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Net/ jrf हिंदी कहानी

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1. बंग महिला(राजेंद्रबाला घोष)


●हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी लेखिका के रूप में जानी जाती है।
◆बंग महिला की कहानी-
●चंद्रदेव से मेरी बातें-1904 में ‘सरस्वती’में प्रकाशित।
●कुंभ में छोटी बहू-1906
●दुलाईवाली-1907 में’सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित।
●भाई-बहन-1908 में ‘बाल-प्रभाकर’ में प्रकाशित।
●दालिया-1909
●हृदय परीक्षा-1915 में ‘सरस्वती’में प्रकाशित।
◆नोट:-‘चंद्रदेव से मेरी बातें’ कहानी पहले निबंध रूप में 1904 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी ।लेकिन बाद में कई पत्र-पत्रिकाओं में इसे ‘कहानी’ के रूप में प्रस्तुत किया गया।
◆चंद्रदेव से मेरी बातें
●प्रकाशन-1904
●पात्र- स्वयं लेखिका


◆मुख्य बिंदु:-
●पत्रात्मक शैली में लिखी पहली कहानी है ,जिस पर ‘शिवशम्भु के चिट्ठे'(1903) निबंध का प्रभाव देखा जा सकता है।
●तत्कालीन समय के सामाजिक,राजनैतिक तथा आर्थिक समस्याओं का चित्रण।
●बेरोज़गारी की समस्याओं का चित्रण।
●समाज में नारी की बदतर स्थिति का चित्रण।
●शिक्षा-व्यवस्था पर व्यंग्य।
●सुविधा वितरण की असामनता पर कटाक्ष।
●पदोन्नति के लिए सिफ़ारिस और चाटुकारिता का वर्णन।
●समाज मे फैली ग़रीबी, महामारी पर व्यंग्य।
●सत्ता को चुनौती तथा शासन-व्यवस्था के भ्रष्ट चरित्र का चित्रण।
◆भवदेव पांडेय अपने पुस्तक ‘नारी मुक्ति का संघर्ष’ में इस कहानी को “हिंदी की पहली राजनीतिक कहानी” माना है।


◆दुलाईवाली
●प्रकाशन-1907 में ‘सरस्वती'(भाग 8,संख्या 5)में प्रकाशित हुई।


●पात्र-

वंशीधर
जानकी देई-वंशीधर की पत्नी
सीता-जानकी की बहन।
नवलकिशोर-वंशीधर का ममेरा भाई।


◆मुख्य बिंदु:-


●हिंदी की प्रारंभिक कहानियों में से एक है।
●कहानी का आधार मनोरंजन है। कहानी हास्य का पुट लिए हुए ,नवविवाहित घनिष्ट मित्रों की कथा है।
● कहानी की प्रमुख विशेषता यह है कि रचनाकार हास्य-सृजन में परम्परा से हटकर मौलिकता और कल्पनाशीलता का अद्भुत प्रयोग किया है।
●काशी और उसके आस-पास के जन-जीवन व स्त्री-पुरुष के सोच तथा मनोभावों का स्वभाविक चित्रण मिलता है।
●विदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर व्यंग्य।
●कहानी की शुरुआत काशी के दशाश्वमेध घाट से शुरू होकर, इलाहाबाद में खत्म होती है।

2. पं. माधवराव सप्रे(1871-1926) एक टोकरी भर मिट्टी


●माधवराव सप्रे एक कहानीकार, निबंधकार, समीक्षक, अनुवादक और संपादक के रूप में जाने जाते है।
●रचनाएँ:-
●स्वदेशी आंदोलन और बायकॉट
●यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें
●हमारे सामाजिक ह्रास के कुछ कारणों का विचार
●माधवराव सप्रे की कहानियाँ (संपादन:देवीप्रसाद वर्मा)
●’हिंदी केसरी’ और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’जैसे पत्रिका का संपादन किया।
●माधवराव सप्रे के विषय में माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के कर्मवीर में लिखा था − “पिछले पच्चीस वर्षों तक ●पं॰ माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।”
●प्रकाशन-1901 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ में प्रकाशित।
●पात्र-जमींदार, अनाथ विधवा,पाँच वर्ष की पोती।


