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प्रकाशन वर्ष- 1942
स्थान : कलिंग का शिविर
काल : ईसा पूर्व 261
पात्र
सम्राट अशोक : मगध के सम्राट
तिष्यरक्षिता : सम्राट अशोक की रानी
उपगुप्त : बौद्ध भिक्षु तथा आचार्य
चारुमित्रा : तिष्यरक्षिता की परिचारिका -1
स्वयंप्रभा : तिष्यरक्षिता की परिचारिका -2
राजुक : द्वार-रक्षक
पुष्य : शिविर-रक्षक
स्त्री, प्रहरी आदि
कथा का संक्षिप्त रूप
261 ई.पू. सम्राट अशोक अपने शासन के तेरहवें वर्ष में कलिंग पर चढ़ाई कर देते हैं, उसका कारण यह था कि कलिंग-नरेश सम्राट अशोक की सत्ता स्वीकार करने में अपना अपमान समझते थे।अशोक का राज्य उत्तर में हिंदूकुश से लेकर दक्षिण में पेनार नदी तक है और पश्चिम में अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था। लेकिन एक ‘कलिंग’ ही था जो हार मानने को राज़ी नहीं था। कम से कम 1 लाख सैनिकों की हत्या हो चुकी है। अशोक की पत्नी चित्रकार भी रहती है साथ ही उतनी ही दयालु भी। वह चित्रों के माध्यम से अशोक को समझाना चाहती है कि युद्ध से कुछ नहीं होगा। अशोक की दासी और तिष्यरक्षिता (अशोक की पत्नी) की सखी ‘चारुमित्रा’ रहती है जो कलिंग की ही रहने वाली थी। एक दिन जब अशोक घर लौटते हैं तो चारुमित्रा पर अविश्वास करते हैं वो भी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वह कलिंग की थी। अशोक उसे आग पर नाचने को कहते हैं।लेकिन उनकी पत्नी के मना करने पर उसे बख़्स देते हैं। उसी मध्य एक स्त्री जिसका वेश पागलों सा है वह कहती है – अशोक का नाश हो’ … ‘अशोक का सर्वनाश हो! फिर उसे अशोक की पत्नी पूछती है कि क्या हुआ तो वह बताती है कि अशोक के सैनिकों ने उसके पति को मार दिया है। और जब वह अपने बच्चे को बचाने गयी तो उस बच्चे के सिने में भी भाला घुसा दिया। जिससे उसका बच्चा मर गया। अशोक जहाँ उस औरत का न्याय करने जाते हैं वहाँ देखते हैं कि उस 25 वर्ष की औरत ने अपने बच्चे को चूमते हुए सैनिक की ही छुरी से अपनी आत्महत्या कर लेती है। अशोक सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और कहते हैं- उस स्त्री की आत्म-हत्या ने मेरा ध्यान संग्राम में मरे हुए वीरों की माताओं की ओर आकर्षित कर लिया है और मेरी विजय में जैसे उल्लास के बदले अभिशाप तड़प रहा है। थोड़े ही समय के बाद चारुमित्रा जो बाल्यकाल से ही अशोक की दासी थी उसका मृत शरीर आता है। उपगुप्त इस कथा के गवाह हैं वो बताते हैं कि – अशोक ने चारुमित्रा पर अविश्वास किया था क्योंकि वह कलिंग की रहने वाली थी। युद्ध से पहले वह देखती है कि कुछ सैनिक जो कलिंग के हैं वो अशोक पर छुप कर वार करना चाहते हैं। लेकिन चारुमित्रा उन्हें धिक्कारती हुयी कहती है- कायरो, तुम लोग मेरे देश कलिंग के नाम को कलंकित करने वाले हो! यदि महाराज अशोक को मारना है, तो युद्ध में तलवार लेकर क्यों नहीं जाते? यहाँ चोरों की तरह घुस कर एक वीर पुरुष से छल करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती। 2 सैनिकों को वह मार देती है लेकिन तीसरा सैनिक चारुमित्रा पर वार कर देता है । वह सदा के लिए प्राण गँवा बैठती है। लेकिन उसी दिन से अशोक युद्ध करना छोड़ देते हैं । उस औरत के आत्महत्या और फिर चारुमित्रा का अशोक के लिए जान गँवाना अशोक के हृदय परिवर्तन का मुख्य कारण बनता है।
