hello@mukhyansh.com

NET/JRF हिंदी सम्पूर्ण कहानी:मुख्य अंश

NET/JRF हिंदी सम्पूर्ण कहानी:मुख्य अंश

1. चन्द्रदेव से मेरी बातेंबंग महिला

  • इस सृष्टि के साथ ही साथ अवश्य आपकी भी सृष्टि हुई होगी 
  • क्या आपके डिपार्टमेण्ट (महकमे) में ट्रांसफ़र (बदली)होने के नियम नहीं हैं ? क्या आपकी ‘गवरमेण्ट’ पेंशन भी नहीं देती ? बड़े खेद की बात हैं ? यदि आप हमारी न्यायशीला ‘गवर्नमेण्ट’के किसी विभाग में सर्विस (नौकरी) करते होते तो अब तक आपकी बहुत कुछ पदोन्नति हो गई होती।
  • देवता भी अपनी जाति के कैसे पक्षपाती होते हैं।
  • यदि आपसे सारे हिन्दोस्तान का भ्रमण शीघ्रता के कारण न हो सके तो केवल राजधानी कलकत्ता को देख लेना तो अवश्य ही उचित है ।वहाँ के कल कारखानों को देखकर आपको यह अवश्य ही कहना पडे़गा कि यहाँ के कारीगर तो विश्वकर्मा के भी लड़कदादा निकले।
  • शायद आप पर यह बात भी अभी तक विदित नहीं हुई कि आप ,और आपके स्वामी सूर्य भगवान पर जब हमारे भूमण्डल की छाया पड़ती हैं,तभी आप लोगों पर ग्रहण लगता है।

2. दुलाईवालीबंग महिला

  • उनकी हँसी मुझे नहीं भाती थी-जानकी का कथन है नवलकिशोर के लिए।
  • नाहक बिलायती चीजें मोल लेकर क्‍यों रुपये की बरबादी की जाय। देशी लेने से भी दाम लगेगा सही; पर रहेगा तो देश ही में।-वंशीधर का कथन
  • देखने में तो यह भले घर की मालूम होती है, पर आचरण इसका अच्‍छा नहीं।-वंशीधर अपने मन में दुलाईवाली के लिए यह सोचता है।
  • “अरे तुम क्‍या जानो, इन लोगों की हँसी ऐसी ही होती है। हँसी में किसी के प्राण भी निकल जाएँ तो भी इन्‍हें दया न आवे।-वंशीधर और नवलकिशोर के लिए जानकी का कथन

3. एक टोकरी भर मिट्टीमाधवराय सप्रे

  • उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी।
  • महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्‍हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ।-विधवा का कथन

4. कानों में कंगनाराजा राधिकारमण प्रसाद सिंह

  • उसे वन के फूलों का भोलापन समझो। नवीन चमन के फूलों की भंगी नहीं; विविध खाद या रस से जिनकी जीविका है, निरन्तर काट-छाँट से जिनका सौन्दर्य है, जो दो घड़ी चंचल चिकने बाल की भूषा है – दो घड़ी तुम्हारे फूलदान की शोभा। वन के फूल ऐसे नहीं। प्रकृति के हाथों से लगे हैं। मेघों की धारा से बढ़े हैं। चटुल दृष्टि इन्हें पाती नहीं। जगद्वायु इन्हें छूती नहीं। यह सरल सुन्दर सौरभमय जीवन हैं। जब जीवित रहे, तब चारों तरफ अपने प्राणधन से हरे-भरे रहे, जब समय आया, तब अपनी माँ की गोद में झड़ पड़े।
  • आकाश में तारों को देखा या उन जगमग आँखों को देखा,एक ही बात थी।
  • अब ऐसे वन नहीं, जहाँ कृष्ण गोलोक से उतरकर दो घड़ी वंशी की टेर दें। ऐसे कुटीर नहीं जिनके दर्शन से रामचन्द्र का भी अन्तर प्रसन्न हो।
  • हाय नरेन्द्र! यह क्या! तुम इस वनफूल को किस चमन में ले चले? इस बन्धन-विहीन स्वर्गीय जीवन को किस लोकजाल में बाँधने चले?”
  • कंकड़ी जल में जाकर कोई स्थायी विवर नहीं फोड़ सकती। क्षण भर जल का समतल भले ही उलट-पुलट हो, लेकिन इधर-उधर से जलतरंग दौड़कर उस छिद्र का नाम-निशान भी नहीं रहने देती।
  • दिन भर बहानों की माला गूँथ-गूँथ किरन के गले में और शाम को मोती की माला उस नाचनेवाली के गले में सशंक निर्लज्ज डाल देना – यही मेरा जीवन निर्वाह था।

