वर्ण रत्नाकर – ज्योतिरीश्वर ठाकुर – इस रचना में 8 कल्लोल है। लेकिन 8वाँ कल्लोल अपूर्ण है।
संदेशरासक – अब्दुर्रहमान – इसमें 3 प्रक्रम और 223 छंद है।
पउमचरिउ – स्वयंभू एवं त्रिभुवन (इसमें 83 संधियाँ स्वयंभू द्वारा और 7 संधियाँ त्रिभुवन द्वारा लिखी गयी है)- इसमें 5 कांड का वर्णन है। (विद्याधर कांड, अयोध्या कांड, सुंदरकांड, युद्ध कांड और उत्तरकांड)
कीर्तिलता – विद्यापति – यह रचना 4 पल्लवों में विभक्त है।
बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह – यह रचना 4 खंडों में विभक्त है। माता प्रसाद गुप्त ने इसके 128 छंदों को प्रामाणिक माना है।
पृथ्वीराज रासो – चंदरबरदाई – इस रचना में 69 समय (समय को सर्ग भी कहा जाता है) है।
रामचरितमानस – तुलसीदास – यह रचना 7 कांडों में विभक्त है।
कवितावली – तुलसीदास – यह रचना 7 कांडों में विभक्त है। और इसमें 325 छंद है।
पद्मावत -जायसी – इस रचना में 57 खंड है।
सूरसागर – सूरदास – इस रचना में 12 स्कंध है।
रास पंचाध्यायी – नंददास – इस रचना में 5 अध्याय है। और इसमें रोला छंद का प्रयोग हुआ है।
रामचंद्रिका – इस रचना में 39 प्रकाश है।
बिहारी – सतसई – बिहारी – इस रचना में 713 दोहें है।
कवित्त- रत्नाकर – सेनापति – इस रचना में 5 तरंग है। और 394 छंदों का प्रयोग हुआ है।
जयभारत – मैथिलीशरण गुप्त – इसमें 47 शीर्षकों में महाभारत की कथा को कही गयी है।
रश्मिरथी – दिनकर – यह 7 सर्गों का खंड काव्य है। और इसमें कर्ण की कथा कही गयी है।
कुरुक्षेत्र – इस रचना में 7 सर्ग है। (इसके कथा का मूल आधार महाभारत का शांतिपर्व है)
उर्वर्शी – दिनकर – यह 5 अंकों में विभक्त नाटकीय शैली में पुराणप्रसिद्ध पुरुरवा और उर्वर्शी की कथा कही गयी है।
पारिजात – हरिऔध – यह 15 सर्गों में विभक्त है। और यह रचना दार्शनिकता से सम्बंधित है।
प्रियप्रवास – हरिऔध – यह 17 सर्गों की रचना है। और भागवत पुराण पर आधारित है। इसे खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य कहा जाता है।
वैदेही वनवास – हरिऔध – इस रचना में 18 सर्ग है। यह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। इसमें सीता-रामायण की कथा कही गयी है।
साकेत – मैथिलीशरण गुप्त – इसमें 12 सर्ग है। और उर्मिला की व्यथा का वर्णन किया गया है।
उर्मिला – बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ – इस रचना में 6 सर्ग है। इसमें उर्मिला के द्वंद्व और संघर्ष को चित्रित किया गया है।
कामायनी– जयशंकर प्रसाद – इसमें 15 सर्ग है।
द्रोपदी – नरेंद्र शर्मा – 5 सर्गों में विभक्त इस रचना में द्रोपदी की कथा कही गयी है।
अंधेरे में – मुक्तिबोध – इसमें 8 खंड और 71 बंध है।
कालजयी – भवानी प्रसाद मिश्र – इसमें 6 सर्ग है। और यह रचना सम्राट अशोक से सम्बंधित है।
नूरजहाँ – गुरुभक्त सिंह – यह रचना 18 सर्गों में विभक्त है। इसमें नूरजहाँ और शाहजहाँ का प्रेम वर्णित है।
विक्रमादित्य – गुरुभक्त सिंह – यह रचना विशाखदत्त के देवी चंद्रगुप्त पर आधारित महाकाव्य है।
कविप्रिया – केशवदास – यह रचना 16 प्रकाशों में विभक्त है।
पथिक – रामनरेश त्रिपाठी – यह रचना 5 सर्गों में विभक्त है। (इसके प्रथम सर्ग का प्रकाशन ‘मर्यादा’ पत्रिका में हुआ था)
कविता कौमुदी – रामनरेश त्रिपाठी – यह रचना 8 भागों में विभक्त है।
कुणाल – सोहनलाल द्विवेदी – इस रचना में अशोक, तिष्यरक्षिता और कुणाल से सम्बंधित है।
हल्दीघाटी – श्यामनारायण पांडेय – यह रचना 17 सर्गों में विभक्त है। और महाराणा प्रताप के शौर्य, पराक्रम और त्याग का वर्णन किया गया है।
जौहर – श्यामनारायण पांडेय – यह 21 चिंगारियों का महारानी पद्मिनी से सम्बंधित प्रबंध काव्य है।
जौहर – डॉ रामकुमार वर्मा – राणा सांगा की पत्नी द्वारा हुमायूँ से मदद माँगना, जौहर द्वारा प्राण त्यागना, हुमायूँ का पश्चाताप आदि का वर्णन इस रचना में है।
कृष्णायन – द्वारिका प्रसाद मिश्र – इस रचना में 7 कांडों में कृष्ण चरित का वर्णन किया गया है।
आर्यावर्त – मोहनलाल महतो वियोगी – यह 13 सर्गों में विभक्त है। इसमें पृथ्वीराज चौहान व गौरी की कथा के आधार पर राष्ट्रप्रेम का वर्णन किया गया है।