट इत्यादि।
●अयोध्या का प्रदेश कोसल के अंतर्गत होने के कारण ‘कोसली’ नामकरण हुआ है। कोसली का उल्लेख ‘कुवलयमाला’ 9वीं सदी के ग्रंथ में भी मिलता है।
●’उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ में 9वीं से13वीं सदी की बोलियों के नमूने को कोसली तथा अपभ्रष्ट कहा गया है।
●बैसवाड़ा अवध का एक भाग मात्र होने के कारण इसका बैंसवाड़ी नामकरण हुआ।
●अवधी का प्रथम ज्ञात काव्य ‘लोरकहा’ या ‘चंदायन’ (1379 ई.) है। चंदायन के रचनाकार मुल्ला दाऊद हैं।
●जायसी अवधी के प्रथम कवि हैं, जिसमें अवधी अपने ठेठ रूप में प्रयुक्त होने के बावजूद अभिव्यंजना की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त है।
●तुलसीदास हिंदी के (एकमात्र) ऐसे कवि हैं, जिन्होंने ब्रजभाषा एवं अवधी दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ लिखा। तुलसी ने अवधी रचनाओं में स्वयं को अकवि कहा है।
●सूफी काव्य की भाषा प्रायः अवधी है। शुक्लजी के अनुसार अनुराग बांसुरी की भाषा सभी सूफी रचनाओं में बहुत अधिक संस्कृत गर्भित है।
●शुक्लजी नूर मुहम्मद को सूफी काव्य-परंपरा का अंतिम कवि मानते हैं।
●भोजपुरी क्षेत्र के नसीर ने अवधी को काव्य भाषा के रूप में अपनाया। इनकी अवधी में खड़ी बोली एवं अवधी का पुट मिलता है।
●अवधी की काव्यपरंपरा मुल्ला दाऊद (1379 ई.) से लेकर नसीर (1917) तक लगभग 5 शताब्दियों तक मिलती है।
●अवधी का क्षेत्र अवध प्रांत- (लखीमपुरी, खेरी, बहराइच, गोंडा, बाराबंकी, लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली)
●ब्रजभाषा का नामकरण 18वीं सदी में हुआ। इसके पूर्व यह ‘पिंगल’ तथा ‘भाखा’ नाम से प्रसिद्ध थी।
●शौरसेनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा विकसित है। शूरसेन का दूसरा नाम ब्रजमंडल है । पश्चिमी हिंदी बोलियों की प्रतिनिधि बोली ब्रजभाषा है। ब्रजभाषा का विकास अन्य बोलियों की तरह 1000 ई. के आसपास हुआ। 1350 ई. के आसपास इसका स्पष्ट रूप विकसित हुआ।
●ब्रजभाषा की अनेक बोलियाँ हैं- नैनीताल की भुक्सा, एटा, बदायूँ, मैनपुरी और बरेली की अंतर्वेदी, धौलपुर और पूर्वी जयपुर की डांगी, गुड़गांव और भरतपुर की मिश्रित बोली, करोली की जादोवाटी।
●ब्रजभाषा के मुख्य क्षेत्र हैं- मथुरा, अलीगढ़ और आगरा
●ब्रजभाषा ओकार बहुला भाषा है। जैसे – पहिलो, दूजो
●ऐ/औ ब्रजभाषा के पहचान की विशेष ध्वनियाँ हैं।
●बुंदेली और ब्रजभाषा में घनिष्ठ संबंध है।
●ब्रजभाषा की सबसे प्राचीन ज्ञात कृति अग्रवाल कवि द्वारा रचित ‘प्रद्युम्न चरित’ (1354 ई.) है ।
●सूर-पूर्व ब्रजभाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि विष्णुदास हुए। स्वर्गारोहण (1435 ई.) रुक्मिणी मंगल, महाभारत, स्नेहलीला (भ्रमरगीत) इनकी रचनाएँ हैं।
●’गुरुग्रंथसाहिब’ में अनेक कवियों की बानियाँ ब्रजभाषा में हैं। ब्रजक्षेत्र से बाहर होते हुए भी इन्होंने ब्रजभाषा में रचनाएँ की।
●ब्रजभाषा के प्रथम महान कवि सूरदास हुए तो काव्य-भाषा के माधुर्य की दृष्टि से अष्टछाप के कवियो में नंददास सर्वोपरि हैं।
●काव्यभाषा के रूप में शुद्ध ब्रजभाषा के प्रथम कवि अमीर खुसरो (1253-1325 ई.) माने जाते हैं।
●आधुनिक युग में भारतेंदु हरिश्चंद्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, सत्यनारायण कविरत्न ने ब्रजभाषा के पुनरुद्धार का प्रयास किया। ये तीनों आधुनिक ब्रजभाषा काव्य के बृहत्त्रयी भी कहलाते हैं।