आम के छिलके
“ढलिया की माँ बैलों को कुट्टी सानी लगा दो मैं जरा मस्जिद से आ रहा हूँ” इन्सूल की आवाज भोर की सन्नाटों को चीरते हुए चूल्हिया की कानों तक पहुँची जो आंगन में झाड़ू लगा रही थी।
जवाब में दोनों बैल उठ खड़े हुए। आज चूल्हिया बहुत जल्दी में है और दिन वह देर से सोकर उठती थी। आंगन और बथान में झाड़ू लगाकर फिर चूल्हा निपती, उसके बाद बैलों को कूट्टी-सानी लगाती, गोबर के उपले बनाकर तब वह दोपहर की खाना बनाती थी। तब तक उसकी बेटी ढलिया भी मदरसा से आ जाती थी। इन्सूल भी खेत से आ जाता था। सब मिलकर एक साथ खाना खाते थे। लेकिन आज ऐसा संभव नहीं है और न आज गोबर उठाने का समय है न, चूल्हा जलाने की फुर्सत है।…आज ढलिया मदरसा भी नहीं जा पाएगी। …चूल्हिया आंगन में झाड़ू लगाकर बैलों को कुट्टी सानी लगा ही रही थी। ..इधर इन्सूल कंधे पर हल लिए खड़ा है
“कुछ खा लेने दो, दिनभर हल खिंचना है दोनों बाछा को” चूल्हिया ने इन्सूल से कहा
“आज मुखिया का खेत निपटेगा तभी कोई दुसरा खेत में काम मिलेगा” इन्सूल ने चूल्हिया को समझाते हुए कहा
“मुखिया का खेत आज हो जाएगा”
“ज्यादा थकना पड़ेगा”
“जमाना बदल गया है”
“कुछ नहीं बदला है बैठकर सिर्फ मुखिया जैसे लोगों के पेट भरता है हम मेहनत करके भी मड़ुआ की रोटी से गुजारा करते हैं वो भी कभी नसीब होता है तो कभी नहीं होता अमीरों के घर नाश्ते में गेहूँ की रोटी, दूध, गुड़ और फलों का जूस लेते हैं.. उनके घर आम का छिलका को कोई चाटता भी नहीं है”। …इन्सूल बोलते जा रहा था।”कुत्ते को भी दूध मिलता है बिस्कुट मिलता है ..नहीं खा पाते तो फेंक दिया जाता है”।
चूल्हिया सोच में पड़ गई कि कैसे एक ही वक्त में इतना कुछ खा सकते हैं।.. वो याद करती है कि पिछला बार आम वह तब खाई थी जब ढलिया पैदा हुई थी तो उसकी माँ लेकर आई थी। अब उसकी माँ नहीं रही नहियर से अब कुछ नहीं आता है।जमाना बदल गया है आम का छिलका भी नसीब नहीं होती है।
इन्सूल बैलों के गले से रस्सी खोल देता है।
“चलो ढलिया की माँ देर हो रही है”। इन्सूल बैलों को हाँकते हुए आगे बढ़ गया।
चूल्हिया अपनी बेटी ढलिया और बकरी को लेकर खेत की ओर बढ़ गई रास्ते में नहर पर बकरी को घास चरने के लिए ठोक देती है।
चूल्हिया बियार की खेत में पहुँच कर। ढलिया को सूखे खेत में फटे कपड़े बिछाकर उसे बिठा देती है। और उसे उसकी मनोहर-पोथी की किताब पोटरी से निकाल कर देती है। और ढ़लिया को कहती है ” मौलवी साहब ने जो सबक दिया है सबको याद करके पानी माँगना”। ढलिया सिर हिलाकर हामी भरती है।
चूल्हिया चाहती है कि उसकी बेटी पढ़ लिख ले। वह अपनी बेटी का नाम स्कूल में लिखाने के लिए कई बार इन्सूल से जिद्द कर चुकी है।