◆मुख्य बिंदु:-
●सामाजिक अन्याय के विरोध की कहानी।
●जमींदारी व्यवस्था और उसके शोषण की कथा।
●भ्रष्ट वकील का संकेत।
●जमींदार का हृदय-परिवर्तन।
●’एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी को हिंदी की पहली लघुकथा का श्रेय प्राप्त है।
●कमलेश्वर ने इस कहानी को हिंदी की ‘पहली कहानी’ के रूप में मान्यता दी है,लेकिन वर्तमान में इसे पहली कहानी न मानकर ‘पहली लघुकथा’ माना जाता है।

3. राजा राधिकारमण सिंह-(1890-1971)


●कथा साहित्य में ये ‘शैली सम्राट’ के रूप में जाने जाते है।
●कहानी संग्रह:- ‘कुसुमांजली’ (सन् 1912 ई, ‘अपना पराया’, ‘गांधी टोपी’, ‘धर्मधुरी’।
●पुरस्कार-उपाधि:-पद्मभूषण (1962), डॉक्टरेट की उपाधि (1969), साहित्यवाचस्पति (1970)
◆कानों में कंगना-1913
◆पात्र-
योगीश्वर-किरण के पिता/नरेंद्र के गुरु
किरण-नरेंद्र की पत्नी
नरेंद्र-कथावाचक
मोहन-नरेंद्र का मित्र
किन्नरी-नाचनेवाली

◆मुख्य बिंदु:-
●यह कहानी ‘इंदु’ पत्रिका में 1913 में प्रकाशित हुई थी।
●’मैं’शैली में यह कहानी लिखी गयी है।
●प्रेम और प्रकृति के समन्वित रूप का चित्रण।
●स्त्री की सामाजिक स्थिति का वर्णन।
●सामंती समाज में पुरुषों की निर्बद्ध प्रकृति का चित्रण।
●प्रेम और वासना में अंतर(पत्नी और वेश्या के माध्यम से)।
●आचार्य रामचंद्र शुक्ल इनके विषय में कहतें है कि-“ये अत्यंत भावुक और भाषा की शक्तियों पर अद्भुत अधिकार रखने वाले लेखक है।”
●कहानी के विषय मे भी आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते है कि-“एक अत्यंत भावुकतापूर्ण कहानी है।”

4. ज्ञानरंजन(1936 से वर्तमान तक)


●साठोत्तरी कहानी के प्रमुख कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं।
●कहानी संग्रह-फेंस के इधर-उधर(1968),यात्रा(1971),क्षणजीवी(1977),सपना नहीं(1977)।
●’पहल’ पत्रिका का संपादन किया है।
●सम्मान–सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण सम्मान’।
अनिल कुमार और सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार।
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का ‘शिखर सम्मान’
सुदीर्घ कथा साधना, सृजनशीलता और बहुआयामी कार्यनिष्ठा के लिए वर्ष 2001-2002 के राष्ट्रीय ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ से सम्मानित।


◆पिता(1965)
●पात्र-पिता,बेटा(सुधीर),देवा(सुधीर की पत्नी),छोटा बेटा(सुधीर का),माँ, कप्तान भाई, दादा भाई।


◆मुख्य बिंदु:-
●परम्परागत और आधुनिक जीवन शैली का द्वंद।
●पिता का पुरानी सोच के साथ जीवन जीने का चित्रण।
●वैचारिक द्वंद्व के वावजूद प्रेम और जिम्मेदारियों का निर्वहन।
● मध्यवर्गीय परिवार में,पारिवारिक संबंधों का बदलता स्वरूप।
●यथार्थ को दृष्टिगत रखते हुए पिता और पुत्र के संबंधों में आ रही दूरी की समकालीन व्याख्या।
●पुरानी पीढ़ी का अतीत से लगाव और नई पीढ़ी का अतीत से मुक्ति का चित्र।
●डॉ.रामचंद्र तिवारी(हिंदी का गद्य साहित्य,पेज-317)कहते है कि–”ज्ञानरंजन मुख्य रूप से मध्यवर्गीय जीवन की कुरूपताओं,विसंगतियों, और खोखलेपन को निस्संग भाव से बेनकाब करनेवाले यथार्थधर्मी कहानीकार है।”
●’पिता’ कहानी के संदर्भ में स्वमं ज्ञानरंजन कहते है कि–” पिता कहानी की तारीफ में उसे पिता -विरोधी दर्शन के साथ जोड़ने की क्रांतिकारी आलोचना भी सामने आई है। मैं इस तरीके को कभी भी पसंद नहीं कर सका ।क्योंकि मेरी कहानियों में निजी मामले काफी हद तक झूठ भी थे ।हां वे सार्वजनिक सच्चाई यों के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़े से जुड़े जा सकते थे। (‘पिता’कहानी के संदर्भ में ,प्रतिनिधि कहानियों की भूमिका में)।


