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सिपाही की माँ- मोहन राकेश- मुख्य अंश

सिपाही की माँ- मोहन राकेश- मुख्य अंश

पात्र- विशनी, मुन्नी, कुन्ती, दीनू , पहली लड़की, दूसरी लड़की, सिपाही

  • कुछ बातें- मोहन राकेश इस एकांकी में दूसरे विश्वयुद्ध के समय सामान्य लोगों पर छाने वाले त्रासद प्रभाव का चित्रण करते हैं।
  • युद्ध देशप्रेम के ख़ातिर  नहीं हो रहा है बल्कि अंग्रेज़ों के स्वार्थ के लिए भारतीय सिपाही कैसे ख़ुद को मिटा रहे रहे थे उसका चित्रण भी हुआ है।
  • सत्ताधारियों के स्वार्थ से प्रेरित युद्ध धन से मनुष्य को खरीदकर कैसे उसकी भावुकता और मानवीयता को नष्ट करके उसे वहशी जानवर बना देता है। मोहन राकेश ने इस एकांकी में यह दिखाना चाहा है।
  • एकांकी में मोहन राकेश ने यह दिखाने की कोशिश की है कि किसी सिपाही की जान उसके परिवार के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक सिपाही अपने दुश्मन को देखते हीं गोली मार देता है जिनकी कोई आपसी दुश्मनी नही होती है। युद्ध में मानवता का कोई मूल्य नहीं होता।

एकांकी की कथा- 

सिपाही की माँ’ एकांकी मोहन राकेश द्वारा लिखी गई है | प्रस्तुत एकांकी ‘सिपाही की माँ’ एक संक्षिप्त रचना है जिसमें निम्न मध्यम वर्ग के एक परिवार का इकलौता पुत्र  लड़ाई पर जाता है। द्वितीय विश्व का काल है वह बर्मा में लड़ रहा है। माँ का नाम विशनी है और जो बेटा युद्ध में गया है उसका नाम मानक है। उसकी माँ को आशा है कि मानक जब वापिस आएगा वह अपनी बहन का विवाह करेगा। कई दिनों से मानक की चिट्ठी नहीं आने पर दोनों घबराई हुयी है। बेटी मुन्नी की शादी के लिए हीं वह उसे एक बार के लिए युद्ध में भेजती है ताकि कुछ पैसा हो जाए, जिससे बेटी की शादी हो जाए। क्योंकि उसकी हम उम्र के सभी लड़कियों की शादी हो रही है। विशनी बार-बार मुन्नी से यह कहती है कि तेरा भाई जब आएगा तब तेरा हाथ भी पीला होगा। गाँव के लोग(दीनू और कुंती)  बार-बार यह अफ़वाह फैलाते हैं कि बर्मा में सिपाही मर रहे हैं। जिससे विशनी घबरा उठती है। गाँव में दो लड़कियाँ भीख माँगने आती है। जो छुप-छुपाकर बर्मा से भारत आयी है। वह बताती हैं कि किस तरह से बर्मा में सिपाहियों की लाशों का ढ़ेर पड़ा है। जो सिपाही वहाँ से भागना भी चाहते हैं वो  भी नहीं भाग सकते क्योंकि उन्हें भागने पर मार दिया जाता है। विशनी यह सब सुनकर घबरा जाती है।

दूसरे दृश्य में विशनी जो मानक की माँ है वह एक सपना देखती है जिसमें यह रहता है कि उसका बेटा भागा-भागा घर आया है घायल है और पानी माँग रहा है। उसके पीछे एक दूसरा सिपाही आता है, जो उसे मारने का प्रयास करता है। मानक भी उसको देखते ही आँख लाल कर लेता है।दोनों एक दूसरे के दुश्मन रहते है। दूसरा सिपाही भी गरीब रहता है। जिसकी कथा यह है कि – उसकी माँ पागल हो गयी थी। बीबी जिसके पेट में 6 महीने का बच्चा है, वह कहती थी अगर उसका पति मर जाएगा तो वह भी फाँसी लगा लेगी। विशनी का हृदय बहुत निर्मल रहता है उसे यक़ीन ही नहीं होता कि उसका बेटा किसी की जान ले सकता है। दोनों में जब लड़ाई होती है तो विशनी का बेटा मानक उसे धक्का देकर ढ़केल देता है। धीरे-धीरे विशनी को उन दोनों की आकृतियां पार्श्व में जाकर विलीन होती दिखती है। उसे सुनाई देता है कि चार-छः गोलियाँ चली है और सिपाही की कराहती आवाज़ सुनाई दे रही है। 
विशनी का सपना टूटता है।  और मुन्नी के भाई के बारे में पूछते हीं शांत हो जाती है।