5. राजा निरबंसियाकमलेश्वर

  • जगपती किसी लायक हुआ है, तो रिश्तेदारों की आंखों में करकने लगा है।-जगपती की माँ का कथन
  • दवाइयां तो ऐसी हैं कि मुर्दे को चंगा कर दें। पर हमारे अस्पताल में नहीं आतीं, फिर भी…-बचनसिंह का कथन है चंदा के प्रति।
  • औकात आदमी की देखी जाती है कि पैसे की, तुम तो…-चंदा का कथन
  • तुम नहीं जानतीं, कर्ज क़ोढ क़ा रोग होता है, एक बार लगने से तन तो गलता ही है, मन भी रोगी हो जाता है।जगपति का कथन
  • कड़ा बेचने से तो अच्छा था कि बचनसिंह की दया ही ओढ ली जाती।-जगपति का कथन
  • तुम्हारे कभी कुछ नहीं होगा । न तेल न…-जगपती का कथन चंदा के लिए
  • उसके मुख से अस्फुट शब्द निकल गया-बच्ची-जगपती के संदर्भ में
  • एक स्त्री से यदि पत्नीत्व और मातृत्व छीन लिया गया,तो उसके जीवन की सार्थकता ही क्या?-जगपती का कथन
  • बचनसिंह अपनी तरह का आदमी है,अपनी तरह का अकेला-जगपती का कथन
  • वह उस घर में नहीं पैदा हुआ, जहां सिर्फ जबान हिलाकर शासन करनेवाले होते हैं। वह उस घर में भी नहीं पैदा हुआ, जहां सिर्फ मांगकर जीनेवाले होते हैं। वह उस घर का है, जो सिर्फ काम करना जानता है, काम ही जिसकी आस है।-जगपती के संदर्भ में
  • कोई एक रग दुखती तो वह सहलाता भी, जब सभी नसें चटखती हों तो कहां-कहां राहत का अकेला हाथ सहलाए!-जगपती के संदर्भ में
  • नुक्कड पर जमुना सुनार की कोठरी में फिंकती सुरही रुक गई। मुंशीजी ने अपना मीजान लगाना छोड विस्फारित नेत्रों से ताककर खबर सुनी। बंसी किरानेवाले ने कुएं में से आधी गईं रस्सीं खींच, डोल मन पर पटककर सुना। सुदर्शन दर्जी ने मशीन के पहिए को हथेली से रगडकर रोककर सुना। हंसराज पंजाबी ने अपनी नील-लगी मलगुजी कमीज की आस्तीनें चढाते हुए सुना। और जगपती की बेवा चाची ने औरतों के जमघट में बडे विश्वास, पर भेद-भरे स्वर में सुनाया – ”आज छः साल हो गए शादी को न बाल, न बच्चा, न जाने किसका पाप है उसके पेट में। और किसका होगा सिवा उस मुसटण्डे कम्पोटर के! 
  • इस गली की तो पुश्तों से ऐसी मरजाद रही है कि गैर-मर्द औरत की परछाई तक नहीं देख पाए।
  • लेकिन जब तुमने मुझे बेच दिया…-चंदा का कथन है।
  • औलाद ही तो वह स्नेह की धुरी है, जो आदमी-औरत के पहियों को साधकर तन के दलदल से पार ले जाती है नहीं तो हर औरत वेश्या है और हर आदमी वासना का कीड़ा।-जगपती
  • वह स्वयं भी तो एक उखटा हुआ पेड़ है,न फल का,न फूल का,सब व्यर्थ ही तो है।
  • जगपती ने मरते वक्त दो परचे छोडे, एक चन्दा के नाम, दूसरा कानून के नाम।