लेकिन इन्सूल को डर स्कूल के असुरक्षित होने से है। कुछ ही दिन पहले स्कूल की एक दीवार ढह गई थी जिनके नीचे दो बच्चे के दब जाने से मौत हो गई थी किसी किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ा। लेकिन चूल्हिया फिर भी चाहती है कि उसकी बेटी स्कूल में पढ़े। स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ एक टेम का खाना भी मिलेगा।
इन्सूल डीह के खेत कादो करके बड़हड़ के पेड़ के नीचे दोनों बैल को बाँध दिया। कुछ देर आराम करके फिर ईदगाह के पास के खेत में कादो करेगा। उधर चूल्हिया बियार की गड्डी बना रही है।
“इन्सूल्वा कहाँ है रे” चूल्हिया डर गई
मुखिया खेत की निगरानी करने के लिए आया है वह हमेशा अभद्र भाषा का प्रयोग करता है। चूल्हिया को कभी-कभी गुस्सा भी आता पर अपने गुस्सा को पी कर रह जाती है।
“वह ईदगाह पर के खेत कादो कर रहा है” चूल्हिया धीमी स्वर में बोली
“आज सहरसा वाली बीमार है शाम को घर आकर खाना बना देना” मुखिया आदेश देते हुए कहा और ईदगाह की ओर बढ़ गया।
चूल्हिया को चिंता होने लगी कि अगर मुखिया के घर गई तो अपने घर में रात का चूल्हा नहीं जल पाएगा। सबको भूखा ही सोना पड़ेगा खुद तो सह लेगी, इन्सूल भी सह लेगा लेकिन ढलिया कैसे सह पाएगी? सुबह से कुछ नहीं खाई है।अभी से उनकी होठ सूख रहे हैं अगर नहीं गई तो मुखिया खेत का काम किसी और को दे देगा, और मजदूरी रोकेगा सो अलग।
चूल्हिया का हाथ धीमा पड़ गई कभी वह अपनी बेटी ढलिया की ओर देखती तो कभी आँख बंद कर लेती।
“रे इन्सूल्वा अभी तक तु कदो ही कर रहा है तो रोपेगा कब”। मुखिया फटकारते हुए कहा। इन्सूल चौंक गया।
“ह-ह-जूर आप यहाँ” इन्सूल आश्चर्यचकित होकर पूछा।
“अपने मौगी का भी और खुद का भी पिछवाड़े का दम लगाकर आज काम ख़त्म कर दे हर हाल में” मुखिया ने इन्सूल को हिदायत देते हुए कहा
“जी साहब… आप बिल्कुल फिकर मत करोआपका ही खेत सबसे पहले होगा”।इन्सूल ने मुखिया की ओर देखते हुए कहा।
“आज शाम को अपनी मौगी को मेरे पास भेज देना” मुखिया ने कहा।
इन्सूल को हैरानी हुई वह मुखिया से पूछना चाहता था कि आखिर क्या काम है? पर डर के मारे पूछ न सका।
“आँए रे तेरा बौ तो बहुत शर्माती है मुझे देखकर समझाता क्यों नहीं है उसे” मुखिया निर्लज्जतापूर्वक बोला। मुखिया के मुंह से ऐसी बात सुनकर इन्सूल को जोर का धक्का लगा। वह अपने कान पर यकीन नहीं कर पा रहा था।
“जब से तु उसे ब्याह करके लाया है कभी भरपेट रोटी नहीं खाई होगी, बेचारी का हाल भी अपने जैसा कर रखा है” मुखिया की बात सुनकर इन्सूल को गुस्सा आ रहा था।वह काँपने लगा था। उसे आभास होने लगा था कि अब मुखिया का खेत छोड़ देने में ही भलाई है।वह मुखिया को कहना चाहता था कि ” तुम्हारी सोच से ज्यादा मेरी औरत का नियत साफ है तुम्हारे घर की इत्र से ज्यादा मेरी औरत की ईमान की खुशबू ज्यादा है, तुम्हीं लोगों के जुलम से हम भर पेट खाना नहीं खा पाते”। पर मन की बात मन में ही दबा कर रह गया।
