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सिंदूर की होली- लक्ष्मी नारायण मिश्र : मुख्य अंश

सिंदूर की होली- लक्ष्मी नारायण मिश्र : मुख्य अंश

लक्ष्मी नारायण मिश्र- (1903-1987)

आचार्य रामचंद्र शुक्ल इनके सम्बन्ध में लिखते हैं- पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र ने अपने नाटकों द्वारा स्त्रियों की स्थिति आदि कुछ सामाजिक प्रश्न या समस्याएं तो सामने रखी ही है, यूरोप में प्रवर्तित यथातथ्यवाद का वह खरा रूप भी दिखाने का प्रयत्न किया है जिसमें झूठी भावुकता और मार्मिकता से पीछा छुड़ाकर नर-प्रकृति अपने स्वाभाविक रूप में सामने लाई जाती है।

नाटक-

●अशोक-  1926
●संन्यासी- 1930
●राक्षस का मंदिर- 1931
●मुक्ति का रहस्य- 1932
●राजयोग- 1933
सिंदूर की होली-1934
●आधी रात- 1936
●गरुड़ध्वज- 1945
●नारद की वीणा- 1946
●वत्सराज- 1950
●दशाश्वमेध- 1950
●वितस्ता की लहरें- 1953
●धरती का हृदय
●काल-विजय
●गंगा द्वार  

सिंदूर की होली-1934

●पात्र
●रजनीकांत 
●मनोजशंकर 
●मुरारीलाल- डिप्टी कलेक्टर 
●माहिर अली -मुरारी का मुंशी 
●भगवंत सिंह 
●हरनन्दन सिंह 
●चन्द्रकला -मुरारी लाल की बेटी 
●मनोरमा 
●डॉक्टर और कुछ अन्य जन 

मुख्य बिंदु

●अंक-3
●(तीनों अंकों में दृश्य का स्थल एक ही है- डिप्टी कलेक्टर मुरारीलाल के बँगले की बैठक)
●पहला दृश्य- 9 बजे का है।
●दूसरा दृश्य- सांध्यकाल का है।
●तीसरा दृश्य- रात्रि 10 बजे का है।
●दिन वर्षा काल का है।
●समस्या नाटकों के क्रम में यह उनका पाँचवा नाटक है।
●इस नाटक के कथानक की अवधि केवल 12-13 घंटे मात्र की है।
●नाटक की कथा 9 बजे शुरू होती है तथा कथा की अंतिम घटना 10 बजे रात्रि में बीत जाती है।
●यह नाटक नायिका-प्रधान है। और वह नायिका चन्द्रकला है।
●नारी क्या है?
●भारतीय नारी क्या है?
●नारी को पश्चिम ने अधिक समझा है या पूर्व (भारत) की नारी ही नारी का सहज रूप है।
●इस पक्ष पर भी नाटककार ने विचार किया है।
●नाटक में मनोरमा वैधव्य का समर्थन करती है। और चंद्रकला रोमांटिक प्रेम का।
●साधन और  संपन्न व्यक्ति की मानसिकता को दिखाया गया है।
●निःस्वार्थ और आदर्श प्रेम को दिखाया गया है।
●भ्रष्टाचारी कानून व्यवस्था का ज़िक्र आया है।
●गुनहगारी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिखाया गया है।
●निर्दोष की हत्या का चित्रण हुआ है।
●विधवा के स्वरूप का वर्णन
●रोमांटिक भावुकता और यथार्थ बुद्धिवाद में टकराहट का चित्रण हुआ है।
●समाज में विधवा का स्थान और विधवा विवाह का प्रश्न उठाया गया है।
●जैसा कर्म वैसा फल की अभियक्ति की गयी है।

मिश्र जी के सम्बंध में गिरिराज शर्मा (हिंदी नाटक का मूल्य संक्रमण) लिखते हैं- स्पष्ट है कि मिश्र जी ने विधवा को समाज का गौरव सिद्ध किया है जब कि भारतीय समाज में विधवा के लिए कोई सम्मानजनक स्थान नहीं है।शुभ कार्यों में विधवा की उपस्थिति भी अशुभ मानी गयी है।

नाटक के मुख्य अंश-

●तुमको और मनोजशंकर को प्रसन्न रखने में अगर मेरा सब कुछ बिगड़ जाय तब भी मुझे चिंता नहीं।- (मुरारीलाल का कथन)

●उसकी आकृति से लड़कपन की सरलता झलकती है।-(चन्द्रकला के लिए)

●आजकल की शिक्षा में शब्दों का खिलवाड़ ख़ूब सिखलाया जाता है।- (मुरारीलाल का कथन)

●झूठ का रोज़गार तो आप लोग देहातों में करते हैं। लगान वसूल करने वक़्त और बिरादरी में… -(माहिरअली का कथन भगवंत के प्रति)

●पट्टीदार और दाल गलाने की चीजें होती हैं।दाल गल जाने पर मीठी होती है और पट्टीदार गल जाने पर,काबू में रहता है।- (भगवंत सिंह का कथन)

●संसार में कोई भी पूरे तौर पर सुखी तो रहने नहीं पाता।यही संसार की लीला है।- (मुरारीलाल का कथन)

●हमलोग मनुष्य और उसके अधिकार की रक्षा के लिए कुर्सी पर नहीं बैठते हमलोगों का काम है केवल कानून की रक्षा करना।- (मुरारीलाल का कथन)

