- प्रकाशन-1875
- अंक-6
- पात्र-भारत भाग्य-(भारत का सहयोगी चरित्र)
- भारत दुर्दैव के सहायक गौण पात्र -(मदिरा,लोभ,अहंकार,सत्यानाश फौजदार आदि।)
- अन्य पात्र-देशोद्धार में जुटे हुए लोग,एक सभापति, एक बंगाली,एक एडिटर-(गौण पुरुष पात्र)
- 1.यह नाटक भारतेंदु युग का दस्तावेज है।जिसमें वर्तमान सामाजिक,राजनीतिक, आर्थिक तीनों स्थितियों का वर्णन है।
- 2.यह नाटक युगीन समस्याओं की ओर इशारा करता है,कि किस तरह हम लक्ष्य से विमुख होकर पतन की तरफ बढ़े जा रहे हैं।
- 3. भारतेंदु के लिए देश की गुलामी से ज़्यादा भारतीय समाज का दिन-प्रतिदिन बढ़ता हुआ पतन मायने रखता था।
- 4.यह दुखान्त नाट्य रासक है।
- 5.नवजागरण की चेतना और राष्ट्रीय बोध से परिपूर्ण प्रहसन है।
- 6.इसमें भारतेंदु ने गद्य की भाषा जहाँ खड़ी बोली हिंदी रखी है,वहीं पद्य की भाषा ब्रजभाषा है।
- 7.यह प्रतीकात्मक प्रहसन है।
- 9.लास्य रूपक के रूप में भी इस नाटक को जाना जाता है।
- 10. भारतेंदु भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अंत करने का प्रयास करने का आह्वान करते हैं।
- बाबू गुलाब ने इस नाटक को-
- दुखांत माना है।भारत दुर्दशा नाटक के सम्बंध में आपत्ति की है कि वह दुखान्त है और उसमें आशा का कोई संदेश नहीं है।कवि का उद्देश्य जागृति उत्पन्न करना था वह आशा और उत्साह द्वारा हो चाहे करुणा के द्वारा।
- डॉक्टर रेवती रमन ने इस नाटक के संदर्भ में लिखा है-
- भारत दुर्दशा में भारत और भारतभाग्य का पक्ष अत्यंत दबा हुआ है।भारत को नायक माने तो उसका नायकत्व परम्परागत बिल्कुल नहीं है।अनोखा हो तो हो।
(मंगलाचरण)
जय सतजुग-थापन-करन, नासन म्लेच्छ-आचार।
कठिन धार तरवार कर, कृष्ण कल्कि अवतार ।।
- पहला अंक-(स्थान-बीथी)
- रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई।
- हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।।ध्रुव।।- (लावनी)
- (छंद/गेय/22 मात्राएँ)
- “सबके पावहले जेवह ईश्वर धन – बल दीनो।
- सबके पहले जेवह सभ्य विधाता कीन्हो।।”-(समाज को जागरूक करने के लिए इतिहास/पुराण का सहारा लिया है)
- इस लावनी में हरिश्चंद्ररु,नहुष,ययाती,सर्याती)का नाम आया है।
- परिचय-
- 1.हरिश्चंद्ररु-(सूर्यवंश के प्रख्यात नरेश हरिश्चंद्र-राम के पूर्वज-अपनी दानशीलता+सत्य विचारों के लिए अमर)
- 2.नहुष- (राम के पूर्वज-पुण्य काया से स्वर्गप्राप्ति,पर श्रापवश सर्प योनि धारण,मैथिलीशरण गुप्त ने इन्हें लेकर सुंदर खंड-काव्य रचना की है)
- 3.ययाति- (नहुष के पुत्र,शुक्राचार्य की कन्या देवयानी के पति वृद्धावस्था में अपने पुत्रों की मृत्यु से यौवन/अमरता प्राप्ति)
- 4.सर्याती- (भागवत के अनुसार-वैवस्वत मनु के एक पुत्र का नाम)
- दूसरा अंक-(स्थान-श्मशान, टूटे-फूटे मंदिर)
- गीत-
- कोऊ नहिं पकरत मेरो हाथ।
- बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय अनाथ।।(भारत गाता है)
- प्राण देना तो कायरों का काम है।-(निर्लज्जता का कथन)
- तीसरा अंक- (स्थान-मैदान)
- कहाँ गया भारत मूर्ख! जिसको अब भी परमेश्वर और राजराजेश्वरी का भरोसा है?- (भारत दुर्दैव का कथन)
- गीत-
- 1.उपजा ईश्वर कोप से औ आया भारत बीच।