कुछ बातें-
●इस एकांकी की कथावस्तु अशोक के कलिंग-युद्ध की एक जीवन्त ऐतिहासिक घटना पर आधारित है।
●इस एकांकी को लिखने का लक्ष्य चारुमित्रा की स्वामिभक्ति और बलिदान को दिखाना था।
●एकांकी में- स्त्री पात्रों में दया, सहानुभूति, करुणा तथा अशोक में रौद्र, वीर तथा क्रोध के भावों का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है।
●इतिहास का उतना ही अंश यहाँ प्रस्तुत किया गया है,जहाँ से अशोक का हृदय परिवर्तन होता है।
●कई जगह ‘चन्द्रगुप्त’ का भी वर्णन आया है।
●डॉ रामकुमार वर्मा ने यह दिखाने की कोशिश है कि संसार की बड़ी घटनाओं के पीछे कभी-कभी छोटी-सी घटना भी रहा करती है। इसी ओर संकेत करते हुए यह प्रदर्शित किया गया है कि अशोक के इतिहास प्रसिद्ध महान परिवर्तन के मूल में ‘चारुमित्रा’ का बलिदान था।
मुख्य अंश-
●(अशोक के संदर्भ में)- वे अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से ही कुछ क्षणों तक विपक्षी को अप्रतिम बना देते हैं और अपनी विजय को विपक्षी की मृत्यु की रेखाओं से ही गिनते हैं। वे दया के अनुकूल नहीं – क्रूरता के प्रतिकूल नहीं।
●तिष्यरक्षिता का कथन है चारुमित्रा के लिए – तू जानती ही नहीं, लड़ाई किसे कहते हैं? जीवन भी तो एक लड़ाई है। पुरुष की स्त्री से लड़ाई, स्त्री की पुरुष से लड़ाई। स्त्री-पुरुष की पुरुष-स्त्री से लड़ाई! तूने कभी लड़ाई लड़ी ही नहीं?
●तिष्यरक्षिता का कथन है चारुमित्रा के लिए- और चारु! मैं भी महाराज से लड़ना चाहती हूँ। वे यह युद्ध बंद कर दें। मुझे यह अच्छा नहीं लगता। कितने वीरों का नित्य रक्तपात होता है। आज जिन वीरों से देश की उन्नति होती, वही व्यर्थ मर रहे हैं – जो वीर मिट्टी छूकर सोना बनाते, वही आज मिट्टी हो रहे हैं!
●तिष्यरक्षिता का कथन है चारुमित्रा के लिए – यह युद्ध मुझे नहीं चाहिए। कितने दिनों से इस शिविर में रहते हुए जैसे मेरा सुख सपना बनता जा रहा है! महाराज का वियोग सहन कर सकती, तो चारु! मैं पाटलीपुत्र से कलिंग के इस शिविर में न आती। रात्रि में युद्ध की समाप्ति पर उनके दर्शन कर लेती हूँ तो जैसे फिर युवती बन जाती हूँ। आज कहूँगी कि वे कलिंग का युद्ध बंद कर दें। वीरों को स्वतंत्र साँस लेने देना भी तो दया की क्रूरता पर विजय है। मुझे तो इस विजय पर ही संतोष है।
●अशोक के लिए यह कथन तिष्यरक्षिता का है जो यह बात चारुमित्रा से कह रही है- महाराज तक्षशिला में रह कर बड़े क्रूर बन गए हैं। कहते हैं, पूज्य पितामह जिन्होंने निकेटर सिल्यूकस की प्रचंड सेना का नाश कर दिया था, जिन्होंने अलक्षेंद्र के राज्य की दिशा बदल दी थी, तक्षशिला के ही तो विद्यार्थी थे। पितामह के योग्य पौत्र बनने का आदर्श जो है उनके सामने।
●तिष्यरक्षिता का कथन- दया करना तो स्त्री का स्वाभाविक धर्म है।
●तिष्यरक्षिता का कथन-युद्ध के भयानक क्षणों में स्त्री के एकाकी हृदय को कौन-सा सहारा है, संगीत, नृत्य, चित्रकला! यही तो!
●अशोक का कथन- युद्ध-भूमि के अतिरिक्त प्रत्येक भूमि वीरों के लिए कलंक भूमि है।
●अशोक का कथन- युद्ध का रुक जाना पाटलीपुत्र की उन्नति का रुक जाना है। किसी भी साम्राज्य की सीमा तलवार से खींची जाती है और सीमा को स्थायी रखने के लिए उस रेखा में रक्त का रंग भरा जाता है।
●अशोक का कथन है तिष्यरक्षिता के लिए- देवि! अग्नि में तप कर ही स्वर्ण पवित्र होता है। आज मेरी तलवार में शक्ति है। उसका अधिक से अधिक उपयोग होने दो।
●अशोक का कथन- कृपा की दृष्टि राजनीति की दृष्टि नहीं होती।
●अशोक का कथन- आचार्य उपगुप्त बौद्ध धर्म के सबसे बड़े आचार्य हैं, कलिंग विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता है। मैं बौद्ध धर्म और कलिंग दोनों का नाश करूँगा।
●स्त्री का कथन- मुझे न्याय नहीं चाहिए – नहीं चाहिए! पाटलीपुत्र से न्याय उठ गया! इसके पिता को सैनिकों ने घेर कर मारा और जब मैं इसे बचाने लगी तो इसके फूल-से कलेजे में भाला घुसेड़ दिया उन राक्षसों ने। मेरे बच्चे को राज्य नहीं चाहिए था! मेरा छोटा राजा तुम्हारा राज्य नहीं चाहता था। तब भी इसे – तब भी इसे…
●तिष्यरक्षिता का कथन- आज मैं रानी न होकर एक साधारण स्त्री होती तो किसी प्रकार आत्म-बलिदान कर महाराज के मन की दिशा बदल देती। पत्नी हो कर पति के मार्ग की बाधिका बनने का साहस मुझमें नहीं होता।
●तिष्यरक्षिता का कथन- मैं रानी होकर साधारण स्त्री भी नहीं रही!
●उपगुप्त का कथन- जब किसी व्यक्ति में शक्ति की क्षमता होती है तो बुरे मार्ग से अच्छे पर और अच्छे मार्ग से बुरे मार्ग पर जाने में विलंब नहीं लगता।
●तिष्यरक्षिता का कथन- माता का हृदय संसार के किसी वैभव से नहीं तुल सकता। वह सबसे बड़ा है।
●अशोक, तिष्यरक्षिता से कहता है- महारानी, अधीर मत हो। चारु ने जो कार्य किया है, वह नारी-जाति के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। और सुनो देवी, आज से अशोक ने… अत्याचारी अशोक ने युद्ध को सदैव के लिए छोड़ दिया! [तलवार भूमि पर फेंक देता है।
●अशोक का कथन- आज से मैं हिंसा किसी रूप में न करूँगा। और देखूँगा कि मनुष्य का रक्त इस पृथ्वी पर न पड़े। प्रत्येक स्थान पर, सिंहासन पर, अंतःपुर में, विहार में, मैं जनता की सेवा करूँगा। आज से मेरा महान कर्तव्य होगा कि मैं सब जीवों की रक्षा का अधिक से अधिक प्रबंध करूँ।