“कर्ण को आधार बनाकर भारतीय साहित्य में तमाम ग्रंथ रचे गए, भारतवर्ष की परम्परा और संस्कृति में अपनी आस्था रखने वाले हिन्दी भाषा के श्रेष्ठ रचनाकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने रश्मिरथी की रचना की तो कन्नड़ भाषा के आदि कवि जैन धर्म में आस्था रखते हुए भी भारतीय सनातन पात्रों में कर्ण को आधार बनाकर महाभारत की रचना की”
“मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।”
–‘दिनकर’
कर्ण मानव इतिहास में उस परशुराम के शिष्य हैं जिन्होंने अपने जीवन में अपना सबकुछ जातिवाद के खिलाफ लड़ते हुए खो दिया था…जिन्होंने सहस्त्रबाहु का उसके कुल सहित वध किया क्योंकि सहस्त्रबाहु ने समाज में जातीय संकीर्णताओं के बीज बोने का काम सबसे पहले किया था… उसके भी अपने निहित स्वार्थ थे और आज भी जाति को आधार बनाकर अपने जीवन मूल्य निर्धारित करते हैं उसके मूल में भी उन व्यक्तियों के निहित स्वार्थ छिपे होते हैं खैर…
महाभारत की पूरी कथा में कर्ण का किरदार उसे पहली पंक्ति के उन सभी योद्धाओं से कहीं बेहतर बनाता है जो अपने पराक्रम से दिग्विजयी योद्धा हुए।
कर्ण सूर्य – कुंती के पुत्र थे और उनका पालन शूद्र परिवार में होता रहा लेकिन कर्ण के पराक्रम के ही कारण भरत वंशियों में श्रेष्ठ माने जाने वाले पितामह भीष्म ने स्वयं कहा था ‘जन्म’ से कोई किसी जाति का नहीं होता तुमने अपना जीवन एक क्षत्रिय की भांति जिया है।
कर्ण दानियों में दानवीर माने जाते रहे उनके सामने पूरे भारतवर्ष में कदाचित ही कोई दानी हुआ होगा।
मित्र धर्म का पालन करने वालो में मानव इतिहास का सबसे सम्मानित नाम निसंदेह ‘कर्ण’ का ही है, जिसे अपने मित्र की सभी अच्छाइयों बुराइयों का अच्छे से भान है लेकिन परछाई की तरह मित्र का साथ देने में कर्ण ने अपना कर्तव्य समझा और निभाया…अपनी वास्तविक पहचान जान लेने के बाद भी कर्ण ने धर्म का साथ दिया और कृष्ण को यह कहते हुए लौटा दिया कि यदि मैं अपनी इस वास्तविकता को अपना भी लूँ और इंद्रप्रस्थ का राज्य भी पा जाऊं तो उसे दुर्योधन को समर्पित कर दूंगा।जबकि वर्तमान समय में राजा बनने योग्य तो युधिष्ठिर ही है।
द्वापर युग में भगवान श्री विष्णु के अवतार कृष्ण ने स्वयं कई अवसरों पर जिसे अपनी प्रशंसा से सम्मानित किया वो भी ‘कर्ण’ है।
आत्मसम्मान और स्वाभिमान साथ जीवन जीने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए कर्ण एक आदर्श प्रतीक के रूप में सम्मान के साथ याद किए जाएंगे।
कर्ण ने एक मनुष्य के रूप में दुर्योधन की मित्रता की वेदी पर तमाम अपराध भी किए थे लेकिन उन अपराधों के नियत दंड थे पर उसके जीवन में उसने एक अपराध ऐसा किया भी किया था जिसके कारण वह उम्र भर के लिए धर्म विमुख कर दिया और वो अपराध था उसका भरत वंश की कुल वधू द्रौपदी को वैश्या बोलना… किसी भी स्त्री का इस प्रकार अपमान करना अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है फिर भले ही वो वैश्या ही क्यों न हो क्योंकि वैश्या भी एक स्त्री है उसका भी आत्मसम्मान होता है,,, वह भी जीवनदायिनी हो सकती है।
ये पौराणिक कहानियां जंबू द्वीप के भारतवर्ष बनने के उपरांत की कहानियां हैं जिनके लिए मान्यता है कि ये सदैव मानव जाति का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी… भारत देश के इतिहास में हिमालय से लेकर समुद्र पर्यन्त भूमि को भारत की भूमि और इस भूमि पर बसने वाली मानव जाति को इस भूमि की संतान होने के चलते भारतीय कहा जाता है और मानव जाति का भरण – पोषण करने वाली इसकी उर्वरा भूमि को भारत माता कहकर पूजा जाता है ऐसी भूमि पर अग्निगर्भ से उत्पन्न स्त्री को इस प्रकार अपमानजनक शब्दों से संबोधित करने के कारण ही कर्ण अनुकरणीय नहीं रह जाते…
अमृताश त्रिपाठी
छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय