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बाणभट्ट की आत्मकथा:हजारीप्रसाद द्विवेदी:मुख्य बिंदु

बाणभट्ट की आत्मकथा:हजारीप्रसाद द्विवेदी:मुख्य बिंदु
  1. मेरे जीवन में जो कुछ सार है,वह मेरे पिता का स्नेह है।
  2. ऐसा लगता था कि वह पान कम बेचती थी,मुस्कान ज्यादा-(निपुणिका के संदर्भ में)
  3. अंगुलियों को मैं बहुत महत्वपूर्ण सौन्दर्योपादान समझता हूँ।
  4. बहुत छुटपन से ही मैं स्त्री का सम्मान करना जानता हूं।
  5. तुम नारी देह को देव-मंदिर के समान पवित्र मानते हो पर एक बार भी तुमने समझा होता कि यह मंदिर हाड़-मांस का है,ईंट-चूने का नहीं।
  6. पुरुषत्व का गर्व कौलिन्य का गर्व और पांडित्य का गर्व क्षण-भर में भरभराके गिर गए।
  7. मैं अपनी बुद्धि से अनुचित-उचित की विवेचना करता हूँ।मैं मोह और लोभवश किए गए समस्त कार्यों को अनुचित मानता हूं;परंतु हमेशा मैं अपने को इन दो रिपुओं से बचा नहीं सका हूं।
  8. दीपक क्या है,इसकी ओर अगर ध्यान देना,तो उसके प्रकाश में उद्भासित वस्तुओं को नहीं देख सकेगा,तू दीपक की जांच कर रहा है,उससे उद्घाटित सत्य कि नहीं।
  9. मैं साधारण मनुष्य हूँ आर्य!अपराध करता ही रहता हूँ;किंतु जानबूझकर कभी किसी का अनिष्ट नहीं किया है।मैं अमंगल से डरता हूँ।
  10. यही कि डरना नहीं चाहिए।जिस पर विश्वास करना चाहिए,उस पर पूरा विश्वास करना चाहिए,चाहे परिणाम जो हो।जिसे मानना चाहिए उसे अंत तक मानना चाहिए।
  11. किसी से न डरना,गुरु से भी नहीं,मंत्र से भी नहीं,लोक से भी नहीं।
  12. वह पुरूष का सत्य है।स्त्री का सत्य ठीक वैसा ही नहीं है।
  13. महामाया ने कहा था: नारी की सफलता पुरुष को बांधने में है,सार्थकता उसे मुक्ति देने में।
  14. कुछ लोगों को दूसरों को भोला समझने में आनंद आता है।
  15. राजनीति भुजंग से भी अधिक कुटिल है,असिधारा से भी अधिक दुर्गम है,विद्युत-शिखा से भी अधिक चंचल है।
  16. इतिहास साक्षी है कि देखी सुनी बात को ज्यों का त्यों कह देना या मान लेना सत्य नहीं है।सत्य वह है जिससे लोक का आत्यंतिक कल्याण होता है।
  17. अनुचित स्थान पर प्रयुक्त होने पर सत्य भी विष हो जाता है।
  18. तुम सच्चे कवि हो मेरी बात गांठ बांध लो,तुम इस आर्यावर्त के ‘द्वितीय कालिदास’ हो।
  19. जो तेरा सबसे प्रिय है उसका ध्यान कर।
  20. तेरे शास्त्रों के अनुसार तू भी तो एक विघ्न ही है।विधाता ने विघ्न के रूप में ही तो सुंदरियों की सृष्टि की थी। क्यों रे,तू अपने को किसी का विघ्न नहीं समझती?
  21. नारीहीन तपस्या संसार की भद्दी भूल है।
  22. वराहमिहिर ने कहा था- स्त्रियां ही रत्नों को भूषित करती है,रत्न स्त्रियों को क्या भूषित करेंगे?स्त्रियां तो रत्न के बिना भी मनोहारिणी होती है।
  23. धर्म-कर्म,भक्ति-ज्ञान,शांति-सौमनस्य कुछ भी नारी का संस्पर्श पाए बिना मनोहर नहीं होते-नारी देह वह स्पर्श-मणि है,जो प्रत्येक ईंट-पत्थर को सोना बना देती है।
  24. मैं बाणभट्ट नाम से प्रसिद्ध हूं,पर मेरा असली नाम दक्षभट्ट है।
  25. मैं जिसे अपने जीवन का सबसे बड़ा कलुष समझती थी,वही मेरा सबसे बड़ा सत्य है।क्यों नहीं मनुष्य अपने सत्य को अपना देवता समझ लेता- (सुचारिता)
  26. धर्म के लिए प्राण देना किसी जाति का पेशा नहीं है,वह मनुष्य-मात्र का उत्तम लक्ष्य है।
  27. आधी बात सुनकर निर्णय करना बुद्धिमांद्य का लक्षण है।
  28. निपुणिका– क्या छोटा सत्य बड़े सत्य का विरोधी होता है?
  29. प्रत्येक कर्तव्य का कोई-ना-कोई मानस उत्स होता है।कोई यश की लिप्सा से,कोई अर्थ की इच्छा से,कोई भक्ति की कामना से अपना कर्तव्य निर्धारित करता है।
  30. यह देखो,तुम यदि किसी यवन कन्या से विवाह करो तो इस देश में यह एक भयंकर सामाजिक विद्रोह माना जाएगा। परंतु यह क्या सत्य नहीं है कि यवन कन्या भी मनुष्य है और ब्राह्मण युवा भी मनुष्य है।
  31. कवि बिंधता नहीं मित्र,बेधा करता है।अपंग-बाण से नहीं व्यंग्य-बाण से।
  32. सचमुच ही क्या यह जीवन अभिनय है?यह पग-पग का बंधन श्वास-श्वास का दमन अभिनय ही तो है।
  33. प्रेम एक,और अविभाज्य है।उसे केवल ईर्ष्या और असूया ही विभाजित करके छोटा कर देते हैं।
  34. निपुणिका स्त्री-जाति का श्रृंगार थी,सतीत्व की मर्यादा थी।
  35. प्रमाद-आलस्य और क्षिप्रकारिता-तीन दोषों से बच।