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आषाढ़ का एक दिन-मोहन राकेश:मुख्य बिंदु

आषाढ़ का एक दिन-मोहन राकेश:मुख्य बिंदु

महत्वपूर्ण बिंदु-

  • प्रकाशन-1958
  • अंक-3
  • पात्र- मल्लिका,अम्बिका,कालिदास,दंतुल,मातुल,विलोम,निक्षेप,प्रियंगुमंजरी,रंगिणि,संगीनी,अनुस्वार,अनुनासिक।

मुख्य बिंदु:-


●स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिलता।
●सृजनात्मकता बनाम राजनीतिक संरक्षण का द्वंद्व।
●रंगिणि,संगीनी के माध्यम से शोध-प्रविधि पर व्यंग्य।
●अनुस्वार,अनुनासिक के माध्यम से भारतीय नौरकरशाही पर व्यंग्य।
●मल्लिका का सशक्त रूप उभर कर आया है।उसके प्रेम का स्वरूप मुक्तिकामी है।
●आत्मनिर्वासन अंत:अपने मूल से कट जाने का चित्रण।
●अस्तित्ववाद का प्रभाव।
●भाषा संस्कृतनिष्ठ हैं, लेकिन बोलचाल के लय पर ढाला गया है।
●मोहन राकेश ने ये नाटक प्रोसेनियम थिएटर के लिए लिखा था।
●नाटक की प्रथम प्रस्तुति 1959 में श्यामानंद जलाल ने कलकत्ता में की है।
●इस नाटक को उन्होंने प्रोसेनियम थिएटर में यथार्थवादी फ़्रेम में खेला।
1962 में इब्राहिम अलकाजी ने दिल्ली में खेला।
1964 में सत्यदेव दुबे ने बम्बई में खेला।
● नाटक के बारे में मोहन राकेश का कथन:- “मेघदूत को पढ़ते हुए मुझे लगा कि वह कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नही है,जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित कवि की।”

◆अंक -1


● तभी मुझे अनुभव हुआ कि वह क्या है जो भावना को कविता का रूप देता है। मैं जीवन में पहली बार समझ पायी कि क्यों कोई पर्वत-शिखरों को सहलाती मेघ-मालाओं में खो जाता है,क्यों किसी को अपने तन- मन की अपेक्षा अकाश की अपेक्षा अकाश में बनते-मिटते चित्रों का इतना मोह हो रहता है ।–(मल्लिका का कथन )


●मल्लिका का जीवन उसकी अपनी संपत्ति है वह उसे नष्ट करना चाहती है तो किसी को उस पर आलोचना करने का क्या अधिकार है।–(मल्लिका का कथन )

●मैंने भावना में एक भावना का वर्णन किया है। मेरे लिए वह संबंध और सब संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूं जो पवित्र है, कोमल है,अनश्वर है…(मल्लिका का कथन)


● तुम जिसे भावना कहती हो वह केवल छलना और आत्म-प्रवंचना है।– (अंबिका का कथन)


●मैंने कहा, तुझे वहां ले चलता हूं जहां तुझे अपनी मां की-सी आंखें और उसका सा ही स्नेह मिलेगा।–(कालिदास का कथन)


●शब्द और अर्थ राजपुरुषों की संपत्ति है।-(कालिदास का कथन)


● तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है,उसके लिए संवेदना का,कालिदास नि:शस्त्र होते हुए भी तुम्हारे शस्त्र की चिंता नहीं करेंगे।(मल्लिका का कथन)


● किसी संबंध से बचने के लिए अभाव जितना बड़ा कारण जितना बड़ा कारण होता है,अभाव की पूर्ति उससे बड़ा कारण बन जाती है।–(अंबिका का कथन)


● तुम्हारे साथ उसका इतना ही संबंध है कि तुम एक उपादान हो जिसके आश्रय से वह अपने से प्रेम कर सकता है, अपने पर गर्व कर सकता है।–(अंबिका का कथन)

● सम्मान प्राप्त होने पर सम्मान के प्रति प्रकट की गई उदासीनता व्यक्ति के महत्व को बढ़ा देती है। तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए कि तुम्हारा भागिनेय लोकनीति में निष्णात है।–(अंबिका का कथन)


● योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है।–(निक्षेप का कथन)


● और तुम दु:खी कब नहीं रही,अंबिका? तुम्हारा तो जीवन ही पीड़ा का इतिहास है।–(विलोम का कथन)


● छंदों का अभ्यास मेरी वृति नहीं है।–(विलोम का कथन)


●विलोम क्या है? एक असफल कालिदास और कालिदास? एक सफल विलोम।–(विलोम का कथन)