6.पिताज्ञानरंजन

●वे पुत्र, जो पिता के लिए कुल्लू का सेब मँगाने और दिल्ली एंपोरियम से बढ़िया धोतियाँ मँगाकर उन्हें पहनाने का उत्साह रखते थे, अब तेजी से पिता-विरोधी होते जा रहे हैं
●सुखी बच्चे भी अब गाहे-बगाहे मुँह खोलते हैं और क्रोध उगल देते हैं।
●आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाउस में बैठिए, झूठी वैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए, रहमान के यहाँ डेढ़ रुपएवाला बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं!-पिता का कथन
●बाहर रहकर बाहरी होते जा रहे हैं।
मौसम की गर्मी से कहीं अधिक प्रबल पिता है।
●उसे लगा पिता एक बुलंद भीमकाय दरवाजे की तरह खड़े हैं, जिससे टकरा-टकराकर हम सब निहायत पिद्दी और दयनीय होते जा रहे हैं।
●पूरा शहर, कभी नहीं सोता या मरता। 

7.परिंदेनिर्मल वर्मा

●आई लव द स्नो-फॉल-लतिका का कथन
●मरने से पहले मैं एक दफा बर्मा जरूर जाऊँगा-डॉक्टर मुकर्जी का कथन
●इस बार शायद बर्फ जल्दी गिरेगी, अभी से हवा में एक सर्द खुश्की-सी महसूस होने लगी है।-लतिका
●वह क्या किसी को चाह सकेगी, उस अनुभूति के संग, जो अब नहीं रही, जो छाया-सी उस पर मँडराती रहती है, न स्वयं मिटती है, न उसे मुक्ति दे पाती है।
●सब लड़कियाँ एक-जैसी होती है-बेवकूफ और सेंटीमेंटल।-डॉक्टर मुकर्जी
●क्या तुमने कभी महसूस किया है कि एक अजनबी की हैसियत से परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौफनाक बात है…-मुकर्जी ने ह्यूबर्ट से कहा
●कोई पीछे नहीं है, यह बात मुझमें एक अजीब किस्म की बेफिक्री पैदा कर देती है। लेकिन कुछ लोगों की मौत अन्त तक पहेली बनी रहती है, शायद वे ज़िन्दगी से बहुत उम्मीद लगाते थे। उसे ट्रैजिक भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आखिरी दम तक उन्हें मरने का एहसास नहीं होता।-मुकर्जी
●वह तो बच्ची है, पागल! मरनेवाले के संग खुद थोड़े ही मरा जाता है।-ह्यूबर्ट
●आपके रहने से हमारा भी मन लग जाता है, वरना छुट्टियों में तो यहाँ कुत्ते लोटते हैं।-करीमुद्दीन का कथन
●तुम्हें आर्मी में किसने चुन लिया, मेजर बन गये हो, लेकिन लड़कियों से भी गये बीते हो, ज़रा-ज़रा-सी बात पर चेहरा लाल हो जाता है।-लतिका
●जंगल की आग कभी देखी है, मिस वुड…एक अलमस्त नशे की तरह धीरे-धीरे फैलती जाती है।-मुकर्जी का कथन
●अपने देश का सुख कहीं और नहीं मिलता। यहाँ तुम चाहे कितने वर्ष रह लो, अपने को हमेशा अजनबी ही पाओगे।
●जड़ें कहीं नहीं जमतीं, तो पीछे भी कुछ नहीं छूट जाता।
●क्या मैं किसी खूँसट बुढ़िया से कम हूँ? अपने अभाव का बदला क्या मैं दूसरों से ले रही हूँ?-लतिका
●वैसे हम सबकी अपनी-अपनी जिद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आखिर तक उससे चिपका रहता है।
●जो अपना नहीं है,उसका सुख दुःख नहीं, अपनाने की फुरसत नहीं…
●कभी-कभी मैं सोचता हूँ मिस लतिका, किसी चीज को न जानना यदि गलत है, तो जान-बूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना, यह भी गलत है।-डॉक्टर मुकर्जी
●सबकुछ होने के बावजूद वह क्या चीज़ है जो हमें चलाये चलती है, हम रुकते हैं तो भी अपने रेले में वह हमें घसीट ले जाती है।

8.अमृतसर आ गया है-भीष्म साहनी

●उन दिनों के बारे में सोचता हूँ तो लगता है, हम किसी झुटपुटे में जी रहे थे। शायद समय बीत जाने पर अतीत का सारा व्यापार ही झुटपुटे में बीता जान पड़ता है। ज्यों-ज्यों भविष्य के पट खुलते जाते हैं, यह झुटपुटा और भी गहराता चला जाता है।
●पाकिस्तान बन जाने पर जिन्ना साहिब बम्बई में ही रहेंगे या पाकिस्तान में जाकर बस जाएँगे।
●बहुत बुरा किया है तुम लोगों ने, बहुत बुरा किया है।’’ बुढ़िया ऊँचा-ऊँचा बोल रही थी। ‘‘तुम्हारे दिल में दर्द मर गया है। छोटी-सी बच्ची उनके साथ थी, बेरहमो, तुमने बहुत बुरा किया है। धक्के देकर उतार दिया है।
●तेरी माँ की…नीचे उतर, तेरी पठान बनाने वाली की मैं…
●अमृतसर आ गया है कथन-दुबलेबाबू का है
●बड़े जीवट वाले हो बाबू,दुबले पतले हो,पर बड़े गुर्दे वाले हो।बड़ी हिम्मत दिखाई है।तुमसे डर कर ही वे पठान डिब्बे में से निकल गए।यहाँ बने रहते तो एक-न-एक कि खोपड़ी तुम जरूर दुरूस्त कर देते…और सरदार जी हँसने लगे…

9.चीफ की दावत-भीष्म साहनी

●तुम तो जानते हो,मांस-मछली बने तो मैं कुछ नहीं खाती।-माँ का कथन
●चूड़ियाँ कहाँ से लाऊँ,बेटा?तुम तो जानते हो,सब जेवर तुम्हारी पढ़ाई में बिक गए।
●जो जेवर बिका, तो कुछ बन कर ही आया हूँ, निरा लँडूरा तो नहीं लौट आया। जितना दिया था, उससे दुगना ले लेना।-शामनाथ का कथन
●एक कामयाब पार्टी वह है,जिसमे ड्रिंक कामयाबी से चल जाएँ।
●हरिया नी माए, हरिया नी भैणे
हरिया ते भागी भरिया है!-माँ के द्वारा गाया गया विवाह गीत
●मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आँखों में छल-छल आँसू बहने लगे। वह दुपट्टे से बार-बार उन्हें पोंछतीं, पर वह बार-बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बाँध तोड़ कर उमड़ आए हों। माँ ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की, बार-बार आँखें बंद कीं, मगर आँसू बरसात के पानी की तरह जैसे थमने में ही न आते थे।

10.सिक्का बदल गया-कृष्णा सोबती

●वह पागल है तो तू ही जिगरा कर लिया कर-शाहनी,हसैना से।
●हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे-शेरे का कथन
●शाहनी, आज तक कभी ऐसा न हुआ, न कभी सुना। गजब हो गया, अंधेर पड़ गया।-नबाब बीबी का कथन
●मगर क्या हो सकता है! सिक्का बदल गया है…-बेगु का कथन
मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।-शाहनी
●इससे अच्छा वक्त देखने के लिए क्या मैं ज़िंदा रहूँगी-शाहनी
●नकदी प्यारी नहीं।यहां की नकदी यहीं रहेगी-शाहनी
●शाहनी रो-रोकर नहीं,शान से निकलेगी इस पुरखों के घर से,मान से लांघेगी यह देहरी,जिस पर एक दिन वह रानी बनकर आ खड़ी हुई थी।-शाहनी
●शाहनी कुछ कह जाओ।तुम्हारे मुँह से निकली असीस झूठ नहीं हो सकती।-इस्माइल का कथन
●शाहनी कोई कुछ नहीं कर सका।राज भी पलट गया।-शेरे

11.इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर (व्यंग्य): हरिशंकर परसाई

●वैज्ञानिक कहते हैं,चाँद पर जीवन नहीं है।
●प्रविसि नगर कीजै सब काजा,हृदय राखि कौसलपुर राजा।”
●हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी है।
●हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए जरूरी है-मातादीन का कथन
●मनुष्य-मनुष्य सब बराबर है.सबसे उसी परमात्मा का अंश है।हम भेदभाव नहीं करते।यह पुलिस का मानवतावाद है।-मातादीन
●किस पर जुर्म साबित होना चाहिए-इसका इन बातों से होगा-1.क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है? 2.क्या उसे सज़ा दिलाने से ऊपर के लोग ख़ुश होंगे?
●गुरुदेव,हमारी तो बड़ी आफत है।तमाम भले आदमी आते हैं और कहते हैं,उस बेचारे बेक़सूर को क्यों फँसा रहे हो?-पुलिस कोतवाल का कथन
●एक मुहावरा-‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है-तुम इसे सीख लो।-मातादीन
●हमारा सिद्धांत है:हमें पैसा नहीं काम प्यार है।-मातादीन

12.मारे गये गुलफाम उर्फ तीसरी कसमफणीश्वरनाथ रेणु

तीन कसम-पहली कसम-चोरबाजारी का माल नहीं लादेंगे।
दूसरी कसम-बाँस नहीं लादेंगे
तीसरी कसम-कम्पनी की औरत की लदनी…

●कान चुनिया कर गप सुनने से ही तीस कोस मंजिल कटेगी क्या?-बैल से हिरामन कहता है।
●दिल-खोल गप तो गाँव की बोली में ही की जा सकती है किसी से।
●भाभी की जिद, कुमारी लड़की से ही हिरामन की शादी करवाएगी। कुमारी का मतलब हुआ पाँच-सात साल की लड़की। कौन मानता है सरधा-कानून? कोई लड़कीवाला दोब्याहू को अपनी लड़की गरज में पड़ने पर ही दे सकता है। भाभी उसकी तीन-सत्त करके बैठी है, सो बैठी है। भाभी के आगे भैया की भी नहीं चलती! …अब हिरामन ने तय कर लिया है, शादी नहीं करेगा। कौन बलाय मोल लेने जाए! …ब्याह करके फिर गाड़ीवानी क्या करेगा कोई! और सब कुछ छूट जाए, गाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हिरामन।
●आनंद के आँसू कोई भी रोक नहीं मानते।
●मरे हुए मुहूर्तों की गूँगी आवाजें मुखर होना चाहती है।

13.लाल पान की बेगमफणीश्वरनाथनाथ रेणु

●आगे नाथ और पीछे पगहिया न हो तब न,फुआ-बिरजू की माँ का कथन
●जरा देखो तो इस बिरजू की माँ को।चार मन पाट(जूट)का पैसा क्या हुआ है,धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते-मखनी फुआ का कथन
●जंगी की पुतोहू मुँहजोर है।रेलवे स्टेशन के पास की लड़की है।
●गाँव में अब ठेठर-बैसकोप का गीत गानेवाली पतुरिया-पूतोहू सब आने लगी है।
●’लाल पान की बेगम’-जंगी की पुतोहू
●ज़िन्दगी भर मजदूरी करते रह जाओगे।सर्वे का समय हो रहा है,लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघे जमीन हासिल कर सकते हो।
●मुझे जमीन नहीं लेनी है बिरजू की माँ, मजूरी ही अच्छी।-बिरजू के पिता का कथन
●जोरू-जमीन जोर के,नहीं तो किसी और के…
●कथरी के नीचे दुशाले का सपना-बिरजू की माँ

14.कोशी का घटवार:शेखर जोशी

●कोसी के किनारे हैं गुसाईं का यह घट। पर इसकी भी चाल ऐसी कि लद्दू घोडे क़ी चाल को मात देती हैं।
●तेरे लिए मखमल की कुर्ती ला दूंगा, मेरी सुवा! या कुछ ऐसा ही।-गुसाईं
●जिसके आगे-पीछे भाई-बहिन नहीं, माई-बाप नहीं, परदेश में बंदूक की नोक पर जान रखनेवाले को छोकरी कैसे दे दें हम?-लछमा के बाप का कथन
●गंगनाथज्यू की कसम, जैसा तुम कहोगे, मैं वैसा ही करूंगी।-लछमा का कथन
●जिसका भगवान नहीं होता, उसका कोई नहीं होता। जेठ-जेठानी से किसी तरह पिंड छुडाकर यहां मां की बीमारी में आई थी, वह भी मुझे छोडक़र चली गई। एक अभागा मुझे रोने को रह गया है, उसी के लिए जीना पड रहा है। नहीं तो पेट पर पत्थर बांधकर कहीं डूब मरती, जंजाल कटता।-लछमा का कथन
●मुश्किल पडने पर कोई किसी का नहीं होता।-लछमा
●लोग ठीक ही कहते हैं, औरत के हाथ की बनी रोटियों में स्वाद ही दूसरा होता है।-गुसाईं
●ऐसी ही खाने-पीनेवाले की तकदीर लेकर पैदा हुआ होता तो मेरे भाग क्यों पडता?-लछमा का कथन
●दुःख-तकलीफ के वक्त ही आदमी आदमी के काम नहीं आया, तो बेकार है!स्साला-गुसाईं
●पेट का क्या है, घट के खप्पर की तरह जितना डालो, कम हो जाय। अपने-पराये प्रेम से हंस-बोल दें, तो वह बहुत है दिन काटने के लिए।-लछमा का कथन
●वर्षों पहले उठे हुए ज्वार और तूफान का वहां कोई चिह्न शेष नहीं था। अब वह सागर जैसे सीमाओं में बंधकर शांत हो चुका था।
●कभी चार पैसे जुड ज़ाएं, तो गंगनाथ का जागर लगाकर भूल-चूक की माफी मांग लेना। पूत-परिवारवालों को देवी-देवता के कोप से बचा रहना चाहिए।

