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पात्र
रेवा : बैरिस्टर की पत्नी
केशव : रेवा का पति
रंजन : रेवा का पूर्व मित्र
जमना : बूढ़ी परिचारिका
हरि : सेवक
डाकिया
कथा-सार
रेवा का पति केशव वकील रहता है। वह काफी अमीर परिवार में ब्याही गयी थी। जहाँ उसके पति को उसे खोने का डर है- ऐसा रेवा स्वयं कहती है। इसीलिए तो उसके पति उसके बोलने से पहले गहना जेवर कपड़े आदि लाते रहते हैं। जमना काकी और हरि उस घर में नौकर हैं। वह एक जगह रेवा को कहती हैं- कबूतरी असल में तू है जिसका कुछ गहरा अर्थ है। डाकिया का प्रवेश होता है जो पत्र लेकर आया है। वह पत्र रंजन नाम के व्यक्ति का है जिससे रेवा की शादी होने वाली थी। लेकिन रंजन ने शादी से मना कर दिया था क्योंकि उसे मालूम था रेवा अमीर है और वह उसको रखने में असमर्थ है इसलिए वह कहता है उसे परिचित लड़की से शादी नहीं करनी। वह एकदम अल्हड़ स्वभाव का रहता है। वह पत्र में लिखता है –
‘रेबू! सुना है कि तुम बहुत खुश हो, बहुत पैसा है! इधर मैं बहुत अभाव में हूँ। सोचता हूँ कि क्यों न कुछ दिन तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करूँ। अच्छा स्थान हुआ तो कुछ दिन चित्र बनाना चाहता हूँ। यहाँ तो राजनीति में दम घुटने लगा है। आऊँ न? पर कहीं तुम्हारे ‘वे’ मेरी उग्रता से डर तो न जाएँगे? डरना तो नहीं चाहिए! बैरिस्टर हैं। फिर सुना है, रूप के उपासक है और तुम रूपसी हो!’
रेवा रंजन को आने से मना करना चाहती है लेकिन केशव के कहने पर वह हाँ कर देती है। केशव अंदर-ही-अंदर रंजन से जलता रहता है। रंजन के आने के बाद एक दिन रेवा उसके साथ नदी किनारे जाती है जहाँ रंजन रेवा की तस्वीर बनाता है। उसके लौटने पर केशव गुस्सा होता है। और रंजन के साथ ही रेवा को भी घर से निकलने को कहता है। रेवा ख़ुद तो नहीं जाती लेकिन रंजन को घर से भगा देती है। केशव और गुस्सा होता है। और रेवा को ‘वेश्या’ और चरित्रहीन कहता है। उसके बाद केशव 7 दिन के लिए घर से बाहर चला जाता है। रेवा इंतज़ार करती रहती है। सातवें दिन रंजन किसी ट्रेन में मिली लड़की से विवाह करके रेवा से आशीर्वाद लेने आता है। रेवा उसे घर में प्रवेश नहीं करने देती लेकिन जमना काकी के कहने पर वह मान जाती है। कि तभी केशव का भी प्रवेश होता है। वह घर के अंदर आने के लिए रेवा से अनुमति माँगता है। लेकिन रेवा अपने शयनकक्ष में भागती चली जाती है। तब जमना काकी कहती है कि रेवा बेहोश हो गयी है। रंजन कहता है अब सबको घर के अंदर आने की अनुमति मिल गयी।
कुछ बातें
●यह एकांकी तीन दृश्यों में बँटा हुआ है।
●दो पति पत्नी के बीच तीसरे के प्रवेश के कारण रिश्ते में तनाव और शंका उत्पत्ति को दिखाया गया है।
●इस एकांकी में प्रेम और विवाह के संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है।
●परम्परागत दाम्पत्य जीवन, पुरुष की अधिकार भावना और उसके भीतर निहित पशुता पर प्रहार किया गया है।
●पति समरेखा है तो प्रेमी विषमरेखा।
●एकांकी पढ़कर ऐसा लगता है कि प्रेमी समाजवादी है और पति पूंजीवादी है।
●पूंजीवादी अधिकार चाहता है और समाजवादी उस अधिकार को चुनौती देता है।
मुख्य अंश
●जमना का कथन- माँ का दिल है। इतने दिन पालती-पोसती है और फिर एक दिन छाती पर पत्थर रख कर दूसरे के घर भेज देती है।
●केशव का कथन रंजन के लिए- अपने को गरीब कहते हैं, लेकिन भाषा बताती है कि अच्छे-खासे अभिजात वर्ग के प्राणी हैं।
●रंजन का कथन- आँसू दु:ख के प्रतीक हैं और प्रेम में दु:ख कैसा?
●रंजन का कथन- विवाह एकदम अपरिचित से करना चाहिए। अपरिचित से परिचय करने में जो रस आता है, उसी में सच्चा रोमान्स होता है।’
●केशव का कथन रंजन के लिए- चित्र! जहाँ देखो चित्र! मजदूर की बस्ती में, मिल के सामने, बियाबान जंगल में, भरे बाजार में, गरीब की झोंपड़ी के पास, कोई अन्त है इस चित्रकला का?
●रंजन केशव को कहता है- चेहरे के भाव बताते हैं कि कोई हत्या का मामला होगा! इस बुर्जुआ सोसाइटी में और हो ही क्या सकता है!
●रंजन का कथन- शायद उच्च वर्ग का यही फैशन है कि ऊपर कुछ, भीतर कुछ! (हँसी) पूँजी सहेजने का उनका स्वभाव हो जाता है। बटोर-बटोर कर सब मन की तिजोरी में भरते रहते हैं।
●रेवा का कथन है रंजन के लिए-तुम भी ऐसे ही सोचते हो, रंजी! तुम भी वही पुरुषोंवाली भाषा बोलते हो।
●रेवा का कथन- जिस बात का डर था, वही होकर रही! न चाह कर भी मैं गलती कर बैठी! आँखें रख कर भी देख न सकी। अपनी बुद्धि से ही मैं स्वयं छली गई। स्वभाव की शक्ति को पहचान न सकी। लेकिन, लेकिन केशव क्या सचमुच मुझे दुश्चरित्र समझता है? क्या सचमुच? नहीं, नहीं, वह आवेशमात्र है! क्षणिक भावना है, जो ईर्ष्या के कारण प्रबल हो उठी है। (एकदम) पर कुछ भी हो, मुझे क्या! मैं तो केवल यह जानती हूँ कि मैंने विश्वासघात नहीं किया। केशव मेरा जीवन-साथी है!
●केशव का कथन- तुम पुंश्चली! तुम वेश्या हो!
●हरि का कथन- मर्द जब नाराज हो जाता है तो औरत…
●रेवा का कथन है केशव के बारे में – तुम बार-बार घर की फिक्र करती हो, पर जिनसे घर है, उनका तुम्हें बिल्कुल ध्यान नहीं! जब घरवाला ही घर से बाहर है।
●रेवा का कथन- कैसे चली जाऊँ, केशव! मैं विवाहिता हूँ। और विवाहिता क्या होती है, यह तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है! लेकिन, अगर तुम मुझे दासी बनाना चाहो, तो वह नहीं होगा, वह नहीं हो सकता!