एक ऐसा निबन्धकार जिसने एक ही धारा अपनाई, और वह धारा उसी की पूरक हो गयी- सुजाता कुमारी
उनका मानना था कि- मैं अपने गाँव की धरती के हृदय से एक जीवित परम्परा का चयन करने चला हूँ। परंतु अतिशय विनय और अतिशय प्रीति के साथ… अब एक किनारे जम रहा हूँ। उनके निबंधों को पढ़ने के बाद उनकी ही कही यह बात ग़लत लगती है – वो किनारे जमने वाले नहीं धारा … एक ऐसा निबन्धकार जिसने एक ही धारा अपनाई, और वह धारा उसी की पूरक हो गयी- सुजाता कुमारी को पढ़ना जारी रखें
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