15.आकाशदीप:जयशंकर प्रसाद

●क्या स्त्री होना कोई पाप है?-चंपा का कथन
●एक मास हुआ,मैं इस नील नभ के नीचे,नील जलनिधि के ऊपर,एक भयानक अनंतता में निस्सहाय हूँ-अनाथ हूँ-चंपा का कथन
●मैं अपने अदृष्ट को अनिर्दिष्ट ही रहने दूँगी-चंपा
●तुम भगवान के नाम पर हँसी उड़ाते हो-बुधगुप्त से चंपा
●मेरे पिता,वीर पिता की मृत्यु के निष्ठुर कारण-बुधगुप्त से चंपा
●जल में बंदी होना कठोर प्राचीरों से तो अच्छा है।-चंपा
●जब मैं अपने हृदय पर विश्वास नहीं कर सकी,उसी ने धोखा दिया,तब मैं कैसे कहूँ?मैं तुम्हें घृणा करती हूँ फिर भी तुम्हारे लिए मर सकती हूँ।-चंपा का कथन
●मुझे निस्सहाय और कंगाल जानकर तुमने आज सब प्रतिशोध लेना चाहा?-चंपा का कथन
●ईश्वर को नहीं मानता, मैं पाप को नहीं मानता, मैं दया को नहीं समझ सकता, मैं उस लोक में विश्वास नहीं करता। पर मुझे अपने हृदय के एक दुर्बल अंश पर श्रध्दा हो चली है।-बुधगुप्त
●मेरे लिए सब भूमि मिट्टी है; सब जल तरल है; सब पवन शीतल है। कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं। सब मिलाकर मेरे लिए एक शून्य है। प्रिय नाविक! तुम स्वदेश लौट जाओ, विभवों का सुख भोगने के लिए, और मुझे, छोड़ दो इन निरीह भोले-भाले प्रणियों के दुख की सहानुभूति और सेवा के लिए।-चंपा
●यहाँ रहकर मैं अपने हृदय पर अधिकार रख सकूँ – इसमें संदेह है।-बुधगुप्त का कथन
●एक दिन काल के कठोर हाथों ने उसे भी अपनी चंचलता से गिरा दिया।

16.गैंग्रीन-(रोज)-अज्ञेय

●मुझे ऐसा जान पड़ा,मानो किसी जीवित प्राणी के गले में किसी मृत जंतु का तौक डाल दिया गया हो,वह उसे उतार फेंकना चाहे,पर उतार न पाये…
●जब हमारा सबसे बड़ा सुख,सबसे बड़ी विजय थी हाज़िरी हो चुकने के बाद चोरी से क्लास से निकल भागना और स्कूल से कुछ दूरी पर आ के बगीचें में पेड़ों पर चढ़कर कच्ची आमियाँ तोड़-तोड़ खाना।
●मालती कुछ नहीं पढ़ती थी,उसके माता-पिता तंग थे।

17.उसने कहा था:चन्द्रधर शर्मा गुलेरी

●हट जा जीणे जोगिए, हट जा करमाँ वालिए, हट जा, पुत्तां प्यारिए. बच जा लम्बी वालिए। समष्टि में इसका अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रो को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहियो के नीचे आना चाहती है? बच जा। 
●उसी फिरंगी मेम के बाग़ में. मखमल की सी हरी घास है. फल और दूध की वर्षा कर देती है. लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती. कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क़ को बचाने आए हो।
बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।
●अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो।ऐसा खाद का पानी पंजाब-भर में नहीं मिलेगा-लहना सिंह
जाड़ा क्या है,मौत है,और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।
●मेरा डर मत करो।मैं बुलेल की खड्ड के किनारे मरूँगा।
●क्यों साहब,हमलोग हिंदुस्तान कब जाएँगे-लहना सिंह
●ऐसा चाँद,जिसके प्रकाश से संस्कृत-कवियों का दिया हुआ क्षयी नाम सार्थक होता है।

