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अंधा कुआँ – लक्ष्मीनारायण लाल : मुख्य अंश

अंधा कुआँ   – लक्ष्मीनारायण लाल : मुख्य अंश


पात्र

●भगौती
●सूका
●अलगू
●राजी
●इंदर
●नन्दो
●लच्छी
●मिनकू काका
●हरखू मौसिया
●तेजई
●मूरत
●हीरा
●रामदीन
●जोखन

नाटक का सारांश

नाटक में भगौती नाम का व्यक्ति है जिसकी पत्नी का नाम सूका है। वह उसे छोड़कर इंदर नामक किसी व्यक्ति के साथ भाग जाती है। कुछ पैसा लगाकर वह उसे अपने घर लाता है। उसके हाथ का खाना पानी कुछ नहीं लेता। उसके लिए खाने के भी अलग बर्तन है। जब मन करता है जैसे मन करता है वह सूका को पीटता है। उसके दो तीन दोस्त है जो उसे चढ़ाकर सूका को और ज़्यादा पिटवाते हैं। भगौती की बहन नन्दो रहती है। जो खुद चोरी करके सूका का नाम फँसा कर उसे अपने भाई से पिटवाती है। भगौती के भाई का नाम अलगू है और उसकी पत्नी का नाम राजी है। ये दोनों सूका को मानते हैं। मिनकू, भगौती के चाचा है जिसने उसकी शादी करवायी थी। वो बार-बार भगौती को समझाते हैं कि सूका को मत मारो। लेकिन वह किसी की बात नहीं सुनता। रामदीन साहू का कर्ज अधिक हो जाने के कारण वह भगौती का एक बोरा धान दरवाजे से उठाकर ले जाता है। दूसरा व्यक्ति जोखन है जिससे भगौती ने कर्ज लिया है, वह भी भगौती का आलू ले जाता है। भगौती के बहुत मारने पीटने पर और एक दिन यह कह देने पर की उसकी पत्नी बाँझ है (बाँझ भी इसलिए क्योंकि भगौती ने उसके पेट पर लात मारा था) सूका घर छोड़कर एक एक कुएँ में डूबने जाती है। लेकिन जिस कुएँ में कूदती है उसमें पानी नहीं रहता है, भगौती सूका को निकाल कर लाता है और जमीन पर ढ़केल देता है। भगौती का दोस्त मूरत उसे सलाह देता है कि सूका का आँख फोड़ दो। एक दोस्त बोलता है इसके हाथ पैर काट दो। भगौती सूका को रस्सी से बाँध देता है और सभी से कहता है कि कोई उसे खाना न दे। भगौती लोहे का छड़ धिपा कर सूका के मुँह के पास जलाने को आता है लेकिन अलगू बचा लेता है। बारिश होने लगती है सूका अब रस्सी में नहीं बंधी है। तभी रात को इंदर मिलने आता है। लेकिन सूका उससे कहती है – “तब क्यों नहीं मौका ढूंढा जब मैं जानवरों की तरह पिटती हुई इस पावे से बांधी जा रही थी, जब मैं गर्म सलाख से दागी जा रही थी।” इंदर, सूका को उसके साथ भागने को कहता है लेकिन सूका कहती है- “तू चोर है, तूने मरे हुए को भी मारा खुद तो मारा ही, दूसरों को सदा मारने के लिए रास्ता दे दिया, रखैल से भगैल नाम दिया, अब कौन नाम देना चाहता है।” इंदर चाकू तक दिखाता है लेकिन सूका उसके साथ नहीं भागती। नाटक के तीसरे भाग में भगौती लच्छी नामक लड़की से शादी कर लेता है। जिसको उसने खरीदा है, क्योंकि उसके माँ- बाप नहीं थे। राजी जो सूका के लिए हमेशा भगौती से लड़ती थी वह अब अलग हो चुकी है। अलग होने का कारण था भगौती का दूसरा शादी करना जिसके विरोध में अलगू था। लेकिन लच्छी सूका को खूब मानती है। बिल्कुल सौत जैसा व्यवहार नहीं करती। (लच्छी की शादी हीरा नाम के लड़के से होने वाली रहती है, लेकिन भगौती उसे खरीद लेता है। उसकी शादी हीरा से टूट जाती है। लेकिन लच्छी अभी भी हीरा से ही प्रेम करती है)
भगौती, मूरत और तेजई को पैसा देकर ‘इंदर’ के घर में आग लगवा देता है। सूका कैसे भी कर के लच्छी को हीरा के साथ भगवा देती है। उसको खोजने में भगौती इंदर का नाम फंसाता है। उससे लड़ने में भगौती घायल हो जाता है। नन्दो भी ससुराल से लौट आयी है उसका पति ससुर उसे ख़ूब मारते थे। सूका, भगौती की सेवा-भाव करती है। वह उससे बदला नहीं लेती। धीरे-धीरे भगौती का दिल पिघलने लगता है। एक इन इंदर कटार लेकर भगौती को मारने आता है लेकिन सूका गड़ासा से इंदर का हाथ काट देती है। इंदर सूका के हाथ से गड़ासा छीन लेता है, और भगौती को मारना चाहता है लेकिन बीच मे सूका आ जाती है। जिससे सूका मर जाती है। भगौती करुणा पूर्ण आवाज में कहता है- “खूनी मैं हूँ, सूका का खून मैंने किया है, मैंने किया है।”