- छार खार सब हिंद करूँ मैं, तो उत्तम नहिं नीच।
- 2.मरी बुलाऊँ देस उजाडूँ महँगा करके अन्न।
- सबके ऊपर टिकस लगाऊ, धन है भुझको धन्न।
- अँगरेजी अमलदारी में भी हिंदू न सुधरें! लिया भी तो अँगरेजों से औगुन! हा हाहा! कुछ पढ़े लिखे मिलकर देश सुधारा चाहते हैं? हहा हहा! एक चने से भाड़ फोड़ेंगें।- (भारत दुर्दैव का कथन)
- जब स्नेह ही नहीं तब देशोद्धार का प्रयत्न कहाँ- (सत्यानाश फौजदार का कथन)
- अब हिंदुओं को खाने मात्र से काम,देश से कुछ काम नहीं- (सत्यानाश फौजदार का कथन)
- फूट, डाह, लोभ, भय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपात, हठ, शोक, अश्रुमार्जन और निर्बलता इन एक दरजन दूती और दूतों को शत्रुओं की फौज में हिला मिलाकर ऐसा पंचामृत बनाया कि सारे शत्राु बिना मारे घंटा पर के गरुड़ हो गए।- (सत्यानाश फौजदार का कथन)
- चौथा अंक-(कमरा अँगरेजी सजा हुआ, मेज, कुरसी लगी हुई। कुरसी पर भारत दुर्दैव बैठा है)
- (रोग का प्रवेश)
- कुपथ्य का मित्र और पथ्य का शत्रु मैं ही हूँ।- (रोग का कथन)
- ग़ज़ल-
- दुनिया में हाथ पैर हिलाना नहीं अच्छा।
- मर जाना पै उठके कहीं जाना नहीं अच्छा।।
- जो कोई काम न करे वही अमीर- (आलस्य का कथन)
- संसार में चार मत बहुत प्रबल हैं, हिंदू बौद्ध, मुसलमान और क्रिस्तान।(मदिरा का कथन)
- सरकार के राज्य के तो हम एकमात्र भूषण हैं।- (मदिरा का कथन)
- होटल में मदिरा पिएँ, चोट लगे नहिं लाज।
- लोट लए ठाढे़ रहत, टोटल दैवे काज ।।
- कोउ कहत मद नहिं पिएँ, तो कछु लिख्यों न जाय।
- कोउ कहत हम मद्य बल, करत वकीली आय।।- (मदिरा का कथन)
- हिंदुओं के तो मैं मुद्दत से मुँहलगी हूँ,अब आपकी आज्ञा से और भी अपना जाल फैलाऊँगी और छोटे बडे़ सबके गले का हार बन जाऊँगी। – (मदिरा का कथन)
- जै जै कलियुग राज की, जै महामोह महराज की।
- अटल छत्र सिर फिरत थाप जग मानत जाके काज की।।- (अंधकार का गायन)
- वहाँ दुष्टा विद्या का प्राबल्य है, मैं वहाँ जाही के क्या करूँगा? गैस और मैगनीशिया से मेरी प्रतिष्ठा भंग न हो जायेगी।- (अंधकार का कथन भारत दुर्दैव के प्रति-विलायत के सम्बंध में)
- बिना एकता-बुद्धि-कला के भए सबहि बिधि दीन।।- (अंधकार का गायन)
- पाँचवाँ अंक- (स्थान-किताबखाना)
- कमेटी में आने से कमिश्नर हमारा नाम तो दरबार से खारिज न कर देंगे?- (दूसरा देशी का कथन)
- अच्छा तो एक उपाय यह सोचो कि सब हिंदू मात्रा अपना फैशन छोड़कर कोट पतलून इत्यादि पहिरें जिसमें सब दुर्दैव की फौज आवे तो हम लोगों को योरोपियन जानकर छोड़ दें।- (कवि का कथन)
- यह कोई नहीं कहता कि सब लोग मिलकर एक चित हो विद्या की उन्नति करो, कला सीखो जिससे वास्तविक कुछ उन्नति हो। क्रमशः सब कुछ हो जायेगा।- (पहला देशी)
- छठा अंक- (स्थान-गंभीर वन का मध्यभाग)
- सोअत निसि बैस गँवाई। जागों जागो रे भाई ।।
- निसि की कौन कहै दिन बीत्यो काल राति चलि आई।- (भारत भाग्य राग चैती गौरी गाता है)
- भारत के भुजबल जग रक्षित।
- भारतविद्या लहि जग सिच्छित ।-(भारत-भाग्य)
- जो जान-बूझकर सोता है उसे कौन जगा सकेगा- (भारत के लिए)
- देखो विद्या का सूर्य पश्चिम से उदय हुआ चला जाता है-(भारतभाग्य का कथन)