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लिंग-परिवर्तन और भारतीय समाज:सोनम कुमारी

लिंग-परिवर्तन और भारतीय समाज:सोनम कुमारी

लिंग-परिवर्तन जानने से पहले हमें ‘सेक्स’ और ‘जेंडर’ विभेद जानना जरूरी है।सेक्स प्रकृति प्रदत्त होता है और जेंडर समाज व संस्कृति प्रदत्त।जब कोई व्यक्ति सामाजिक पहचान और प्रकृति प्रदत्त पहचान के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पाता, चिकित्सीय भाषा में उसे ‘आईडेंटिटी डिसऑर्डर'(Identity disorder) कहते हैं।आईडेंटिटी डिसऑर्डर होने पर एक लड़का, लड़की की तरह और एक लड़की लड़के की तरह जीना चाहती है यानी वे ऑपोजिट सेक्स में खुद को ज्यादा सहज पाते हैं। कई पुरुषों में बचपन से ही महिलाएं जैसी और कई महिलाओं में पुरुषों जैसे गुण होते हैं।
जैसे- किसी पुरुष का महिला की तरह चलना, उसी की तरह हावभाव रखना। ऐसा ही, महिलाओं के साथ भी होता है जिसमें वह पुरुषों की तरह जीना चाहती हैं। इस वजह से व्यक्ति अपने ‘प्राकृतिक पहचान’ और ‘सामाजिक पहचान’ में फंसा रहता है।उसके भीतर एक द्वंद चलता रहता है, जिसके कारण वह अपने-आप से, अपने परिवार से तथा समाज से जूझता रहता है। ऐसे में परिवार और समाज की भूमिका उस व्यक्ति के प्रति अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।

चूँकि भारतीय समाज 'द्विलिंगी' मानकों पर आधारित है, ऐसे में द्विलिंगी मानकों से इतर शारीरिक-मानसिक पहचान वाले व्यक्ति को समाज में स्वीकृति मिल पाना कठिन हो जाता है। व्यक्ति की समस्याओं को समझने के बजाय समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है, उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता है। समाज उस व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह इस दुनिया का ‘व्यक्ति’ ही न हो,किसी और दुनिया से आया हो। अपने प्रति ऐसे व्यवहार से व्यक्ति अपने-आपको उस जगह में फिट नहीं कर पाता और अपने लिए एक ऐसी जगह चुनता है, जहां उसे समझा जा सके, अपनाया जा सके।ऐसी जगह न मिलने पर व्यक्ति या तो अवसाद में चला जाता है या फिर 'आत्महत्या' का प्रयास करता है। जो इन सबों से बच निकलते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं, वे 'लिंग-परिवर्तन' करवाते हैं ताकि उन्हें भी सामाजिक व पारिवारिक स्वीकृति मिल सकें।वे भी अपना जीवन सामान्य-व्यक्ति की तरह जी सकें।लिंग- परिवर्तन की ओर अग्रसर होने के लिए ये परिस्थितियां एक पृष्ठभूमि के तौर पर काम करती है।

टेक्नोलॉजी के विकास ने लिंग-परिवर्तन जैसे नामुमकिन चीज को भी मुमकिन बनाया है।लिंग-परिवर्तन करवाने के लिए सेक्स 'रीसाइनमेंट सर्जरी' करवानी पड़ती है।रिसाइनमेंट सर्जरी सबसे पहले (1930) में ‘जर्मनी’ के एक पुरुष ने महिला (लिली एल्बे) बनने के लिए करवाया था। इस सर्जरी को करवाने से पहले मनोरोग विशेषज्ञ से अनुमति लेनी पड़ती है कि वाकई उस व्यक्ति को ‘जेंडर डायसोफोरिया’ है या नहीं। इस प्रक्रिया के दौरान विशेषज्ञ द्वारा उस व्यक्ति का डिटेल असेसमेंट किया जाता है।यह असेसमेंट 18 साल की उम्र के बाद ही किया जाता है।क्योंकि इससे पहले की उम्र वालों को मानसिक तौर पर तैयार नहीं माना जाता।इस सर्जरी के दूसरे चरण में व्यक्ति के लिंग के साथ,चेहरे,बाल,नाखून,कान आदि के शेप को सर्जरी द्वारा बदल दिया जाता है।इसके कुछ समय बाद 'हार्मोन थेरेपी' दिया जाता है।जिससे व्यक्ति के हावभाव आवाज में परिवर्तन आता है। अब सवाल यह उठता है कि “सेक्स चेंज कौन करवाते हैं और क्यों करवाते हैं?”

