बकरी:सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
महत्वपूर्ण बिंदु:-
1.प्रकाशन-1974
2.अंक-2
3.प्रत्येक अंक में-3-3 दृश्य
4.पात्र -नट,नटी,भिश्ती,[दुर्जनसिंह,कर्मवीर,सत्यवीर-धर्म, शोषण, नेतागिरी का प्रतिनिधित्व करने वाले】सिपाही, विपति(जिसका बकरी होता है),नवयुवक,काका,काकी,चाचा,राम,एक ग्रामीण,दूसरा ग्रामीण।
5.मुख्य बातें-
●इस नाटक की रचना उत्तरप्रदेश की ‘नौटंकी’ शैली में की गयी है।
●इसमें दोहा,चौबोला,बहरेतबील, कहरवा
आदि छंदों का प्रयोग किया गया है।
●रंगमंच की दृष्टि से यह नाटक मुक्तकाशी रंगमंच
की परम्परा का निर्वाद करती है।
●राजनीतिक व्यंग्य का नाटक
●जनवादी चेतना का नाटक
●आम आदमी की व्यथा की कहानी
●बकरी आम आदमी का प्रतीक
●भ्रष्टाचार और विसंगति का चित्रण
●ईश्वर के नाम पर लोगों के मन में जो श्रद्धा उपजती है उसका वर्णन
●गाँधी के नाम पर सत्ता तो हथिया लेते हैं,लेकिन उनके सिद्धांतों को किस तरह मटियामेट करते हैं उसका वर्णन।
●ग्रामीण जनों की जागृति के उद्देश्य से लिखा गया है।
●1975 में आपातकाल से 1 वर्ष पहले यह नाटक प्रकाशित हुआ था।
◆नाटक के सम्बन्ध में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का कथन-“यह नाटक हमारी स्वाधीनता की तलछट का चित्र है।वह तलछट जो समय बीतने के साथ गहरी होती गयी है।”
इस नाटक के बारे में-
यह नाटक इब्राहीम अल्काज़ी के साथ बातचीत के बाद लिखा गया था कि हिंदी में आम आदमी का समसामयिक नाटक नहीं है।
यह नाटक ना लिखा जाता: (1.) यदि हिंदी में कोई ऐसा नाटक होता जिसमें जनचेतना को लोकभाषा और लोकरूपों के माध्यम से सामाजिक अन्याय के साथ जोड़ने का एक नया व्याकरण देखने को मिलता।
(2.) यदि हिंदी के तथाकथित श्रेष्ठ नाटक बड़े प्रेक्षाग्रहों भारी तामझाम और विद्वत प्रेक्षक समाज के मोहताज न होते।
(3.) यदि हिंदी के नाटककार यशः पार्थी न होकर आम-आदमी की पीड़ा आम आदमी की जबान में आम आदमी के बीच ले जाना हिंदी रंगमंच के लिए आज अनिवार्य मानते।
यह नाटक जितना ही गांवों, कस्बों मज़दूर बस्तियों और स्कूलों-कॉलेजों में खेला जाएगा उतना ही इसका उद्देश्य पूरा होगा।
◆भूमिका दृश्य
●नटी- सदा भवानी दाहिने सन्मुख रहे गणेश।
पांच देव रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश।।
●नट-पांच देव सम पांच दल,लगी ढोंग की रेस
जिनके कारण हो गया देश आज परदेस।
(यहाँ आध्यात्मिक और भौतिकवादी विचारधारा का अंतर्विरोध है)
●नट– नहीं भवानी,यह तो वंदना थी,मंगलाचरण।आम आदमी की हालत देखते हुए आम आदमी की ओर से।
1.पहला अंक
●पहला दृश्य
(एक भिश्ती मशक लादे सड़क सींचता गा रहा है)
●”बकरी को क्या पता था
मशक बन के रहेगी”
●”मार के भी बुझाएगी
वह प्यास तुम्हारी।”
●दुर्जनसिंह– होश में आओ दीवान जी,अब हम डाकू नहीं,शरीफ आदमी है।
●दुर्जनसिंह– यह कैसे हो सकता है दीवान जी।तुम तब भी हमारे थे,अब भी हमारे हो।
●”तेरी किरपा के बिना,हे प्रभु मंगलमूल,
पता तक हिलता नहीं, फंसे न कोई फूल।”
●दुर्जन– हम मालामाल होंगे।
●सत्यवीर– हमारी इज्जत होगी।
●कर्मवीर– जनता हमारे इशारे पर नाचेगी।
●दुर्जन– गांधीजी की बकरी है।
●दुर्जन(कुर्सी,धन,प्रतिष्ठा
)-गाँधी जी के बकरी के देने के सम्बंध में।
●दोनों– हम मानेंगे तो लोग भी मानेंगे।अपना मन चंगा,कठौती में गंगा।
●सिपाही– जब कुत्तों का खानदान होता है तो बकरी का क्यों नहीं हो सकता?
