हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण
हिंदी साहित्य के इतिहास को काल विभाजन के रूप में पहली बार जॉर्ज ग्रियर्सन ने प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ नॉर्दन हिन्दुस्तान’ (1888 ई.) में हिंदी साहित्य के सम्पूर्ण काल को 12 भागों में विभाजित किया। इनमें से 6 अध्याय मुख्य रूप से साहित्य के विभिन्न युगों का वर्णन करते हैं, जबकि शेष 6 परिशिष्ट के रूप में दिए गए हैं, जो इस काल विभाजन को अधिक विस्तार और स्पष्टता प्रदान करते हैं। उनके द्वारा किया गया काल-विभाजन इस प्रकार है:
i. चारणकाल (700-1300 ई.)
ii. पन्द्रहवीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
iii. मलिक मुहम्मद जायसी का प्रेम काव्य
iv. ब्रज का कृष्ण काव्य (1500-1600 ई.)
v. मुगल दरबार रीतिकाव्य (1580-1692 ई.)
vi. तुलसीदास
vii. रीतिकाव्य
viii. तुलसीदास के अन्य परवर्ती कवि (1600-1700 ई.)
ix. अठारहवीं शताब्दी (1700-1800 ई.)
x. कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान
xi. महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान (1857 ई.-1887 ई.)
xii. विविध अज्ञात कवि
मिश्र बंधुओं ने हिंदी साहित्य के सम्पूर्ण इतिहास को 8 भागों में विभाजित किया। यह विभाजन इस प्रकार है:
- आरंभिक काल (700-1444 वि.)
i. पूर्वारंभिक काल (700-1343 वि.)
ii. उत्तरारंभिक काल (1344-1444 वि.) - माध्यमिक काल (1445-1680)
i. पूर्वमाध्यमिक काल (1445-1560 वि.)
ii. प्रौढ़ माध्यकाल (1561-1680 वि.) - अलंकृत काल (1681-1889 वि.)
i. पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि.)
ii. उत्तरालंकृत काल (1791-1889 वि.) - परिवर्तन काल (1890-1925 वि.)
- वर्तमान काल (1925 वि. से अब तक)
(मिश्रबंधु विनोद) में मिश्रबंधु द्वारा किया गया हिंदी साहित्य का काल विभाजन कई आलोचनाओं का शिकार हुआ है। आलोचकों के अनुसार, इसमें मनमाने ढंग से नामकरण और काल-विभाजन किया गया है, जो पूरी तरह से कालानुक्रमिक पद्धति पर आधारित है। इस पद्धति के कारण साहित्य के विभिन्न युगों और उनके विकास की वास्तविकता को समझने में कठिनाई होती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस विभाजन की आलोचना करते हुए लिखा है कि – “सारे रचना काल को केवल आदि, मध्य, पूर्व, उत्तर इत्यादि खण्डों में आँख मूँदकर बाँट देना और यह भी न देखना कि किस खण्ड के भीतर क्या आता है और क्या नहीं—किसी वृत्त संग्रह का इतिहास नहीं बन सकता।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ पहली बार ‘हिंदी साहित्य का विकास’ नाम से हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप में जनवरी 1929 में प्रकाशित हुई थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1929 ई.) में हिंदी साहित्य के काल विभाजन को निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत किया है:
- आदिकाल (वीरगाथाकाल) संवत् 1050-1375 वि.
- पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) संवत् 1375-1700 वि.
- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) संवत् 1700-1900 वि.
- आधुनिक काल (गद्यकाल) संवत् 1900 वि. से अब तक
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन पद्धति के 2 आधार हैं: (1) प्रधान प्रवृत्ति और (2) ग्रंथों की प्रसिद्धि। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को ‘वीरगाथा काल’ नाम दिया। उन्होंने इस काल की रचनाओं में वीरता की प्रधानता को ध्यान में रखते हुए इसका यह नामकरण किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को ‘वीरगाथा काल’ नाम देने के पीछे 12 प्रमुख ग्रंथों की सहायता ली। इन ग्रंथों का अध्ययन करके उन्होंने इस काल की रचनाओं में वीरता की प्रमुखता को स्पष्ट किया।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार साहित्यिक पुस्तक केवल चार हैं:
- विजयपाल रासो – नल्ल सिंह
- हम्मीर रासो – शारंगधर (अपभ्रंश, 1357 वि.सं.)
- कीर्तिलता – विद्यापति (1460 वि.सं.)
- कीर्तिपताका – विद्यापति (अवहट्ठ, 1460 वि.सं.)
देशभाषा काव्य की आठ पुस्तकें हैं:
- खुमाण रासो – दलपत विजय (वि.सं. 1280)
- बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह (वि.सं. 1212)
- पृथ्वीराज रासो – चन्दबरदाई
- जयचन्द प्रकाश – भट्ट केदार
- जयमयंक जस चन्द्रिका – मधुकर कवि (1240 वि.सं.)
- परमाल रासो (आल्हा का मूल रूप) – जगनिक (1230 वि.सं.)
- खुसरो की पहेलियाँ आदि
- विद्यापति पदावली
डॉ. वर्मा ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (1938 ई.) में हिंदी साहित्य के इतिहास को 693 ई. से 1693 ई. तक विभिन्न कालखंडों में विभाजित किया है:
- संधिकाल (750 वि. – 1000 वि.)
- चारण काल (1000 वि. – 1375 वि.)
- भक्तिकाल (1375 वि. – 1700 वि.)
- रीतिकाल (1700 वि. – 1900 वि.)
- आधुनिक काल (1900 वि. से अब तक)
डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन इस प्रकार है:
- आदिकाल – 1000 ई. – 1400 ई.
- पूर्व मध्यकाल – 1400 ई. – 1700 ई.
- उत्तर मध्यकाल – 1700 ई. – 1900 ई.
- आधुनिक काल – 1900 ई. से अद्यावधि
डॉ. नगेन्द्र के अनुसार हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार है:
- आदिकाल – सातवीं शताब्दी के मध्य से 14वीं शताब्दी के मध्य तक
- भक्तिकाल – चौदहवीं शताब्दी के मध्य से 17वीं शताब्दी के मध्य तक
- रीतिकाल – सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से 19वीं शताब्दी के मध्य तक
- आधुनिक काल – उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से अब तक
(क) पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु युग – 1857-1900 ई.)
(ख) जागरण-सुधार काल (द्विवेदी युग – 1900-1918 ई.)
(ग) छायावाद काल (1918-1938 ई.)
(घ) छायावादोत्तर काल
(1) प्रगतिवाद प्रयोग काल (1938-1953 ई.)
(2) नवलेखन काल (1953 ई. से अब तक)
डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ (1965 ई.) में हिंदी साहित्य को चार प्रमुख कालखंडों में बाँटा है। ये कालखंड इस प्रकार हैं:
- प्रारम्भिक काल – 1184 -1350 ई.
- पूर्व मध्यकाल – 1350 -1600 ई.
- उत्तर मध्यकाल – 1600 -1857 ई.
- आधुनिक काल – 1857 ई. – अब तक
डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त के अनुसार, हिंदी के प्रारंभिक और मध्यकाल के साहित्य को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
- धर्माश्रित काव्य – धार्मिक रास काव्य परंपरा, संतकाव्य परंपरा, पौराणिक काव्य
- राज्याश्रित काव्य – ऐतिहासिक काव्य, वीर गाथा, राजाश्रित कविता
- लोकाश्रित काव्य – लोकगीत, लोककाव्य, लोक नाट्य
हिंदी साहित्य का वास्तविक काल-विभाजन विभिन्न विद्वानों के अनुसार निम्न है –
हिंदी साहित्य के काल विभाजन को निम्नलिखित प्रमुख कालखंडों में प्रस्तुत किया जा सकता है :
- आदिकाल (1000-1350 ई.)
- पूर्व मध्यकाल (1350-1650 ई.)
- उत्तर मध्यकाल (1650-1850 ई.)
- आधुनिक काल (1850 ई. से वर्तमान समय तक)
(क) पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु युग) (1850-1900 ई.)
(ख्) जागरण-सुधार काल (द्विवेदी युग) (1900-1918 ई.)
(ग) छायावाद काल (प्रसाद-पंत-निराला युग) (1918-1936 ई.)
(घ) प्रगतिवाद काल (साम्यवादी युग) (1936-1942 ई.)
(ङ) प्रयोगवाद काल (अज्ञेय-तारसप्तक युग) (1942-1952 ई.)
(च) नवलेखन युग (नई कविता युग) (1952 ई. से वर्तमान समय तक)