मुख्य अंश


●कुछ मर्द जन्म से ही मेहरे होते हैं। औरत का नाम लेते ही अहा… हा… हा… लक्ष्मी है, गऊ है, उस पर हाथ नहीं! (मूरत का कथन)


●बस चंदन लगाकर उन्हें दोनों वक्त पूजो… हूँ… पूजो नहीं सूजो… औरत! औरत की जात, इनका तो मुँह तोड़कर रख दे… सारा जहर तो इनकी आँख और जबान में है। (तेजई का कथन)


●आज तक मैंने उसको चौके में पैर नहीं रखने दिया है, जो बह गयी, उसके हाथ का छुआ मैं दाना-पानी लूंगा। राम-राम मैंने अपने बर्तन तक उससे नहीं छुलाये। एक पीतल की थाली, एक काँस का लोटा, यही दोनों मैंने उसे दे दिया है। थाली में ऊपर से खाना डाल दिया जाता है, और लोटे में ऊपर से पानी-बस! (भगौती का कथन, सूका के संदर्भ में)


●घर की सारी कुटाई-पिसाई का काम उससे लो, और तिल भर इधर-उधर करें, तो दे जूता दे डंडा। (तेजई का कथन)


●अपनी गाय है, चाहे जैसे हम उसे बाँधे, चाहे जैसे हम उसे दुहें। (मूरत का कथन, सूका के संदर्भ में)


●अपने हाथ से खुद एक लोटा पानी पीने लायक न मैं इसे रहने दूँगा। जन्म भर याद रहेगा कि किसी मरद के पाले पड़ी थी। (भगौती का कथन है सूका के लिए)


●दुनिया में कितनी औरतें इस तरह होती है, लेकिन फिर घर वापस आ जाती हैं। उनकी मान मर्यादा होती है, घर-गृहस्थी में अगर कोई बात हो भी गयी तो मरद उसका पुतला नहीं टाँगता! न कुत्ता भूँकता है न पहरू जागता है। लेकिन एक तुम हो कि बात-बात में नाच खड़ी कर देते हो। (अलगू का कथन है सूका के लिए)


●इसकी दवा किसी के पास नहीं है, मेरे ही लिए सबके पास दवा है, क्योंकि मैं औरत हूँ, बदनाम हूँ। (सूका का कथन)


●उससे मेरी शादी हुई यह भी मेरा कसूर है, मैं भागी, पकड़ी गई। मुकदमा चला, मैं उसे छोड़कर फिर इस घर में आई, यह भी मेरा ही दोख है। मैं मरने भही गयी तो मुझे अंधा कुआँ ही मिला, क्या-क्या कहूँ-किससे कहूँ। (सूका का कथन)


●मैं भी साफ कहती हूँ, आग लगे मड़वे, बजर परे बियाहे, मैं तुम्हारी बात सहने के लिए नहीं हूँ। तुम्हारी सहे वह जिस पर भगवान का कोप हो। मैं न तुम्हारा खाती हूँ न पीती, हाँ! (राजी का कथन है भगौती के लिए)