●औरत- जमींदार साहब बीस रुपिया देत रहेन हम नाहीं दिया,हम को,बच्चों को,जान से पियारी है।हम गरीब आदमी हैं,दुइ बखत दूध…
●सिपाही – यह 55 करोड़ की बकरी है।
●पूजा गीत- “तन मन धन उन्नायक जय हे
जय जय बकरी माता!“
●कर्मवीर– लेकिन जब सवाल मर चुके हों तो जवाब कहां से मिलेगा।पेट भी वही बजा सकता है जिसकी आत्मा में जान हो।
●दुर्जन– ऐसे लोगों की दुनिया में कमी नहीं जो कहेंगे यह बकरी उनकी है।पर इतिहास को झुठला या नहीं जा सकता।
●सत्यवीर– इसीलिए कह रही है तू कि यह तेरी बकरी है?पेट से ज़्यादा तूने कुछ पहचाना ही नहीं।
●कर्मवीर– जो इतिहास को झूठलाता है वह समाज द्रोही है, देशद्रोही है।समय उसे कभी माफ नहीं करेगा।
●सत्यवीर– गरीबी!इस बकरी ने तुझे नहीं बताया कि गरीबी केवल मन की होती है,गरीबी केवल विचारों की होती है,सृष्टि की होती है जानती है।और गांधीजी केवल छः पैसे में गुजर करते थे।
●औरत– हम देश में नहीं रहित हुजूर गांव में रहित है।
●सिपाही– हुक्म हो तो इसे भारत सुरक्षा कानून,निवारक नज़रबंदी कानून,अपराध संहिता की बकरी धारा के अधीन…
●कर्मवीर– लोकतंत्र जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा…
●दुर्जन– यदि उसका मान नहीं हुआ तो क्या गांव वालों को शांति मिलेगी?दिल पर हाथ रखकर भगवान का नाम लेकर बताइए,क्या शांति मिलेगी?
●तीसरा ग्रामीण– महामारी फैल रही है आदमी,मवेशी पटाफट मर रहे हैं।
●कर्मवीर– सिपाही,सार्वजनिक संपत्ति हड़पने के आरोप में इस औरत को दफा एक्स क्यू जीरो के अधीन दो साल सख्त कैद की सजा दी जाती है।साथ ही पांच सौ रुपया जुर्माना।न देने पर छः महीने की कैद बामशक्कत।
●नट गायन
“दौलत की है दरकार ए सरकार आपको,
सबको उजाड़ चाहिए घरबार आपको।”
◆दूसरा दृश्य
(चौपाल का दृश्य शाम का समय कुछ ग्रामीण चिंतामन बैठे हैं।एक युवक का प्रवेश।)
●ग्रामीण औरत– मरदन के बीच हम का बोलित?
●युवक– आज बकरी गांधी जी की हुई,कल को गाय कृष्ण जी की हो जाएगी,बैल बलराम जी के हो जाएंगे।ये सब ठग हैं ठग…
●युवक– पर झूठ बोलने वाले से झूठ सहने वाला ज्यादा बड़ा पापी होता है।
●युवक– मैं आसरम में आग लगाऊंगा।
●युवक– बाबा हम समझ नहीं पा रहे हैं, ई सब ठग है,आप सबको सीधे आदमी जान ठगी करते हैं,देश में ई ठगी बहुत चल रही है।सूखा,महामारी,अन्न-जल की तबाही सब इन्हीं लोगों की बजह से है।
●दूसरा ग्रामीण– ई गरम खून है बचवा जो चहकाय रहा है। जो बड़ा बन के आया वह बड़ा बनके रहेगा।
●दूसरा ग्रामीण– बरगद,बरगद है बेटा,पीपल,रेंड रेंड।पेड़ वैसे सब हैं।
●युवक– हमें ना ऊपर जाना है ना नीचे बराबर रहना है।
●नट गायन
●“एक नारा ढलता है हर नई बर्बादी के बाद
आश्रम ही आश्रम खुल गए आजादी के बाद।”
नट- ”सेवा यहां पर स्वार्थ है स्वार्थ है
औ’ स्वार्थ ही परमार्थ है।
कोई किसी से है न कम
है देश के फूटे करम।”
*तीसरा दृश्य
(दुर्जनसिंह एक बड़े बक्स पर बैठा है जिस पर लिखा है 'बकरी स्मारक निधि'
।बक्स के एक कोने में एक कड़ी कीप लगी है।जिसमें ग्रामीण एक-एक कर पंक्तिबद्ध आते हैं और धन डालते हैं।फिर मंडलाकार बकरी के चारों ओर घूमते हैं और पूजा गीत गाते हैं)
●दुर्जन– बकरीवाद और विश्वशांति।मानवता को आगे बढ़ाने का विचार।सारा विश्व हमारा है।
●सिपाही– तिजोरी बढ़ती हो तो काम की चिंता नहीं।
●दुर्जन– अब तुम लोग अपनी तैयारी करो और दीवान जी, गांव वालों को बता दो कि यदि कर्मवीर को वोट नहीं दिया तो… खैर तुम समझदार हो दीवान जी सारे हथकंडे तुम जानते ही हो।
●नट गायन
नट- “बीते जिंदगी जिसको सहते
क्यों डरे हम उसे आज कहते
जल रहा हो अगर आशियाना
पड़ेगा चिल्लाना।
◆दूसरा अंक: पहला दृश्य
(दो साल बाद स्थान वही।पर समृद्धि का सूचक।एक कोने में कुछ बंदूके रखी हैं।बकरी के मंडप को काली दीवारों से घेरकर ताला लगा दिया गया है,पर ‘लोक सेवा सदन’ की तख्ती लटकी है।कीप को बक्स में से निकाल दूरदर्शक यंत्र की तरह दरवाज़े के पास एक छेद में लगा दिया गया है। ग्रामीण पंक्ति-बद्ध एक-एक कर उसमें देखते हैं)
●कर्मवीर– हम जन्म के ठाकुर हैं।कर्म से ब्राह्मण और सेवक हरिजनों के हैं।हमें सबका वोट मिलना चाहिए।
●युवक– इलाज आपके पास हर चीज का है।गरीबी और अन्याय का नहीं है बस।
●कर्मवीर – नक्सलवादी है क्या बे।
●सिपाही-सर अब मैं डीआईजी हूं
●नट गायन-
“जिसकी लेते हैं शरण उसको ही खा जाते हैं लोग,
जिसका थामा हाथ,उसका ही लगा जाते हैं भोग।”
◆दूसरा दृश्य
(एक जुलूस नारे लगाता आता है,’जीत गया भाई जीत गया, बकरी वाला जीत गया।’ कर्मवीर जिंदाबाद….)
●युवक– आप लोगों का अज्ञान जेहल ही है,
अब ये जीत के और लूटेंगे,पहले बकरी का नाम लेकर लूटते थे अब आपका ही नाम लेकर लूटेंगे)
◆तीसरा दृश्य
(भोज का दृश्य।शेरवानी में एक गुलाब लगाए एक बड़े नेता और उनके साथ एक नेत्री आती है।सब खड़े हो जाते हैं।बाहर दो पुलिस के आदमी बंदूक लिए तैनात हैं)
●दुर्जन– हमने खून पसीने से इस इस धरती को,इस देश की धरती को सींचा है और ऐसी घास उगाई है जो हमेशा हरी-भरी राहेगी और युगों तक चरे जाने पर ख़त्म नहीं होगी।
●भिश्ती–
“उसके ही खूं के रंग से इतराएगा गुलाब
दे उसकी मौत जाएगी हर दिल अजीज़ ख़्वाब।”
●कर्मवीर-यह धरती चारागाह है जिसकी घास जितना रौंदो उतना ही पनपती है।
●कर्मवीर– दाँत तेज़ और मजबूत हों,घास हरी और कोमल हो,फिर धरती चारागाह से ज़्यादा कुछ नहीं हो पाएगी।शुरू कीजिये, इस जनता,इस चारागाह के नाम पर…
युवक–
“बहुत हो चुका अब हमारी है बारी,
बदल के रहेंगे ये दुनिया तुम्हारी!”