5. कमलेश्वर(1932-2007)


●’नयी कहानी’ के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं।
●कहानी,उपन्यास,पत्रकारिता,स्तंभ लेखन,फ़िल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखनी चलाई है।
●कहानी संग्रह:-राजा निरबंसिया(1957),कस्बे का आदमी(1958),खोई हुई दिशाएं(1963),मांस का दरिया(1966),बयान(1973),आजादी मुबारक(2002)।
●वे ‘सारिका’ ‘धर्मयुग’, ‘जागरण’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। 
●उल्लेखनीय सम्मान-साहित्य अकादमी पुरस्कार (2003),पद्मभूषण (2005)।
◆राजा निरबंसिया(1957)
●पात्र-जगपती,चंदा, दयाराम,बचनसिंह,शकूरे,हंसराज पंजाबी,सुदर्शन दर्जी,जमुना सुनार,बंसी किराने वाले,मुंशी जी,मदसूदन।
◆मुख्य बिंदु:-
●लोककथा के माध्यम से वर्तमान के दुःख-दर्द को व्यक्त किया गया है।
●जगपती के माध्यम से निम्न-मध्यवर्गीय समाज का चित्रण।
●संतानहीन दम्पति की सामाजिक और मानसिक पीड़ा का चित्रण।
●समाज में स्त्री की छवि और उनके प्रति समाज का दृष्टिकोण।
●कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले मेहनतकश लोगों का चित्रण।
●यह कहानी शिल्प की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
●स्वमं कमलेश्वर इस कहानी के संदर्भ में कहते है कि-“आर्थिक अभाव से टूटते दाम्पत्य जीवन की मनोदशा का सूक्ष्म वर्णन करती है यह कहानी।”

6. निर्मल वर्मा(1929-2005)


●’नई कहानी’ आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक के रूप में जाने जाते है।
●कहानी संग्रह : परिंदे (1958), जलती झाड़ी (1965), पिछली गर्मियों में (1968), बीच बहस में (1973), कौवे और काला पानी (1983), सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)
●पुरस्कार-उपाधि–पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999)


◆परिंदे-1958


●पात्र-लतिका,मेज़र गिरीश नेगी,डॉ. मुखर्जी,मि.ह्यूबर्ट,सुधा, करीमुद्दीन,मिसवुड,मेरी, फादर एलमण्ड,जूली, हेमंती।


●मुख्य बिंदु:-
●जीवन के आंतरिक लय और भावबोध को खोलती है।
●नारी मन:स्थिति का चित्रण।
●प्रेम का त्रिकोण स्वरूप।
●कॉन्वेंट स्कूलों के वातावरण का अंकन।
●कहानी के माध्यम से आधुनिक मनुष्य की व्यथा,अकेलेपन,तथा उनकी मानसिक यातनाओं को लेखक ने उभारा है।
●नामवर सिंह ने इस कहानी को हिंदी की पहली कहानी मना है।
●कहानी के संदर्भ में नामवर सिंह लिखते हैं–”परिंदे की लतिका की समस्या स्वतंत्रता या मुक्ति के समस्या है।अतीत से मुक्ति, स्मृति से मुक्ति, उस चीज से मुक्ति ‘जो हमें चलाएं चलते हैं और अपने रेले में घसीट ले जाती है।”… सारी कहानी इस मुक्ति की पीड़ा की मार्मिक अभिव्यंजना है।… मुक्ति का यह क्षण जिसमें मनुष्य स्वयं अपना साक्षी हो जाता है, निर्मल की अनेक कहानियों का आलोक केंद्र है।”

7.भीष्म साहनी(1915 -2003)


●भीष्म साहनी हिंदी और अंग्रेजी के अलावा,उर्दू,संस्कृत,रूसी और पंजाबी भाषाओं के अच्छे जानकार थे।
●मार्क्सवाद से प्रभावित होने के कारण भीष्म साहनी सामज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों के त्रासद परिणामों को बड़ी गंभीरता से लिखते थे।
●कहानी संग्रह-भाग्य रेखा(1953),पहला पाठ(1957),भटकती राख(1966),पटरियाँ(1973),वाङ्चू(1978),शोभायात्रा(1981),निशाचर(1983),पाली(1989),डायन(1998)।
●पुरस्कार-उपाधि_’साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1975), ‘शिरोमणि लेखक सम्मान’ (पंजाब सरकार) (1975), ‘लोटस पुरस्कार’ (अफ्रो-एशियन राइटर्स एसोसिएशन की ओर से 1970), ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1983), पद्म भूषण (1998)।