●अब के सोचे ना बनेगा, मालिक सीताराम हो…(चन्द्रकला का गान)

●जिस वस्तु का अनुभव ही नहीं उसके अभाव का दुःख क्या- (मनोरमा)

●कला की भावना किसके भीतर नहीं होती? शिक्षा और कला का सम्बंध कुछ नहीं है। कला का आधार तो है विश्वास,और शिक्षा का संदेह। इन दोनों को एक ही साथ रख देना दो शत्रुओं को बांध कर एक साथ समुद्र में फेंक देना है।- (मनोरमा का कथन)  

●जो स्वभाव है वह; कमल ताल के कीचड़ में उगेगा, लेकिन गंगा के बालू में नहीं- (मनोरमा का कथन)

●आग के निधूम हो जाने पर उसकी दाहक शक्ति बढ़ जाती है…- (मनोरमा का कथन)

●प्रेम दो चार से तो हो नहीं सकता और फिर अब प्रथम दर्शन में प्रेम का समय भी नहीं रहा। वह तो युग दूसरा था जब हृदय का रस संचित रहता था और अनायास किसी ओर वह उठता था।- (चन्द्रकला का कथन)

●सत्य तीक्ष्ण होता ही है।- (चन्द्रकला का कथन)

●मुझे अपना घर बनाना है- (मनोरमा का कथन)

●कानून दंड देगा,कला क्षमा करेगी। कानून संदेह करेगा, कला विश्वास करेगी।-मनोरमा का कथन)

●कला की साधना अपने लाभ के विचार से नहीं होती।- (मनोरमा)

●सत्य का सूत कच्चा था कितनी जल्दी टूट गया?- (मनोरमा का कथन)

●पुरुष आँख के लोलुप होते हैं, विशेषतः स्त्रियों के सम्बंध में, मृत्यु-शय्या पर भी सुंदर स्त्री इनके लिए सब से बड़ा लोभ हो जाती है।- (मनोरमा का कथन)

●विषाद का स्वर न बजाकर आनंद का स्वर बजाया करो। सुई ले लेकर जीना अच्छा नहीं है।- (मनोरमा का कथन मनोजशंकर के प्रति)

●पुरुष का सबसे बड़ा रोग स्त्री है, और स्त्री का सबसे बड़ा रोग है पुरुष।- (मनोरमा का कथन)

●आत्मघाती पिता के पुत्र के लिए संसार में सम्मान कहाँ- (मनोजशंकर का कथन)

●उसका हाथ मैंने इसलिए नहीं पकड़ा था कि मैं उसे स्त्री बनाऊंगा…उसका हाथ तो मैंने इसलिए पकड़ा था कि मैं जीवन भर अविवाहित रहूँगा- (मनोजशंकर का कथन)

●बहुत से लोग जीवन की शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देते…इसलिए उपदेशक और दार्शनिक बनते हैं,लेकिन उसे सुनते हैं समझते हैं मेरी तरह शायद व्यंग्य करते हैं।-(मनोजशंकर का कथन)

●प्लेटो के प्रजातंत्र में कवि को कोई स्थान नहीं मिला था।स्त्री के प्रेमतंत्र में बुद्धि और ज्ञान को कोई स्थान नहीं मिला है।- (मनोजशंकर का कथन)

●प्रेम करना विशेषतः स्त्री के लिए कभी बुराई नहीं स्त्री जाति की स्तुति केवल इसलिए होती है कि वे प्रेम करती हैं प्रेम के लिए ही उनका जन्म होता है। स्त्री चरित्र की सबसे बड़ी विभूति उसका सबसे बड़ा तत्व प्रेम माना गया है और उस पर भी यह तो उसका पहला प्रेम है। उसमें बुराई कहां है। प्रेम वकील से राय लेकर जज से अधिकार-पत्र लेकर तो किया नहीं जाता। जो बात स्वतः स्वभाव है, प्रकृति है वह तो चरित्र का गुण है अवगुण नहीं।- (मनोजशंकर का कथन)

●कवि और गायक भावुक जीव होते हैं।- (डॉक्टर का कथन)

●प्रकृति के रास्ते पर लौट आना… निरोग होना दोनों बराबर है।- (मनोजशंकर का कथन)

●तुम्हारी समझ में विधवाएं समाज के लिए कलंक है, मैं समझती हूँ समाज की चेतना के लिए विधवाओं का होना आवश्यक है।- (मनोरमा का कथन/मनोजशंकर के प्रति)

●यह कयामत की रात है। आज दुनिया का निशान मिट जाएगा।- (माहिरअली का कथन)

●कह कर एक बार फांसी पड़ जाना रोज़ फाँसी से अच्छा है।- (माहिरअली का कथन)

●स्त्री का हृदय सर्वत्र एक है क्या पूर्व क्या पश्चिम, क्या देश क्या विदेश।- (चन्द्रकला का कथन)

●मेरे भीतर आज चिरन्तन नारीत्व का उदय हुआ है।- (चन्द्रकला का कथन)

●भावुकता और विक्षोभ के अवसर पर निकले हुए शब्द संस्कारों की मर्यादा इस तरह नहीं मिटा सकते और इसलिए कि आदर्श उनका आधार नहीं होता परीक्षा की आँच में ठहर  भी नहीं सकते।- (मनोरमा)

●सचित कर्म जो चाहते हैं करा डालते हैं इसमें हम किसी का दोष नहीं है।- (मनोजशंकर का कथन)