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कबिरा खड़ा बज़ार में – भीष्म साहनी : मुख्य अंश

कबिरा खड़ा बज़ार में – भीष्म साहनी : मुख्य अंश

●भीष्म साहनी (1915-2003)
●भीष्म साहनी की प्रकाशित पुस्तकों के नाम : भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाङ्चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन (कहानी-संग्रह), झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर (उपन्यास), माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बज़ार में, मुआवजे, सम्पूर्ण नाटक (दो खंडों में) (नाटक), आज के अतीत (आत्मकथा), गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ)।
●कथावस्तु- कबीर के स्वभाव, उनका समाज को देखने का क्या नज़रिया था। किस तरह से उन्होंने संघर्ष किया। परिवार के सम्बंध में उनका क्या दृष्टिकोण था। उसे नए ढंग से भीष्म साहनी ने इस नाटक में प्रस्तुत किया है।

●भीष्म साहनी की यह नाट्यकृति मध्ययुगीन वातावरण में संघर्ष कर रहे कबीर-को- उनके पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों सहित-आज भी प्रासंगिक बनाती है।


●हमारे यहाँ एक ऐसी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाता है, जहाँ हम किसी महापुरुष को उसके काल और स्थान के संदर्भ से काटकर, उसकी सामाजिक भूमिका को गौण बताते बनाते हुए, उसे अध्यात्म के आकाश में विचरते दिखाना चाहते हैं। ऐसा हाल ही में गाँधीजी के सम्बन्ध में जान-बूझकर किया जा रहा है। देश के स्वतंत्रता-संग्राम में उनकी विराट भूमिका पर बल न देकर, जिसमें उन्होंने संसार की सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी सरकार के विरुद्ध देश के लाखों-लाख लोगों को खड़ा कर दिया और देशवासियों में एक नई रूह फूँक दी, उनकी सत्य और अहिंसा-संबंधी मान्यताओं को, देश और काल से काटकर, प्रमुखता देते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने की औपचारिकता निभाई जाती है। यह गाँधीजी के प्रति घोर अन्याय है। कबीर के साथ भी ऐसा करने की प्रवृत्ति पाई जाती है, जो हाल ही में कबीर-जयंती के समय प्रस्तुत रेडियो और टेलीविजन के कार्यक्रमों में लक्षित हुई। अपने काल के यथार्थ से और उस यथार्थ के विरुद्ध उनके विकट संघर्ष को न दिखाकर कबीर को ब्रम्ह में लीन अध्यात्म के गायक सन्त के रूप में दिखाना कबीर के साथ अन्याय करना ही है।- (भीष्म साहनी- भूमिका में)

◆पात्र
●कबीर
●नूरा (कबीर का पिता)
●नीमा (कबीर की माँ)
●लोई- (कबीर की पत्नी)
●काशीनगर का कोतवाल
●कायस्थ
●मठ का महन्त
●मौलवी
●अन्धा भिखारी
●रैदास (कबीर के मित्र)
●सेना (कबीर के मित्र)
●पीपा (कबीर के मित्र)
●बशीरा (कबीर के मित्र)
●अन्धे भिखारी की माँ
●सिकंदर लोदी (दिल्ली का शहंशाह
(इनके अतिरिक्त साधु, जुलाहे, चमार,लड़का, नागरिक, पुरुष तथा स्त्रियाँ, सिपाही, मुसाहिब आदि)

मुख्य अंश-


●नीमा का कथन- जिसकी गोद में पलकर बच्चा बड़ा होता है, वही उसकी माँ होती है।


●नीमा का कथन- जिन लोगों के हाथ में ताक़त होती है, उन लोगों के दिल में रहम नहीं होता।


●कायस्थ का कथन- जिसके हाथ में भगवान ने शक्ति दी है, उसकी जात नहीं देखी जाती मालिक, उसकी महिमा देखी जाती है।


●कोतवाल का कथन- मौलवी लोग जज़्बाती होते हैं, जज़्बात की रौ में बह जाते हैं, जबकि हाकिम जज़्बाती नहीं होता। वह सिर्फ़ दिमाग से काम लेता है।

यही सबसे बड़ा फ़र्क़ है। हाकिम अक्ल से काम लेता है। हस्सास, जज़्बाती लोग कुछ नहीं कर पाते।


●कोतवाल का कथन- जरूरत इस बात की नहीं कि कबीर को सज़ा दी जाए। जरूरत इस बात की है कि उसकी बात सुनने वालों के दिल में दहशत फैल जाए। अगर हम कबीर को सजा देंगे तो उसकी बात सुननेवालों के दिल में उसके लिए हमदर्दी पैदा होगी। इसी को हिकमत कहते हैं।


●कबीर का कथन- करतार ने माई को कैसा बनाया है। न मैं उसका बेटा, न वह मेरी माई, फिर भी सारा वक़्त वह मुझे अपनी छाँव में लिये रहती है।
कबीर का कथन- माई के दिल में जैसे कोई बाती जलती रहती है- प्रेम की बाती। उसी की लौ में सारा वक़्त जीती है।


●कायस्थ का कथन- प्रतिभा गलियों में फेंकने वाली चीज नहीं है। यह तो एक अनमोल हीरा है जिसकी तुम्हें रक्षा करनी चाहिए।


●कायस्थ का कथन- (कबीर से)खंडन-मंडन- यह कवि का काम नहीं है। कवि की साधना तो सरस्वती देवी के चरणों में होती है, गलियों-बाजारों में नहीं होती। कवि के कानों में तो स्वर्ग की अप्सराओं के घुँघरू बजते हैं।


●कबीर का कथन- एक बात तो मैं भी समझता हूँ। जब तक किसी की नजर में एक ब्राम्हण है और दूसरा तुर्क, तब तक वह इंसान को इंसान नहीं समझेगा। मैं इंसान के सारे पूजा-पाठ और विधि-अनुष्ठान छोड़ता हूँ और मस्जिद के रोज़ा-नमाज़ भी छोड़ता हूँ। मैं इंसान को इंसान के रूप में देखना चाहता हूँ।


●अधिकारी-2 : बादशाह इसलिए बादशाह होते हैं कि वे इंसान को पहचानते हैं। उन्होंने कबीर की खूबियों को देख लिया है, मगर हम लोग नहीं देख पाए।


●सिकंदर का कथन- जज़्बे का अपना तो कोई रूपरंग नहीं होता, कोई शक्ल नहीं होती, लेकिन वह फ़नकार रंगों, लकीरों की मदद से उस ज़ज्बे को बयान कर देता है।


●कबीर का कथन- किसी के आँसू दूसरों के लिए मोती जुटा देते हैं और उसे अपने लिए चिथड़े भी नहीं जुट पाते।


●कबीर का कथन- मेरी फ़कीरी के लिए घर-बाहर छोड़ने की जरूरत नहीं है। मेरी नजर में हर काम इबादत है।


●कबीर का कथन- जंग इबादत नहीं है। इनसान की ख़िदमत करना, उसे सुखी बनाना इबादत है।
●कबीर का कथन- मेरा परवरदिगार मेरे चारों ओर है। वह मेरे दिल में बसता है। उसकी नजर में न कोई हिन्दू है, न तुर्क। मैं अल्लाह का नूर हर इनसान में देखता हूँ, इनसान के दिल में देखता हूँ।