18.ईदगाह:प्रेमचंद

●आशा तो बड़ी चीज है,और फिर बच्चों की आशा!उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है।
●तुम डरना नहीं अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना।-हामिद
●चलो, मनों आटा पीस डालती हैं। ज़रा-सा बैट पकड़ लेंगी, तो हाथ काँपने लगेंगे! सैकड़ों घड़े पानी रोज निकालती हैं। पाँच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है। किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो आँखों तले अँधेरा आ जाय।-मोहसिन
●कानिसटिबिल पहरा देते हैं? तभी तुम बहुत जानते हो अजी हजरत, यह चोरी करते हैं।-मोहसिन
●खिलौना क्यों नही है! अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गयी। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाय। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नही कर सकते। मेरा बहादुर शेर है चिमटा।-हामिद
उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाय तो मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जायँ, मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागें, वकील साहब की नानी मर जाय, चोगे में मुँह छिपाकर जमीन पर लेट जायँ। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जायगा और उसकी आँखें निकाल लेगा।
स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। 

19.दुनिया का सबसे अनमोल रत्नप्रेमचंद

तीन रत्न-1.पवित्र आँसू 2.सती की राख 3.देश सेवा में गिरा खून का कतरा।
●उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं।-दिलफ़िगार के संदर्भ में
●उसका दिल अभी तक पाप की गर्द और धूल से अछूता था और मासूमियत उसे अपनी गोद में खिला रही थी।-घोड़ा चलाने वाले लड़के के संदर्भ में।
●ऐ दिल की रानी,बड़ी मुद्दत के बाद तेरी ड्योढ़ी पर सजदा करना नसीब होता है।
●पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है,वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी-बुजुर्ग का कथन
●क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिंदा रहूं?नहीं,ऐसी ज़िन्दगी से मर जाना अच्छा।
●खून का वह आख़िरी क़तरा जो वतन की हिफ़ाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।

20.अपना-अपना भाग्य:जैनेन्द्र कुमार

●उन्हें आगे की चिंता न थी,बीते का ख्याल न था।वे शुद्ध तत्काल के प्राणी थे।वे शब्द की सम्पूर्ण सच्चाई के साथ जीवित थे।
●उन्हें न चलने में थकावट आती थी,न हंसने में मौत आती थी।-अंग्रेज रमणियों के सन्दर्भ में
●उधर हमारी भारत की कुललक्ष्मी,सड़क के बिल्कुल किनारे दामन बचाती और सम्भालती हुई,साड़ी की कई तहों में सिमट-सिमटकर,लोक-लाज,स्त्रीत्व और भारतीय गरिमा के आदर्श को अपने परिवेष्टनों में छिपाकर शमी-सहमी धरती में मुँह गाड़े,कदम-कदम बढ़ रही थी।
हृदय में जितनी दया है,पास में उतने पैसे तो नहीं है।
●मानो दुनिया की बेहयाई ढ़कने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।

21.राही:सुभद्राकुमारी चौहान

●देश की दरिद्रता और इन निरीह गरीबों के कष्टों को दूर करने का कोई उपाय नहीं है?-अनीता
●कम-से-कम हम सबको खाने पहनने का समान अधिकार तो है ही? फिर यह क्या बात है कि कुछ लोग तो बहुत आराम से रहते हैं और कुछ लोग पेट के अन्न के लिए चोरी करते हैं?-अनीता
●एक ओर तो यह कैदी है, जो जेल आकर सचमुच जेल जीवन के कष्ट उठाती है, और दूसरी ओर हैं हम लोग जो अपनी देशभक्ति और त्याग का ढिंढोरा पीटते हुए जेल आते हैं।
●कल तक जो खद्दर भी न पहनते थे, बात-बात पर कांग्रेस का मजाक उड़ाते थे, कांग्रेस के हाथों में थोड़ी शक्ति आते ही वे कांग्रेस भक्त बन गए।
●वास्तव में सच्ची देशभक्ति तो इन गरीबों के कष्ट-निवारण में है।-अनीता
हमारा वास्तविक देश तो देहातों में ही है।-अनीता
●अशिक्षा और अज्ञान का इतना गहरा पर्दा इनकी आँखों पर है कि होश सँभालते ही माता पुत्री को और सास बहू को चोरी की शिक्षा देती है। 
●पतित मानवता को जीवन-दान देने की अपेक्षा भी कोई महत्तर पुण्य है?