“शाम को अपनी मौगी को जल्दी भेज देना सहरसा वाली बीमार है खाना बनाकर चली जाएगी” मुखिया इन्सूल को आदेश देकर चल पड़ा। इन्सूल को मुखिया की नियत पर शक था। मुखिया पहले भी कई औरतों को घर बुलाकर उसके साथ बदसलूकी कर चूका है।
“मुउ..उ उखिया जी” इन्सूल ने मुखिया को आवाज लगाकर रोका।
“साब आज कुछ रूपए चाहिए बेटी का स्कूल में नाम लिखाना है” डरते-डरते इन्सूल ने मुखिया से कहा।
“बेटी को पढ़ाकर तु पूरे गांव का माहौल ख़राब करना चाह रहा है? तुझे पता नहीं है बेटी घर की इज्ज़त होती है। घर में ही रहना चाहिए।जिसने भी बेटी को स्कूल में पढ़ाया है।सबके मुँह काला हुए हैं। अभी कुछ दिन पहले ही तो धुनिया टोली के एक लड़की एक हिन्दू लड़के के साथ भाग गयी पूरे महीने पुलिस फोर्स का आना-जाना था। उन गंड़खूल्लो के वजह से मेरी भी नींद हराम हुई।अरे तुझ जाहिल को कुछ खबर है भी नहीं।” मुखिया आगे धमकी देता है।
“अगर तुने बेटी का नाम स्कूल में लिखाया तो तेरी हुक्का-पानी इस गांव से बंद हो जाएगा”।
इन्सूल इत्मीनान से सारी बातें सुना। वह मुखिया के इरादे को भांप चूका था।उन्हें पूरा यकीन था कि अगर मुखिया के जुल्म और अत्याचार से मुक्ति पाना है तो बेटी को अच्छे से पढ़ाना जरूरी है।
उन्होंने मन में पूरा ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए ढलिया का नाम स्कूल में जरूर लिखवाएगा किसी की भी नहीं सुननी है।
“साब मैं अनपढ़ जरूर हूँ पर मेरी बेटी अनपढ़ नहीं होगी।” इन्सूल ने इरादे मजबूत करते हुए कहा।
“पर तेरी बेटी जब मदरसा जा रही है तो स्कूल जाकर क्या करेगी? कलेक्टर बन जाएगी?” मुखिया गुस्से में बोला।
“सबके बच्चे स्कूल जाते हैं तो क्या सबके बच्चे बिगड़ गए हैं? आजकल तो बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है”। मुखिया को यह बात मिर्ची की तरह लगी।
“भेज दियो अपनी औरत को ले जाएगी रूपया” मुखिया तेजी से आगे बढ़ गया।
चूल्हिया की नज़र आसमान में काले बादल की ओर गई।वह घबरा गई।चूल्हिया ने जल्दी से ढलिया का हाथ पकड़कर खेत पार कराया और बड़हड़ के पेड़ के नीचे ले आई। इन्सूल ने भी बैलों के गले से रस्सी खोल दी और बारिश से बचने के लिए बड़हड़ के पेड़ के नीचे शरण ली।चूल्हिया भागती हुई बकरी खोलकर ले आई।बारिश काफी तेज हो गई थी।
मेघ रह रहकर बहुत तेज ढंणढणा रहा था।
“आज नहीं हो पाएगा रोपा” इन्सूल ने चूल्हिया की ओर देखते हुए कहा।
“इतना तेज बारिश में कैसे कोई काम कर सकता है?” चूल्हिया चितां व्यक्त करते हुए बोली।
