●प्रकाशन-1955
●अंक- 2
पहले अंक में 3 दृश्य है।
दूसरे अंक में भी 3 दृश्य है।
●पात्र- अंजली, इन्द्रनारायण,नीरज,अनिमा, श्रीपत, ओमी,नील, नजीर, राधे,मुन्नी
◆मुख्य बिंदु-
1.मनोवैज्ञानिक और सामाजिक नाटक।
2.अहमवादिता और प्राचीन संस्कारों का दुष्परिणाम।
3.अभिजात्य एवं अनुशासनप्रिय स्त्री का चित्रण।
4.जीवन को यांत्रिक ढाँचें में डालने की प्रवृति।
5.नारी की कठोर पारिवारिक नियंत्रण से परिवार विघटन की समस्या।
6.अस्तित्ववाद की झलक।
7.नायिका प्रधान नाटक।
8.व्यक्ति जैसा चाहता है ,वैसा नही कर पाता है,उस पर कार्य थोपे जाते हैं उसका दुष्परिणाम।
अंक-1
●अनिमा उस मुक्त मृगी- सी लगती है,जो जाल के बंधन से अनभिज्ञ है।उसके बनाव-सिंगार और पहनावे से पूरी बेपरवाही टपकती है।–(अनिमा के संदर्भ में)
●इस घर के कण-कण को मैंने सलीका, समय की पाबंदी और सभ्य लोगों के रंग-ढंग सिखाये है।– (अंजलि का कथन)
●जैसे घर के भाग्य का पता देहरी से चलता चलता है, वैसे ही मालिकों के स्तर का पता नौकरों के पहनावे से लगता है।गंदे नौकरों से नाना जी को बड़ी चिढ़ थी।–(अंजलि का कथन)
●वक्त की पाबंदी सभ्यता की पहली निशानी है…।–( अंजलि का कथन)
● सुघड़ापा पर स्त्री का गहना है और सदाचार पुरुष का–(अंजली का कथन)
●अपने घर को तुमने घड़ी-सा बना रखा है, सब मानो उसके पुर्जे हैं।–( अनिमा का कथन)
● जिंदगी स्वयं एक महान घड़ी है।प्रातः संध्या उसकी सुइयां है। नियम-बध्द एक-दूसरे के पीछे घूमती रहती है।–(अंजली का कथन)
●तुम तो फ़िजूल ही गृहस्ती की चक्की से अपना माथा फोड़ रही हो। तुम्हें तो सेना में कैप्टन या छोटे-मोटी लेफ्टिनेंट हो जाना चाहिए।–( श्रीपत का कथन)
●शिष्टाचार सौदा का, यूं कह लो कि बंधन का प्रतीक है।–(श्रीपत का कथन)
●मेरे ख्याल में आचार-व्यवहार के सभी कानून -कायदे शादीशुदा लोगों के अधेड़ दिमाग की उपज है। इसलिए मैं ब्याह की कल्पना ही करता करता हूं, उसके बंधन में नहीं फँसता।–( श्रीपत का कथन)
“यह दस्तूरे-जुबाँ-बंदी है कैसा तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरसती है ज़ुबाँ मेरी।”
●इस घर के लोग भी पुर्जे हैं, कसम भगवान की, मशीन के पुर्जे!–(श्रीपत का कथन)
◆अंक -2
●मंदिर में जैसे पूजा का समय बंधा होता है और पुजारी चूक जाए तो दिन भर उसके मन में खटक रहती है कि उससे अपराध बन आया है इसी तरह मुझे भी लगा कि ठीक 8:00 बजे नाश्ता मेज़ पर न आया तो भारी अपराध हो जाएगा।–(ओमी का कथन)
●यूरोप की सैर का शौक था। जमींदारी खत्म करना कांग्रेस के उद्देश्य का एक हिस्सा था, सो मैंने सोचा कि उससे पहले यूरोप हो आओ।–(श्रीपत का कथन)
” बहिया में जिंदगी की बहे जा रहे हैं हम
मुड़ने की बात दूर है, रुकने का बस नहीं।–( श्रीपत का कथन)
●अंजू दौरे से नहीं मरी, उसने आत्महत्या की थी।–(अनिमा का कथन)
●क्रिकेट के कप्तान और कमिश्नर कवि के सामने क्या ठहरेंगे? वे दोनों घूमते तारों की तरह चंद दिन अपनी रोशनी दिखा कर चल देते हैं और कवि ध्रुव तारे की तरह चमकता रहता है।–(श्रीपत का कथन)
कैसे-कैसे वरदान मिले
बंदर को लंबी पूंछ मिली
गधे को लंबे कान मिले।–(नीलम गाता है)
●एक कमिश्नर और गवर्नर एक प्रांत पर राज्य करता है पर कवि की हुकूमत देश-विदेश तक फैलती है।– (श्रीपत का कथन)
● गदहे की तरह सारा दिन पढ़ाई का बोझ ढोओगे तो गदहे बन जाओगे।–( नीरज का कथन)
“सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूंही तमाम होती है!–( इंद्र का कथन)
●इंसान का मशीन बनना सनक ही का दूसरा रूप का है।–(का कथन)
● अंजू दीदी की सनक, उनके जुल्म, उसके तिलिस्म को तोड़ना जरूरी है, ताकि इस घर के लोग अपना- अपना जीवन जिये।–(श्रीपत का कथन)
● जरा-सी गलती पर अपनी सनक में तुमने मेरे पाँच बरस रेगिस्तान बना डाले अंजू!–( इंद्र का कथन)