hello@mukhyansh.com

एक और द्रोणाचार्य : शंकर शेष : मुख्य अंश

एक और द्रोणाचार्य : शंकर शेष : मुख्य अंश
  • महत्वपूर्ण बिंदु:-
  • प्रकाशन-1977 (प्रकाशन वर्ष को लेकर मतभेद है।कुछ लोग 1971 भी इसका प्रकाशन वर्ष बताते हैं)
  • पैराणिक पात्र-
  • द्रोणाचार्य,एकलव्य,कृपी,अश्वथामा,भीष्म,अर्जुन,युधिष्ठिर,सैनिक।
  • आधुनिक पात्र-
  • अरविंद(प्रोफेसर),लीला(अरविंद की पत्नी),विमलेंदु(अरविंद का मरा हुआ दोस्त),यदु(अरविंद का मित्र),चंदु(छात्र),अनुराधा(चंदु की प्रेमिका),प्रेसिडेंट,राजकुमार(प्रेसिडेंट का बेटा)
  • नाटक दो भागों में विभाजत है।पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध
  • पूर्वार्द्ध में- 4 दृश्य
  • उत्तरार्द्ध में-7 दृश्य
  • नाटक में वर्तमान शिक्षक की तुलना उस द्रोणाचार्य से की जाती है।जिसने एक शिक्षक को अन्याय सहने की परंपरा दे डाली।
  • पौराणिक कथा में आधुनिक समस्या का हल ढूंढने का प्रयास किया है नाटककार ने।
  • महाभारत कालीन प्रसिद्ध पात्र द्रोणाचार्य के जीवन प्रसंगों को आधार बनाकर वर्तमान विसंगति को दिखाया गया है।
  • सामानांतर स्थितियों का सुसम्बद्ध नाटक है यह।
  • इस नाटक का उद्देश्य पौराणिक गाथा को दोहराना नही है बल्कि छोटे-से-छोटे मानवीय सत्य को खोजना है।
  • दोहरे कथाप्रसंग को लेकर चलने वाला नाटक।
  • शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्र्ष्टाचार का वर्णन।
  • सत्ता के दबाव में आदर्शों,सिद्धांतों को ताक पर रखने की कहानी भी है यह।