जो व्यक्ति 'जेंडर डायसोफोरिया' से जूझ रहे होते हैं वही अपना 'लिंग-परिवर्तन' करवाते हैं।इन लोगों का मानना है कि उनकी शारीरिक पहचान तो पुरुषों का होता है लेकिन आंतरिक पहचान स्त्रियों का।अपने आंतरिक तथा शारीरिक पहचान को एक करने के लिए ‘लिंग परिवर्तन’ करवाते हैं।ताकि वह अपने आप को पूर्ण महसूस कर सके।इसके बाद ज़्यादातर 'एलजीबीटी समुदाय' द्वारा 'लिंग-परिवर्तन' करवाया जाता है।आज विमर्शों के दौर में लोग अपनी पहचान को बनाये रखना चाहते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने आप को पूर्ण करने के लिए तथा समाज की उपेक्षा और अपमान से बचने के लिए 'लिंग-परिवर्तन' करवाते हैं ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें और समाज में उन्हें भी समान भाव का दर्जा मिले। अन्य लोगों की भांति उन्हें भी सामाजिक न्याय व स्वीकृति मिल सकें।

बेरोजगारी की समस्या के कारण भी आजकल कुछ लोग लिंगोच्छेदन के जरिए अपना पेट भरते है। कुछ लोग ट्रांसजेंडर समुदाय में रहकर तथा उनके तरीके से जीविकोपार्जन करते हैं।

भारतीय समाज में पुत्र-प्राप्ति की कामना रखने वाले व्यक्ति भी ‘लिंग-परिवर्तन’ करवाते हैं।हाल ही के एक अंग्रेजी दैनिक अखबार ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि किस प्रकार इंदौर( मध्य प्रदेश) में 5 वर्ष तक की बालिकाओं का लिंग-परिवर्तन कराकर उन्हें बालकों में रूपांतरित किया जा रहा है।हमारे समाज मे स्त्रियों के प्रति नज़रिया ठीक नही है। उन्हें दोयम दर्जे का समझा जाता है। जन्म लेने से पहले ही उन्हें गर्भ में मार दिया जाता है।इसके लिए सरकार ने कई कानून बनाये है ताकि इन्हें सुरक्षित रखा जाए ,लेकिन जब तक लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा, तब तक लड़कियों का अस्तित्व खतरे में ही रहेगा।भ्रूण हत्या न सही लिंग-परिवर्तन द्वारा उनकी पहचान को खत्म कर दिया जा रहा है।जाहिर है यह ऑपरेशन एक अधूरे शरीर या व्यक्तित्व को सामान्य शरीर या व्यक्तित्व देने के लक्ष्य से किया जाता है लेकिन इंदौर जैसे शहरों में लालची डॉक्टर इसका दुरुपयोग करके बेटी से ज्यादा बेटों को तरजीह देने वाली बीमार मानसिकता के लोगों की मनोकामना पूरी करती हैं। जिसका प्रभाव हमें समाज के विभिन्न हिस्सों पर देखने को मिलता है।आज हरियाणा, राजस्थान तथा पंजाब जैसे राज्यों में स्त्री-अनुपात घटने पर देश के विभिन्न भागों से लड़कियां खरीद कर लाई जा रही है ताकि वधू की कमी को पूरा किया जा सकें।

जहां तक समाज में लिंग-परिवर्तन कराने वालों की स्वीकृति का सवाल है तो ये आसान नहीं है।समाज में मुख्यतः दो तरह के वर्ग होते हैं- जो अलग-अलग तरीके से स्वीकृति देते हैं।उच्च वर्ग के लोगों को निम्न वर्ग की अपेक्षा आसानी से स्वीकृति मिल जाती है लेकिन उन्हें भी पूर्ण रूप से स्वीकृति नहीं मिल पाती है।जैसे- करण जौहर को ले लीजिए।किसी भी कार्यक्रम में उन पर जोक्स व कमेंट पास कर ही दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ निम्न वर्ग है जो एलजीबीटी समुदाय को ही ‘हिजरा’ मानते हैं।उन्हें इन समुदाय में भेद तक नहीं पता होता है।जिस प्रकार समाज किन्नरों को हेय और उपेक्षा की दृष्टि से देखता हैं,उनका मजाक बनाता हैं, उन्हें परेशान व अपमानित करता हैं,उसी प्रकार 'लिंग-परिवर्तन' तथा अन्य पहचान रखने वाले लोगों के साथ भी समाज अमानवीय व्यवहार करता है। इन समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई तरह के नियम व कानून बनाये गए है तथा प्रशासनिक व्यवस्था की गई है लेकिन जो कानून उनकी सुरक्षा के लिए बनाये जाते हैं, उन्हीं कानूनों की सुरक्षा करने वाले लोग उनका अपमान करते हैं।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 'लिंग-परिवर्तन' सामाजिक-विषमता और व्यवस्था में व्याप्त स्त्री-पुरुष संबंधों की अति जटिलता का परिणाम है।

सोनम कुमारी

छात्रा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली