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अंधा युग-धर्मवीर भारती: मुख्य अंश

अंधा युग-धर्मवीर भारती: मुख्य अंश


महत्वपूर्ण बिंदु:-
●प्रकाशन-1954
अंक-5

इसके साथ ही स्थापना,अंतराल और समापन भी है।
स्थापना-अंधा युग
पहला अंक-कौरव नगरी
दूसरा अंक-पशु का उदय
तीसरा अंक-अश्वत्थामा का अर्द्धसत्य
अंतराल-पंख,पहिये,और पट्टियाँ
चौथा अंक-गांधारी का शाप
पाँचवाँ अंक-विजय:एक क्रमिक आत्महत्या
समापन-प्रभु की मृत्यु
●पात्र:- अश्वत्थामा,गांधारी,धृतराष्ट्र, विदुर,युधिष्टिर, कृपाचार्य, युयुत्सु,कृतवर्मा,संजय,वृद्धि याचक,प्रहरी,बलराम,व्यास ,प्रहरी।

मुख्य बिंदु:-

●घटना काल:- महाभारत के 18 वें दिन की संध्या से लेकर प्रभास- तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक।
●प्राचीन महाभारत की कथानक को लेकर आधुनिक समस्याओं का चित्रण।
●दूसरे विश्व-युद्ध की विभीषिका का चित्रण(युद्ध का परिणाम,युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नही होता।)
●फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद का प्रभाव।
●अस्तित्ववाद का प्रभाव।
●नाटक में लोक- शैली और शास्त्रीय-शैली का मिश्रण।
●लेखक के अनुसार पर्दे वाला रंगमंच की परिकल्पना की गई है नाटक को खेलने के लिए।
●कथा गायन शैली पर ग्रीक नाटकों के कोरस का प्रभाव।
● इस नाटक को सबसे पहले 1962 सत्यदेव दुबे ने बम्बई में प्रस्तुत किया था।
●नाटक के संबंध में जयदेव तनेजा कहते है- “अंधायुग किसी विशिष्ट अथवा युग-विशेष का घोतक न होकर अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ अपने में समाये हुए हैं। अतः कुंठा, हताशा, रक्तपात, घृणा, प्रतिशोध, विकृति, मुुल्यहीनता, क्षणवादिता की सर्वव्यापी सूचीबद्ध अंधकार का संगत और सार्थक बिंब और प्रतीक है।”

◆स्थापना


●सत्ता होगी उनकी।
जिनकी पूंजी होगी।–(मंगलाचरण)
● राजशक्तियां लोलुप होगी,
जनता उनसे पीड़ित होकर
गहन गुफाओं में छिप- छिप कर दिन काटे काटेगी।–(मंगलाचरण)
● यह अंधा युग अवतरित हुआ
जिसमें स्थितियां ,मनोवृतियाँ आत्माएं सब विकृत है।–(युद्दोपरांत)

पहला अंक

● भय का अंधापन, ममता का अंधापन,

अधिकारों का अंधापन जीत गया

जो कुछ सुंदर था, शुभ था, कोमलतम था

वह हार गया…–(कथा-गायन)

● मर्यादा मत तोड़ो,

तोड़ी हुई मर्यादा

कुचले हुए अजगर-सी

गूँजलिका में कौरव -वंश को लपेटकर

सूखी लकड़ी- सा तोड़ डालेगी।–(विदुर के संवाद,में कृष्ण के कथन)

●आज मुझे भान हुआ।

मेरी वैयक्तिक सीमाओं के बाहर भी

सत्य हुआ करता है।।–(धृतराष्ट्र का कथन)

●ज्ञान जो समर्पित नही है

अधूरा है

मनोबुद्धि तुम अर्पित कर दो

मुझे।–(विदूर का संवाद में कृष्ण के कथन)

●हम सब के मन मे कही एक अंध गहवर है,

बर्बर पशु अंधा पशु वास वही करता है।–(गांधारी का कथन)

● नैतिकता, मर्यादा,अनासक्ति, कृष्णापर्ण

यह सब है अंधी प्रवृत्तियों की पोशाके

जिसमें कटे कपड़ों की आंखें खिली रहती है।–(गांधारी का कथन)

●किन्तु, उस दिन यह सिद्ध हुआ

जब कोई भी मनुष्य

अनासक्त होकर चुनौती देता है इतिहास को

उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है।–(याचक)

●हमने मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया,

क्योंकि नहीं थी अपनी कोई भी मर्यादा।–( प्रहरी का कथन)

दूसरा अंक

● आत्मघाती कर लूं?

इस नपुंसक अस्तित्व से

छुटकारा पाकर

यदि मुझे

पिछली नरकाग्नि में उबालना पड़े

तो भी शायद

इतनी यातना नहीं होगी।–(अश्वत्थामा का कथन)

●मैं क्या करूं?

वध मेरे लिए नहीं रही नीति

वह है अब मेरे लिए मनोग्रंथि

किसको पा जाऊं

मरोड़ू मैं!

मैं क्या करूं। –(अश्वत्थामा का कथन )

●आज इस पराजय की वेला में

सिद्ध हुआ

झूठी थी सारी अनिवार्यता भविष्य की।

केवल कर्म सत्य है

मानव जो करता है, इसी समय

उसी में निहित है भविष्य

युग युग तक का!–(वृद्ध याचक का कथन)

● उठाओ शस्त्र

विगतज्वर युद्ध करो

निष्क्रियता नहीं

आचरण में ही

मानव अस्तित्व की सार्थकता है।–(वृद्ध याचक का कथन)

●नहीं है पराजय यह दुर्योधन की

इसको तुम मानो नये सत्य की उदय बेला।–(वृद्ध याचक)

●मातुल!