  • लीला का कथन– तुम्हें यह नौकरी किसके कारण मिली?यह मकान अस्पताल में सुविधाएं कौन दिलवा रहा है?
  • यदु का कथन-अब तुम्हीं बचे हो,साले,ईमानदारी और सच्चाई की औलाद!आराम से रहना किस्मत में बदा हो तब न!
  • यदु का कथन– पहले अपनी चमड़ी बचाओ और तब लगाओ हाथ दूसरों को।
  • यदु का कथन– मां कैंसर से अस्पताल में पड़ी है।विधवा बहन हर पहली तारीख को तुम्हारे मनीआर्डर का इंतजार करती है।लड़के को मेडिकल कॉलेज भेजना है।इनकी तरफ देखो।छोड़ो यह सिद्धांत उद्धांत की मूर्खता।
  • लीला का कथन-जानते हो किस तरह घसीट रही हूं तुम्हारी गृहस्थी की गाड़ी?
  • अरविंद का कथन– अब किस-किस से डरूँ लीला?कॉलेज को दुकान की तरह चलाने वाले उस प्रेसिडेंट से?अंगूठा छाप कमेटी-मेंबरों से?चुगली खाने वाले अपने सहयोगियों से?उस लिजलिजे बेहूदे प्रिंसिपल से?विद्यार्थियों से?क्या पूरी उम्र डरते ही रहना होगा?
  • प्रिंसिपल का कथन– इसीलिए तो कहता हूं,नौकरी है तो कान बंद कर लो।आंखें मूंद लो मुंह खुला रखो।बोलने के लिए नहीं,रोटी खाने के लिए।
  • प्रिंसिपल का कथन-लीला के प्रति- सोचो तो घर अंधेरा रखकर मंदिर में दीया जलाने से कोई फायदा होगा?
  • प्रिंसिपल का कथन-लीला के प्रति- केवल औरत ही मर्द को समझा सकती है।
  • लीला का कथन-अरविंद के प्रति– कभी सोचा?इस घर में अकेले कौन जिया है?तुम केवल तुम।हमलोगों को कभी अपने अस्तित्व की जानकारी ही नहीं हुई।तुम तय करते रहे कि हम लोग कैसे जियें और हम लोग उसी तरह जीते रहे लेकिन अब यह नहीं होगा।
  • चंदू का कथन-(राजकुमार के लिए कहता है) वह प्रोफेसरों को अपने बाप का नौकर समझता है और कॉलेज को अपनी जायदाद।
  • अरविंद का कथन-प्रेसिडेंट के प्रति- आपकी भाषा क्या धमकी की भाषा नहीं होती?आप जो कहते हैं क्या वही नियम नहीं होता?
  • यदु का कथन-अरविंद के प्रति– राजकुमार का विरोध करोगे तो हत्या।चंदू का विरोध करोगे तो सामाजिक हत्या।हत्या से बच नहीं सकते तुम।
  • विमलेंदु– मृत्यु ने उतार कर रख दिया।चेहरे केवल जिंदा रहते बदले जा सकते हैं।एक…दो…दस…सौ।पर मृत्यु चेहरा हमेशा उतार कर रख देती है।
  • विमलेंदु-का कथन-अरविंद के प्रति– बेवकूफ,बलिदान शब्द वापस ले।मैं तुम्हारे क्लास-रूम में बैठा फर्स्ट-ईयर का लौंडा नहीं हूं जो वजनी शब्दों के माया-दर्पण में अपना चेहरा झांकने लगूँ।मैं शब्दों से परे हूँ।शहरों से परे हूँ।
  • विमलेंदु– और नहीं तो मेरी कोई उम्र थी मरने की।तीन साल पहले शादी हुई थी।फूल सी बच्ची पत्नी का उबलता हुआ प्यार।नाटक की दुनिया में नाम पैदा करने की ख्वाहिश।सब धरा का धरा रह गया।
  • कृपी– विश्वास क्यों होगा कभी अपने लड़के की हड्डियां गिनी तुमने?भिखमंगे का लड़का कहलाता है तुम्हारा बेटा। मुझसे पूछो कैसे जुटाती हूँ दो जून की रोटी।
  • कृपी– मैं कहां कहती हूं कि अपमान का घूँट पियो।द्रुपद से बदला जरूर लो पर उतावली में नहीं,योजना बनाओ।उसका नाश उसकी जाति के लोगों से ही कराओ।
  • द्रोणाचार्य- शास्त्रों के अनुसार मेरी विद्या केवल ब्राह्मणों और क्षत्रियों के लिए है।
  • एकलव्य– लेकिन जन्म पर तो मेरा कोई अधिकार नहीं था। जन्म से पहले अपने माता-पिता तय करने की सुविधा क्या प्रकृति भी देती है?
  • द्रोणाचार्य– धर्म की व्यवस्था के लिए।जानते नहीं शूद्रों और वनवासियों को धनुर्विद्या की शिक्षा नहीं दी जा सकती।
  • द्रोणाचार्य– एकलव्य का अंगूठा बने रहने का अर्थ समझते हो?धनुर्विद्या पर उसका अधिकार हो जाएगा।धीरे-धीरे उसकी जाति का अधिकार हो जाएगा।शक्तिशाली होने के बाद यह क्षत्रियों से स्पर्धा करेंगे और परिणाम होगा वर्णाश्रम धर्म पर संकट।
  • अर्जुन– इतिहास कल भी हंसेगा आप पर।जब भी प्रतिभा को जाति और व्यवस्था के नाम पर कुचला जाएगा तो लोग आपको ही याद करेंगे।इतिहास आपको कभी क्षमा नहीं करेगा।
  • अरविंद का कथन-लीला से– क्या सुविधाओं ने तुम्हारी संवेदना को इतना मार डाला है?
  • प्रेसिडेंट– अपराध की सार्वजनिक तौर पर स्वीकृति राजनीति में आत्महत्या कहलाती है।
  • अनुराधा– सभी पुरुष नामर्द नहीं हो गए हैं,सर।मुझे अपनाने वाला भी कोई है।उसका प्रेम मुझे लड़ने की ताकत देगा।
  • विमलेंदु– अनुराधा के बाप ने अपना विरोध पाँच हज़ार रुपयों में बेच दिया था।लड़की को रातों-रात दूसरे गांव भेजने की योजना बन चुकी थी।
  • विमलेंदु– आत्मा क्या चीज होती है।केवल शरीर सत्य है।आत्मा-वात्मा सब बकवास।
  • विमलेंदु– प्रायश्चित ही करना है तो तुम भी आत्महत्या करो। लेकिन उसकी जरूरत नहीं।स्त्री का अपमान कोई नयी बात नहीं।यह तो होता ही रहा है।क्या तुम्हारा द्रोणाचार्य कौरवों की दासता छोड़कर चला गया?क्या उसने तलवार उठायी। मेरा नाटक याद क्यों नहीं करते?द्रौपदी का सार्वजनिक रूप से अपमान हुआ द्रोणाचार्य वहीं खड़ा था।वह चुप क्यों रहा?
  • अश्वत्थामा– क्या दुर्योधन आपका कहना नहीं मानेगा? आपको तो सत्ता का मोह नहीं है।क्या आप अपने शिष्यों की पत्नी को सार्वजनिक रूप से अपमानित होते देख सकते हैं? उठाइए अपना धनुष।पर आप चुप रहे।क्यों?
  • कृपी– अपना नपुंसक आचरण ढकने के लिए मुझ पर आरोप लगाते हुए तुम्हें थोड़ी भी लज्जा नहीं आती?
    मैं पूछती हूं तुम्हारा आचार्यत्व कहाँ मर गया?
  • कृपी– तुमने चुप रहकर शिक्षक को अन्याय पीने की परंपरा दे दी।आने वाला इतिहास तुम्हें कोसेगा।
  • द्रोणाचार्य– युद्ध सर्वनाश!मेरी दी हुई विद्या सहस्त्रों बलिदान लेगी,क्योंकि मैंने केवल शस्त्र चलाने की शिक्षा दी है।मैंने उसके आगे ऐसा कुछ नहीं सिखाया है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है।
  • विमलेंदु का कथन है अरविंद से– यदि व्यवस्था तुम्हें अपने इशारे पर भौंकनेवाला कुत्ता बनाना चाहती है तो भौंको,कुत्ते के पिल्लो को जन्म दो।चंदू और युधिष्ठिर मत पैदा करो।राजकुमार और दुर्योधन पैदा करो…
  • विमलेंदु– तू द्रोणाचार्य है।व्यवस्था और सत्ता के कीड़ों से पिटा हुआ द्रोणाचार्य- इतिहास की धार में लकड़ी के ठूंठ की तरह बहता हुआ,वर्तमान के कगार से लगा हुआ सड़ा गला द्रोणाचार्य।