इन्सूल ने ढलिया को गोद में ले लिया और चूल्हिया ने बकरी को अपनी गोद में लेकर बारिश से बचने का प्रयत्न करने लगी । पानी का तेज झोंका ने चूल्हिया को गीला कर दिया, इन्सूल भी बच नहीं पाया। दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए। इन्सूल ने बारिश छूटने के लिए बच्चों की तरह गाना शुरू कर दिया।
“लोटा में हल्दी
पानी छूटे जल्दी”।
चूल्हिया नहीं चाहती थी पानी छूटे, वह भी गाने लगी।
“लौटा में रस
पानी बरस”।
“तु ये क्या गा रही है?मुखिया सुन लिया तो जान से मार देगा” इन्सूल चितिंत होकर कहा
चूल्हिया उठ खड़ी हुई,चिढ़ते हुए बोली।
“मुखिया घर में आम का छिलका चाट रहा होगा! यहाँ सुनने के लिए बैठे उसके पिछवाड़े में इतना दम कहाँ है? “
“चूप करो! आज कल दिवार के भी कान होते हैं किसी ने कान भर दिए तो खेत से हाथ धोना पड़ेगा” इन्सूल ने चूल्हिया को डाँटते हुए कहा।
“मेहनत करें हम मुनाफा कमाए मुखिया।.. मजदूरी मागों तो एहसान समझ कर एक टेम का रोटी देते हैं।..बदले में इज्जत पर नज़र रहती है।” चूल्हिया खड़ी हो गई।
“हम गरीबों की सुनने वाला कौन है? सरकार के अधिकारी मुखिया की सुनते हैं हमारी नहीं। ” इन्सूल ने असंतोष के भाव से बोला।
“मुखिया आज फिर से मुझे घूर-घूर कर देख रहा था।सहरसा वाली के बीमार के बहाने मुझे शाम में घर बुलाया है मुझे उस पदवा के पोता के घर नहीं जाना है” चूल्हिया शिकायत करते हुए बोली। वह रोने लगी, माँ को रोते हुए देख ढलिया भी रोने लगी इन्सूल ने चूल्हिया की आँख पोछ कर ढाँढस देते हुए कहा।
“अल्लाह मियाँ आखरत में मुखिया के तमाम जुल्म को पकड़ेगा गवाही देने के लिए मैं रहूंगा, तु रहेगी, ढलिया रहेगी, ये बकरी रहेगी”।
बारिश हल्की हो गई दोनों खेत में उतर गए। अंधेरा छाने तक दोनों एक लय में रोपणी करते रहे। खेतों में से सारे किसान धीरे-धीरे खेत से चले गए। चरवाहे भी लौट रहे हैं। मवेशीयों की खुर की आवाज कानों में हल्की पड़ने लगी। सूरज पूरी तरह से ढल गया,अंधेरा छा गया। दोनों अभी भी खेत में संघर्ष कर रहे हैं सूरज को ढलने से रोकने की। ढलिया अंधेरा से डर गई। वह जोर-जोर से रोने लगी। बकरी भी मिमियाने लगी। दोनों खेत से बाहर आ गए। मिट्टी से सने हाथ-पैर धोकर चारों तरफ नज़र दौड़ाया अंधेरा इतना घना हो गया था कि कुछ दिखाई नहीं दिया। दोनों ने दिनभर कुछ नहीं खाया था। चूल्हिया को आगे बढ़ने में तकलीफ हो रही थी। इन्सूल ने हौसला बढ़ाया,अंधेरा काफी घना हो चुका था। इन्सूल ने ढलिया को गोद में ले लिया। चूल्हिया न चाहते हुए भी मुखिया के घर गई। वह काफी डरी हुई थी। पेट पर हाथ रखकर बर्तन मांजने बैठ गई। उसे बर्तन में आम के छिलके मिले वह इतनी भूखी थी कि झट से छिलका उठाकर चबाकर खा गई।और लोटाभर पानी पी गई। उसके शरीर में जान वापस आ गई थी, वह फुर्ती से काम करने लगी। चूल्हिया कभी कल्पना नहीं कर सकती थी की इतने सारे खाने-पीने का सामान एक ही रसोईघर में हो सकते हैं। वह खाने बनाते-बनाते अपने रसोईघर के बारे में सोचने लगी। तभी अचानक मुखिया सामने आ गया।चुल्हिया ने चूल्लू नीचे कर ली।