मुख्य अंश 

बिशनी का कथन- तेरा दिल तो हर मंगल को कहता है, पर चिट्ठी आने का नाम नहीं लेती। जाने भाग में क्या खोट है जो चिट्ठी के लिए इतना तरसना पड़ता है! इस बार यह घर आ ले, फिर मैं इससे पूछूँगी…।

बिशनी का कथन- इतनी भी फुरसत नहीं मिलती कि माँ को चार हरफ लिखकर डाल दे? उसे यह नहीं पता कि मेरी चिट्ठी जाती है तो माँ के कलेजे में जान पड़ती है! माँ के कौन दो-चार हैं जिनके सहारे वह परान लेकर बैठी रहेगी? नदीदे को यह बात तो सोचनी चाहिए।

मुन्नी का कथन- बर्मा  से चिट्ठी भी तो फिर, माँ, जहाज में ही आती होगी। अगर हमारी चिट्ठीवाला जहाज डूब गया हो तो…?

बिशनी का कथन- ऐसी काली जबान न बोल। मुँह अच्छा न हो तो बात तो आदमी अच्छी करे। मानक कहता था कि जहाज इत्ता बड़ा होता है कि हमारे जैसे चार गाँव एक जहाज में आ जाएँ।…इत्ता बड़ा जहाज कैसे डूब सकता है?

पहली लडक़ी- जापानी जहाज़ों ने बम मार-मारकर सारा शहर उजाड़ दिया है। रोज़ वहाँ गोला-बारी होती है। यहाँ तो आप लोग स्वर्ग में रहती हैं, माँजी! लड़ाई की वजह से हमारा मुल्क तो बिल्कुल तबाह हो गया है! फ़ौज को छोडक़र और कोई वहाँ नहीं रहा…।

मानक का कथन दुश्मनों के लिए- वह मेरे पीछे लगा हुआ है।…वह मुझे मारना चाहता है।…उसने मेरा सारा शरीर ज़ख़्मी कर दिया है।…मैं दौड़ता हूँ तो वह पीछे दौड़ता है। मैं रेंगता हूँ तो वह पीछे रेंगता है। वह मुझे नहीं छोड़ेगा। वह बड़ा ख़तरनाक है…पानी?

बिशनी का कथन- (उसे और साथ सटाकर, आश्वस्त स्वर में) हाँ बेटे! तेरी जान के साथ तेरी माँ की जान है। मैं जीती हूँ तो तुझे कैसे कुछ हो सकता है?

सिपाही का कथन- तू इसकी माँ है? (उसे और भी घूरकर देखकर) पर तू देखने में तो इस वहशी की माँ नहीं लगती।…तुझे पता है, यह लड़ाई में वहशियों की तरह गोलियाँ चलाता है। इसने न जाने कितने सिपहियों की जान ली है!…यह इनसान नहीं, जानवर है। और तू कहती है कि तू इसकी माँ है!

बिशनी का कथन- अगर लडक़ी के ब्याह की चिन्ता न होती तो हम लोग आधा पेट खाकर रह लेते, पर मैं कभी इसे लड़ाई पर न भेजती। लडक़ी 2 लडक़ी

बिशनी का कथन- (दूसरे सिपाही के लिए) नहीं मानक, तू इसे नहीं मारेगा! यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है। इसकी माँ इसके पीछे रो-रोकर पागल हो गयी है। इसके घर में बच्चा होनेवाला है। वह मर गया तो इसकी बीवी फाँसी लगाकर मर जाएगी…।