● मैं तुम्हारी प्रशंसा करने के लिए अवश्य बाध्य हूँ। तुम दूसरों के घर में ही नहीं, उनके जीवन में ही अनधिकार प्रवेश कर जाते हो।-(कालिदास का कथन,विलोम के प्रति)


● तुम्हें आज नई भूमि की आवश्यकता है, जो तुम्हारे व्यक्तित्व को अधिक पूर्ण बना दे।–(मल्लिका का कथन, कालिदास के प्रति )


●कोई भूमि ऐसी नहीं जिसके अंतर में कोमलता में कोमलता न हो। तुम्हारी प्रतिभा उस कोमलता का स्पर्श अवश्य पा लेगी।–(मल्लिका का कथन )

◆अंक-2
●व्यक्ति उन्नति करता है,तो उसके नाम के साथ कई तरह के अपवाद जुड़ने लगते है।–(मल्लिका का कथन)


● वे असाधारण हैं। उन्हें जीवन में असाधारण का ही साथ चाहिए था।–(मल्लिका का कथन)


● इस सौंदर्य के सामने जीवन की सब सुविधाएं हेय हैं। इसे आंखों में व्याप्त करने के लिए जीवन-भर का समय भी पर्याप्त नहीं।– (प्रियंगु का कथन)


● सौंदर्य का यह यह सहज उपभोग हमारे लिए केवल एक सपना है।–(प्रियंगु का कथन)


● राजनीति साहित्य नहीं है। उसमें एक-एक क्षण का महत्व है। कभी एक क्षण के लिए भी चूक जाए, तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो सकता है।राजनीतिक जीवन की धुरी में बने रहने के लिए व्यक्ति को बहुत जागरूक रहना पड़ता है।-(प्रियंगु का कथन)


●जीवन एक भावना है!कोमल भावना! बहुत बहुत कोमल भावना।–(अंबिका का कथन )

◆अंक 3


●मैं आज तक दोनों में से किसी की भी धुरि नहीं पहचान पाया। मैं समझता हूं कि जो कुछ मैं समझ पाता हूं, सत्य सदा उसके विपरीत होता है और मैं जब उस विपरीत तक पहुंचने लगता हूं, तो सत्य उस विपरीत से विपरीत हो जाता है।-(मातुल का कथन)


● कश्मीर में विद्रोही शक्तियां सिर उठा रही है है। वहीं से आए एक आहत सैनिक का कहना है कि-कि कालिदास ने कश्मीर छोड़ दिया है।-(मतुल का कथन)


● मैं यद्यपि तुम्हारे जीवन में नहीं रही, परंतु तुम मेरे जीवन में सदा बने रहे हो। मैंने कभी तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दिया। तुम रचना करते रहे और मैं समझती रही कि मैं सार्थक हूं, मेरे जीवन की भी कुछ उपलब्धियां हैं।-(मल्लिका का कथन)


● मैं टूटकर भी अनुभव करती रही कि तुम बन रहो हो। क्योंकि मैं अपने को अपने में न देखकर तुम्हें देखती थी।–(मल्लिका का कथन)

●जानती हो,इस तरह भीगना भी जीवन की एक मात्र महत्वाकांक्षा हो सकती है?–(कालिदास का कथन)


● संभव है दृश्य उतना नहीं बदला जितना मेरी दृष्टि बदल गई है।–(कालिदास का कथन)


●मैं नहीं जानता था कि अभाव और भर्त्सना का जीवन व्यतीत करने के बाद प्रतिष्ठा और सम्मान के वातावरण में जाकर मैं कैसा अनुभव करूंगा ।मन में कहीं यह आशंका थी कि वह वातावरण मुझे छा लेगा और मेरे जीवन की दिशा बदल देगा… और यह आशंका निराधार नहीं थी।–(कालिदास का कथन)


● जो कुछ लिखा है वह यहां के जीवन का ही संचय था। ‘कुमारसंभव’ की पृष्ठभूमि यह हिमालय है और तपस्विनी उमा तुम हो।’मेघदूत’ के यक्ष की पीड़ा मेरी पीड़ा है और विरह-विमर्दित यक्षिणी तुम हो।–(कालिदास का कथन)


●आकृति बदल गई है परंतु व्यक्ति आज भी वही हो।–(कालिदास का कथन)


● जैसे तुमसे बाहर जीवन की गति ही नहीं है। तुम ही तुम हो और कोई नहीं है परंतु समय निर्दय नहीं है। उसने औरों को भी सत्ता दी दी है।अधिकार दिए हैं।–(विलोम का कथन)