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मनीष ठाकुर की कविताएँ

मनीष ठाकुर की कविताएँ

प्रेम कविताएँ

1.
 सुनों! एक बात बोलूँ?
 अब मैं तुम्हें गुलाब नहीं दूँगा
 दूँगा एक पौधा
 लगा देना तुम
 शहर में रास्ते के किनारे।
 ताकि, शिशु से ममता का आंचल न हटे
 छाया बनी रहें पिता का संतानों पर
 इस तरह, तुम्हारे और मेरे प्रेम के ऑक्सीजन से
 अस्तित्व बचा रहें 'मानवता'  का।


 2.
 प्रेम क्या है?
 महज दो रूपों का आकर्षण?
 नहीं!
 प्रेम न होता तो  संसार न होता
 सीता-राम न होते, राधा-कृष्ण न होते
 मल्लिका न होती, कालिदास न होते
 आषाढ़ न होता, सावन न होता
 काव्य न होते, महाकाव्य न होते
 पुष्प न होते, भौरे न होते
 नदी न होती, समुद्र न होता
 तुम न होती, मैं न होता
 प्रेम है!
 तो गीत है, संगीत है, जीवन है
 काव्य है, महाकाव्य है
 त्याग है, बलिदान है।
    
                         
                                            मनीष ठाकुर (शोधार्थी, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार)