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अंधेर नगरी-भारतेंदु हरिश्चंद्र: मुख्य अंश

अंधेर नगरी-भारतेंदु हरिश्चंद्र: मुख्य अंश

महत्वपूर्ण बिंदु –


●प्रकाशन वर्ष- 1881
●अंक- 6


1.प्रथम अंक-(स्थान)-बाह्य प्रान्त
2.दूसरा अंक-बाजार
3.तीसरा अंक-जंगल
4.चौथा अंक-राजसभा
5.पांचवा अंक-अरण्य
6.छठा अंक-श्मशान


पात्रमहंत,नारायणदास,गोबर्धनदास,कबाबवाला,घासीराम,नारंगीवाली,हलवाई, कुंजड़िन,मुगल, पाचकवाला,मछलीवाली, जातवाला,बनिया,राजा,मंत्री।


●चौथे अंक के पात्रों का क्रम:– सेवक-राजा-मंत्री-नौकर-फरियादी,कल्लू-कारीगर- चुनेवाला-भिश्ती-कसाई-गड़ेरिया-कोलवाल।


◆मुख्य बिंदु:-


●यह प्रहसन हास्य-व्यंग्य प्रधान है।
●सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों का चित्रण।
●विवेकहीन तथा निरंकुश शासन-व्यवस्था पर व्यंग।
●अंग्रेजी राज-व्यवस्था की पतनशील स्थितियों का चित्रण।

●प्रहसन में शास्त्रीय तथा लोक शैली का मिश्रण।
●न्याय व्यवस्था की विसंगतियों का चित्रण।
●संवाद में तुकांतता है,जिस पर पारसी थिएटर का प्रभाव देखने को मिलता है।
●मध्यकालीन रागों को पुनः सृजित किया है भारतेंदु ने।
●●यह प्रहसन भारतेंदु ने बनारस में नेशनल थिएटर के लिए एक दिन में लिखा था,जो काशी के दशाश्वमेघ घाट पर उसी दिन खेला गया था।
● ऐसा माना जाता है कि बिहार के किसी अन्यायी जमींदार को सुधारने के लिए भारतेंदु ने यह प्रहसन लिखा था।
●’अंधेर नगरी चौपट राजा’ मूलतः लोककथा है,जिसको भारतेंदु ने अपने ढंग से सामाजिक -राजनीतिक व्यंग्य के रूप में ढाला है।


●रामविलास शर्मा इस नाटक के संदर्भ में लिखते है– “अंग्रेजी राज की अंधेरगर्दी की आलोचना ही नही ,वह इस अंधेरगर्दी को खत्म करने की भारतीय जनता की प्रबल इच्छा भी प्रकट करता है।”
●भारतेंदु ने इस नाटक को खलने के लिए पर्दे वाले रंगमंच की कल्पना की है।
1965 में सत्यव्रत सिन्हा ने इलाहाबाद में इस नाटक की सफल प्रस्तुति की।
1978 में बाबा कारंत ने इस नाटक को खेला था।
●पात्रों के अनुसार भाषा का प्रयोग हुआ है।

1.पहला दृश्य -बाह्यप्रांत

महन्त : बच्चा गोबर्धनदास दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जाएगा।

2. दूसरा अंक-स्थान-बाजार


●चना खावै तौकी मैना
बोलैं अच्छा बना चबैना।
चना खाँय गफूरन मुन्नी।–(घासीराम का कथन)


●चना हाकिम सब जो खाते,
सब पर दूना टिकस लगाते–(घासीराम का कथन)

●ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम है भाई।जैसे कलकत्ते के विलसन,मंदिर के भीतरिए,वैसे ही अंधेर नगरी के हम।–(हलवाई का कथन)
●जैसे काजी वैसे पाजी।रैयत राजी टके सेर भाजी।ले हिंदुस्तान का मेवा फूट और बैर।–(कुंजड़िन  कथन)


●हिन्दू चूरन इसका नाम,
बिलायत पूरन इसका काम
चूरन जब से हिन्द में आया
इसका धन बल सभी घटाया।।–(पाचकवाला का कथन)


●चूरन खावैं एडिटर जाट
जिनके पेट पचै नाहि बात
चूरन साहेब लोग जो खाता
सारा हिन्द हजम कर जाते
चूरन पुलिसवाले खाते
सब कानून हजम कर जाते।–(पाचकवाला का कथन)


●टके के वास्ते ब्राह्मण से धोबी हो जाय और धोबी को ब्राह्मण कर दे,टके के …।–(जातवाला का कथन)

3.तीसरा अंक –जंगल


●सेत सेत सब एक से,जहाँ कपूर कपास
ऐसे देस कुदेस में,कबहुँ न कीजै बास।-(दोहा)

5.पाँचवाँ अंकअरण्य


●नीच ऊँच सब एकहि ऐसे
जैसे भँडुए पंडित तैसे
कुल-मरजाद न मान बराई
सबै एक से लोग -लुगाई।–(गोबर्धनदास का कथन)


●बेश्या जोरू एक समाना
बकरी गऊ एक करि जाना।-(गोबर्धनदास का कथन)

6.छठा अंक-श्मशान


●जहाँ न धर्म न बुद्धि नहि, नीति न सुजन समाज।
ते ऐसहि आपुहि नसै,जैसे चैपट राज।।–(गुरु का कथन)