◆चीफ की दावत(1956)


●पात्र-
मि.शामनाथ
शामनाथ की पत्नी
शामनाथ की माँ
शामनाथ का चीफ


◆मुख्य बिंदु:-


●यह कहानी 1956 में’पहला पाठ’कहानी- संग्रह में प्रकाशित हुआ।
● मध्यवर्गीय समाज के खोखलेपन, दिखावटीपन और स्वार्थपरकता को दर्शाया गया है।
● पदोन्नति के लिए चीफ की खुशामदी करते हुए,इस कहानी में दिखाया गया है।
●मानवीय मूल्यों के विघटन का चित्रण।
● मां के दुःख तथा बलिदान का चित्रण।
● अपनों से दूर होते जाने की प्रक्रिया भी इस कहानी में दिखाया गया है।


8.भीष्म साहनी(1915 -2003)


●भीष्म साहनी हिंदी और अंग्रेजी के अलावा, उर्दू, संस्कृत, रूसी और पंजाबी भाषाओं के अच्छे जानकार थे।
●मार्क्सवाद से प्रभावित होने के कारण भीष्म साहनी सामज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों के त्रासद परिणामों को बड़ी गंभीरता से लिखते थे।
●कहानी संग्रह-भाग्य रेखा(1953),पहला पाठ(1957),भटकती राख(1966),पटरियाँ(1973),वाङ्चू(1978),शोभायात्रा(1981),निशाचर(1983),पाली(1989),डायन(1998)।
●पुरस्कार-उपाधि_’साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1975), ‘शिरोमणि लेखक सम्मान’ (पंजाब सरकार) (1975), ‘लोटस पुरस्कार’ (अफ्रो-एशियन राइटर्स एसोसिएशन की ओर से 1970), ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1983), पद्म भूषण (1998)


●अमृतसर आ गया(1971)


●पात्र-लेखक,बाबू,तीन पठान,एक पंजाबी,एक बुढ़िया।


◆मुख्य बिंदु:-
●यह कहानी’पटरियाँ’ कहानी -संग्रह में प्रकाशित हुई थी।
●भारत -पाकिस्तान विभाजन के समय उपजे तनाव की पृष्ठभूमि से रचित कहानी।
●साम्प्रदायिकता की समस्याओं का चित्रण।
●नष्ट हुई मानवीय संवेदना का चित्रण।
●अमानवीय कृत्यों का दर्शन।
●’मैं’शैली में यह कहानी लिखी गयी है।

9.कृष्णा सोबती(1925-2019)


●कहानी संग्रह-
बादलों के घेरे – 1980
●लम्बी कहानी (आख्यायिका/उपन्यासिका)-
डार से बिछुड़ी -1958
मित्रो मरजानी -1967
यारों के यार -1968
तिन पहाड़ -1968
ऐ लड़की -1991
जैनी मेहरबान सिंह -2007
●उल्लेखनीय सम्मान–
1999: कछा चुडामणी पुरस्कार
1981: शिरोमणी पुरस्कार
1982: हिन्दी अकादमी अवार्ड
2000-2001: शलाका पुरस्कार
1980: साहित्य अकादमी पुरस्कार
1996: साहित्य अकादमी फेलोशिप
2017 : ज्ञानपीठ पुरस्कार (भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान )

◆सिक्का बदल गया(1948)


●पात्र-शाहनी,शेरा,हुसैना,जैना,फ़िरोज़,रसूली,नवाब बीवी,बेगू,जैलदार,मुल्ला इस्माइल,दाऊद खान।
●यह कहानी 1948 में ‘प्रतीक’पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
●देश-विभाजन की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है।
●विस्थापन से उपजी अलगाव की यंत्रणा।
●साम्प्रदायिकता का चित्रण।
●विधवा नारी की असहाय और विवशता का मनोवैज्ञानिक चित्रण।
●विभाजन से आये लोगों की मानसिकता में परिवर्तन की कहानी।