“तुम मुझसे इतना शर्माती क्यों हो? इन्सूलवा तुझे कभी सुख से नहीं रखेगा। मुझसे निकाह कर ले।” मुखिया चूल्हिया को समझाते हुए बोला
चूल्हिया कुछ नहीं बोली, वह रोटी बेली जा रही थी
“मैं तुझे हमेशा खुश रखूगाँ,तु जैसा कहेगी फैसला वैसा करूगाँ, तु मुखियैन कहलाएगी रानी बनकर रहेगी बस मुझसे निकाह कर ले” मुखिया लभावन बातें करता रहा मानो जैसे कोई नेता चुनावी घोषणा कर रहा हो जनता से। चूल्हिया को मुखिया की बातों का कोई असर नहीं हुआ। वह गुस्से से लाल हो गई। मुखिया ने चूल्हिया का हाथ जबरदस्ती पकड़ लिया। वह एक झटके में मुखिया से अपने हाथ छूड़ा ली, वह उठ खड़ी हुई मखिया को घूरने लगी जैसे शेरनी शिकार को घूरती है।
वह तेज आवाज में बोलने लगी “अगर तु बाप का जलमल है तो मुझे हाथ लगाकर देख तुझे जिदां खा जाँउगी तेरी हड्डियों को कुत्ते को दे दूँगी खाने।” मुखिया चूल्हिया के इस रूप को देखकर भयभीत हो गया उसे लगा चूल्हिया को भूत लग गया है। सहरसा वाली आगंन में आ गई, पड़ोस के सभी लोग आगंन में एकत्रित हो गए एक जमावरा सा लग गया। सहरसा वाली चूल्हिया को शांत कराने में लग गई। भीड़ में से किसी ने कहा इसे झाड़-फूकं करवाओ। किसी ने पागल घोषित कर पागल खाने भेजने की सलाह दी।
चूल्हिया एक ही बात दोहराई जा रही थी मेरा हिसाब कर दो हम तुम्हारे खेत में काम नहीं करेगें। सहरसा वाली ने समझा बुझा कर घर जाने के लिए मना ली। वह शाप देते हुए बोली पदवा के पोता ने मेरा हक खा गया,खानदान में पिलवा फड़ेगा कोड़ फुटवा, घर घुसना बे मौत मरेगा गरीब की बददुआ लगेगी।
चूल्हिया गाली देते हुए चली गई।आगंन से सब एक एक करके चले गए। सुबह पंचायत बैठी सबसे पहले चूल्हिया ने अपना पक्ष रखा और अपना हिसाब करने की मांग की, मुखिया ने आरोप लगाया कि चूल्हिया ने उसके घर से आम चुराकर खा गई और जब चोरी पकड़ी गई तो मुझे फसांने के लिए रात में हगांमा खड़ी कर दी, हमारी इज्ज़त मिट्टी में मिला दी। पचों से अपील की कि उसका इसांफ करें
फैसला हुआ मुखिया बेगुनाह है। चूल्हिया ने जिस थाली में खाई है उसी में छेद कर दी। ईमानदार नागरिक के इज्ज़त उछालने के जुर्म में चूल्हिया को गाँव छोड़कर जाना होगा।
चूल्हिया इसांफ के लिए पंचो के पैर पकड़ कर रोए। पंचो के मुंह से एक ही बात निकली आम के छिलके चुरा कर खाने की क्या जरूरत थी