वध मेरे लिए नही नीति है

वह है अब मनोग्रंथि!–(अश्वथामा का कथन)

◆तीसरा अंक

●भुजाएं ये तुम्हारी

पराक्रम भरी

थकी तो नही

अपने बंधुओ का

वध करते-करते?–(गांधारी का कथन)

● आज इस पराजय की सेवा में

पता नहीं

जाने क्या झूठा पड़ गया कहां

सब के सब कैसे

उतर आए हैं अपनी धुरी से आज

एक-एक कर सारे पहिए

है उतर गये जिससे

वह बिल्कुल निकम्मी धुरी

तुम हो

क्या तुम हो प्रभु?–(विधुर का कथन)

◆अंतराल

● जीवन एक अनवरत प्रवाह है

और मौत ने मुझे बांह पकड़ कर किनारे खींच लिया है

और मैं तटस्थ रूप से किनारे पर खड़ा हूं।–(वृद्ध याचक का कथन)

◆चौथा अंक

● अंधों को सत्य दिखाने में क्या

मुझको भी अंधा ही होना है।–(संजय का कथन)

● आज से कभी भी इस सीमित दृश्य जगत से

मैं तृप्ति नहीं पाऊंगा

सीमाएं तोड़कर अनंत में समाहित होने को

प्यासी मेरी आत्मा रहेगी सदा।–(संजय का कथन)

● 18 दिनों का लोमहर्षक संग्राम यह

मुझको दृष्टि देखकर और लेकर चला गया ।–(संजय का कथन)

● जिसने किया हो खुद वध

उसकी अंजलि का तर्पण

स्वीकार किसे होगा भला?–(युयुत्सु का कथन)

● मुझको है ज्ञात रीति केवल आक्रमण की

पीछे हटना मुझको या मेरे अस्त्रों को

मेरे पिता ने नहीं सिखाया ।–(अश्वत्थामा का कथन)

● कवच या मिथ्या था

केवल स्वयं किया हुआ

मर्यादित आचरण कवच है

जो व्यक्ति को बचाता है।–(विदुर का कथन)

● अट्ठारह दिनों के इस भीषण संग्राम में

कोई नहीं केवल मैं ही मरा हूं करोड़ों बार

जितनी बार जो भी सैनिक भूमिशायी हुआ

कोई नहीं था

वह मैं ही था।–(कृष्ण का कथन)

◆पाँचवाँ अंक

● सिंहासन प्राप्त हुआ है जो

यह माना कि उसके पीछे अंधेपन की

अटल परंपरा है।–(युधिष्ठिर का कथन)

●बंधु दुर्योधन!

जिसको देखते हुए तुम कितने भाग्यशाली थे

कि पहले ही चले गए

बाकी बचा मैं

देखने को अंधियारे में निनिर्मेष में भावी अमंगल युग।–(युधिष्ठिर का कथन)

● यह आत्महत्या होगी प्रतिध्वनित

इस पूरी संस्कृति में

दर्शन में,धर्म में, कलाओं में,

शासन व्यवस्था में

आत्मघाती होगा बस अंतिम लक्ष्य मानव का।–(कृपाचार्य का कथन )

●जीवन भर में

अंधे के अंधियारे में भटकता हूं

अग्नि है नहीं ,यह है ज्योतिवृत्त

देखकर नहीं यह सत्य ग्रहण कर सका तो आज

मैं अपने वृद्ध अस्थियों पर

सत्य धारण करूँगा

अग्निमाला-सा !–(धृतराष्ट्र का कथन)

● संजय!

उनसे कहना

अपने शाप की

प्रथम समिधा मैं ही हूं।–(गंधारी का कथन )

●जो जीवन भर भटके के अंधियारे में

उनको मरने दो

प्राणातक प्रकाश में ।–(गंधारी का कथन)

◆समापन

● मुझको मत बाँहे दो फिर भी मैं घेरे रहूंगा तुम्हें

मुझको मत नयन दो फिर भी देखता रहूंगा

मुझको मत पग दो लेकिन तुम तक मैं

पहुंच कर रहूंगा प्रभु!–(संजय का कथन)

●जीवन भर रहा मैं निरपेक्ष सत्य

कर्मों में उतरा नहीं

धीरे-धीरे खो दी दिव्य दृष्टि।–( संजय का कथन)

● आस्था नामक यह घिसा हुआ सिक्का

अब मिला अश्वत्थामा को

जिसे नकली और खोटा समझ कर मैं

कुड़े में फेंक चुका हूं बरसों पहले।–( युयुत्सु का कथन)

● अंधे युग में जब-जब शिशु भविष्य मारा जाएगा

ब्रह्मास्त्र से

तक्षक डसेगा परीक्षित को

या मेरे जैसे कितने युयुत्सु

कर लेंगे आत्मघात

उनको बचाने कौन आएगा।–( युयुत्सु का कथन)

● मैं हूं अमानुषिक अर्धसत्य

तर्क जिसका है घृणा और स्तर पशुओं का है।–( अश्वत्थामा का कथन )

●अंधा युग पैठ गया था मेरी नस- नस में

अंधी प्रतिहिंसा बन

जिसके पागलपन में मैंने क्या किया

केवल अज्ञात एक प्रतिहिंसा।-(अश्वथामा का कथन)

●होती होगी वधिको की मुक्ति

प्रभु के मरण से

किंतु रक्षा कैसे होगी अंधे युग में

मानव -भविष्य की

प्रभु के इस कायर मरण के बाद ?(युयुत्सु का कथन)