●मरद होकर ऐसी बात करते हो बाबू! इन रस्सियों को तैयार करनेवाले और इनसे गाँठ बनाने वाले जब तक वे हाथ मौजूद हैं तब तक केवल इन रस्सियों को काटने से कुछ नहीं होगा, कुछ नहीं होगा बाबू!(सूका का कथन है अलगू के लिए)


●साँप जब चलता है तो उसकी आहट कोई नहीं पाता, तभी उसकी काट इतनी बिखधर होती है। (सूका का कथन है नन्दो के लिए)


●मुझे घर की हवा तक से घृणा है। मैं चाहती हूँ कि यहाँ मैं साँस तक न लूँ, लेकिन ब्याह कर जब मैं इस घर में लायी गयी, तब इस घर ने मुझे रखैल कहा, कचहरी से लौटकर जब मैं इस घर में आयी, तब इस घर ने मुझे भगैल कहा, और जब इस घर में खींचकर लायी गयी तब से यह काला घर मुझे चुड़ैल कह रहा है। (सूका का कथन)


●हमारे बाबा एक बात कहा करते थे मौसिया, कि औरत और भेड़ कोई कोई दो चीजें नहीं होती, न दिमाग न रीढ़ की हड्डी, बस इनके एक चीज़ होती है गरदन, जिस किसी ने इनकी गरदन नाप ली बस ये उन्हीं की हुई हैं। (भगौती का कथन है सूका के संदर्भ में)


●मैं उसके लिए कभी तेरे सामने रोने गयी। वह मेरा पति है, मुझे मारता है, तुझसे क्या! तू कौन होता है कहने वाला। (सूका का कथन है इंदर के लिए जब वह उसे भाग चलने को कहता है तब की)


●वह मेरा पति है, मुझे मार डालेगा तो क्या, मुझे मंजूर है, वह उसकी मार, उसकी यातना और कमालपुर के कुएँ-नदी-नाले सब। लेकिन किसी भी हालत में तू नहीं, न तेरी दया, न तेरा गाँव, न कलकत्ता, न मुम्बई, न सुख, न भोग, कुछ नहीं… (सूका का कथन है इंदर के लिए)


●न रोओ मेरी लच्छो! रोने के लिए मैं हूँ ही। मेरे जीते अगर तुम्हें भी रोना पड़ा तो मेरे आँसू बेकार हैं। (सूका का कथन है लच्छी के लिए)


●बुडना-धँसना बहुत बड़ा पाप है, लोग बताते हैं कि इस तरह मरने से आदमी शैतानों की गिरोह में चला जाता है, और उसे कभी छुटकारा नहीं मिलता। एक शैतान से बचने के लिए सदा के लिए शैतान हो जाना, फिर कभी ऐसी बातें न सोचना। (सूका का कथन है लच्छी के लिए)


●एक औरत को यातना देने के लिए दूसरी औरत की भी यातना की जाती है, और काका तुमसे क्या कहूँ, लच्छी देवी जैसी है। (सूका, मिनकू काका से कहती है)


●मैं यहाँ सींकचों में अकेली रह लूंगी, लेकिन मुझे संतोष होगा कि मैं तुम्हें तो छुड़ा सकी। (सूका का कथन है लच्छी के लिए)


●अगर वह कुआँ सच अंधा होता, तो उसमें दो-चार जहरीले साँप जरूर होते। ऊपर से वह घास-फूस, लता-बंवर से ढका होता और उसमें कोई मुझे गिरी हुई न देख पाता। मुझे ख़ूब मालूम है, ऐसे कुएँ में एक बार गिरकर आज तक कोई ज़िंदा बाहर नहीं निकला है- लेकिन मैं निकली हूँ। (सूका का कथन)


●अंधा कुआँ यही है जिसके संग मैं ब्याही गयी हूँ- जिसमें एक बार मैं गिरी, और ऐसी गिरी कि फिर न उबरी। न कोई मुझे निकाल पाया, न मैं खुद निकल सकी और न निकल पाऊँगी। (सूका का कथन)


●मेरी माँ कहा करती थी, जिस औरत के पेट में दुधमुंहे बच्चे ने अपना मुँह नहीं मारा, वह औरत नहीं, बबूल का पेड़ है जिस पर जल्दी पंछी भी नहीं बैठते। (सूका का कथन)