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महादेवी वर्मा- (1907-1987)
पुरस्कार सम्मान-
- 1934- में सर्वप्रथम ‘नीरजा’ काव्य संग्रह पर ‘सेकसरिया पुरस्कार’ मिला।
- 1956- में कवयित्री को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषन’ सम्मान से सम्मानित किया गया था।
- 1979- में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।
- 1982- ‘यामा’ और ‘दीपशिखा’ के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिला।
- 1988- में साहित्य सेवा के लिए ‘पद्मविभूषण’ मिला।
कविता संग्रह-
- सप्तपर्णा (अनुदित)-(1966)
संस्मरण और रेखाचित्र-
- स्मृति की रेखाएँ में ‘ठकुरी बाबा’ संकलित है-
- इस संग्रह में 7 रेखाचित्र है-
ठकुरी बाबा रेखाचित्र के मुख्य बिंदु-
- इसके नायक ठकुरी बाबा स्वयं है।
- इसमें एक देहाती कवि के जीवन को चित्रित किया गया है।
- लेखिका महादेवी वर्मा की ठकुरी बाबा से भेंट प्रयाग में उनके कल्पवास के दौरान हुई।
- पात्र-लेखिका स्वयं,भक्तिन,ठकुरी बाबा,बेला(ठकुरी बाबा की बेटी),वृद्ध ठकुराइन,सहुआइन,ब्राह्मण दम्पति
ठकुरी बाबा रेखाचित्र के मुख्य अंश-
- मौन मेरी पराजय का चिन्ह नहीं,प्रत्युत वह जय की सूचना है,यह भक्तिन से छिपा नहीं,संभवतः इसी कारण वह मेरे प्रतिवाद से इतना नहीं घबराती जितना मौन से आतंकित होती है,क्योंकि प्रतिवाद के उपरांत तो मत-परिवर्तन सहज है; पर मौन में इसकी कोई सम्भावना शेष नहीं रहती।
- मुझे इस कल्पवास का मोह है,क्योंकि इस थोड़े समय में जीवन का जितना विस्तृत ज्ञान मुझे प्राप्त हो जाता है,उतना किसी अन्य उपाय से सम्भव नहीं।
- गाँव के मेले से लेकर कल्पवास तक सब मेरे लिए पाठशाला है;पर इनमे मैं मोह बढ़ाना ही सीखती हूँ,विराग-साधना नहीं।
- मुझमें इतनी आधुनिकता नहीं कि स्नान न करूँ और इतनी पुरातनता भी नहीं कि भीड़ में धक्कम-धक्के में स्नान का पुण्य लूटने जाऊँ।
- जब लौटी,तब कोहरे पर सुनहली किरणें ऐसी लग रही थी,जैसे सफ़ेद आबेरवाँ की चादर पर सोने के तारों की हल्की जाली टाँक दी गयी हो।
- उनके गोल मुखों पर झूलती हुयी उलझी रूख़ी और मैली लटें मानो दरिद्रता की कथा के अक्षर थीं।
- पूर्व के कोने में पड़े हुए पुआल का गट्ठा और उस पर सिमटी हुयी मैली चादर की सिकुड़न कह रही थी कि सोने वालों ने ठंड से गठरी बनकर रात काटी है।
- बूढ़े ठकुरी बाबा भाट वंश में अवतीर्ण होने के कारण कवि और कवि होने के सजातीय कहे जा सकते हैं।आधुनिक युग में भाट-चारणों के कर्तव्य और आवश्यकता में बहुत अंतर पड़ चुका है,इसी से न कोई उनके अस्तित्व को जानता है और न उनके कवित्व-व्यवसाय का मूल्य समझता है।
- कोई भी कला सांसारिक और विशेषतः व्यावसायिक बुद्धि को पनपने ही नहीं दे सकती और बिना इस बुद्धि के मनुष्य अपने आपको हानि पहुँचा सकता है,दूसरों को नहीं।
- वे भावुक और विश्वासी जीव है।
- गाँव का जीवन इतना उत्पीडित और दुर्वह होता जा रहा है कि उसमें मनुष्यता को विकास के लिए अवकाश मिलना ही कठिन है।
- हँसी मेरे ओठों तक आकर रुक गयी।जब इनके लिए सब कुछ सजीव है,तब ये दीपक की माँ की और उसकी प्रतीक्षा की कल्पना क्यों न करें।बुझाए देती हूँ,कहने पर सहुआइन ने आगे बढ़कर आँचल की हवा से उसे बुझा दिया।बेचारी को भय था कि मैं शहराती शिष्टाचार हीनता के कारण कहीं फूँक से ही न बुझा बैठूँ।
- कवि भी हार न मानने की शपथ लेकर बैठते हैं।’वह नहीं सन्न चाहते तो इसे सुनिए,यह मेरी नवीनतम करती है,ध्यान से सुनिए’ आदि-आदि कहकर वे पंडों की तरह पीछे पद जाते हैं।
- कवि कहेगा ही क्या,यदि उसकी इकाई सब की इकाई बंकर अनेकता पा सकी और श्रोता सुनेंगे ही क्या,यदि उन सबकी विभिन्नताएँ कवि में एक नहीं हो सकती।
- क्योंकि अर्थ ही इस युग का देवता है।
- मैंने उनसे अधिक सहृदय व्यक्ति काम देखे हैं।यदि यह वृद्ध यहाँ न होकर हमारे बीच में होता,तो कैसा होता,यह प्रश्न भी मेरे मन में अनेक बार उठ चुका है;पर जीवन के अध्ययन ने मुझे बता दिया है कि इन दिनों समाजों का अंतर मिटा सकना सहज नहीं।उनका बाह्य जीवन दीन है और हमारा अंतर्जीवन रिक्त।उस समाज में विकृतियाँ व्यक्तिगत है;पर सद्भाव सामूहिक रहते हैं।इसके विपरीत हमारी दुर्बलताएँ समाश्तिगत है;पर शक्ति व्यक्तिक मिलेगी।
- आँखों में ममता का वही आलोक था;पर समय ने अपनी छाया डालकर उसे धुँधला कर दिया था।मुख पर वैसी ही उन्मुक्त हँसी का भाव था;पर धीरे-धीरे साथ छोड़ने वाले दाँतों को याद रखने के लिए ओठों ने अपने ऊपर स्मृति की रेखाएँ खींच ली थी।
- धरती से उनका प्रेम इतना सच्चा,जीवन से उनका सम्बंध ऐसा अटूट है कि उनका कहीं और रहना सम्भव ही नहीं जान पड़ता।अथर्व के जो गायक अपने-आपको धरती का पुत्र कहते थे; ठकुरी बाबा उन्हीं के सजातीय कहे जा सकते हैं इनके लिए धरती का वरदान,काव्य उसके सौंदर्य की अनुभूति,प्रेम उसके आकर्षण की गति और शक्ति उसकी प्रेरणा का नाम है।
- अपनी प्रभाती से वे किसे जगाते हैं,यह कहना कठिन है।